सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

महामहिम राष्टपति को दिये गये ज्ञापन का मूल पाठ


महामहिम राष्ट्राध्यक्षा जी
भारत
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली-1
आदरणीय महोदया,
कामधेनु स्वरूप भारतीय गोधन द्वारा प्रदत्त वनौषधि गुणवत्तायुक्त पंचामृत सदृश पंचगव्यों- गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत, गोमय, गोमूत्र में सृष्टि संरक्षक पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति जैसे आधारभूत तत्वों के पोषण एवं शोधन की विलक्षण क्षमता है। यह कामधेनु प्रदूषणमुक्त, प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने वाली वात्सल्यमयी माँ है। आदिकाल से ही हमारी प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण आध्यात्म प्रधान संस्कृति और समृद्धि का आधार रही है। उसके संरक्षण और संवर्धन की समुचित व्यवस्था करना आज भी हमारा प्राथमिक दायित्व है।
इसी दायित्व बोध को जगाने का राष्ट्रव्यापी अभियान विश्वमंगल गोग्राम यात्रा के माध्यम से हमारे पूज्य संत समाज के द्वारा इस वर्ष विजयादशमी से मकर संक्रांति तक संचालित किया गया। देश के लाखों दूरस्थ पहाड़ी वनांचलीय गावों, कस्बों, नगरों और वस्तियों में हजारों उपयात्राओं सहित प्रमुख यात्रा आत्मविभोर कर देने वाली राष्ट्रीय एकात्मता की परिचायक का उत्साहवर्धक भावभरा स्वागत अभिनन्दन किया गया।
करोड़ों भाई बहिनों ने रासायनिक उत्पादों का परित्याग कर पंचगव्य गोउत्पादों, जैविक खाद्यानों का ही प्रयोग करने का संकल्प लेकर (1)- भारतीय गोवंश को राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर घोषित करने, (2)- गोहत्या को तुरन्त प्रतिबंधित करने हेतु केंद्रीय कानून बनाने तथा उसका दृढ़ता से परिपालन कराने, (3)- गोवंश के संरक्षण-संवर्धन की समुचित व्यवस्था कराने, 4)- बैल चालित संयंत्रों से जल बचत जैविक खेती, प्राकृतिक खेती संयंत्रोंa से विकेंद्रित ग्रामस्तर पर ईंधन, बिजली, गोबर गैस की प्राप्ति एवं पंचगव्य उत्पादनों के प्रचलन को बढ़ावा देकर घर-घर में पंचगव्य औषधियों एवं कुटीर उद्योगों के माध्यम से गांवों को स्वरोजगारयुक्त, स्वस्थ सम्पन्न स्वावलंबी बनाने, (5)- गोचारण एवं चारे की सुलभता हेतु वानिकी, वनौषधि, गोचर, चरागाहों का विकास कर पर्यावरण को प्रदूषणमुक्त कराने आदि महत्वपू्र्ण बिंदुओं के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। यह जनभावना से अभिप्रेत ज्ञापन अत्यधिक राष्ट्रीय महत्व रखता है।
हमारा विश्वास है कि इसकी प्रभावी क्रियान्विति से पर्यावरण को शुद्धि, वैश्विक तापवृद्धि के सर्वनाशकारी संकट से मुक्ति, गोधन की अभिवृद्धि और गाँवों की समृद्धि पुनः स्थापित कर भारत विश्व पटल पर पुनः अपना गरिमामय स्थान प्राप्त कर सकेगा।
(1.) गाय को राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया जाए।
राष्ट्रीय चिन्ह (अशोक चक्र), तीन मुँह का शेर, जो अहिंसक संस्कृति का प्रतीक है, धर्म चक्र नीति न्याय से आगे बढ़ने का प्रतीक है, घोड़ा विश्वसनीयता का तथा बैल भारत की कृषि संस्कृति का प्रतीक है। इस राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करने वाले पर मुकदमा चलना है। बैल की हत्या राष्ट्रीय चिन्ह का अपमान है। राष्ट्र ध्वज (तिरंगा), राष्ट्रगीत, राष्ट्रीय पशु (सिंह), राष्ट्रीय पक्षी (मोर), राष्ट्रीय जलजीव (डाल्फिन), के समान ही गाय को राष्ट्रीय सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया जाए।
जैन दर्शन के संस्थापक भगवान ऋषभदेव का पहचान चिन्ह बैल, भगवान शंकर का वाहन नंदी, गोपाल कृष्ण की प्यारी गाय तथा शैलपुत्री महागौरी के वाहन, गाय के कटने से हमारी धार्मिक आस्थाएँ आहत होती हैं। (धार्मिक-मौलिक अधिकारों का हनन)।
(2)- भारतीय नस्ल की गायों के संरक्षण एवं संवर्धन के हेतु एक अलग से गोसंवर्धन मंत्रालय गो सेवा आयोग गठित किया जाए।
गोवंश के विकास के लिए भारतीय नस्ल के सांडों का संरक्षण, संवर्धन एवं बैलों की उपयोगिता सुनिश्चित करते हुए इनका भी संरक्षण, संवर्धन किया जाए, बैल आधारित कृषि को प्रोत्साहन, गायों के कृत्रिम गर्भाधान को बंद करना, गीर, साहीवाल, थारपारकर, ओंगोल, काँकरेज आदि की विदेशों में 1 से लेकर 2 – 2.5 करोड़ रुपए तक कीमत है। जबकि हमारी सभी प्रांतीय नस्लें असुरक्षित स्थिति में आ गयी है। वेचूर, आलमबादी, बारगुर, कांगायाम बिंजारपुरी सैकड़ों में भी नहीं बची हैं।
गोवंश की संख्या में गिरावट- 9.5%(1992 के बाद)
6.89%(1997 के बाद)
संकरित गोवंश – 2.46 करोड़
देशी गोवंश संख्या – 16.04 करोड़
गोवंश का दूध में योगदान – 40%
संकरित गोवंश का योगदान – 18%
देशी गोवंश का योगदान – 22%
संकरित गोवंश में रोग – 5.7%
जॉन्स डिसीज - 0.4%
ब्रूसोलिसीस – 12.4%
आईबीआर - 43.2%
कैंपियो बैक्टिरियोसिस– 17.1%
स्वस्थ संकरित गोवंश 21.2%
पशुधन का कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान – 6.01%
राष्ट्रीय स्तर पर पशुधन विकास के लिए प्रावधान-0.11%
पशुधन का कृषि में योगदान- 27.2%
बजट प्रावधान – 11.7%
जबकि एड्स से मृत्यु- 1500 प्रतिवर्ष बजट 550 करोड़
क्षय रोग से मृत्यु- 3,50,000.0 (एड्स से 200 गुना ज्यादा)
बजट – 186 करोड़ मात्र
बर्ड फ्लू से मृत्यु – नहीं
प्रावधान – 160.0 करोड़
संकरित गाय – अपने जीवन काल में 2-3 बछड़े-बछड़ी देती है।
देशी लगभग -14
संकरित दूध – 2 पीढ़ी तक
देशी – असीमित लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी
वसा (फैट्स) देशी में 4% से ज्यादा, संकरित में 3% से कम
प्रोटीन संकरित में- ए1 (हृदय रोग, कैंसर रोग आटिज्म रोगों का कारण)
देशी में–ए2 (रोगों को आने से रोकता है)
गोवंश पालन संरक्षण से
महिलाओं को रोजगार -69%
कुल जनता को 86 लाख
परोक्ष – 76 लाख
राष्ट्रीय गोवंश आयोग (2001-02) के अनुसार
8.0 करोड़ रोजगार जैविक कृषि एवं गोपालन से संभव है।
मिथेन भारतीय गोवंश से 100-150 लीटर प्रतिदिन
विदेशी गोवंश से 400 लीटर प्रतिदिन
भारतीय गोवंश के पंचगव्य(गोबर, गोमूत्र, गोदुग्ध, दही, घृत और छाछ) में विशेष
गुण पाए गए हैं।
गोमूत्र अर्क पर भारत सरकार ने गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र के साथ तीन
अंतरराष्ट्रीय पेटेंट प्राप्त किए हैं।
गोमूत्र अर्क औषधि की उपलब्धता बढ़ाने वाला, (Bio-Enhancer) रोग प्रतिकार क्षमता बढ़ाने वाला, (Immuno-Modulator) एवं कर्क रोग रोधी (Anti Cancer) विषाणु नाशक (Anti-Viral), कीटाणु नाशक Anti Bacterial), फफूँद नाशक Anti-Fungal) पाया गया है। अन्य बहुत से गुणधर्म आयुर्वेद में वर्णित हैं।
गोमूत्र कीटनियंत्रक (फसल रक्षक) को भी अंतरराष्ट्रीय पेटेंट ((US Pat. No.7297659) प्राप्त हुआ है, जिसमें फसलों की वृद्धि से लेकर गुणवत्ता संवर्धन रोग प्रतिकार क्षमता बढ़ाना एवं फफूँद नाशक गुणधर्म बड़े प्रमाण में पाए गए।
इसके उपयोग से कीटनाशकों (Pesticides) के प्रयोग को बड़े प्रमाण में रोका जा सकता है।
(3). गोवंश हत्याबंदी कानून का निर्माण कर उस शक्ति से पूरे देश में लागू किया जाए। मांस निर्यात को बंद कर भारत के समस्त कत्लखानों को प्रतिबंधित किया जाए।
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 2.5 करोड़ गोवंश (गोधन) का कत्ल होता है एवं 45-50 लाख की निकासी बांग्लादेश को जाती है। मुगलकाल में गोवंश हत्या पर प्रतिबंध था, लोकतंत्र में क्यों नहीं हो सकता ?
(4).भारत के अन्नदाता किसानों का आत्महत्या का मार्ग छोड़कर आत्मसम्मान से जीनेवाला जीवन बने।
रासायनिक खाद, कीटनाशकों को प्रतिबंधित करते हुए गो आधारित जैविक कृषि को प्रतिष्ठित करना, ग्राम व कृषि आधारित ग्रामोद्योग केंद्र स्थापित करना।
पिछले कुछ वर्षों में किसानों की आत्महत्या लगभग दो लाख पार कर चुकी है। कीटनाशकों के छिड़कने के दुष्प्रभाव से लगभग 2,35,000 किसान या अन्य व्यक्ति मृत्यु मुख में जा रहे हैं।
रासायनिक खाद निर्माण एवं उपयोग से नाइट्रस आक्साइड द्वारा 6 प्रतिशत तक प्रदूषण बढ़ा है। आजकल भूमंडलीय ताप (ग्लोबल वार्मिंग) से विश्व ग्रस्त है। विभिन्न विषैली वायु ( Green House Gases) का प्रभाव बढ़ा है।
रासायनिक खाद पर अनुदान लगभग 1.0 लाख करोड़ रुपए!
कीटनाशकों पर अनुदान – 33700.0 करोड़ रुपए!
10वीं पंचवार्षिक योजना में कीटनाशकों पर अनुदान का प्रावधान 1,68,500.00 करोड़ रुपए!
पहले कृषक का खर्च खेती पर 7.0% था, अब 72.0% हो गया है।
देश की 10-15% भूमि बंजर होने की स्थिति में आ गयी है। भूमिगत जलस्तर बहुत घट गया है।
मनुष्य, पशु-पक्षी, प्राणी, वनस्पति सभी पर रोगों का आक्रमण बहुत बढ़ गया है। मधुमेह रक्तचाप किडनी के रोग, हृदय रोग, कफ, खाँसी, दमा, एलर्जी, कैंसर, आदि कई रोग घर-घर तक पहुँच गए हैं।
2002-03 से गेहूँ का उत्पादन 18.6% घट गया है। यही अन्य फसलों दालें, तिलहन, गन्ना आदि में हो रहा है।
कृषि भूमि को विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) हेतु बिल्कुल भी अधिगृहीत न किया जाए।
विशेष कृषि-क्षेत्र विकसित किए जाएँ, जिनमें खाद्य-प्रसंस्करण, शीत भण्डारण
(Cold Storage) आदि की सुविधा हो।
(5). कामधेनु विश्वविद्यालय की स्थापना प्रत्येक राज्य में हो।
गोवंश की उपयोगिता, नस्ल संरक्षण, संवर्धन, जैविक कृषि, पंचगव्य, आयुर्वेद सहित
अन्य उत्पाद आदि सभी नियमित पाठ्क्रम में शामिल किए जाएं।
गोवंश के विकास, संरक्षण, संवर्धन का अर्थ है विकेंद्रित अर्थव्यवस्था को पुनःस्थापित किया जाय। शाश्वत मंगल विकास का मार्ग प्रशस्त हो।
संपूर्ण वातावरण (जल, वायु, भूमि) प्रदूषण मुक्त हों।
अतः हमें विश्वास है कि आप हमारी सभी प्रार्थनाओं पर गंभीरता से ध्यान देते
हुए राष्ट्रहित में त्वरित निर्णय करेंगी।
सधन्यवाद,
विनीत
(डा. एच.आर. नागेंद्र)
कार्याध्यक्ष
विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा समिति
३१ जनवरी २०१०, नई दिल्ली

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित