बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

नया-पुराना कश्मीर कश्मीर में लोगों के दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन देख रहे हैं कुलदीप नैयर

प्रख्यात स्तंभकार श्रीमान कुलदीप नैयर का एक आलेख आज के कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ हैं।

आलेख में श्रीमान नैयर ने श्रीनगर को भारत से अलग दिखलाने की कोशिश की हैं, ऐसा क्यों है नैयर साहब ही बतला सकते हैं ................

यह अविश्वसनीय भले ही लगे, परंतु है सत्य। श्रीनगर इतना अधिक बदल गया है कि पहचान पाना कठिन है। नए भव्य हवाई अड्डे से होटल तक लगभग दस किलोमीटर का फासला है, जहां आधुनिक निर्माण ध्यान आकृष्ट करता है। ऐसा लगता है कि दिल्ली के समीप स्थित नोएडा सरीखा एक और नगर अस्तित्व में आ रहा है। वृक्ष निर्ममता से काटे गए हैं और चिर परिचित खड़ंजे खोद दिए गए हैं ताकि आकर्षक सड़कें बन सकें। सड़क के साथ-साथ जो प्राचीरें थीं वे ढहा दी गई हंै और मलवा अभी भी वहां पड़ा है, जिसे सभी देख सकते हैं। संभवत: कुछ नया और आधुनिक उसका स्थान लेगा। मैंने अपने होटल तक का जो सफर तय किया उसमें मुझे पुराने कश्मीरी घर नहीं दिखे। दुकानें सामान से भरी पूरी हैं और ग्राहकों से भी। वहां बहुत अधिक धन दिखता है और अनुमान यह है कि यह धन सऊदी अरब, पाकिस्तान और भारत से आता है। (कुलदीप जी आप जब श्रीनगर गए तो वीसा साथ ले गए थे क्या ? नही क्योंकि श्रीनगर भारत का ही अंग हैं। आप भारत लिख कर क्या जतलाना चाहते हैं। समझ से परे हैं । ) सड़कों पर कारों की संख्या भी अब पूर्व की अपेक्षा कई गुनी है। यातायात अवरुद्ध भी होता है और जब कोई सैर-सपाटे की योजना बनाता है तो उसके लिए अड़चनों को ध्यान में रखना भी जरूरी होता है। लोग आजादी के साथ सड़कों से गुजरते हैं और मैंने अनेक महिलाओं को सड़कों पर बिना बुर्के के आते-जाते देखा। उग्रवाद कमोवेश समाप्त है। कुछ आतंकवादी कभी कभार अपनी कारगुजारी अब भी कर दिखाते हैं। कुछ दिन पूर्व उन्होंने लाल चौक में पुलिस पर हमला किया था, परंतु मैंने ऐसा महसूस किया है कि छोटी-मोटी वारदात को भी बढ़ा-चढ़ाकर तथा सनसनीखेज तरीके से पेश किया जाता है। अब वह दौर नहीं रहा जब हमले नित्य का क्रम थे। अब लोग रात्रि में 11 बजे तक भी सड़कों पर आते-जाते दिखाई देते हैं। हवाई अड्डे से सड़क तक मैंने एक भी पुलिसकर्मी नहीं देखा। ज्यादातर बंकर अब नहीं रहे। मैंने लाल चौक में एक बंकर देखा, जहां कुछ पुलिसकर्मी खड़े थे। उनकी उंगलियां स्वचालित हथियारों के ट्रिगर पर थीं। पूछताछ केंद्र बंद कर दिए गए हैं, किंतु मनमानी नजरबंदी की घटनाएं अब भी होती है। सर्वाधिक चिंता की बात है समय-समय पर किसी युवक का लापता होना। शोपियां में दो महिलाओं से कथित दुष्कर्म जैसी वारदात विरल ही है। जब कभी भी ऐसी वारदात होती है तो उनसे लोग इतने अधिक विक्षुब्ध हो उठते हंै कि सड़कों पर उतर पड़ते हैं। तलाशी का ढंग भी बदल गया है। पुलिसकर्मी अब पूर्व की अपेक्षा अधिक विनम्र हैं और कम परेशान करते हैं। फिर भी एक प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य ने मुझे बताया कि किस तरह से उसे और उसकी पत्नी को सड़क पर तब तक रोके रखा गया था जब तक एक शीर्षस्थ व्यक्ति का हेलीकाप्टर वहां से गुजर नहीं गया। एक पुलिसकर्मी ने उसकी पत्नी की भी तलाशी लेनी चाही थी, किंतु उस व्यक्ति के आग्रह करने पर एक महिला पुलिसकर्मी ने यह काम किया। भारत विरोधी भावना भी वहां मन-मस्तिष्क में है और ऐसा कहने में भी लोग भय नही दर्शाते, मगर पाकिस्तान-समर्थक भावनाएं व्यावहारिक तौर पर अदृश्य हो चुकी हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि कश्मीरियों को उस गड़बड़ी का पता चल चुका है जिससे पाकिस्तान ग्रस्त है। अब आजादी का उल्लेख भी कम होता जा रहा है, क्योंकि यह अनुभूति बढ़ी रही है कि चारों ओर से घिरा क्षेत्र आजाद होने की सोच भी नहीं सकता। मैंने यह भी अनुभव किया कि हुर्रियत के नेता गंभीर और सौम्य हैं। एक नेता ने मुझसे कहा कि उन्हें दिल्ली से यह आशा थी कि कुछ सकारात्मक अवश्य होगा। वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बातचीत से आस लगाए हुए हैं, जो श्रीनगर जाने वाले हैं। प्रधानमंत्री के वहां पहुंचने से पहले हुर्रियत समेत विभिन्न दलों के बीच आम राय बनाने के प्रयास हो रहे हैं। हुर्रियत प्रमुख मीर वायज आम राय बनाने के पक्ष में बताए जाते हैं। राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी चाहते हैं कि नई हुर्रियत समेत सभी राजनीतिक दलों से बात की जाए, परंतु उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि कश्मीर समस्या के समाधान के लिए भारत-पाकिस्तान के साथ वार्ता करे। जब मैं हुर्रियत नेताओं के साथ बैठा था तो मैंने एक रोचक वार्ता सुनी। एक युवा अमेरिकी पाकिस्तानी ने उन्हें बताया कि अपनी पिछली यात्रा से तीन वर्ष की अवधि के बाद उसे देखकर आश्चर्य हुआ है कि कश्मीर भारत द्वारा तेजी से पचाया जा रहा है। वे नेता परेशान से तो थे, परंतु मेरी उपस्थिति में उसकी बात का जवाब नहीं देना चाहते थे। मीर वायज ने कहा कि वह उससे किसी अन्य स्थान पर बात करेंगे। कश्मीर में जन्मा यह युवक वाशिंगटन में विचारक मंडली का एक सदस्य है। उस युवक ने हुर्रियत नेताओं को बताया कि राज्य में हुए स्वतंत्र चुनावों को अमेरिकियों ने बड़ी संख्या में टेलीविजन पर देखा है, जिसका उन पर बहुत प्रभाव हुआ है। उसने यह भी कहा कि अब वे यह सोचने लगे हैं कि समस्या काफी कुछ निपट चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला अपने पुत्र उमर की अपेक्षा अधिक स्पष्टवादी हैं, जो अपनी लोकप्रियता तेजी से खोता जा रहा है। फारुक कहते हैं कि समस्या को जीवित रखने के लिए राज्य में पेड लाबी हैं। वह सुरक्षा बलों, राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों का कश्मीर संकट में निहित स्वार्थ होने का आरोप लगाते हैं। जब वह यह कहते हैं कि नई दिल्ली समस्या के समाधान में गति लाने में असफल रही है तो उनके कथन में एक सार होता है। अब बहुत अधिक समाधानों की चर्चा नहीं होती। एक सुझाव यह है कि दोनों ओर के कश्मीर का विसैन्यीकरण होना चाहिए। भारत अपनी सेनाएं घाटी से हटा ले और उन्हें अपनी सीमा पर तैनात कर ले और पाकिस्तान भी इसी तरह अपने कब्जे वाले क्षेत्र से सेनाएं हटा ले, परंतु ऐसा होना भारत और पाकिस्तान के बीच सहमति पर निर्भर है। नई दिल्ली निश्चित तौर पर एक पक्षीय तौर पर ऐसा करने को तब तक तैयार नहीं जब तक कि प्रश्न हल नहीं हो जाता। जम्मू और लद्दाख की समस्या वस्तुत: गंभीर हो गई है। वे घाटी के साथ रहना नहीं चाहते। जम्मू भारत के साथ मिलना चाहता है और लद्दाख एक केंद्र अधिशासित क्षेत्र का स्तर चाहता है। सत्य है कि हुर्रियत ने कभी भी जम्मू को लुभाने का प्रयास नहीं किया और शायद ही वहां परेशानी में रह रहे पंडितों की कभी सुधि ली हो। फिर भी जम्मू और लद्दाख, दोनों को ही उस स्थिति में मनाया जा सकता है, यदि घाटी उन्हें राज्य के भीतर ही स्वायत्त स्तर दे दे। मुझे इस बारे में संदेह नहीं कि देर-सबेर कश्मीर समस्या का समाधान हो ही जाएगा। अतीत में राज्य में बहुत कुछ ऐसा हुआ है जिससे पुराने कश्मीर के जीवंत होने में कठिनाई आ गई है। लोकप्रिय प्रतीक दम तोड़ रहे हैं। सूफीवाद का स्थान आग्रही इस्लामिक शिक्षाओं ने ले लिया है। कश्मीरी संगीत दम तोड़ता सा लग रहा है, क्योंकि ज्यादातर समाज को इस्लामिक झुकाव के लिए बाध्य कर दिया गया है। पुरानी दस्तकारी अब बहुत कम कलाकारों को आकृष्ट करती है। विद्रोह के दौरान मुस्लिमों और पंडितों के बीच जो सूत्र टूटा था उसका पुन: जुड़ पाना कठिन लगता है। इस्लामी पहचान ने उभार पा लिया है। ग्रामीण अंचलों में यह और अधिक प्रभावी हुआ है। तीनों क्षेत्रों-कश्मीर, जम्मू और लद्दाख के बीच जो बैर भाव है वह दब तो सकता है, समाप्त नहीं हो पाएगा। यह अभी भी जम्मू-कश्मीर राज्य तो रह सकता है, परंतु आत्मा विलुप्त रहेगी। मेरी कामना है कि कश्मीर को उसकी आत्मा पुन: प्राप्त हो जाए। (लेखक प्रख्यात स्तंभकार हैं)

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित