शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

हिंदुस्तान की महान विरासत का उत्सव - राजा कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक का ५०० वां वर्ष





राजा कृष्णदेव राय की प्रतिमा


राजा कृष्णदेव का इक चित्र
विजयनगर साम्राज्य एवं राजा कृष्णदेव राय के 500 वें राज्याभिषेक का आज शुभदिन है । कर्नाटक में इस त्रिदिविसीय समारोह के रूप में मनाया जा रहा है।
सर्वश्रेष्ठ राजा, महान शासक और एक न्याय-पुरुष।’ यह लिखा था सोलहवीं शताब्दी में भारत की यात्रा पर आए एक पुर्तगाली यात्री डॉमिंगोज पेस ने। राजा थे कृष्णदेव राय, जो १५क्९ में विजयनगर की गद्दी पर बैठे थे और चालीस की उम्र में किसी अज्ञात बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके गद्दी पर बैठने के लगभग आधी सहस्राब्दी के बाद उनके राज्याभिषेक का उत्सव मनाया जा रहा है।वे महान योद्धा थे, लेकिन एक योग्य प्रशासक, सहिष्णु राजनीतिज्ञ और कलाओं के महान संरक्षक भी थे। 20 साल की अवधि में कृष्णदेव राय ने विजयनगर को एक विशालकाय साम्राज्य में तब्दील कर दिया था। उनके राज्य की राजधानी और अब विश्व की विरासतों में से एक हम्पी में कृष्णदेव राय की महानता घुली-मिली है। वस्तुत: लगातार हम्पी की तुलना अब रोम से की जाती है।उनके समय में दक्षिण भारत की कला और स्थापत्य अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया था। वास्तव में यहां के मिले-जुले स्थापत्य में हिंदू और इस्लामिक, दोनों ही कलाओं के तत्व मिलते हैं। हम्पी के लोटस महल में इस कला के दर्शन किए जा सकते हैं। भले ही कर्नाटक ने उनके राज्याभिषेक के ५०० वें varsh का समारोह मनाने की पहल की हो, लेकिन उनकी कभी न खत्म होने वाली महानता के दर्शन आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में भी किए जा सकते हैं। सम्पूर्ण राष्ट्र इसे समारोह पूर्वक मनाये ।

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित