सोमवार, 26 जुलाई 2010


सर्वप्रथम भास्कर को साधुवाद की राष्ट्र हित में इक अच्छी मुहिम प्रारंभ की है.
इस देश ने पहले अंग्रेजो का राज झेला था हमने गुलामी की त्राशदी से अभी भी कुछ सिखा नहीं लगता है.

हमारी सरकार और उनके नुमाइंदो को लगता है इस देश से सरोकार ही नहीं है . तभी तो राष्ट्र विरोधी निर्णय लेने पर आमादा है. मल्टी ब्रांड में ऍफ़ ड़ी आई का प्रस्ताव हमारे लिए हानिकारक होगा . फिर इस देश को अप्रत्यक्ष गुलामी की और धकेला जा रहा है.

देखना यह भीहोगा की वे कंपनिया जो भारत में आ रही है उनमे हमारे राजनीतिज्ञों एवं सरकारी कारिंदों के बच्चे कही अच्छे ओहदों पर विराजमान तो नहीं है .

अभी ताज़ा रिपोर्टो में यह बतलाया गया था की अफ़्रीकी देशो से भी बदतर हालत है हमारी, फिर सरकार का सरोकार यहाँ के निर्धनों से क्यों नहीं है . क्यों निर्मोही हो रही है और क्यों छोटे उद्योगों को तबाह करने में लगी है ? रोज़गार के नए अवसर तो पैदा हो नहीं रहे है वर्तमान के रोजगार से भी वंचित करने के इस कुत्सित प्रयास का घोर विरोध होना चाहिए.
इस बड़ी मछली को न्योता देने से छोटी मछलियों का जीवन निसंदेह खतरे में आएगा.
समय रहते अगर नहीं चेते तो आने वाला भविष्य कभी भी माफ़ नहीं करेगा.

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

गुरू पूर्णिमा - गुरु से बड़ा संसार में कोई तत्व नहीं है


आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं। यह पूर्णिमा गुरु पूजन का पर्व है। वर्ष की अन्य सभी पूर्णिमाओं में इस पूर्णिमा का महत्व सबसे अधिक है। भारतीय संस्कृति में ‘आचार्य देवो भव’ कहकर गुरु को शिष्य द्वारा असीम आदर एवं श्रद्धा का पात्र माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य के तीन प्रत्यक्ष देव हैं - 1. माता 2. पिता 3. गुरु। इन्हें ब्रह्मण, विष्णु, महेश की उपाधि दी गई है। मां जन्म देती है, जीवन की रचयिता है इसीलिए ब्रह्म हैं। पिता जीवन के पालनकर्ता हैं, इसीलिए विष्णु का रूप माने जाते हैं। गुरु माया, मोह और अंधकार का नाश करता है.इसलिए वे महेश के रूप में माने जाते हैं .
गुरु पूर्णिमा का दिवस केवल गुरु पूजा का दिवस नहीं है, बल्कि यह दिवस प्रत्येक शिष्य के अपने-अपने गुरुजनों के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति का दिवस है। प्राचीन ऋषियों ने हमारे जीवन को चार भागों में बांटा था - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुलों में जाकर विद्याध्ययन किया करते थे। उन्हें तपोमय जीवन व्यतीत करने और संयम तथा चारित्रिक दृढ़ता का उपदेश अपने गुरुजनों से प्राप्त होता था. वे अपनी पूरी श्रद्धा गुरुजनों के प्रति रखते थे, आज समय बदल गया है। आज न तो तपोवन हैं, न गुरुकुल। जीवन दिन प्रतिदिन जटिल होता जा रहा है। शिक्षा के हर क्षेत्र में व्यापारीकरण हावी हो चुका है. ज्ञान का वितरण अब धन के आधार पर होने लगा .
आज पाश्चात्य प्रभाव ज्ञान का वितरण सामान्य से लेकर आध्यात्म तक में सम्पन्नता का आधार हो चुका है . ऐसे में हमें यह जानना एक बार फिर आवश्यक हो गया है कि हर कार्य को सिखाने वाले गुरु ही हैं।यही साधना शरीर के अंदर निहित शक्तियों का परिचय कराने, शरीर में चेतन्यता प्रदान करने तथा उचित भोग और मोक्ष का रास्ता दिखलाने की विशिष्ट एवं उच्चतम क्रिया है।
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।

हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
इसे में वह जीवन के अंधकार को अपनी दीक्षा रूपी रोशनी से रोशन करते हैं, अज्ञान से निवृति दिलाने में सक्षम होते हैं, दो अक्षर का यह सामान्य सा प्रतीत होने वाला शब्द अपने आप में संपूर्णता को समेटे हुए है। आजकल के व्यस्त जीवन में व्यक्ति मानसिक तनाव का शिकार हो जाता है।
मूलतः यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन है। व संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है।
गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं।ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सदगुरू की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

शास्त्र कहता हैं -
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥


कबीर ने गुरू कृपा पर सटीक लिखा है -
गुरु की सेवा चाकरि करिये मन चित लाय ।

कहै कबीर निज तरन को नाहीं और उपाय ॥
सुमिरन मारग सहज का सतगुरु दिया बताय ।

स्वाँस स्वाँस सुमिरन करो एक दिन मिलिहैं आय ॥
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाड़ी कै बार ।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार ॥4॥
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,काके लागूं पायं ।
बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविन्द दिया दिखाय ॥5॥
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
सीस दिये जो गुर मिलै, तो भी सस्ता जान
महेश्वरः।शिव जी का कथन है कि त्रिलोक में जो बड़े-बड़े देव, नाग, राक्षस, किन्नर, ऋषी, मनुष्य, विद्याधर हैं, उनको गुरु प्रसाद ही प्राप्त हुआ है। गु अक्षर सत, रज, तम माया का आकार है। रू अक्षर ब्रह्मा का आकार है, जो समस्त मायाओं का नाशक है। गुरू गीता में भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा है कि हे पार्वती तुम निश्चित जानो की गुरु से बड़ा संसार में कोई तत्व नहीं है .
भारत भर में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।
आध्यात्म के क्षैत्र में विशाल आयोजन होते हैं , लगभग प्रत्येक आश्रम किसी न किसी प्रकार का आयोजन जरुर रखता है.
गुरु निंदा कभी न करें -
स्कन्ध पुराण में गुरु के अपमान से होने वाली हानी का रोचक दृष्टान्त है, जगदगुरु बृहस्पति, इंद्र के राज दरवार में पहुचें उस समय कोई नृत्य चल रहा था , दरवार में मोजूद अन्य दरवारियों ने उठ कर यथा योग्य प्रणाम जगदगुरु बृहस्पति से किया, इंद्र के द्वारा उन्हें नजर अंदाज कर दिए जाने से वे कुपित हो अंतर-ध्यान हो गये, नारद जी ने इंद्र का ध्यान आकर्षित किया कि आपने गुरुदेव को अपमानित कर दिया, तब इंद्र ने उन्हें काफी तलाशा और मनाने कि कोशिश कि मगर तब तक वे उसे श्रीहीन कर चुके थे . इसका फायदा उठा कर दैत्यराज महाराजा बली ने इंद्र पर आक्रमण कर उनसे इंद्र - लोक जीत लिया , इस पराजय के परिणाम स्वरूप समुद्र मंथन हुआ . कुल मिला कर गुरु के अपमान के कारण इंद्र को राज्य और सम्मान खोना पड़ा . भगवान शंकर यह व्यवस्था देते हैं कि गुरु की निंदा कभी न करें , अपमान तिरिस्कार भी कभी नहीं करें . गुरु के श्राप को ईश्वर भी माफ़ी में नही बदल सकता .
गुरु का सबसे अधिक महत्व आध्यात्म में है-
एक साधक को गुरु का विश्वास जीतने में दसियों वर्ष लग जाते हैं .
संत चरणदास जी महाराज की शिष्या सहजो बाई ने लिखा है -
राम तजुं पर गुरु न विसारूं,
चरण दास पर तन मन वारूँ
हरी ने जन्म दियो जग माहीं
गुरु ने आवागमन छुड़ाई.
हरी नें पाँच चोर दिए साथा ,
गुरु ने छुडाय लई अनाथा
हरी ने माया जाल में गेरी
गुरु ने काटी ममता बेडी .

गुरु-शिष्य परम्परा आध्यात्मिक प्रज्ञा का नई पीढियों तक पहुंचाने का सोपान।
जप के लिए मंत्र

ॐ गुरूभ्यो नमः।
ॐ श्री सदगुरू परमात्मने नमः।
ॐ श्री गुरवे नमः।
ॐ श्री सच्चिदानन्द गुरवे नमः।
ॐ श्री गुरु शरणं मम।

सदगुरू की महिमा अनंत,
अनंत कियो उपकार

अनंत लोचन उघडिया,
अनंत दिखावनहार

राम कृष्ण से कौन बडा,
तिन्ह ने भि गुरु किन्ह ।

तीन लोक के है धनी,
गुरु आगे आधीन


- अरविन्द सीसोदिया

बुधवार, 21 जुलाई 2010

जांचकर्ताओं का सहयोग करेगी आरएसएस: भागवत

तिरुवनंतपुरम. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आज यह इच्छा जताई कि वह उन जांच अधिकारियों के साथ सहयोग करेगा जो देश के विभिन्न हिस्सों में हुए आतंकवादी हमलों के मामलों में हिंदू चरमपंथी संगठनों के साथ संघ के लोगों के जुड़े होने के आरोपों की तफ्तीश कर रहे हैं।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यहां संगठन के नये कार्यालय का उद्घाटन करते हुए कहा कि बार-बार यह साफ कर दिया गया है कि हिंसा के लिये संघ के कामकाज में कोई जगह नहीं है। संघ ने कभी भी हिंसा को प्रोत्साहन नहीं दिया और न ही वह कभी भविष्य में ऐसा करेगा।

उन्होंने कहा कि संघ ने अपने खिलाफ लगे आरोपों के मामले की जांच कर रहे अधिकारियों के साथ सहयोग करने की इच्छा जता दी है।

भागवत ने कहा कि किसी को धमकाना या दहशत पैदा करना संघ के मिशन का हिस्सा नहीं है।

source : http://epaper.bhaskar.com/index.php?state=raj&dates=07/21/2010&priority=11&editioncode=11&ti=ra

सोमवार, 19 जुलाई 2010

संघ को बदनाम करने की वोट राजनीती


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शनिवार, 17 जुलाई 2010

हेडलाइंस टुडे के खिलाफ संघ का शांतिपूर्ण और अहिंसक प्रदर्शन


हेडलाइंस टुडे के खिलाफ संघ का शांतिपूर्ण और अहिंसक प्रदर्शन

विडियोकॉन टॉवर से आँखों देखी

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार को टीवी टुडे समूह से जुडे़ न्यूज चैनल आज तक एवं हेडलाइंस टुडे और एक अंग्रेजी समाचार पत्र मेल टुडे के खिलाफ जमकर प्रदर्शन और नारेबाजी की। संघ कार्यकर्ताओं ने आज तक और हेडलाइंस टुडे को हिंदू विरोधी चैनल बताते हुए चैनलों के खिलाफ अपने रोष का लोकतांत्रिक ढंग से प्रदर्शन किया।

विडियोकॉन टॉवर के प्रवेश द्वार में घुसते समय हुई धक्का-मुक्की और पुलिस के साथ झड़प की घटना को छोड़कर प्रदर्शन शांतिपूर्ण और अहिंसक रहा। किसी भी कार्यकर्ता के हाथ में न तो डण्डे थे और न ही लाठियां। निहत्थे सैंकड़ों कार्यकर्ताओं ने टीवी टुडे समूह के समाचार चैनलों के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली के प्रांत संघचालक श्री रमेश प्रकाश, सह प्रांत संघचालक श्री श्यामसुंदर अग्रवाल के नेतृत्व में करीब एक हजार कार्यकर्ताओं के जुलूस ने सायंकाल विडियोकॉन टावर स्थित हेडलाइंस टुडे के कार्यालय के भूतल स्थित मुख्यद्वार के बाहर एकत्रित होकर नारेबाजी शुरू की। कार्यकर्ताओं ने अपने हाथों में तख्तियां ले रखीं थीं जिन पर चैनल विरोधी नारे लिखे हुए थे।

‘हेडलाइंस टुडे हाय-हाय’, वंदे मातरम, भारत माता की जय, आर.एस.एस का अपमान- नहीं सहेगा हिंदुस्तान आदि नारे लगाते हुए कार्यकर्ता विडियोकॉन टावर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर सायंकाल करीब 5 बजे के आस-पास एकत्रित होना शुरू हुए थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार, संघ ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन की सूचना पहले से ही स्थानीय पुलिस प्रशासन और हेडलाइंस टुडे के संपादकीय विभाग को दे रखी थी।

मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर अभी प्रदर्शन चल ही रहा था कि तकरीबन 5.30 बजे सायंकाल लगभग हजार की संख्या में लोग जुलूस की शक्ल में विडियोकॉन टावर की ओर बढ़े। इस जुलूस में शामिल लोगों में कुछ लोग बहुत आक्रोशित थे। उनका कहना था कि हेडलाइंस टुडे राष्ट्र समर्पित संगठन आर.एस.एस के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहा है। उसके वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को आतंकवाद से जोड़ना पूरी तरह से निराधार है।

भीड़ में शामिल कुछ लोग हेडलाइंस टुडे के संपादक से मिलकर शिकायत दर्ज कराने की मांग करने लगे। वहां उपस्थित आर.एस.एस के वरिष्ठ लोगों ने कहा कि हमारा प्रदर्शन शांतिपूर्ण है, हमें यहां केवल धरना देना है। लेकिन भीड़ में शामिल लगभग 40-50 लोगों का समूह वरिष्ठ लोगों की अनदेखी करता हुआ मुख्य द्वार के भीतर घुसने का प्रयास करने लगा।

चूंकि विडियोकॉन टॉवर लगभग तेरह मंजिला ऊंची इमारत है। इस इमारत में न केवल आज तक, हेडलाइंस टुडे, मेल टुडे, दिल्ली आज तक का कार्यालय है वरन् आईडीबीआई, आईसीआईसीआई जैसे प्रतिष्ठित बैंक समेत दर्जनों अन्य अर्ध सरकारी, गैर सरकारी दफ्तर भी इस तेरह मंजिला भवन में स्थित हैं। आज तक और हेडलाइंस टुडे का दफ्तर भवन की चौथी मंजिल, पांचवी, छठी, बारहवीं और तेरहवीं मंजिल पर स्थित हैं।

भीड़ में शामिल लोगों की बातचीत और हाव-भाव से स्पष्ट दिख रहा था कि उन्हें इस बात की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थी कि आज तक अथवा हेडलाइंस टुडे का कार्यालय टॉवर के किस तल (फ्लोर) पर है। दूसरे विडियोकॉन टॉवर के प्रबंधन ने एहतियातन ऊपर जाने वाली सभी लिफ्ट को पहले ही बंद कर दिया था। यही कारण है कि मुख्य प्रवेश द्वार के अंदर घुसने के बाद उन्हें यह भी नहीं समझ आया कि वे क्या करें।

ऊपर जाने के लिए लिफ्ट की सुविधा बंद होने के कारण आवेशित कार्यकर्ताओं का दल वापस लौटने को बाध्य हो गया। लौटते समय भूतल पर स्थित स्वागत टेबल, टी स्टॉल और आईडीबीआई बैंक आदि दफ्तरों से जुड़े सूचना पट आदि धक्का-मुक्की में बिखर गए। एक उग्र व्यक्ति ने टी स्टॉल पर रखे गए झाडू या कहें वाइपर को हवा में उछाला। लेकिन तत्काल संघ के कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं जिसमें मुकेश कुमार, सह प्रांत कार्यवाह प्रमुख थे, ने उस व्यक्ति को डांटकर बाहर निकाल दिया। एक-आध मिनट के अंदर ही सभी लोगों को संघ के वरिष्ठों ने समझा-बुझाकर मुख्य द्वार से बाहर निकाल दिया। इस मध्य उपस्थित पुलिस को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। जाहिर है कि संघ के बड़े-बुजुर्गों की उपस्थिति ने मामले को ज्यादा बिगड़ने नहीं दिया।

भगदड़ और बेतरतीबी का यह समूचा माज़रा कुछ मिनटों में ही निपट गया। लेकिन हेडलाइंस टुडे के खिलाफ गुस्से का इज़हार मुख्य द्वार के बाहर ज़ारी रहा। सैंकड़ों लोग धरने पर बैठ गए जिन्हें प्रांत संघचालक श्री रमेश प्रकाश ने संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि हमें किसी प्रकार से हिंसक या अराजक प्रदर्शन नहीं करना है। हमारा प्रतीकात्मक विरोध हेडलाइंस टुडे के खिलाफ आज सफलतापूर्वक संपन्न हो गया है लेकिन यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ किन्हीं पूर्वाग्रहों और राजनीतिक षडयंत्र के अन्तर्गत इसी प्रकार से दुष्प्रचार अभियान चलता रहा तो संघ के कार्यकर्ता लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध प्रदर्शन आगे भी जारी रखेंगे और आवश्यकता पड़ी तो ऐसे हिन्दू विरोधी समाचार चैनलों के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा भी दर्ज कराया जाएगा। धरने को प्रांत प्रचार प्रमुख रविंद्र बंसल, प्रांत कार्यवाह विजय कुमार, सह कार्यवाह मुकेश कुमार ने भी संबोधित किया।

बाद में कार्यकर्ताओं ने समूचे विडियोकॉन टॉवर को मानव श्रृंखला बनाकर घेरने की कोशिश भी की लेकिन भारी पुलिस बल आ जाने के कारण वे ऐसा नहीं कर सके। फिर भी विडियोकॉन टॉवर के अगल-बगल दोनों तरफ कार्यकर्ता नारेबाजी करते रहे। इस बीच एसीपी पुष्पेंद्र कुमार के द्वारा कुछ कार्यकर्तोओं को अपशब्द बोले जाने से कार्यकर्ता पुनः उग्र हो गए। दोनों ओर से भीषण गरमा-गरमी शुरू हो गई। पुलिस ने नारेबाजी कर रहे अनेक कार्यकर्ताओं को जबरन खींचकर अपने कब्जे में ले लिया और लाठियां पटकनी शुरू कर दी। इस लाठी-पटक में अनेक कार्यकर्ताओं की पुलिस ने बेरहमी से पिटाई की और चार कार्यकर्ताओं को पकड़कर विडियोकॉन टॉवर के अंदर अपनी गिरफ्त में ले लिया।

इस संवाददाता ने अपने कानों से एसीपी पुष्पेंद्र कुमार को यह कहते सुना- “सालों को बीच से काटो।...जितने मिलें...उठाकर बंद करो...।" कुछ पुलिस कांस्टेबल यह कहते हुए आने-जाने वालों की धरपकड़ करने लगे “...अरे बंद करो सालों को...मुकदमा भी तो लिखड़ां है... क्या लिखोगे...किसकी गिरफ्तारी दिखाओगे।”

इतना सुनना था कि अपने गंतव्य की ओर वापस लौट रहे कार्यकर्ता आग-बबूला हो गए। फिर से विडियोकॉन की घेरेबंदी शुरू हो गई। यह सारा प्रकरण शाम को उस समय तक चलता रहा जब तक कि कार्यकर्ताओं को यह विश्वास नहीं हो गया कि पुलिस की गिरफ्त में उनके बीच का कोई व्यक्ति नहीं है। समाचार लिखे जाने तक संघ के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के पहाड़गंज थाने पहुंचने की सूचना मिली है। फिलहाल टीवी टुडे या हेडलाइंस टुडे की ओर पुलिस में किसी के खिलाफ कोई एफ.आई.आर. दर्ज कराने की सूचना नहीं है। हां, मीडिया चैनलों पर जरूर आज तक, दिल्ली आज तक और हेडलाइंस टुडे समेत अनेक समाचार माध्यमों ने आरएसएस के विरुद्ध वाक्-युद्ध छेड़ दिया है।

वीएचवी। नई दिल्ली ब्यूरो। 16 जुलाई, 2010

source : http://vhv.org.in/story.aspx?aid=3009

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित