गुरुवार, 17 मई 2012

पाकिस्तानी अल्पसंख्यक चाहते है भारत की स्थायी नागरिकता

पाकिस्तानी अल्पसंख्यक चाहते है भारत की स्थायी नागरिकता


इंदौर, मई 15: पाकिस्तान में हिंदू और अन्य धर्मों के अल्पसंख्यक समूदाय पर होने वाले अत्याचार से तंग आकर भारत भाग आये अल्पसंख्यक भारत में ही स्थायी रूप से बस जाना चाहते है।
अपनी जन्मभूमि पाकिस्तान को अलविदा कह कर मध्यप्रदेश में रह रहे शरणार्थियों के सहयोग में मध्यप्रदेश का सिंधी समुदाय आगे आया है। सिंधी समुदाय ने इन शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की मांग की है।
सिंधी समुदाय के स्थानीय नेता शंकर लालवानी का अनुमान हैं कि मध्यप्रदेश में ऐसे शरणार्थियों की मौजूदा तादाद 3,000 के आसपास है, जिन्होंने मजहबी आधार पर कथित उत्पीड़न के कारण धार्मिक वीजा पर पाकिस्तान छोड़ा था और अब वे अपने वतन नहीं लौटना चाहते। इन शरणार्थियों में सिंधियों के साथ सिख भी शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने देश की सभी प्रदेश सरकारों और केंद्र शासित सूबों को आदेश देकर सुझाया है कि वे संबंधित दिशा निर्देशों और तय प्रक्रिया का पालन करने के बाद ऐसे शरणार्थियों को लांग टर्म वीजा (एलटीवी) प्रदान करने के बारे में विचार कर सकते हैं।
लालवानी ने कहा, ‘केंद्र सरकार का यह कदम उन हजारों पाकिस्तानी शरणार्थियों के लिये बड़ी राहत का सबब बन गया है, जिन्होंने अपना मुल्क छोड़ने से पहले अत्याचारों का लम्बा दौर झेला है और जो फिलहाल भारत में वैध प्रवास करना चाहते हैं।
बहरहाल, जैसा कि वह कहते हैं कि एलटीवी इस मसले का स्थायी समाधान हर्गिज नहीं है और केंद्र सरकार को ऐसे शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के बारे में नियम कायदे ढीले करने चाहिये।
वर्तमान कायदों के मुताबिक कोई व्यक्ति देश में कम से कम सात साल तक लगातार वैध प्रवास करने के बाद ही नागरिकता की अर्जी दे सकता है। लेकिन लालवानी के मुताबिक मध्यप्रदेश के सिंधियों को भारतीय नागरिकता मिलने में खासी दिक्कत पेश आ रही है। नागरिकता के कुछ आवेदन तो ऐसे हैं, जिन पर अंतिम कार्यवाही करीब 20 साल से लंबित है।
लालवानी ने कहा, ‘केंद्र सरकार को पाकिस्तान के अल्पसंख्यक तबके से ताल्लुक रखने वाले शरणार्थियों को विशेष दर्जा देना चाहिये। अगर भारत में उनका चाल चलन हर तरह से ठीक रहता है तो उन्हें दो साल के वैध प्रवास के बाद ही इस मुल्क की नागरिकता मिल जानी चाहिये।’
लालवानी ने यह मांग भी कि पाकिस्तानी शरणार्थियों को भारत की स्थायी नागरिकता देने के संबंध में देश भर के जिलाधिकारियों को अपेक्षाकृत अधिक शक्तियां प्रदान की जानी चाहिये।
उन्होंने बताया कि इंदौर में जिला प्रशासन और पुलिस महकमे की मदद से ऐसे शरणार्थियों के लिये जल्द विशेष शिविर लगाये जायेंगे। इन शिविरों में इनके एलटीवी की औपचारिकताएं पूरी की जायेंगी।  
आपको बता दे न्युजभारती हमेशा से पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले नाइंसाफ़ी के खिलाफ़ आवाज उठाता रहा है। पाकिस्तान में हिंदू लडकियों के अपहरण और जबरन धर्मांतरण के घटनाओं से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार हनन का मामला उजागर हुआ।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत के शहर जैकबाबाद में रहने वाले किशनदास करीब नौ महीने पहले 35 दिन के धार्मिक वीजा पर पाकिस्तान से भारत आये थे और फिलहाल उन्होंने अपने परिवार समेत इंदौर में शरण ले रखी है।
किशनदास ने बताया, ‘पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हालात बेहद खराब हैं। मेरे पाकिस्तान छोड़कर भारत आने से पहले जैकबाबाद में दो लोग मेरी दुकान लूटने आये, जब मैंने इसका विरोध किया तो मुझे गोली मार दी गयी। भगवान का शुक्र है कि मेरी जान बच गयी।’
यह पूछे जाने पर कि इस घटना को लेकर उन्होंने पाकिस्तान पुलिस को शिकायत क्यों नहीं की, उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान में हम लोग (धार्मिक अल्पसंख्यक) डरे हुए हैं। हम वहां कम तादाद में और बहुत कमजोर हैं, जबकि वे लोग (धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने वाले तत्व) बड़ी तादाद में और बहुत ताकतवर हैं। अदालत में उन लोगों को मुजरिम साबित करना मुश्किल है। इसलिये मैंने पाकिस्तान छोड़ने में ही भलाई समझी।’
किशनदास बताते हैं कि वह किस तरह भारत के नियमित वीजा के लिये इस्लामाबाद में नौ महीने तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। आखिरकार उन्हें धार्मिक वीजा के सहारे भारत आने पर मजबूर होना पड़ा।
सिंधी समुदाय के नेताओं की मांग है कि केंद्र सरकार को ऐसे हजारों शरणार्थियों को विशेष दर्जा देकर दो साल के वैध प्रवास के बाद भारत की स्थायी नागरिकता प्रदान करने के बारे में जल्द उचित कदम उठाने चाहिये।
स्त्रोत:http://hn.newsbharati.com

--

मंगलवार, 15 मई 2012

तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का उद्घाटन


तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का शुभारम्भ 

नागपुर, मई 14 : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का उद्घाटन आज स्थानीय रेशिमबाग स्थित स्मृति मंदिर परिसर में संपन्न हुआ। 30 दिनों तक चलने वाले इस वर्ग में भारत के विभिन्न राज्यों के 1000 से अधिक स्वयंसेवक शामिल हुए हैं।
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि शहर के महापौर अनिल सोले थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह सुरेश सोनी ने दीप प्रज्वलन कर इस वर्ग का उद्घाटन किया। संघ शिक्षा वर्ग के सर्वाधिकारी डॉ. जयंतीभाई भाडेसिया, वर्ग के कार्यवाह जसवंत खत्री एवं वर्ग के पालक अधिकारी डॉ. मनमोहन वैद्य मंच पर उपस्थित थे।
सबसे पहले भारत माता की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित किया गया। तत्पश्‍चात सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबळे ने इस वर्ग में आये स्वयंसेवकों का स्वागत करते हुए इस वर्ग की रूपरेखा प्रस्तुत की और मंच पर उपस्थित सहसरकार्यवाह सुरेश सोनी एवं अन्य अधिकारियों का परिचय दिया।

गुजरात के प्रांत संघचालक डॉ. जयंतीभाई भाडेसिया इस तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के सर्वाधिकारी, जोधपुर के प्रांत कार्यवाह जसवंत खत्री कार्यवाह और रा. स्व. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य इस वर्ग के पालक अधिकारी हैं।
सुरेश सोनी ने अतिथि महापौर अनिल सोले का स्वागत किया। अपने भाषण में अनिल सोले ने नागपुर शहर के प्रथम नागरिक होने के नाते, इस वर्ग के लिए देश भर से आये स्वयंसेवकों का स्वागत किया। उन्होंने नागपुर शहर के विकास के लिए चल रहे कार्यक्रमों की जानकारी भी दी।
सहसरकार्यवाह सुरेश सोनी ने स्वयंसेवकों से कहा कि, परस्पर परिचय, विचारों का आदान-प्रदान, समन्वय और आदर्श व्यवहार से ही कार्यकर्ताओं का विकास होता है। स्वयंसेवकों को देश के लिए कृतसंकल्प साधक बतलाते हुए उन्होंने इस वर्ग में से विवेक भाव और वैराग्यशील वृत्ति से उत्तम गुणों का संचय करने का आवाहन किया। जसवंत खत्री ने आभार प्रदर्शन किया।

शुक्रवार, 11 मई 2012

हिंदु अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पाक-बांग्लादेश की संवैधानिक जिम्मेदारी : एसएम कृष्णा


नयी दिल्ली, मई 9: पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर उनकी इच्छा के खिलाफ मुस्लिम लड़कों से शादी कराये जाने और मंदिर एवं गुरूद्वारों को अपवित्र करने की खबरों पर भारत ने चिंता व्यक्त करते हुए बुधवार को कहा कि यह पड़ोसी देशों की सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे अल्पसंख्यकों और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभायें।
विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने इस बारे में लोकसभा में दिये बयान में कहा कि इस विषय को पड़ोसी देश की सरकार के साथ पुरजोर तरीके से उठाया जा रहा है। पाकिस्तान में, खासतौर पर सिंध प्रांत में अल्पसंख्यक समुदायों के उत्पीड़न तथा उन्हें धमकाए जाने की घटनाओं की जानकारी मिली है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा पूर्व में हमें अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों का अपहरण कर उनकी हत्या करने और पाकिस्तान में उनके धार्मिक स्थलों को अपवित्र करने या उनमें अनाधिकृत रूप से प्रवेश करने की खबरें भी मिली हैं।
कृष्णा ने कहा कि यह पाकिस्तान सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों, जिनमें अल्पसंख्यक समुदाय भी शामिल हैं, के प्रति अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करे। विदेश राज्य मंत्री प्रनीत कौर ने कहा,  सरकार ने बांग्लादेश में मंदिरों और पाकिस्तान में भी मंदिरों तथा गुरूद्वारों को अपवित्र करने तथा वहां पर विध्वंस की घटनाओं से संबंधित रिपोर्टें देखी हैं।
विदेश मंत्री ने कहा कि हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 के शिमला समझौते में विशेष तौर पर एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की व्यवस्था है, फिर भी, पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों के उत्पीड़न संबंधी रिपोर्टों के आधार पर सरकार ने विगत में इस मामले को पाकिस्तान के साथ उठाया है।
उन्होंने कहा कि भारत द्वारा यह मामला उठाए जाने पर पाकिस्तान सरकार ने कहा है कि वह इस परिस्थिति से पूरी तरह वाकिफ है और अपने सभी नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यक समुदाय के कल्याण की देखरेख करती है।
कृष्णा ने सदन को सूचित किया कि पाकिस्तान सरकार की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, वहां के राष्ट्रपति ने सिंध प्रांत में मीरपुर मथेलो से एक हिंदू लड़की का अपहरण करके उस क्षेत्र के कुछ प्रभावशाली लोगों द्वारा उसका धर्मांतरण किए जाने संबंधी रिपोर्टों को गंभीरता से लिया है। राष्ट्रपति ने इस मामले की पारदर्शी एवं त्वरित जांच करने और इस जघन्य अपराध में लिप्त व्यक्ति के खिलाफ, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, कानून सम्मत कार्रवाई करने के लिए कहा है।
विदेश मंत्री ने बताया कि पड़ोसी देश में हिंदू लड़कियों के साथ अक्सर होने वाली ऐसी घटनाओं पर वहां के कई संसद सदस्यों, गैर सरकारी संगठनों तथा सिविल सोसायटी ने भी चिंता जतायी है और देश में अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों की रक्षा करने से संबंधित कानूनों के क्रियान्वयन की मांग की है।
पाकिस्तान सरकार द्वारा उसके अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करने की उम्मीद जताते हुए कृष्णा ने पाकिस्तानी लोगों और वहां की सरकार से अपील की कि वे अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, संरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करते हुए उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए हर संभव कदम उठाएं।
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले सदस्यों ने पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों के साथ हो रही ऐसी घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से बयान देने को कहा था। प्रनीत कौर ने कहा कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किये जाने संबंधी खबरों के आधार पर भारत ने यह मामला पाकिस्तान के साथ उठाया था। पाकिस्तान सरकार ने कहा है कि वह हालात से पूरी तरह वाकिफ हैं। बांग्लादेश सरकार लगातार आश्वासन देती रहती है कि वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए वचनबद्ध है।
उन्होंने सवालों के लिखित जवाब में कहा कि पाकिस्तान में सात नवंबर 2011 को हिन्दू डॉक्टरों के मारे जाने के बारे में मीडिया खबरें सरकार ने देखी हैं। जानकारी के अनुसार तीन हिन्दू डॉक्टरों को जान गंवानी पड़ी और एक डॉक्टर को मामूली चोट आयी। पाकिस्तान के तालुका चक, जिला शिकारपुर स्थित डॉक्टरों के गांव में उन पर हमला किया गया।
उन्होंने कहा कि सरकार को बांग्लादेश में भी हिन्दुओं सहित अल्पसंख्यकों के साथ अनुचित व्यवहार की खबरें मिली हैं। बांग्लादेश की संसद ने अल्पसंख्यकों से जब्त की गयी संपत्तियों को बहाल करने के लिए नवंबर 2011 में वेस्टेड प्रॉपर्टी रिटर्न संशोधन विधेयक पारित किया है। बांग्लादेश सरकार इस कानून के कार्यान्वयन के नियम तैयार कर रही है।
स्त्रोत: http://hn.newsbharati.com


सोमवार, 7 मई 2012





पत्रकार दिवस (नारद जयंती) की हार्दिक शुभकामनाये। 
नारद मुनि, हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रो मे से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों मे से एक माने जाते है।
देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें
भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है - देवर्षीणाम्चनारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र(जिसे <न् द्धह्मद्गद्घ="द्वड्डद्बद्यह्लश्र:नारद-पाञ्चरात्र">नारद-पाञ्चरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
वायुपुराण में देवर्षि के पद और लक्षण का वर्णन है- देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले ऋषिगण देवर्षिनाम से जाने जाते हैं। भूत, वर्तमान एवं भविष्य-तीनों कालों के ज्ञाता, सत्यभाषी,स्वयं का साक्षात्कार करके स्वयं में सम्बद्ध, कठोर तपस्या से लोकविख्यात,गर्भावस्था में ही अज्ञान रूपी अंधकार के नष्ट हो जाने से जिनमें ज्ञान का प्रकाश हो चुका है, ऐसे मंत्रवेत्तातथा अपने ऐश्वर्य (सिद्धियों) के बल से सब लोकों में सर्वत्र पहुँचने में सक्षम, मंत्रणा हेतु मनीषियोंसे घिरे हुए देवता, द्विज और नृपदेवर्षि कहे जाते हैं।
इसी पुराण में आगे लिखा है कि धर्म, पुलस्त्य,क्रतु, पुलह,प्रत्यूष,प्रभास और कश्यप - इनके पुत्रों को देवर्षिका पद प्राप्त हुआ। धर्म के पुत्र नर एवं नारायण, क्रतु के पुत्र बालखिल्यगण,पुलहके पुत्र कर्दम, पुलस्त्यके पुत्र कुबेर, प्रत्यूषके पुत्र अचल, कश्यप के पुत्र नारद और पर्वत देवर्षि माने गए, किंतु जनसाधारण देवर्षिके रूप में केवल नारदजी को ही जानता है। उनकी जैसी प्रसिद्धि किसी और को नहीं मिली। वायुपुराण में बताए गए देवर्षि के सारे लक्षण नारदजी में पूर्णत:घटित होते हैं।
महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है - देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्‍‌वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानोंकी शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबलसे समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, क‌र्त्तव्य-अक‌र्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं। अट्ठारह महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है। मत्स्यपुराण में वर्णित है कि श्री नारदजी ने बृहत्कल्प-प्रसंग में जिन अनेक धर्म-आख्यायिकाओं को कहा है, २५,००० श्लोकों का वह महाग्रंथ ही नारद महापुराण है। वर्तमान समय में उपलब्ध नारदपुराण २२,००० श्लोकों वाला है। ३,००० श्लोकों की न्यूनता प्राचीन पाण्डुलिपि का कुछ भाग नष्ट हो जाने के कारण हुई है। नारदपुराण में लगभग ७५० श्लोक ज्योतिषशास्त्र पर हैं। इनमें ज्योतिष के तीनों स्कन्ध-सिद्धांत, होरा और संहिता की सर्वागीण विवेचना की गई है। नारदसंहिता के नाम से उपलब्ध इनके एक अन्य ग्रंथ में भी ज्योतिषशास्त्र के सभी विषयों का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि देवर्षिनारद भक्ति के साथ-साथ ज्योतिष के भी प्रधान आचार्य हैं। आजकल धार्मिक चलचित्रों और धारावाहिकों में नारदजी का जैसा चरित्र-चित्रण हो रहा है, वह देवर्षि की महानता के सामने एकदम बौना है। नारदजी के पात्र को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया जा रहा है, उससे आम आदमी में उनकी छवि लडा़ई-झगडा़ करवाने वाले व्यक्ति अथवा विदूषक की बन गई है। यह उनके प्रकाण्ड पांडित्य एवं विराट व्यक्तित्व के प्रति सरासर अन्याय है। नारद जी का उपहास उडाने वाले श्रीहरि के इन अंशावतार की अवमानना के दोषी है। भगवान की अधिकांश लीलाओं में नारदजी उनके अनन्य सहयोगी बने हैं। वे भगवान के पार्षद होने के साथ देवताओं के प्रवक्ता भी हैं। नारदजी वस्तुत: सही मायनों में देवर्षि हैं.

patrakarita sainy kary se dushkar - gopal sharma


i=dkfjrk lSU; dk;Z ls nq"dj&xksiky 'kekZ

     mn;iqj] 6 ebZ] ^^i=dkfjrk** fuf'pr :Ik ls ,d nq"dj dk;Z gS bl nq"dj dk;Z ds lEiknu esa ukjn th tSlh fuHkhZdrk ,oa lR; fu"Bk gksuh pkfg,A dal tSls O;fDr ds lkeus vxj fdlh dks dgus dk lkgl Fkk rks og ukjn th dksA fo'o laokn dsUnz }kjk vk;ksftr nsof"kZ ukjn t;afr ds volj ij vk;ksftr i=dkj lEeku lekjksg esa cksyrs gq, mIk;qZDr fopkj egkuxj VkbZEl ds lEiknd xksiky 'kekZ us eq[; oDrk ds :Ik esa O;Dr fd;sA Hkkjr dh i=dkfjrk dks fo'o dh i=dkfjrk ls fHkUu crkrs gq, mUgksus dgk fd Hkkjr esa i=dkfjrk dh ijEijk jk"Vª lqj{kk ls tqM+h gqbZ gSA Hkkjr esa i=dkfjrk us tuer ,oa jk"Vª fuEkk.kZ dk vuwBk dk;Z fd;k gSa i=dkfjrk ds {ks= esa yksdekU; ckyxaxk/kj fryd] egkRek xka/kh] Hkxr flag] ohjlkojdj ,oa enueksgu ekyoh; ds ;ksxnku dh ppkZ djrs gq, 'kekZ us dgk fd tu psruk ,oa Lok/khurk dh vy[k txkus dk tks vn~Hkqr ,oa mYys[kuh; dk;Z buds i=ksa ds ek/;e ls gqvk] vxj og ugh gksrk rks LorU=rk dk y{; izkIr djuk fuf'pr gh T;knk nq"dj gksrkA LorU=rk mijkar Hkkjr esa jked`".k Mkyfe;k ,oa jkeukFk xks;udk tSls fonor~tuks us i=dkfjrk ds y{; dks lkdkj djus esa vlhe ;ksxnku fn;k gSaA
dk;ZØe ds v/;{k MkW- ijesUnz n'kksjk us dgk fd i=dkfjrk ,d ekspkZ gS] vfHk;ku gS] y{;  gS] fe'ku gS] vkthfodk ugha gSA lPph i=dkfjrk og laokn gS ftlls lekt dk lEo)Zu gksrk gS A vU;k;] vR;kpkj] vuhfr ,oa nqjkpkjksa ij izHkkoh fu;U=.k i=dkfjrk ds }kjk gh gks ldrk gSA
fo'o laokn dsUnz }kjk izfro"kZ dh Hkkafr vk;skftr i=dkj lEeku lekjksg esa bl ckj mn;iqj ftys ds xkzeh.k {ks= esa dk;Z dj jgs i=dkjks dk lEeku fd;k x;k ftlesa nSfud HkkLdj ds Jh eukst O;kl ¼pko.M½] Jh fuf[ky dksBkjh ¼xksxqUnk½] Jh /kj.ksUnz tSu ¼[ksjokM+k½] jktLFkku if=dk ls Jh Hkwis'k pk"Vk ¼lywEcj½] Jh enu flag jk.kkor ¼>kM+ksy½] Jh yksHkpUn catkjk ¼Qrguxj½] izkr% dky ls Jh dud izlkn pkSchlk ¼Hkh.Mj½] Jh iadt ikyhoky ¼xksxqUnk½] nSfud uoT;ksfr ls Jh jkts'k dqekj iapksyh ¼_"kHknso½] tkx:d VkbZEl ,oa vijkg VkbZEl ls Jh ukukyky vkpk;Z ¼fxokZ½ ,oa bZ Vhoh ls Jh efu"k nk/khp ¼ekoyh½ vkSj eqds'k iqjksfgr ¼>kMksy½ dks i=dkfjrk {ks= esa mYys[kfu; ;ksxnku ds fy, vfrfFk;ksa }kjk iz'kfLr i=] Le~fr fpUg ,oa vksij.kk o JhQy HksV dj lEekfur fd;k x;kA
lekjksg dk lapkyu MkW- Yk{ehyky 'kekZ us fd;k] vfrfFk Lokxr ,oa ifjp; fo'o laokn dsUnz izHkkjh dey izdk'k us djok;k bl volj ij fo'o laokn dsUnz dk ifjp; MkW- lqHkk"k HkkxZo us fn;kA dk;ZØe ifjp; MkW- lqjsUnz >k[kM+ us djok;k] dkO;ikB Jh dSyk'k pUnz us ,oa oUnzsekrje~ Jh izHkkr vkesVk us fd;kA laokn dsUnz ds O;oLFkkid  Hkkjr Hkw"k.k us lEekfur gksus okys i=dkjksa dk ifjp; ,oa /kU;okn Kkfir fd;kA

मंगलवार, 1 मई 2012

shivaji aur suraj pustak ka lokarparn


f'kokth vkSj lqjkt* iqLrd dk yksdkiZ.k


ubZ fnYyh 29@4@2012 ,u-Mh-,e-lh- lHkkxkj esa vk;ksftr lekjksg esa e/; çns'k ls jkT;lHkk ds lkaln Jh vfuy ek/ko nos dh iqLrd ^f'kokth vkSj lqjkt* dk yksdkiZ.k jk- Lo- la?k ds ije iwT; ljla?kpkyd ek- eksgujko Hkkxor th ds dj deyksa ls lEié gqvkA
iqLrd yksdki.kZ lekjksg esa ek- eksgu jko Hkkxor th ds vfrfjDr lgljdk;Zokg Jh lqjs'k th lksuh] Jh yky d`".k vkMok.kh] eqjyheuksgj tks'kh] Jherh lq"kek Lojkt lesr la?k vkSj Hkktik ds dbZ inkf/kdkjh ,oa dk;ZdrkZ mifLFkr FksA
iqLrd dh fo"k; oLrq dk ifjp; djokrs gq, ys[kd Jh vfuy ek/ko nos us crk;k fd iqLrd esa dgha Hkh f'kokth ds ;q)ksa dk o.kZu ugha fd;k x;k gS vfirq iqLrd esa ,d jktk ds :i esa f'kokth }kjk LFkkfir fd, x, ewY;ksa dk lVhd foospu fd;k x;k gSA çR;sd O;fDr tks jkT; O;oLFkk esa fgLlsnkjh pkgrk gS] mldks f'kokth ls dqN u dqN lh[kuk pkfg,A D;ksafd O;oLFkk f'kokth ls 'kq# gksrh gS] vkSj vO;oLFkk vkSjaxtsc lsA f'kokth jktk gSa] mUgksaus dbZ fdys thrs fdUrq mudks dksbZ Hkh fj'rsnkj fdysnkj vFkok lkear ugha gS] tcfd vkSjaxtsc us vius lkjs fj'rsnkjksa dks mPp inksa ij fcBk j[kk gSA nqHkkZX; ls vkt gekjs ns'k esa ogh vkSjaxtsc okyh O;oLFkk py jgh gSA
vkt 'kklu dh tks Hkh O;oLFkk gS] mldk iwoZorhZ mnkgj.k gesa f'kokth ds 'kklu dky ls fey ldrk gSA f'kokth ds ikl 20 gtkj ?kksM+s Fks] muesa ls ,d ?kksM+k t[eh gks x;k] lacfU/kr vf/kdkjh us f'kokth ls dgk fd egkjkt ge ;s ?kksM+k csp nsrs gSa] mUgksaus dgk Bhd gS csp nksA dbZ fnu chr x, vpkud ,d fnu ml vf/kdkjh ls f'kokth dh HksaV gqbZ] mUgksaus iwNk oks ?kksM+k csp fn;k] vf/kdkjh us dgk th egkjkt csp fn;k] vPNk fd;k mlls tks iSls feys Fks mudks jkt [ktkus esa Mky fn;kA ikyd vf/kdkjh us dgk th egkjktA ;g Fkh f'kokth dh foÙkh; O;oLFkkA ftlds ikl 20 gtkj ?kksM+s gksa og O;fDr ,d&,d ?kksM+s dk fglkc vius ikl j[krk gSA tcfd orZeku esa ljdkj us dSx dh tks fjiksZV cukbZ gS mlesa ls gtkjksa #i;s vU; [kpksZa esa Mky fn, gSaA ftldk dksbZ fglkc ugha gSA
viuh 'kklu O;oLFkk esa f'kokth us dkSu ls o`{k dkVus gSa vkSj fd o`{k dk laj{k.k djuk gS] taxyksa dh lqj{kk dSls lqfuf'pr dh tk,A bldk fo'ks"k :i ls mYys[k fd;k gSA efgykvksa dk l'kfädj.k dSls gks\ vYila[;dksa dk dY;k.k fd çdkj fd;k tk,\ ,oa Hkz"Vkpkfj;ksa ds fy, mfpr naM dk çko/kku Hkh mUgksaus fd;k FkkA Hkz"Vkpkj flQZ vkfFkZd gsj&Qsj rd lhfer ugha gS vfirq O;fä oSpkfjd ,oa pkfjf=d :i ls Hkh Hkz"Vkpkj ls eqä gks ,slh ,d jktk ds :i esa f'kokth dh vo/kkj.kk jgh gSA iqLrd dk vkeq[k ije iwT; Jh eksgu Hkkxor th us fy[kk gS ,oa çLrkouk ftUgksaus vius lq'kklu ls ns'k vkSj nqfu;k esa viuh fo'ks"k igpku cukbZ gS ftuds ckjs esa dgk tkrk gS fd oks vPNs ç'kkld gSa ,sls Jh ujsUæ eksnh th us fy[kh gSA
iqLrd esa uk;d f'kokth ds iw.kZ 'kklu dkS'ky dk o.kZu gS D;ksafd Hkkjrh; gksus dk vFkZ&iw.kZ gksuk gSA
dk;ZØe esa eapklhu Jh lqjs'k çHkq th us dgk fd f'kokth vlk/kkj.k j.kuhfrdkj Fks] de lalk/kuksa esa ;q) dSls thrk tkrk gS] f'kokth blds çR;{k mnkgj.k gSA blfy, fo'oHkj dh lsuk,a muds ;q) dh LVªsV~th dk v/;;u djrh gSaA
f'kokth dk ekuuk Fkk fd ;q) thrus ds fy, yM+k tkrk gS] mUgksaus vius thou dky esa 300 fdys thrsA oks dq'ky 'kkld rks Fks gh] jkT; ds yksxksa ls vius [kqn QhM cSd ysrs FksA ,d ckj jkr dk le; FkkA oks os'k cnydj ,d o`) efgyk ds ?kj tk igqaps vkSj Hkkstu ds fy, vkxzg fd;kA vc dksbZ vk;k gS] rks Hkkstu rks nsuk iM+sxk] ,slh gekjh ijEijk gS] blfy, ml efgyk us mudks euk ugha fd;kA
gekjs dksad.k esa yksx pkoy vkSj nky gh eq[;r% [kkrs gSa] lks mlus f'kokth dks ,d ik= esa pkoy yk dj j[k fn;k vkSj ml ij nky Mkyus yxhA tc nky Mky jgh Fkh rks lkjh nky cgus yxh] ml o`) efgyk us dgk fd vki dh gkyr rks fcYdqy f'kokth tSlh gS ;q) thrrs tk jgs gSa ysfdu lqj{kk dk lgh çcU/k ugha gSA bl ij f'kokth us iwNk fd vki crkvks gesa D;k D;k pkfg,A bl ij ml efgyk us dgk fd igys pkoy fudkydj mls ,d fdukjs dj yks fQj chp esa nky MkyksA eSa le>rk gw¡ fd f'kokth dks bruk cM+k lezkV cukus esa ml efgyk dh egRoiw.kZ Hkwfedk jgh gSA
gkykafd f'kokth dk jkT; mruk cM+k ugha Fkk fdUrq mUgksaus ftl la?k"kZ dh 'kq#vkr dh vkxs pydj og vkSjksa ds fy, çsj.kk dk L=ksr cu x;kA Hkk"kk ds lanHkZ ij mudk Li"V er Fkk fd jkT; dk dkedkt ns'k dh Hkk"kk esa gksuk pkfg, blfy, mUgksaus çpfyr fons'kh Hkk"kkvksa dks gVkdj ejkBh vkSj laLd`r esa dk;Z dh 'kq#vkr dhA
ijeiwT; ljla?kpkyd Jh eksgu Hkkxor th us vius mncks/ku esa dgk fd gekjh ijEijk esa O;fä egRoiw.kZ ugha gS cfYd rRo dk egRo gSA blfy, fdlh O;fä dk vuqdj.k u dj rRo dks viuk vkn'kZ ekuuk pkfg,A MkW- gsMxsokj us ,d ekxZ cuk;k vkt oks gekjs chp ugha gSaA blh çdkj yksdekU; fryd us ç;Ru fd;kA rks D;k bu egkiq#"kksa ds ckn og rRo u"V gks x;k\ ;k rks ge fuxqZ.k fujkdkj czã dh mikluk djsa ;g muds fy, laHko gS tks v/;kfRed thou thrs gSaA fdUrq tuekul dh Hkkouk dk çdVhdj.k gks blds fy, gesa ewfrZ] lxq.k] lkdkj uk;d dh t:jr iM+rh gS vkSj ,sls esa gekjs lkeus nks gh vkn'kZ gSa guqeku th vkSj f'kokthA
tc ekrk thtkckbZ xHkZorh Fkh] rks lkekU; lh ckr gS ftu ekrkvksa dks xHkZ gksrk gS] mudh bPNk gksrh gS fd fofHké çdkj dh oLrq,a [kk,a&fi,aA vkSj og bPNk vkus okys f'k'kq ds LokHkko Lo:i dk fu/kkZj.k djrh gSA blfy, ekrk thtkckbZ ls mudh lgsyh us iwNk vkidh D;k [kkus dh bPNk gksrh gSA mUgksaus tokc fn;k dqN [kkus dh bPNk ugha gksrh eq>s rks 16 gkFkksa okyh eka Hkokuh fn[kkbZ nsrh gS] ftuds gj gkFk esa 'kL= gS] eq>s lc ij 'kklu djus dh bPNk gksrh gSA eq>s nq"Vksa dks nafMr djus dh bPNk gksrh gSA bl ij lgsyh us dgk fd ;s rks fHk[kkfj;ksa ds y{k.k gSaA ixyh jkt djus ds fy, FkksM+h gh ;gka gSaA jktk rks fons'kh gksrk gS] vkSj ge mldh lsok ds fy, gksrs gSaA tc ,d jk"Vª esa ,slh ifjfLFkfr fufeZr gks tk, fd ogka dh çtk egku fopkjksa dk vuknj djus yxs] usr`Ro laca/kh fopkjksa dks fuEu ekuk tk, rks ,sls esa ml lekt dh lksp vkSj O;oLFkk esa ifjorZu gksa ;s lqfuf'pr djuk pkfg, vkSj flQZ bruk gh ugha lekt dh lksp vkSj O;oLFkk ifjofrZr gks rFkk ;g ldkjkRed O;oLFkk nh?kZ dky rd cuh jgs ,slk ç;Ru djuk pkfg,A
400 lky igys ftl çdkj dh ifjfLFkfr;ka Fkh vkt Hkh ogh ifjfLFkfr gS] vUrj bruk gS fd ge vc Lok/khu gSaA rc dsoy vehjh vkSj xjhch dk bruk vUrj ugha Fkh] egyksa ds cxy >ksiM+h ugha FkhA vehj vkSj xjhc yksx ,d lkFk jgrs FksA
,d fo|ky; esa cPpksa dks xjhch ij fuca/k fy[kus ds fy, dgk x;kA ,d cPPkh Fkh tks cM+s ?kj dh Fkh mls dHkh xjhch dk vuqHko ugha fd;k FkA mlus fy[kk fd xjhch gj txg gS D;ksafd esjs ?kj esa tks dke djus okyh ckbZ vkrh gS oks xjhc gS] mlds cPps xjhc gSaA blfy, ge lHkh xjhc gSaA vkt gekjs chp lekftd [kkbZ bruh xgjh gS fd cM+s ?kj ds cPpksa dks irk gh u yxs fd xjhch D;k gS] D;ksafd mUgksaus dHkh xjhch ns[kh gh ugha] mldk vuqHko gh ugha fd;kA
;gh f'kokth dh foy{k.krk Fkh oks jktk Fks] fdUrq fojDr Hkko dsA dHkh Hkh lq[k laink ds çfr vkØf'kr ugha gq,A oks Lo;a os'k cnydj vius jkT; esa ?kwers Fks lekt dk nq[k&nnZ mUgksaus viuh vka[kksa ls ns[kk FkkA mldk vuqHko fd;k Fkk] xjhc cPpksa ds lkFk [ksyrs FksA /keZ ds çfr mudh fo'ks"k #fp FkhA fojDr rks brus Fks fd ,d ckj nf{k.k 'kSye x, rks ogka mUgksausa viuk eLrd rd eafnj esa HksaV djus dk fu'p; dj fy;k FkkA oks rks lkSHkkX; ls muds vkl&ikl tks yksx Fks mUgksaus mudks ,slk djus ls jksdk FkkA mudk jkT; Hkys gh NksVk Fkk ysfdu n`f"V cM+h FkhA ekuljksoj ls nf{k.k lkxj rd fgUnw jkT; gS] /keZ dk jkT; gS ,slk mudk ekuuk FkkA muds jkT; dk vk/kkj /keZ FkkA dk'kh dk eafnj VwVk rks vkSjaxtsc dks mlds fojks/k esa i= fy[kk fd vc eq>s mÙkj dh vksj vkuk iM+sxkA muds ikl dyk Fkh tks ,d vkn'kZ uk;d esa gksuh pkfg,A vius vkl&ikl ds yksxksa esa ls ;ksX; yksxksa dh ,d Vhe [kM+h djukA rFkk lgh O;fä dks lgh dk;Z lkSaiukA tks mldh {kerk vkSj çfrHkk ds vuq:i gks rFkk vius vuqpjksa vuqHkkfx;ksa ds le{k viuk Lo;a dk vkn'kZ mnkgj.k çLrqr djukA tks 'ks"k lekt ds fy, çsj.kk cusA f'kokth ds ckn lk;k th dh e`R;q gks xbZ fdUrq eqxyksa ds fo#) 30 o"kZ rd la?k"kZ pyk D;ksafd yksx tkx`r gq,] mUgksaus f'kokth ls çsj.kk thA tc dk'kh ds xkxk Hkê dks ;g vuqHko gqvk fd ,d ,sls 'kkld dh vko';drk gS tks Lons'kh vFkkZr Hkkjrh; gks ,oa 'kklu ds lc xq.kksa ls ;qä gksA rks mUgksaus f'kokth ds ckjs esa lkspk] xqIr :i ls dqN fnuksa rd f'kokth ds jkT; esa jgs vkSj mUgksaus fu"d"kZ fudkyk dh bl le; ns'k esa ftrus Hkh yksx gSa muesa f'kokth gh loZJs"B gSaA N=lky vkSjaxtsc ds lsuk esa FksA ysfdu mudk eu O;fFkr gqvkA ikl esa f'kokth dk f'kfoj Fkk] oks ogka vk, vkSj dgk eq>s vki viuh lsuk esa fu;qä dj yhft,] ljnkj cuk yhft, rks f'kokth us dgk fd vki gekjs ljnkj ugha fe= gSaA mudk ekuuk Fkk fd ;q) thrus ds fy, yM+k tkrk gS vkSj fcuk yM+s ;fn thr gks tk, rks ;q) dh vko';drk gh ugha gSA muesa vi;'k lgus dh Hkh 'kfä FkhA dbZ ckj 'k=qvksa dks /kks[kk fn;k vi;'k ls Mjs ugha ij mUgksaus dgk fd ,d ,slk fe= crk nks ftls eSaus /kks[kk fn;k gksA mUgksaus igyh ckj viuh usoh [kM+h dj fons'kksa ls fçafVax e'khu eaxokdj mldk v/;;u fd;k fQj Hkkjrh; fçafVax e'khu cuokus dh dksf'k'k dh vkSj chp esa gh mudk nsgkUr gks x;kA mUgksaus gesa fl[kk;k fd gesa vPNh oLrq pkgs dqN Hkh gks ¼fons'kh Hkys gh gks½ xzg.k djus esa ijgst ugha gksuk pkfg, ij ges mls vius lkaps esa

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित