शनिवार, 30 जुलाई 2011

इधर उधर से - आपके लिए

दुर्लभ औषधियों का पेटेंट
अंडमान की वानस्पतिक संपदा पर मुकुल व्यास की टिप्पणी

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले आदिवासियों के संरक्षण के साथ-साथ उनके पारंपरिक ज्ञान और तौरतरीकों को सहेज कर रखना बहुत जरूरी है। इन द्वीप समूहों की जैव-विविधता दुनिया में सबसे अनूठी है। यहां सैकड़ों किस्म की जड़ी-बूटियां और औषधि गुण वाले पेड़-पौधे पाए जाते हैं। यहां के आदिवासियों ने इन जड़ी-बूटियों के मिश्रण से कई तरह की दवाएं विकसित की हंै और वे सैकड़ों वर्षो से विभिन्न रोगों के उपचार के लिए इन दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। आदिवासियों की इन पारंपरिक चिकित्सा विधियों की तरफ अब सरकार का भी ध्यान गया है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने इन अनोखी चिकित्सा विधियों के पेटेंट हासिल करने की योजना बनाई है। परिषद के क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान ने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के आदिवासियों के लिए एक सामुदायिक जैव विविधता रजिस्टर बनाने का काम शुरू किया है। इसमें पारंपरिक उपचार विधियों का ब्यौरा दर्ज किया जाएगा। रजिस्टर में यह रिकार्ड रखा जाएगा कि औषधि गुण वाली जड़ी-बूटियों के स्थानीय नाम क्या हैं। जड़ी-बूटियों के मिश्रण से दवाएं किस तरह तैयार की जाती हैं और कितने लोगों का इन विधियों से सफल इलाज किया गया। इनके अलावा रजिस्टर में पारंपरिक आदिवासी चिकित्सक या ओझा के फोटो के साथ उसका व्यक्तिगत विवरण भी दिया जाएगा। भारतीय वैज्ञानिकों के एक दल ने हाल ही में कार निकोबार द्वीप के 11 गांवों का दौरा किया था, जहां आदिम निकोबारी आदिवासी रहते हैं। वैज्ञानिकों ने यहां आदिवासियों द्वारा प्रयोग में लाई जा रही 124 जड़ी-बूटियों का ब्यौरा एकत्र किया। आदिवासी इनका इस्तेमाल 34 बीमारियों के इलाज के लिए करते हैं। वैज्ञानिकों ने 42 ऐसे लोगों अथवा ओझाओं के भी इंटरव्यू लिए, जो इन दवाओं से मरीजों का इलाज करते हैं। वैज्ञानिक विभिन्न बीमारियों के इलाज में प्रयुक्त किए जाने वाले पौधों और उनके हिस्सों को संग्रहीत भी कर रहे हैं। उन्होंने इन पौधों पर अनुसंधान करने के लिए इनका बगीचा भी लगाया है। आदिवासियों की चिकित्सा विधियों का रिकार्ड तैयार करना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसके लिए सभी आदिवासी समूहों तक पहुंचना जरूरी होगा। सरकार इस प्रोजेक्ट पर 38 लाख रुपये खर्च करेगी। आदिवासियों द्वारा तैयार की जाने वाली ज्यादातर दवाएं पेड़-पौधों के विभिन्न हिस्सों का मिश्रण होती हैं। हर बीमारी के लिए दवा अलग होती है और इनके प्रयोग की अवधि भी हर बीमारी में अलग-अलग होती है। वैज्ञानिकों को हर चीज को बारीकी से नोट करना पड़ेगा और खुद अनुसंधान करके यह बताना पड़ेगा कि ये पारंपरिक औषधियां कारगर क्यों होती है। पूरा विवरण तैयार होने और वैज्ञानिक पुष्टि के बाद ही चिकित्सा अनुसंधान परिषद इन दवाओं के पेटेंट के लिए आवेदन करेगी। पेटेंट पारंपरिक आदिवासी ओझाओं के नाम से लिए जाएंगे। आदिवासी ओझाओं के ज्ञान को उन्हीं के नाम से रजिस्टर कराया जाना आवश्यक है ताकि कोई भी व्यक्ति उनके ज्ञान का दुरुपयोग नहीं कर सके। यदि इस ज्ञान के आधार पर कोई प्रोडक्ट तैयार किया जाता है और इसके लिए कोई बौद्धिक संपदा अधिकार प्राप्त किया जाता है तो पारंपरिक आदिवासी चिकित्सकों या ओझाओं के नाम आविष्कारक के रूप में दर्ज करने होंगे और प्रोडक्ट से होने वाले लाभ उनके साथ भी बांटने होंगे। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का करीब 86 फीसदी हिस्सा संरक्षित घने जंगलों का है। इन द्वीपों में औषधि मूल्य के करीब 170 पेड़-पौधों की पहचान की गई है। द्वीपों में रहने वाली आदिवासियों ने न सिर्फ इन जड़ी-बूटियों को खोजा, बल्कि उनके चिकित्सीय उपयोग का भी पता लगाया। यदि आज अंडमान-निकोबार की जैव-वनस्पति संपदा सही सलामत है तो इसका बहुत कुछ श्रेय आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान और उनके द्वारा किए गए संरक्षण को ही जाता है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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माओवाद से आधी-अधूरी लड़ाई
माओवाद पर अंकुश लगाने में विफलता के लिए सरकार की रणनीति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं बीआर लाल
आज नक्सलवाद और माओवाद की समस्या एक कैंसर का रूप लेती नजर आ रही है। सरकार इस रोग को खत्म करने का जितना प्रयास करती है, यह उतना ही अधिक फैलता जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कमी कहां है और समाधान क्या है? यहां जो सबसे बड़ी भूल की जा रही है वह है नक्सलवाद और माओवाद को एक मान लेना। यही कारण है कि नक्सलवाद को खत्म करने के लिए चलाए जा रहे अभियान विफल और निष्प्रभावी हो रहे हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1990 में मात्र 16 जिलों तक सीमित नक्सलवाद आज देश के 240 जिलों में फैल चुका है। नक्सलवाद के खिलाफ कोई भी रणनीति बनाने से पहले हमें समझना होगा कि माओवाद एक राजनीतिक विचारधारा है जिनका लक्ष्य हिंसा के माध्यम से सत्ता हथियाना है, जबकि नक्सलवादी वे लोग हैं जो देश के विकास का हिस्सा नहीं बन सके हैं। नक्सलवादी बेहद निर्धन, कमजोर और असहाय हैं जो अपनी रोजी-रोटी और तरक्की चाहते हैं। नक्सलवादी विकास और रोजगार चाहते हैं, जबकि माओवादी विकास विरोधी हैं। इस बुनियादी फर्क को समझना होगा। नक्सलवाद में शामिल ज्यादातर लोग जंगलों में रहने वाले आदिवासी और घुमक्कड़ जनजातियों से हैं। माओवादी अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस वंचित वर्ग को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। वे इन लोगों को बड़ी आसानी से बहला-फुसला लेते हैं। इस तरह माओवादियों को बहुत कम पैसे में उनकी लड़ाई में साथ देने वाले नक्सली मिल जाते हैं। माओवादी प्रत्येक नक्सली को एक हजार रुपये और उनके परिवार वालों को दो हजार रुपये प्रति माह देते हैं। इस तरह एक नक्सली पर साल भर में कुल 36,000 रुपये खर्च होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक पूरे देश में करीब 20 हजार नक्सली हैं। इस तरह पूरे साल उन्हें करीब 72 करोड़ रुपये खर्च करके एक बड़ी सेना मिल जाती है जो अनजाने में अपने ही देशवासियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे होते हैं। परंतु सरकार में बैठे नीति-निर्माता इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्हें लड़ाई नक्सलियों से लड़नी है या माओवादियों से? आजादी के बाद हम आर्थिक तरक्की की रफ्तार तेज करने में लगे रहे, लेकिन भूल गए कि पिछड़े क्षेत्र के लोगों को भी विकास में भागीदार बनाया जाए। आज यदि पूर्वोत्तर के हिस्सों से लेकर देश के कुछ अंदरूनी और सीमावर्ती राज्यों में अलगाववाद, नक्सलवाद और उग्रवाद को हवा मिल रही है और उन्हें विदेशियों से मदद मिल रही है तो इसके लिए दोष आखिर किसका है? केवल छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद प्रभावित 1.5 करोड़ लोग हैं। यदि हम इस आबादी को आजीविका के साधन के साथ-साथ यह भरोसा दे सकें कि उन्हें उनकी भूमि से बेदखल नहीं किया जाएगा, उनके क्षेत्र के संसाधनों की लूट नहीं होने दी जाएगी तथा वहां के खनिजों व प्राकृतिक संसाधनों से होने वाली कमाई में उन्हें भी हिस्सा मिलेगा तो शायद ही कोई नक्सली बनना चाहेगा। माओवादी जितना पैसा नक्सलियों और हथियारों की खरीद पर खर्च करते हैं वह विदेश से नहीं आता, बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से लूटे गए प्राकृतिक संसाधनों की एवज में आता है। इस पैसे का सबसे बड़ा स्रोत खनन माफिया उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा विकास के लिए आए सरकारी धन, छोटे-मोटे बिजनेसमैन व नेताओं आदि से भी पैसा जुटाया जाता है। साफ है कि माओवाद-नक्सलवाद से लड़ाई के लिए हमें एक अलग योजना बनाने की जरूरत है। एक तरह जहां हमें नक्सलियों की नियुक्ति के लिए तैयार जमीन यानी रिक्रूटिंग ग्राउंड को खत्म करना होगा वहीं दूसरी ओर इनके आर्थिक स्रोतों को भी बंद करना होगा। इसके लिए दो स्तर पर कार्रवाई करनी होगी। सर्वप्रथम विकास कार्यो में तेजी लाई जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिले। इसके लिए नए उद्योग-धंधों के साथ-साथ डेयरी फॉर्म, मछली पालन, हार्टीकल्चर जैसे रोजगारपरक बुनियादी ढांचे का विकास कम पूंजी में आसानी से किया जा सकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास के लिए भी कदम उठाए जाएं। इसके साथ-साथ खनन माफियाओं को खत्म करने व प्राकृतिक संसाधनों की लूट को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं, क्योंकि यही वह स्रोत है जिससे माओवादियों को लड़ाई के लिए पैसा मिलता है। यही क्षेत्र काले धन के सृजन का सबसे बड़ा श्चोत भी है। पूरे देश में 22 करोड़ टन कच्चे लोहे का खनन होता है, जिसमें से अकेले छत्तीसगढ़ का हिस्सा लगभग 4 करोड़ टन का है। एक टन लोहे पर 6-7 हजार की चोरी होती है। इस तरह पूरे देश में करीब एक लाख 10 हजार करोड़ रुपये का और अकेले छत्तीसगढ़ में करीब 20 हजार करोड़ का काला धन खनन ठेकेदारों द्वारा प्रति वर्ष सृजित किया जाता है। इसका एक छोटा हिस्सा, करीब दो हजार करोड़ रुपया, माओवादियों को मिलता है। इससे सहज ही समझा जा सकता है कि नक्सली क्षेत्र का ज्यादा विस्तार खनिज प्रधान इलाकों में ही क्यों हुआ है? यदि माओवादियों को एक लाख नक्सली भी तैयार करने हों तो उन्हें केवल 360 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। इसके अलावा ट्रेनिंग और हथियार खरीदने के लिए शेष रकम जुटाना भी उनके लिए कठिन काम नहीं होगा। नक्सलियों का विस्तार छत्तीसगढ़ से सटे हुए आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और बिहार के एक लाख 50 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। हम 20 हजार नक्सलियों से ही नहीं लड़ पा रहे हैं। यदि यह संख्या एक लाख हो गई तो क्या होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। केवल ताकत और पुलिस बल के आधार पर नक्सलवाद को काबू में करने की नीति पर सरकार को विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि माओवादियों को तो ताकत से कुचला जा सकता है पर नक्सलवादियों को नहीं। यदि ऐसा होता तो 1967 से शुरू हुए इस आंदोलन का इतना विस्तार नहीं होता। 4 मार्च, 1966 को मिजोरम में मात्र ढाई लाख विद्रोहियों को काबू में करने के लिए बमबारी तक की गई, लेकिन उन्हें हथियारों से दबाया नहीं जा सका और अंतत: 1985 में सरकार को बातचीत की मेज पर बैठना ही पड़ा। कुछ ऐसी ही स्थिति माओवादियों के मामले में भी बनती नजर आ रही है। बेहतर हो कि सरकार समय रहते इस समस्या पर समग्रता में विचार करे ताकि समस्या के समाधान की सही रणनीति बनाई जा सके। (लेखक हरियाणा के पूर्व डीजीपी और सीबीआइ के पूर्व संयुक्त निदेशक हैं)
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2011-07-30&pageno=८

सोमवार, 25 जुलाई 2011

Chidambaram’s scheming; to falsely implicate Hindu groups in terror cases: Ram Madhav Ulta Chor Kotwal ko Dante…. !!!!

New Delhi: July 25 2011

Chidambaram’s scheming; to falsely implicate Hindu groups in terror cases: Ram Madhav

Ulta Chor Kotwal ko Dante…. !!!!

When they are cornered the politicians, like wild cats, tend to go berserk. Same thing seems to be happening to the likes of Home Minister Chidambaram. How else can we explain his utterly ridiculous statement today that the BJP is targeting him because he pushed forward hard with the investigations against the Hindu groups in terror cases?
Now the context is entirely different. A. Raja, the now infamous former Telecom Minister, has said in the Patiala House Courts on 25 July that the Prime Minister and the Union Home Minister Chidambaram were very much in the know of the 2G spectrum allotments. Chidambaram was the Finance Minister when the allotments took place. Raja’s contention was that whatever decisions were taken by him in the 2G-spectrum allocation matter were with the full knowledge and approval of the Prime Minister and Chidambaram. In other words he has questioned the logic of keeping him in Tihar jail while his colleagues and collaborators still occupy North Block and South Block.
The BJP has demanded the resignation of both the Prime Minister and Chidambaram. Naturally the Congress could have responded in a mature and politically befitting manner to the BJP.
In stead Chidambaram chose to ‘Diggyise’ the issue by raising the bogey of Hindu terror. His answer (if it can be called one) to BJP’s criticism was that the Party was targeting him because he went after the Hindu groups in the terror investigation. Now, the BJP has not made any allegations against Chidambaram by itself. The allegations came from a very important former colleague of Chidambaram and former Union Minister A. Raja. Does Chidambaram mean that A. Raja too was influenced by Hindu forces to blame him?
Chidambaram’s foot-in-the-mouth reaction establishes the guilt in him. The guilt is two-fold; one, of course, is what A. Raja has revealed – complete connivance in the spectrum scandal; second, by his own admission he was directly responsible for targeting and trying to wrongfully implicate Hindu groups in the terror investigation.
Now the cat is out of the bag. It was Chidambaram’s scheming; to falsely implicate Hindu groups in terror cases so that the attention of the nation can be diverted from the horrendous looting and corruption indulged in by him and his colleagues.
It is the other way round!!
Ulta Chor Kotwal ko Dante…. !!!!


पत्र लेखको का प्रशिक्षण सम्पन्न

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सोशिअल नेटवर्क तथा इन्टरनेट पर सक्रीय बंधुओ की गोष्टी सम्पन्न

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Work for the Safety and Prosperity for all beings in India A call to youth by Pu.Sarsanghachalak Sri Mohan Bhagavat

Work for the Safety and Prosperity for all beings in India
A call to youth by Pu.Sarsanghachalak Sri Mohan Bhagavat

A programme was organized at Satya Sai Nigamagamam, Hyderabad by Martyr’s Memorial Research Institute on the occasion of its Bi-decennial celebrations, which was founded in 1991 by Bhavrao Devras an eminent leader of national renaissance. Shri Mohanji Bhagawat took part in the programme as Chief guest and spoke on the topic “Bharat: Challenges before the youth”. He also inaugurated the release of Rigveda Samhita DVDs (Audio) designed, developed and produced by Shri Seva Bharathi Hyderabad. Prof.D.Manohar Rao chairman of MMRI welcomed the guests and the audience.


Shri Justice Parvatha Rao (Retd.) Sanghachalak (Dakshina Madya Kshetra), RSS calling the subject of today’s talk on challenges before the youth as an important and relevant one said that problems of youth are immense which are emanating both from outside and inside the society. The attacks on the society by extremists in the form of Marxists are one of such challenges, he said. Corruption of enormous magnitude involving lakhs of crores of rupees is another major challenge. Criminal neglect of administration and wastage of food grains purchased by F.C.I. are some other issues before us. Even Supreme Court’s order that proper go downs should be constructed for storage is still not implemented. It is strange that Prime Minister feels that there should be no interference by the judiciary. Our youth with extraordinary brilliance are encouraged abroad but not so in the native country with the result that we are deprived of such talented pool. There is so much poverty in the country. While youth in those days sacrificed their lives for the cause of freedom, in the present times not many are joining the armed forces and the lure for quick money is driving them away from joining such jobs. Not many are joining the legal profession and so many vacancies are unfilled in the judiciary. We have to stop this trend by motivating the youth to take up such professions for the cause of the society and the nation. He called upon the youth to take forward their fight against terror.


Release of C.D.: Mohanji Bhagawat then released a C.D. consisting of Rigveda Samhita designed, developed and produced by Shri Veda Bharathi. Due to pioneering efforts for the last 20 years by Dr.Avadhanulu a nuclear scientist associated with Veda Bharathi it became a reality to see 64 chapters with 64 introductions recited in 11 different modes of Rig Veda digitized into one single C.D.


In his one-hour address, Shri Mohanji Bhagawat while appreciating the enthusiasm among the large number of youth present in the hall exhorted them to cultivate values like courage, conviction and hard work. He said that India’s future lay in the hands of the youth and they should work with vibrant thoughts and not with loudness. He said that youth is reflected more in the spirit of work and enthusiasm than in age. Even after 64 years of freedom, multiple challenges prevail which never existed in the recent history of India. But solutions are more important than challenges.


Mojanji Bhagawas while pointing out that problems are galore with China, observed that national borders were still porous and criticized Government of India for neglecting the border with China, in spite of knowing fully well their intentions. China is aware that India is emerging as a strong nation with a strong potential to grow as a knowledge-based society. Understanding our importance, China started laying roads, railway lines and airports not sparing even the remotest areas along the border. It is strange that the Government of India has not responded in a fitting manner, he noted.


Shri Bhagawat gave a call to the youth to be on guard against cultural invasion, which is emanating from foreign shores with a concerted move to divide its people and create a rift amongst various communities. Their cruel purpose is to stop India from emerging as a super power. We blindly follow the western customs like Father’s day and Mother’s day. But do we observe Respiration day? Do we need to remember our parents only on these days? India’s rich heritage gives ample opportunity to each one of us to remember and respect our mother and father everyday for the entire life.


Anybody going out from India whichever party they belong to should take a firm and identical stand on issues like Kashmir that it is an integral part of India and is non- negotiable. It is a strange situation to see army being not kept where it is required and kept where it is not required. The vote bank politics along with divide and rule policies being pursued by the Government are playing havoc with the harmony of the nation. The communal violence bill on which no debate has taken place so far is already kept in the Government website. The members whose credentials are doubtful are in the National Advisory Council to draft such bills as communal violence bill. He added that even the Supreme Court raised questions on the credentials of some members of NAC.


It is unfortunate that those required to show accountability in the administration are escaping from it and the loot by the miscreants continues. The economic scenario is brought to such a stage that 20 to 25% are becoming richer and 70 to 75% are becoming poorer with unchecked inflation reaching alarming proportions of 9.44%. Such policies are leading to jobless growth. There is a huge competition. Violence erupts due to such reckless economic policies. Progress and morality should go hand in hand. Blind imitation of western ideas is causing heavy damage to our social moral fabric. We should welcome good things suitable to us and discard those not healthy to us.


Where is moral education? While the number of schools and colleges is rising, the benefit is not reaching common people as can be witnessed through large dropouts in the schools. It is unfortunate that values are falling so low that life is understood to be only food, sleep and sex and nothing more. He called for educational training reforms with stress on self-respect quoting Dr.Abdul Kalam’s views.


Underlying the importance of unity amongst us, he mentioned that nobody is different from others throughout India with DNA being similar. The mind set should change from identifying only with a particular caste, religion, language and region. With so many differences prevailing, it helps only the enemy.


But there is no need to despair and he reminded of only challenges in front of us and we can move forward by overcoming the obstacles. Indians are most intelligent and are ahead in every international competition. He cited examples of well-educated youth doing social work inspiring others to emulate them. India is a treasure house of knowledge. Progress will be abundant with our enterprising nature, talent, skill and resilience. Even in most difficult times, we have not suffered shortages. We could not be shaken even in the worst economic crisis, which appeared worldwide. He exhorted the youth to emerge from crisis of identity, credibility and character. There is lack of awareness of our history and our real identity. Humanity should be guiding factor cutting across religious lines, he added. He called upon the youth to inculcate self-respect and self esteem in them.


The concept of “Vasudhaika kutumbam” is India’s legacy to rest of the world and hence we should have no enemies. But since the world is not free from wrong people we should protect and guard against misdeeds from them in a democratic way without violence. He gave a clarion call to the youth “Save yourself; correct yourself; Begin with yourself; Know yourself; Understand root of Bharat”. Entire Bharat is oneself. He asked them to keep in mind ‘Bharatiyata’ where good of others should be prime consideration. Without Bharat there is no world and for the sake of world’s survival India should raise. The youth should rise above selfishness by giving time to the society and the nation and make it strong. He asked them to stop wrong activities and make efforts for right action. The general trend of confining to indoors should stop and one should come out to serve for the country’s cause.


One should remember that there is no revolution and there is only evolution. He said that he would feel happy even if one amongst the audience goes out and works in the right direction with the aim of selfless service. He cited examples as to how Buddhist monks went over to China and successfully spread the message of our ancient Dharma. He regretted that efforts were not taken for the protection of Vedas. He reminded Swamy Vivekananda’s eloquent words exhorting the countrymen to set aside Devi and Devata Puja in order to concentrate on nation building. Shri Bhagawat concluded his talk by calling upon the youth to work for the safety and prosperity for all beings in India.


The meeting came to an end with a vote of thanks by Shri G.Yoganand Manjira group chairman.

संघ ने साधा सांप्रदायिक हिंसा विधेयक पर निशाना

संघ ने साधा सांप्रदायिक हिंसा विधेयक पर निशाना
हैदराबाद, एजेंसी: प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा विधेयक के संबंध में सोनिया गांधी नीत राष्ट्रीय सलाहकार परिषद पर निशाना साधते हुए आरएसएस ने रविवार को आरोप लगाया कि मसौदा विधेयक देश के बहुसंख्यक समुदाय के साथ भेदभाव करता है और इसकी मंशा लोगों में मतभेद पैदा करने की है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यहां एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि देश को कौन चलाता है। सांसद, प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल या राष्ट्रीय सलाहकार परिषद। उन्होंने दावा किया कि अगर आप सांप्रदायिक हिंसा विधेयक को पढ़ें तो इसकी मंशा लोगों के बीच मतभेद पैदा करने की लगती है। यह बहुसंख्यक समुदाय के साथ भेदभाव करता है। उन्होंने कहा कि देश की सीमा अब भी कमजोर है। आतंकवादियों की घुसपैठ अब भी जारी है और चीन की मंशा भी ज्ञात है। उन्होंने भ्रष्टाचार, रोजगार रहित आर्थिक वृद्धि और शिक्षा के वाणिज्यिकरण पर चिंता जताई।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2011-07-25&pageno=४

RSS chief lashes out at NAC

Times of India - ‎5 घंटे पहले‎
HYDERABAD: Stating that the proposed Prevention of Communal and Targeted Violence Bill was against the majority community, Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) chief Mohan Bhagwat on Sunday questioned the constitutional sanctity of National Advisory ...

RSS slams NAC on Communal Violence Bill

Indian Express - ‎17 घंटे पहले‎
Targeting Sonia Gandhi-led National Advisory Council over the proposed Communal Violence Bill, RSS on Sunday alleged the draft legislation discriminates against the majority community in the country and intends to create differences among people. ..

ढुलमुलपन से नहीं

स्त्रोत: http://epaper.amarujala.com/svww_index.फ्प

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

http://www.fbi.gov/washingtondc/press-releases/2011/two-charged-with-conspiring-to-act-as-unregistered-agents-of-pakistani-government

http://www.fbi.gov/washingtondc/press-releases/2011/two-charged-with-conspiring-to-act-as-unregistered-agents-of-pakistani-government

http://www.fbi.gov/washingtondc/press-releases/2011/two-charged-with-conspiring-to-act-as-unregistered-agents-of-pakistani-government

http://www.fbi.gov/washingtondc/press-releases/2011/two-charged-with-conspiring-to-act-as-unregistered-agents-of-pakistani-government

अमेरिकी संसद में सेंध कि तैयारी कर रहा था फई


अमेरिकी संसद में सेंध कि तैयारी कर रहा था फई

ठ्ठएरिक लिप्टन, वॉशिंगटन अमेरिका में गिरफ्तार आइएसआइ एजेंट सैयद गुलाम नबी फई ने अमेरिकी नीति निर्माताओं को अपने जाल में फंसाकर भारत को कश्मीर मुद्दे पर अलग-थलग करने की पूरी तैयारी कर ली थी। इसके लिए फई ने वॉशिंगटन की पिछली गर्मियों में अमेरिका के लगभग आधा दर्जन नीति निर्माताओं की एक पाकिस्तानी-अमेरिकी गुट और कुछ विदेशी लोगों के साथ कैपिटल हिल में बैठक आयोजित कराई थी। इसका एजेंडा कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए वार्ता को आगे बढ़ाना था। इस दौरान सभी ने कश्मीरी-अमेरिकी परिषद के साथ मिलकर कश्मीर के मुद्दे पर अमेरिकी प्रशासन के साथ ही भारत-पाक पर दबाव बनाने की हामी भरी थी। बैठक में शामिल रिपब्लिकन-डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रतिनिधि अमेरिकी संसद में एक प्रस्ताव लाने को भी राजी हो गए थे। इस प्रस्ताव की रूपरेखा कश्मीरी-अमेरिकी परिषद ने ही सुझाई थी। नीति निर्माता चाहते थे कि कश्मीर मसले पर व्हाइट हाउस की ओर से और अधिक दबाव बनाया जाए। इसके लिए उन्होंने इस मसले पर एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित करने की योजना भी बनाई थी। इस कवायद के बीच अमेरिकी प्रतिनिधि इस बात से अनजान थे कि ये सारी चीजें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ की साजिश का हिस्सा थीं। कैपिटल हिल में बैठक का आयोजन भी आइएसआइ के इशारे पर ही हुआ था। कश्मीर पर जिस प्रस्ताव को अमेरिकी संसद में लाने की तैयारी थी उसे भी कश्मीरी-अमेरिकी परिषद के जरिये आइएसआइ ने ही तैयार कराया था। दो दशकों से रची जा रही इस साजिश का एकमात्र लक्ष्य अमेरिकी संसद और व्हाइट हाउस को प्रभावित करके कश्मीर को भारत के हाथ से छीनना था। फई ने करवाई कई बैठकें : कश्मीरी-अमेरिकी परिषद, जिसे कश्मीरी सेंटर के नाम से भी जाना जाता है, का कार्यकारी निदेशक फई आइएसआइ के निर्देश पर दर्जनों बार अमेरिकी नीति निर्माताओं से मिला था। इसके अलावा उसने कश्मीर मसले पर हर साल कैपिटल हिल में एक कांफ्रेंस आयोजित कराने की व्यवस्था भी कर ली थी। एफबीआइ द्वारा कोर्ट में दाखिल किए गए दस्तावेजों के अनुसार, पाक सेना हर साल एक लाख डॉलर फई के जरिये अमेरिकी नीति-निर्माताओं तक पहुंचा रही थी। अमेरिकी विशेषज्ञों की मानें तो भारत पर अमेरिकी दबाव बनवाने की आइएसआइ की साजिश ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि वर्तमान में ओबामा प्रशासन समेत पिछले जितने भी अमेरिकी नीति निर्माता रहे उनका यही मानना रहा कि कश्मीर समस्या का हल भारत और पाक को मिलकर निकालना चाहिए। बुधवार को कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने कहा कि उन्हें यह कतई मालूम नहीं था कि वे आइएसआइ की साजिश का हिस्सा बन चुके हैं। कई सदस्यों को जबसे इस खुलासे के बारे में पता चला है वे बेहद नाराज हैं। पिछले साल कैपिटल हिल में आयोजित बैठक में मौजूद प्रतिनिधि जो पिट्स ने कहा, मैं इस खुलासे से बेहद दुखी हूं। अपने फायदे के लिए किसी का इस्तेमाल करना एकदम गलत है। इसी बैठक में मौजूद रिपब्लिकन पार्टी के डेन बर्टन के फई के साथ घनिष्ठ संबंध थे। बर्टन ही फई के कश्मीर एजेंडे को अमेरिकी संसद में प्रमुखता से उठाने के पक्षधर थे। उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के मामले पर भारत की खिंचाई भी की थी और इस मुद्दे पर चुप रहने के लिए सितंबर में ओबामा प्रशासन को फटकार भी लगाई थी। फई का भंडाफोड़ होने के बाद बर्टन की बोलती बंद हो गई है। उन्होंने इस मामले पर सफाई देने के बजाय अपने पिछले बयान को ही दोहराया। उन्होंने कहा कि वह कश्मीरी-अमेरिकी परिषद के आइएसआइ लिंक के बारे में कुछ भी नहीं जानते। कैपिटल हिल में डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से शामिल होने वाले डेनिस जे. कुचिंछ ने भी सफाई पेश की है। उन्होंने कहा कि बैठक में विदेशियों के अलावा भारत-पाकिस्तान से भी लोग शामिल होने वाले थे। इसीलिए मुझे इसका हिस्सा बनने में कुछ भी गलत नहीं दिखाई दिया। इस मामले पर एक भारतीय अधिकारी ने कहा कि कश्मीरी सेंटर की सारी गतिविधियां बेकार साबित हुई, क्योंकि पिछले कुछ सालों में भारत-अमेरिका के रिश्तों में काफी सुधार हुआ है। -न्यूयॉर्क टाइम्स

source: http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2011-07-22&pageno=७

कश्मीर समस्या के ‘तीसरे विकल्प’(यानी कश्मीर की ‘आजादी’) के पैरोकारों का एक प्रमुख चेहरा बेनकाब हो गया है।

ये वो चेहरा है, जिसने दशकों तक अमेरिका में कश्मीर को मानवाधिकार और वहां के लोगों के ‘आत्म-निर्णय’ के अधिकार की समस्या के रूप में पेश किया, इस मसले के ‘शांतिपूर्ण’ हल की वकालत के नाम पर अमेरिकी राजनेताओं के बीच लॉबिंग की और इसके पक्ष में माहौल बनाने के लिए सेमिनार, जन-सभाएं आदि आयोजित करता रहा।

उसकी इन गतिविधियों में कश्मीर के अलगाववादी नेता और देश के कई ‘मानवाधिकार’ कार्यकर्ता एवं मशहूर पत्रकार भाग लेते रहे, जिनके आने-जाने एवं अमेरिका में रहने का पूरा खर्च उसी गुलाम नबी फई की संस्था ‘कश्मीर अमेरिकन काउंसिल’ (केएसी) उठाती थी।

अब एफबीआई ने खुलासा किया है कि फई पाकिस्तान का एजेंट है, जिसे आईएसआई से पैसे मिलते थे। फई ने खुद को अमेरिका में विदेशी एजेंट के रूप में पंजीकृत करवाए बगैर लॉबिंग की, इसलिए एफबीआई ने उसे गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा दर्ज किया है।

उसके साथ ही जहीर अहमद नाम के एक शख्स पर भी मुकदमा दर्ज हुआ है, जिस पर केएसी के लिए ऐसे फर्जी दानदाताओं की व्यवस्था करने का आरोप है, जिनकी आड़ में आईएसआई पैसा देती थी। साफ है, केएसी की सारी गतिविधियां पाक रणनीति का हिस्सा थीं।

इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि भारत से कश्मीर को अलग कर उसे हड़पना और उसकी ‘आजादी’ की वकालत- ये दोनों विकल्प पाकिस्तान की व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं।

इस हकीकत से सिर्फ वे ही आंख मूंद सकते हैं, जिन्हें या तो आधुनिक-सर्वसमावेशी भारत की अवधारणा से किसी वजह से बैर है या जो इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थितियों से अनजान हैं। फई के प्रकरण ने साबित किया है कि कश्मीर की ‘आजादी’ की बात करने वाले लोग दरहकीकत किसके गुलाम हैं।

स्त्रोत: http://www.bhaskar.com/article/ABH-exposed-face-2282235.html

पंथनिरपेक्ष ढांचे पर प्रहार

पंथनिरपेक्ष ढांचे पर प्रहार

सांप्रदायिक ¨हसा रोकने के लिए प्रस्तावित कानून को कई दृष्टिकोण से अनिष्टकारी मान रहे हैं ए. सूर्यप्रकाश

अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के अपने एजेंडे पर प्रतिबद्ध संप्रग सरकार एक ऐसा कानून बनाने जा रही है जो सांप्रदायिक सौहार्द को नष्ट-भ्रष्ट कर सकता है, संविधान की संघीय विशेषताओं को कमजोर कर सकता है और केंद्र सरकार को राज्यों के शासन में दखल देने के नए बहाने उपलब्ध करा सकता है। प्रस्तावित विधेयक को सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम बिल नाम दिया गया है और इसका जो उद्देश्य बताया जा रहा है वह सांप्रदायिक संघर्ष की घटनाओं पर अंकुश लगाना, लेकिन इसका निर्माण इस पूर्वाग्रह के साथ किया गया है कि सभी स्थितियों में धार्मिक बहुसंख्यक ही अल्पसंख्यक समुदाय पर जुल्म करता है। लिहाजा बहुसंख्यक समाज के सदस्य दोषी हैं और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग पीडि़त। चूंकि यही धारणा इस कानून का आधार है इसलिए यह स्वाभाविक है कि प्रस्तावित कानून 35 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में से 28 में बहुसंख्यक हिंदुओं को सांप्रदायिक हिंसा के लिए जिम्मेदार मानता है और मुस्लिम, ईसाई तथा अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को पीडि़त के रूप में देखता है। इस कानून का मसौदा उस राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया है जो छद्म सेक्युलरिस्टों, हिंदू विरोधियों और नेहरू-गांधी परिवार के समर्थकों का एक समूह है और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी जिसकी अध्यक्ष हैं। इस परिषद को केंद्र की एक ऐसी सरकार से बराबर महत्व मिल रहा है, जिसका नेतृत्व पहली बार अल्पसंख्यक समाज के एक सदस्य द्वारा किया जा रहा है। इस प्रस्तावित कानून के प्रावधान ऐसे हैं कि यह सांप्रदायिक सौहार्द को प्रोत्साहन देना तो दूर रहा, हिंदुओं के बीच पंथनिरपेक्षता की प्रतिबद्धता को ही कमजोर कर सकता है। विधेयक के मसौदे के अनुसार यदि किसी समूह की सदस्यता के कारण जानबूझकर किसी व्यक्ति के खिलाफ ऐसा कृत्य किया जाए जो राष्ट्र के सेक्युलर ताने-बाने को नष्ट करने वाला हो..। सबसे बड़ी शरारत शब्द समूह की परिभाषा में की गई है। इसमें कहा गया है कि समूह का तात्पर्य भारत के किसी राज्य में धार्मिक अथवा भाषाई अल्पसंख्यक या अनुसूचित जाति अथवा जनजाति से है। इसका अर्थ है कि हिंदू, जो आज ज्यादातर राज्यों में बहुसंख्यक हैं, इस कानून के तहत समूह के दायरे में नहीं आएंगे। लिहाजा उन्हें इस कानून के तहत संरक्षण नहीं मिल सकेगा, भले ही वे मुस्लिम अथवा ईसाई सांप्रदायिकता, घृणा या हिंसा के शिकार हों। अनेक विश्लेषकों ने कहा भी है कि इसका अर्थ है कि यदि 2002 में यह कानून लागू होता तो जिन 59 हिंदुओं को गुजरात के गोधरा स्टेशन में साबरमती स्टेशन में जलाकर मार दिया गया उनकी हत्या के संदर्भ में एफआइआर दर्ज नहीं कराई जा सकती थी, क्योंकि इस कानून के तहत गुजरात में हिंदू बहुसंख्यक हैं, लेकिन मुस्लिम गोधरा बाद के दंगों के लिए इस कानून के प्रावधानों का इस्तेमाल कर सकते थे। इसका सीधा अर्थ है कि सांप्रदायिक हिंसा का शिकार होने वाले हिंदुओं को दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में देखा जाएगा और यह काफी कुछ पाकिस्तान जैसे इस्लामिक राज्य में लागू हिंदू विरोधी कानूनों की तरह है। प्रस्तावित कानून के मसौदे के अनुसार एक पीडि़त की व्याख्या अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य के रूप में की गई है, जिसे सांप्रदायिक हिंसा की घटना में शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक क्षति पहुंची हो या उसकी संपत्ति को नुकसान हुआ हो। इसके दायरे में उसके संबंधी, कानूनी अभिभावक और उत्तराधिकारी भी शामिल हैं। इस व्याख्या के आधार पर देश के किसी हिस्से में कोई मुस्लिम या ईसाई का यदि किसी सामान्य मुद्दे पर अपने हिंदू पड़ोसी से विवाद होगा तो वह इस कानून का इस्तेमाल कर अपने पड़ोसी पर यह आरोप लगा सकता है कि उसने उसे मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुंचाया है। यदि वह किसी कारण ऐसा न करे तो उसके संबंधी ऐसा कर सकते हैं। इस पूरी कवायद का जो बुनियादी मकसद नजर आता है वह है हिंदुओं को निशाना बनाना। विधेयक कहता है कि इसे पूरे भारत में लागू किया जाएगा, लेकिन जब देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू-कश्मीर की बात आती है तो इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर राज्य की सहमति से इसे वहां लागू कर सकती है। यद्यपि इस विधेयक को इस तरह अंतिम रूप दिया गया है कि हिंदू समुदाय इसके विचित्र प्रावधानों की मार झेले, लेकिन मुस्लिम, ईसाई और सिखों को भी परेशानी झेलनी पड़ सकती है, क्योंकि बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक के निर्धारण के लिए राज्य ही इकाई है। 2001 के जनगणना आंकड़ों के मुताबिक सिख पंजाब में 59.9 प्रतिशत हैं, जबकि हिंदुओं की आबादी 36.9 प्रतिशत है। यदि यह कानून लागू हो

जाता है तो बहुसंख्यक सिख समाज को हिंदुओं की शिकायत पर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह ईसाई तीन राज्यों-नागालैंड (90 प्रतिशत), मिजोरम (87 प्रतिशत) और मेघालय (70.30 प्रतिशत) में बहुसंख्यक हैं। यदि इन राज्यों में हिंदुओं ने इस कानून का मनमाना इस्तेमाल शुरू कर दिया तो ईसाई समाज को मुसीबतें उठानी पड़ सकती हैं। लिहाजा मुस्लिम, ईसाई और सिख समुदाय को कांग्रेस पार्टी के इस दावे पर कदापि भरोसा नहीं करना चाहिए कि यह विधेयक पंथनिरपेक्षता को मजबूत करेगा, क्योंकि यह विधेयक सांप्रदायिक हिंसा और घृणा के सभी दोषियों को बराबरी पर नहीं देखता। प्रत्येक राज्य में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के निर्धारण में एक अन्य विसंगति भी है। मणिपुर में 46 प्रतिशत हिंदू हैं और अरुणाचल प्रदेश में 34.60 प्रतिशत। चूंकि इन राज्यों में किसी धार्मिक समूह के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है लिहाजा किसे पीडि़त माना जाएगा और किसे दोषी? इसके अतिरिक्त यदि अनुसूचित जाति और जनजाति को हिंदू समुदाय से अलग कर दिया जाए तो इन राज्यों में हिंदू आबादी का प्रतिशत क्या होगा? केरल का मामला भी है, जहां 56.20 प्रतिशत हिंदू हैं। अगर इससे 22 प्रतिशत अनुसूचित जाति और जनजाति को अलग कर दिया जाए तो हिंदुओं का प्रतिशत क्या होगा? यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि जो कानून बनाया जा रहा है वह दरअसल सांप्रदायिक भी है और एक समुदाय यानी हिंदुओं को निशाना बनाने वाला भी। अगर इस विधेयक के सूत्रधार अपने मंसूबे में सफल रहे तो भारत की एकता और अखंडता खतरे में पड़ जाएगी। ऐसा विधेयक वह व्यक्ति नहीं बना सकता जो लोकतांत्रिक और पंथनिरपेक्ष भारत से प्यार करता है। हमें इसकी जांच करनी चाहिए कि विधेयक का मूल मसौदा कहां से आया है? (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

Source : http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2011-07-22&pageno=8

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

आत्मीय व्यवहार ही ईशान्य भारत की समस्या का हल : भैयाजी जोशी

आत्मीय व्यवहार ही ईशान्य भारत की समस्या का हल : भैयाजी जोशी
आसाम इन फ्लेम्सउपन्यास का प्रकाशन

book release Assam in flames
प्रकाशन समारोह में लेखक श्री प्रमोद वडनेरकर, श्री. तरुण विजय, श्री. भैय्याजी जोशी, श्री. मा. गो. वैद्य

नागपुर, १७ जुलाई
प्राकृतिक, सामाजिक, पांथिक और भाषिक असमानता के साथ अन्य भी अनेक कारणों से ईशान्य भारत की जनता के मन में इस देश के बारे में निर्माण हुई दूरी की भावना, हमारे आत्मीय और प्रेमपूर्वक व्यवहार से ही समाप्त हो सकती है, इसके लिए युवाओं की बड़ी ताकद निर्माण करनी होगी। इस दिशा में गति से काम करने के लिए आसाम इन फ्लेम्सयह प्रमोद वडनेरकर का उपन्यास सब को निश्‍चित ही प्रेरणा प्रदान करेगा, ऐसा विश्‍वास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने व्यक्त किया। इस उपन्यास का भैयाजी जोशी के हस्ते रविवार को नागपुर में प्रकाशन हुआ। उस कार्यक्रम में वे बोल रहे थे। ज्येष्ठ विचारवंत, पत्रकार मा. गो. वैद्य जी और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा पत्रकार सांसद तरुण विजय इस कार्यक्रम के विशेष अतिथि थे।
बांगला देशी मुसलमानों की घुसपैठ के कारण असम राज्य में निर्माण हुए जानलेवा और दीर्घकालीन परिणाम केवल इस एक राज्य तक ही सीमित नहीं है; उसके परिणाम संपूर्ण ईशान्य भारत पर भी हुए है, ऐसा प्रतिपादित करते हुए श्री जोशी ने इस समस्या के लिए कारण बने सब मुद्दों का विस्तार से विवेचन किया। उन्होंने कहा, अंग्रेजों से लेकर आज के राजकर्ताओं तक- सब ने इस प्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार किया।पहले से ही अनेक बातों में एक दूसरे से भिन्न होने वाले इन लोगों में के भेद और अधिक तीव्र और संघर्षपूर्ण कैसे होगे, इसके लिए ही प्रयास किए गए।
ईशान्य भारत के सभी राज्यों के लिए एक संयुक्त नीति निश्‍चित करनी चाहिए, ऐसी मांग करते हुए उन्होंने कहा कि, इस प्रदेश का आर्थिक विकास द्रुत गति से किया जाना चाहिए। एकात्मता का संदेश और संस्कार देने के कार्यक्रम यहॉं होने चाहिए।हमें उनकी मानसिकता समझकर, उन्हें हमारे बीच समा लेना चाहिए।
तरुण विजय
असम में बांगलादेशीयों की घुसपैठ ने देश की एकात्मता को कितनी हानि पहुँचाई है, यह अपने जोशपूर्ण, भावना उद्वेलित करनेवाले भाषण में सांसद तरुण विजय ने स्पष्ट किया। इसमें केवल असम ही नहीं झुलस रहा, आज संपूर्ण भारत इसमें झुलस रहा है, ऐसा प्रतिपादित कर उन्होंने कहा कि, असम में की समस्याएँ समाप्त करने के लिए धर्म को राष्ट्र के साथ जोड़ना आवश्यक है। यह उपन्यास, भारत के सिकुडते राष्ट्रीय वातावरण में भारतीयत्व की दृष्टि का आविष्कार करता है, ऐसा भी उन्होने कहा।
इस उपन्यास का अन्त निराशाजनक है।वह प्रत्यक्ष साकार ना हो इसलिए हम सब कृतसंकल्प हो, ऐसा आवाहन उन्होंने किया।
मा. गो. वैद्य
असम की समस्या के लिए बांगलादेशी मुसलमान जिम्मेदार नहीं; दोष हम हिंदुओं का ही है, ऐसा स्पष्ट मत व्यक्त कर मा. गो. वैद्य जी ने,असम की समस्या समाप्त करने के लिए बांगला देश ही भारत में लाना चाहिए, ऐसा उपाय सुझाया।
बांगला देश की निर्मिती में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी, लेकिन उसके बाद भारत की सब नीतियॉं और राजनीति पाकिस्तान केन्द्रीत थी।वह बांगला देश केन्द्रीत होनी चाहिए थी। आज भी हम बांगला देश की ओर आवश्यक गंभीरता से ध्यान नहीं देते ऐसा मत व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि, अखंड भारत यही इसका उपाय है और वह असंभव नहीं।

आतंकवाद पर क्षुद्र राजनीति

क्या भारत अमेरिका की तर्ज पर आतंकवाद के खिलाफ युद्ध जीत सकता है? यदि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के बयानों को देखें तो निराशा हाथ लगती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकी हमलों की भनक खुफिया विभाग को नहीं लगने के कारण आतंकवादी हमले को अंजाम देने में कामयाब रहे। दूसरी ओर, राहुल गांधी आतंकवादी हमलों को रोक पाना बेहद मुश्किल बता रहे हैं। उनके अविवेकी बयान के बचाव में उतरे दिग्विजय सिंह का मानना है कि भारत कम से कम पाकिस्तान से तो बेहतर है, जहां रोज बम विस्फोट हो रहे हैं। यह कैसी मानसिकता है? अमेरिका में 9/11 को हुए आतंकी हमले के बाद सुरक्षा के जो कड़े इंतजाम किए गए उसके कारण दोबारा एक भी आतंकी घटना वहां नहीं हुई। इसके विपरीत भारत में आतंकवादी कहीं भी हमला करने में सक्षम हो रहे हैं। क्यों? इससे पूर्व 26/11 को मुंबई पर बड़ा हमला हुआ था। प्रधानमंत्री-गृहमंत्री ने तब त्यौरियां चढ़ाते हुए अगला हमला होने की सूरत में भारत द्वारा जवाबी कार्रवाई करने की धमकी दी थी। आतंकवाद से निपटने के लिए चाक-चौबंद व्यवस्था करने का दावा किया गया था, किंतु 13/7 के हमले ने साबित कर दिया कि इस सरकार में आतंकवाद पर अंकुश लगाने की इच्छाशक्ति ही नहीं है। वास्तव में भारत में आतंकवाद को उपजाऊ जमीन कांग्रेस की मुस्लिम वोट बैंक की नीति और वामपंथियों के विकृत सेक्युलरवाद के कारण ही मिल रही है। राजग सरकार के कार्यकाल में आतंकवाद के खिलाफ सख्त कानून (पोटा) बनाया गया था। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने सत्ता में आते ही पोटा को निरस्त कर आतंकियों का मानव‌र्द्धन किया। 26/11 के हमले के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी का गठन कर सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहनशीलता बरतने का दावा किया, किंतु राष्ट्रीय जांच एजेंसी की पिछले तीन साल की उपलब्धियां क्या हैं? एजेंसी ने अपनी सारी ऊर्जा कथित भगवा आतंकवाद का हौवा खड़ा करने में जाया कर दी। भगवा आतंकवाद कांग्रेस का राजनीतिक एजेंडा हो सकता है, किंतु क्या इस कुनीति से जिहाद का जहर कम हो जाएगा? प्रतिबंधित मुस्लिम छात्र संगठन-सिमी अपने नए अवतार इंडियन मुजाहिदीन के रूप में भारत की सनातन संस्कृति को निरंतर लहूलुहान करने में लगा है, वहीं भारत का सत्ता अधिष्ठान इस्लामी आतंकवाद के सामने हिंदू आतंकवाद का हौवा खड़ा करने में व्यस्त है। आज चारों तरफ अराजकता का माहौल है। देश का चालीस प्रतिशत हिस्सा नक्सली हिंसा का शिकार है। जिहादी इस्लाम का जहर कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैल चुका है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण कुछ राज्यों के जनसंख्या स्वरूप में बदलाव के साथ आंतरिक सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है, किंतु सेक्युलर सत्ता अधिष्ठान हिंदू आतंक का प्रलाप कर रहा है। पोटा जैसे आतंकवाद निरोधी कानून को सेक्युलरिस्ट मुस्लिम प्रताड़ना का यंत्र बताते हैं। कुछ गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारें जब आतंकवाद के खिलाफ कड़े कानून लाना चाहती हैं तो केंद्र सरकार उनके मार्ग में अवरोध खड़े करती हैं। गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के आतंकवाद निरोधी कानून केंद्र सरकार के पास पिछले चार वषरें से मंजूरी के लिए लंबित हैं। सन 2005 से अब तक कम से कम बीस बड़ी आतंकवादी घटनाएं देश के भिन्न-भिन्न भागों में हुई हैं, किंतु अब तक किसी भी दोषी को सजा नहीं हो सकी है। संसद पर हमला करने की साजिश रचने वाले अफजल गुरु की फांसी की सजा लंबित है। उधर मुंबई हमलों में एकमात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को सुरक्षित रखने पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। क्या उसका भी हश्र अफजल गुरु जैसा ही होना है? कोयंबटूर बम धमाकों के आरोपी अब्दुल नासेर मदनी को पैरोल पर रिहा कराने के लिए तो केरल विधानसभा का विशेष सत्र होली की छुट्टी वाले दिन आयोजित किया गया था और कांग्रेस और मा‌र्क्सवादियों ने सर्वसम्मति से उसकी रिहाई का प्रस्ताव पारित किया था। ऐसी मानसिकता के रहते क्या आतंकवाद का खात्मा संभव है? आतंकवाद को लेकर कांग्रेस का दोहरापन छिपा नहीं है। बाटला हाउस मुठभेड़ में दो पुलिसकर्मियों की भी मौत हुई थी, किंतु अपने जवानों की शहादत को अपमानित करते हुए कांग्रेस के कुछ नेता मुठभेड़ के फौरन बाद बाटला हाउस पहुंचे थे, जहां मुस्लिम वोट बैंक की खातिरदारी में मुलायम सिंह यादव सरीखे नेता पहले से ही विराजमान थे। सत्तासीन कांग्रेस ने अपने नेताओं को आतंकवादियों का साथ देने वाले कट्टरपंथी तत्वों से दूरी बनाने का निर्देश देने के बजाए सुरक्षाकर्मियों की भूमिका पर सवाल खड़ा किया। बाटला हाउस मुठभेड़ और कई अन्य राज्यों की जांच में आतंकवाद और उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के बीच गहरा संबंध पाया गया, किंतु वोट बैंक की राजनीति के कारण आजमगढ़ सेक्युलरिस्टों का नया तीर्थ बन गया। बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए आतंकी और अन्यत्र आतंकी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने के कारण आजमगढ़ के जिन युवाओं को गिरफ्तार किया गया, उनके घरों पर मातमपुर्सी के लिए सेक्युलरिस्टों का तांता लग गया। सुरक्षा जवानों का मनोबल तोड़ने वाले सेक्युलरिस्ट क्या कभी आतंकवाद के खिलाफ लामबंद हो सकेंगे? कई वषरें से पूरे देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र है, किंतु संप्रग सरकार सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 का मसौदा तैयार किए बैठी है। इस विधेयक को लाने का उद्देश्य भी मुस्लिम समाज के कट्टरपंथी वर्ग को खुश कर अपना वोटबैंक बढ़ाना ही है। इस मसौदे में पहले से ही यह मान लिया गया है कि सांप्रदायिक तनाव के लिए केवल बहुसंख्यक जिम्मेदार हैं और अल्पसंख्यकों का इसमें कोई दोष नहीं है। सांप्रदायिक तनाव या संघर्ष की स्थिति में केवल बहुसंख्यक समाज को ही दंडित करने का प्रावधान रखा गया है। वोटबैंक की राजनीति के कारण क्या यह सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने का प्रयास नहीं है? वस्तुत: सामाजिक टकराव से ही कांग्रेस अपना राजनीतिक उल्लू साधती आई है। किसी भी तरह का आतंकवाद भारतीय संप्रभुता और अखंडता को प्रत्यक्ष चुनौती है। ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मार गिराना पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन भले हो, किंतु इससे अमेरिका की दृढ़ इच्छाशक्ति भी रेखांकित हुई है। सारा अमेरिकी समाज इस मामले में बराक ओबामा के साथ खड़ा था। वोटबैंक की वैचारिक दासता में बंधे भारतीय सत्ता अधिष्ठान से ऐसी अपेक्षा व्यर्थ है। (लेखक भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं)
स्त्रोत : http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=2&edition=2011-07-19&pageno=8


रविवार, 17 जुलाई 2011

अवैध पाकिस्‍तानी-बांग्‍लादेशी जनसंख्‍या विस्‍फोट से भारत तबाह

नई दिल्‍ली. अमेरिका में 9/11 को 10 साल हो गए हैं। इसके बाद वहां आतंकी चाह कर भी दोबारा कोई वारदात नहीं कर सके हैं। भारत (मुंबई) में 26/11 को 3 साल भी नहीं बीते हैं। यहां उसके बाद से कम से कम 5 बड़ी आतंकी वारदात हो गई हैं।

राहुल गांधी ने कहा कि हर आतंकी हमला रोकना संभव नहीं है और पी. चिदंबरम बोले कि देश के हर शहर में ऐसा खतरा मौजूद है। इन बयानों की आलोचना हुई, लेकिन वास्‍तव में ये दोनों बयान सच हैं।

भारत में आतंकी हमले की तमाम वजह मौजूद हैं। सबसे बड़ी वजह यहां के कई शहरों में घुसपैठ कर भारत को घर बना चुके करोड़ों बांग्‍लादेशी और पाकिस्‍तानी हैं। 2001 की जनगणना के मुताबिक भारत में करीब 4 करोड़ बांग्‍लादेशी थे।
बांग्‍लादेशियों की बाढ़
आईबी के मुताबिक भारत में लगभग डेढ़ करोड़ बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं, जिनमें से 80 लाख पश्चिम बंगाल और 50 लाख असम में हैं। 4.75 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए बिहार के कटिहार, साहेबगंज, किशनगंज और पूर्णिया जिलों में मौजूद है। लगभग 3.75 लाख त्रिपुरा और 4 से 5 लाख दिल्ली में मौजूद है। नगालैंड और मिजोरम में भी बांग्लादेशी घुसपैठिए शरण लिए हुए हैं। 1991 में नगालैंड में अवैध घुसपैठियों की संख्या जहां 20 हजार थी वहीं अब यह 80 हजार हो गई है।
दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट में दिए गए एक शपथपत्र में स्वीकार किया है कि दिल्ली में लगभग 13 लाख अवैध बांग्लादेशी मौजूद हैं। इन्‍होंने तो राशन कार्ड, पासपोर्ट और वोटर आई कार्ड भी जुटा लिए है।

असम के 27 जिलों में से आठ में बांग्लाभाषी मुसलमान बहुसंख्यक बन चुके है। 1901 से 2001 के बीच असम में मुसलमानों का अनुपात 15.03 प्रतिशत से बढ़कर 30.92 प्रतिशत हुआ है।
असम के पूर्व राज्यपाल ले. जनरल अजय सिंह ने कहा था कि 6000 बांग्लादेशी अवैध रूप से प्रतिदिन सीमा पार कर भारत में प्रवेश करते हैं। यह अवैध घुसपैठ प्रतिवर्ष लगभग 22 लाख होती है। बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं बिहार की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। 2001 की जनगणना के अनुसार, असम में हिन्दू वोटरों में प्रतिवर्ष 19 प्रतिशत और मुस्लिम वोटरों में 35 प्रतिशत वृध्दि दर्ज की गई। देश भर में 195 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां बांग्लादेशी नागरिक मतदाता बनकर चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
14 जुलाई, 2002 को संसद में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि भारत में 10 करोड़ 20 लाख 53 हज़ार 950 अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। इनमें से केवल बंगाल में ही 57 लाख हैं।
पाकिस्‍तानी भी कम नहीं
मुंबई महानगर पालिका द्वारा वर्ष 2009 के अंतिम महीनों में प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक किसी भी स्थिति में 90 हजार पाकिस्तानी बेखटके रह रहे हैं। मुम्बई की एक करोड़ 19 लाख 78 हजार 450 की आबादी में पाकिस्तानियों की संख्या 89 हजार 838 है। हालांकि पिछले साल मार्च में सरकार ने संसद में बताया था कि देश में कुल 677 पाकिस्‍तानी नागरिक अवैध रूप से रह रहे हैं।गृह राज्यमंत्री ने राज्यसभा को बताया था कि भारत में नियम अवधि से अधिक समय तक रहने वाले पाकिस्तानी नागरिकों की संख्या वर्ष 2006 में 5,392, वर्ष 2007 में 6,038 और वर्ष 2008 में 7,547 थी।रामचंद्रन ने बताया कि वर्ष 2006 में 83,426 पाक नागरिक भारत आए थे। वर्ष 2007 में 1,07,906 पाक नागरिक और 2008 में 85,529 पाक नागरिक भारत आए थे। उन्होंने बताया कि अवैध रूप से रहने वाले पाक नागरिकों को गिरफ्तार करना और उनके विरूद्ध मामले दर्ज करना संबंधित पुलिस स्टेशनों, राज्य सरकारों और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासनों के क्षेत्राधिकार में है। लेकिन हकीकत यह है कि स्‍थानीय प्रशासन को जानकारी या चिंता ही नहीं होती कि जो पाकिस्‍तानी आए, वे अपने देश गए भी या नहीं।

लापरवाही और राजनीति
भारत में आए अवैध बांग्‍लादेशी और पाकिस्‍तानी लोगों के लिए यहां बस जाना एकदम आसान है। एक तो पुलिस-प्रशासन के पास इन पर नजर रखने की कोई ठोस व्‍यवस्‍था नहीं है। दूसरे, वोट बैंक के चलते नेता इन्‍हें पूरा भाव देते हैं।

इसके उलट, अमेरिका में किसी भी देश से आने-जाने वाले लोगों पर सरकार की कड़ी नजर रहती है। उसने सख्‍त कानून के जरिए भी विदेशी, खास कर एशियाई नागरिकों का अवैध रूप से रहना काफी मुश्किल बना रखा है

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

आप तो नहीं कर पाएंगे किन्तु योद्धाओं को मत रोकिएगा


अब गंभीर चेहरे मत बनाइएगा। झूठे सांत्वना के शब्द मत उगलिएगा। सच्ची ही होगी, किन्तु श्रद्धांजलि मत दीजिएगा। पाकिस्तान का नाम मत लीजिएगा। ख़ासकर उसे सुबूत सौंपने की हल्की बात मत कहिएगा। आपात बैठकें लेते रहें, किन्तु उनमें कितनी ठोस बातें कीं, यह मत बताइएगा।
घिन आती है। घबराहट होती है। घुटन होती है।
चाहे जैसी सत्ता चलाते रहें, लेकिन हम आम लोगों को ख़ास सपने मत दिखाइएगा। आतंक के विरुद्ध युद्ध का दावा तो भूलकर भी मत कीजिएगा। मुंबई के सिलसिलेवार धमाकों पर भी भारी पड़ने वाले वाचालों को तो बिल्कुल मत बोलने दीजिएगा। गेटवे के विस्फोटों से लेकर 26/11 के हमलों में किए कागजी उपायों को मत दोहराइएगा। और सुरक्षा के लिए चिंता या कड़े कदम अब कतई मत उठाइएगा।
टीस सी उठती है। टूट से जाते हैं। टकराकर लौट आती है- हर आस।
हमलों से समूचा राष्ट्र भले ही दहल गया हो, आप हिम्मत मत दिखाइएगा। अकेले मुंबई में ही 1993 से सिलसिलेवार हमलों में अब तक 700 निर्दोषों की जान जाने के सिलसिले पर बेबसी मत जताइएगा। और सबसे बढ़कर, कार्रवाई करने का श्रेय लेने की तो कोशिश भी मत कीजिएगा। गृहमंत्री को मत हटाइएगा। मुख्यमंत्री मत बदलिएगा। शिवराज पाटिलों, अशोक चव्हाणों के उदाहरण मत सुनाइएगा।
कर्कश लगते हैं। कान फटते हैं। कुंठा बढ़ाते हैं।
और सबसे अलग मुद्दा- हमारे देश को हमारा देश ही रहने दें, विश्व शक्ति मत बनाइएगा। एटमी सौदे को ‘मान’ का प्रश्न बनाया, लेकिन आतंकी धमाकों को रोकने में जान मत लगाइएगा। पौने दो लाख करोड़ का 2जी घोटाला करवाइएगा, लेकिन आतंक की सेकंड और थर्ड जनरेशन को मत पहचानिएगा। घोटालों के टेप खुफिया तरीके से लीक होने से नाराज़ हुए थे, लेकिन देश की सुरक्षा लीक करने वाले खुफिया अमले को कुछ न कहिएगा। खेलों, अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थानों को लुटते देखिएगा किन्तु सैकड़ों मासूमों को बेसहारा-बर्बाद होते मत देखिएगा।
धधक जाते हैं। धड़कनें तेज हो जाती हैं। ‘धिक्कार है’- मन के भीतर से निकलता है।
पहले वे थे- तो कहते थे, ‘सब्र का बांध टूटने वाला है,’ अब आप हैं, कहा था, अगली बार सहन नहीं करेंगे। वे हमें तोड़ गए किन्तु सब्र न छोड़ा। आप का ‘अगली बार’ आ गया, जीवन के शिखर पर सचमुच अवसर है, सहन मत कीजिएगा।
कई व्यवस्थाएं स्वत: कायर होती हैं। इर्द-गिर्द नाकारा घेरा हो तो नेतृत्व भी अकर्मण्य हो जाता है। कायरता, वीरता को धकेल देती है। किन्तु इतनी बड़ी सेना में कुछ तो योद्धा होंगे? उन्हें ईश्वर के लिए, देश के लिए, मत रोकिएगा।
source : http://www.bhaskar.com/article/MH-special-comment-by-kalpesh-kalpesh-yagnik-2261285.html?HT2=

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित