रविवार, 30 सितंबर 2012

खुदरा बाज़ार में विदेशी पूंजी निवेश देश के लिए घातक : डा मोहन भागवत



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शनिवार, 29 सितंबर 2012

समाज की दुर्बलताओं को दूर करने का है शाखा ड़ा मोहन भागवत


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जनता जो संघ से चाह रही है

जनता जो संघ से चाह रही है

                                                    गोपाल शर्मा, महानगर टाइम्स , जयपुर 

ऐतिहासिक गुलाबी नगरी, सांस्कृतिक रूप से छोटी काशी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सुदृढ़ पहचान के लिए छटपटा रहे जयपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के यशस्वी सरसंघचालक मोहनराव भागवत का हार्दिक स्वागत..शुभाभिनंदन!! हालांकि गुलाबी नगर में स्वामी विवेकानंद से लेकर महात्मा गांधी और क्रांतिकारियों में चंद्रशेखर आजाद तक का पर्दापण होता रहा है..आजादी के बाद कांग्रेस का पहला राष्ट्रीय महाधिवेशन जयपुर में ही हुआ था और भारतीय जनता पार्टी ने भी उड़ान भरने से पूर्व जयपुर में ही राम, राज और रोटी का ऐतिहासिक उद्घोष किया था और उसी के बाद दिल्ली में सिंहासन प्राप्त कर सकी थी। लेकिन यह पहली घटना है जब सेवा, सादगी, समर्पण, संकल्प के प्रतीक मोहनराव भागवत जयपुर में पांच दिवसीय प्रवास कर रहे हैं। बेदाग भागवत पर देश की निगाहें हैं और करोड़ों देशभक्त यह उम्मीद लगाए हैं कि संघ कुछ ऐसा करे जिससे सामथ्र्यशाली भारत के निर्माण का स्वप्न शीघ्रातिशीघ्र संभव होता दिखाई दे। राजस्थान और जयपुर भी इस जनभावना से अछूते नहीं हैं बल्कि राष्ट्रीयता और देशभक्ति के भाव से ओतप्रोत यहां के लोगों की भावनाएं और अधिक उद्वेलित हैं और किसी भी सद्प्रयास का साथ देने के लिए ज्वार उठ रहा है तथा मानस की उत्ताल लहरें और वेगवती हो चली हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक के लिए कहने को आम जन के पास कुछ विशेष नहीं है क्योंकि रचनात्मक कार्य में अहर्निश जुटे स्वयंसेवकों के प्रति मन में कोई विपरीत भाव  उठता ही नहीं..आपदा के समय स्वयंसेवकों की सक्रियता हर प्रश्न का जवाब दे देती है; और, चूंकि संघ का नेतृत्व सदैव बेदाग और निष्कलंक रहा है इसलिए समीक्षा की भी कोई गुंजाइश शेष नहीं रहती।
लेकिन विषय तब खड़ा होता है जब भारतीय जनता पार्टी की बात उठती है और आम जन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भाजपा के सहयोगी और मार्गदर्शक के रूप में देखता है..और देखता है कि भाजपा तथा अन्य दलों की सोच, राजनीतिक दृष्टि, शासन के तौर तरीकों तथा शुचिता से दूरी बनाए रखने के मामले में कोई अंतर नहीं है। एक जैसे ही छोटे-बड़े ज्यादातर भ्रष्ट चेहरे, अहंकार और आडम्बर से ओत प्रोत तथा सर्वोच्च वरीयता शासन प्राप्त करने को देते हुए..जातिवादी आधार पर टिकट वितरण.. टिकटों की बिक्री.. भ्रष्ट तत्वों का सहयोग और आगे बढऩे के लिए अपने ही साथियों से घात-प्रतिघात! ऐसे में आम जन के मन में ही नहीं, राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत अनगिनत मन सोचने को विवश हो उठते हैं कि संघ क्या कर रहा है..अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर देने वाले संघ के प्रमुख पदाधिकारी कोई हस्तक्षेप क्यों नहीं कर रहे हैं! निश्चय ही संघ के प्रमुख कार्यों में राजनीतिक विषय शामिल नहीं है और न ही संघ को आम जन दैनन्दिन राजनीति में लिप्त देखना चाहते हैं लेकिन संक्रमण वेला में संघ की लगभग चुप्पी मन में भविष्य के लिए भय पैदा कर रही है।
विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन को किसी सलाह या निर्देशन की जरूरत नहीं है और न ही उस ओर सोचा जाना चाहिए। क्योंकि संघ सरसंघचालकों ने विभिन्न अवसरों पर आपद् दिशा निर्देश देने का काम किया है। संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार तो कांग्रेस और क्रांतिकारियों से जुड़े हुए थे तथा एक बार सरसंघचालक पद छोड़कर सत्याग्रह करने का ऐतिहासिक कार्य किया था..द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी उस जनसंघ से ही सहमत थे जो नैतिक और राष्ट्रीय मूल्यों से कोई समझौता नहीं करे..तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने 25 वर्ष पूर्व जयपुर में ही आह्वान किया था कि राष्ट्रीय हितों से जुड़े मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस के लोगों को मिलकर कार्य करना चाहिए। चूंकि सरसंघचालक भागवत उसी श्रेणी के है और उसी पद पर विद्यमान हैं इसलिए जनभावनाएं उनसे राष्ट्रीय पहल की आकांक्षा रखती है।
भ्रष्टाचार और महंगाई ने आम आदमी को गिरफ्त में ले रखा है..राष्ट्रीयता के भाव लुप्त प्राय हो रहे हैं और काम के बदले रिश्वत, जीने के लिए किसी भी तरह कमाओ, कम-से-कम काम करो जैसी सोच राष्ट्र को जर्जर बना रही है..हमें मानसिक रूप से तोड़ चुकी है। ऐसे में प्रभावशाली नेतृत्व की ओर जनता की निगाहें लगी हैं..अण्णा हजारे और बाबा रामदेव का समर्थन करते समय यही सोच हावी रहती है। लेकिन यह कार्य हजारों-लाखों तक जुड़े अण्णा-रामदेव से संभव नहीं है..इसके लिए तो संघ से ही जनता को अपेक्षा है। ..क्योंकि उसमें ही यह दिशा दृष्टि देने की क्षमता है और सकारात्मक रूप से राष्ट्र जागरण के कुछ तात्कालिक प्रयोग करने की कुव्वत है। चूंकि सरसंघचालक भागवत में डॉ. हेडगेवार जी की छवि देखी जाती रही है, उनमें कुशल नेतृत्व क्षमता है, वे राष्ट्रीय समस्याओं से परिचित हैं और संघ करोड़ों हृदयों में रचा-बसा है इसलिए उम्मीद की किरण उधर से ही अधिक है। निश्चय ही सरसंघचालक का पांच दिवसीय प्रवास उस दिशा में सार्थक होगा और कोई निश्चित दिशा बोध का मार्गदर्शन होगा।

समाचार पत्रों से.........

 



साभार: राजस्थान पत्रिका , जयपुर 

ध्येय पथ पर बढ़े निरन्तर - भागवत



ध्येय पथ पर बढ़े निरन्तर  - भागवत
संघ सरिता प्रदर्शनी का उदघाटन करते हुए प पू  सरसंघचालक मोहन जी भागवत 
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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

भागवत का 5 दिवसीय ऐतिहासिक प्रवास, कल से महा शिविर

साभार : महानगर टाइम , जयपुर 


जयपुर, 27 सितम्बर।
जयपुर में राष्ट्रवाद का अद्भुत ज्वार उमड़ पड़ेगा जब करीब 3 दशक बाद जयपुर प्रांत के हजारों स्वयंसेवक एक स्वर में मां भारती का उद्घोष करेंगे। केशव विद्यापीठ में कल से शुरू होने वाले चैतन्य शिविर की भव्य तैयारियां हो चुकी हंै और इसमें शमिल होने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जयपुर पहुंच चुके हंै। भागवत जयपुर में 27 सितम्बर से 1 अक्टूबर तक के ऐतिहासिक पांच दिवसीय प्रवास पर यहां आए हैं। चैतन्य शिविर में जयपुर प्रान्त के संघ शिक्षा वर्ग (प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष, तृतीय वर्ष) शिक्षित स्वयंसेवकों सहित शाखा स्तर के गटनायक से लेकर प्रान्त स्तर तक के सभी दायित्ववान स्वयंसेवक सम्मिलित होंगे। इस दौरान सरसंघचालक स्वयंसेवकों के साथ शिविर में रहेंगे। चैतन्य शिविर से पूर्व विविध संगठनों से जुड़े स्वयंसेवकों की समन्वय बैठक केशव विद्यापीठ में रहेगी जिसेे भागवत सम्बोधित करेंगे।  शिविर स्थान पर राष्ट्रभक्ति का भाव जगाने वाली प्रेरणादायी प्रदर्शनी संघ सरिता दिखाई जाएगी जिसका उद्घाटन डॉ. भागवत कल सुबह   10 बजे करेंगे। जयपुर की जनता के अवलोकन के लिए इस प्रदर्शनी में भारतीय संस्कृति का विश्व में संचार, वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप, सिक्ख गुरुओं का बलिदान, संघ कार्य के विविध आयाम आदि सामाजिक व राष्ट्रीय विषयों पर आधारित चित्रमय प्रदर्शनी के साथ साहित्य, पंचगव्य व स्वदेशी उत्पाद बिक्री केन्द्र रहेंगे। प्रदर्शनी स्थल पर प्रत्येक आधे घण्टे के अन्तराल पर एक लघु चलचित्र (फिल्म) वन्देमातरम् दिखाई जाएगी।

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

हिंदू सम्मेलन व त्रिधारा पथ संचलन को लेकर संपर्क बैठक आयोजित

साभार: दैनिक भास्कर, जैसलमेर  


हिंदू शक्ति संगम के लिए किया जनसंपर्क
जैसलमेर दो अक्टूबर को जैसलमेर में होने वाले हिंदू शक्ति संगम की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। हिंदू शक्ति संगम स्वागत समिति के अध्यक्ष डॉ. दाऊ लाल शर्मा के नेतृत्व में सदस्यों ने जन संपर्क किया। दर्जी पाड़ा में विभाग शारीरिक प्रमुख भगवत दान रतनू ने मातृ शक्ति को कार्यक्रम की पूर्ण जानकारी दी। कार्यकर्ताओं द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में भी जनसंपर्क किया जा रहा है। सीमा जन कल्याण समिति के प्रांतीय संगठन मंत्री निम्बसिंह ने कन्नोई, सलखा में ग्रामीणों की बैठक ली जिसमें ग्रामीणों से इस महासंगम में अधिक से अधिक संख्या में भाग लेने का आह्वान किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संघ कार्यकर्ताओं ने ग्राम चांधन, सोढाकोर, डेलासर, धायसर, भैरवा, सगरा और जावंध नई आदि क्षेत्रों में जन संपर्क किया। संपर्क के दौरान दानसिंह, रेवंतसिंह, जगदीष बगड़ा, तुलसीदास पालीवाल, पृथ्वीराज, भगवान राम सैन, आईदान सहित कार्यकर्ता साथ थे।

फतेहगढ़. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत के कार्यक्रम को लेकर सघन जनसंपर्क किया जा रहा है। प्रचार प्रमुख चतरसिंह कीता, भाजयुमो के उपाध्यक्ष लजपतसिंह राजगुरु के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने भीयासर, रीवडी, तोगा, हरभा, नीम्बा, मंडाई, लखा, मोढ़ा सहित विभिन्न गांवों में जनसंपर्क किया। गौ ग्राम विकास प्रमुख घेवर सिंह राजगढ़ व पूर्व प्रधान सुमेरसिंह देवड़ा के नेतृत्व में झिनझिनयाली, देवड़ा, बईया, तेजमालता, रणधा, सिहडार, नीम्बली, कुडा सहित अन्य जगहों पर जनसंपर्क कर अधिक से अधिक संख्या में जैसलमेर पहुंचने का आह्वान किया। कपूरिया मठ के महंत वीरमपुरी ने हिंदू समाज को संगठित होने का आह्वान किया। इस अवसर पर सीमाजन कल्याण समिति के तहसील मंत्री पृथ्वी सिंह, नवगुणसिंह, गिरधरसिंह, पवनगिरी, विक्रमसिंह, देवीलाल साथ थे।
रामदेवरा जिला मुख्यालय पर 2 अक्टूबर को आयोजित होने वाले विराट हिंदू सम्मेलन व त्रिधारा पथ संचलन में अधिक से अधिक संख्या में शामिल होने के लिए निकटवर्ती गांव लोहारकी में बुधवार को चिडिय़ानाथ के धूणे पर संपर्क बैठक का आयोजन किया गया। बैठक को संबोधित करते हुए संस्कृत भारती के क्षेत्रीय प्रचारक हुलास चन्द्र ने कहा कि साथ-साथ, खेलने-कूदने, उठने-बैठने व विभिन्न क्रिया-कलापों से पारस्परिक संबंधों में प्रगाढ़ता का विकास होता है। भाईचारे की इस मौलिक मानवीय गुण को आधार बनाकर ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। उन्होंने सामाजिक एकता को विश्व बंधुत्व का कारक बताते हुए स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देते हुए कहा कि स्वामी संपूर्ण विश्व को अपना परिवार मानते थे, तभी तो वे निडरता व नि:संकोच अपनी ओजस्वी वाणी पहुंचाने के लिए अमेरिका पहुंच गए। बैठक को संबोधित करते हुए भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य शैतानसिंह राठौड़ ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहनराव भागवत हमारे जिले में पहली बार आ रहे हैं। इसलिए इस अवसर को ऐतिहासिक बनाने के लिए अधिकाधिक संख्या में इस कार्यक्रम में पहुंचे। इस बैठक में भाजपा सांकड़ा मंडल अध्यक्ष नारायणसिंह तंवर, मोतीलाल पुरोहित, विहिप के बींजराजसिंह तंवर, माधुसिंह चंपावत, बीकानेर के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष गोरधन सिंह रावलोत, भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के चन्द्र सिंह, मूलसिंह, करण सिंह, पूर्व सरपंच टीकूराम, हरचंदराम, समुंदरसिंह, देवीसिंह, मोहनराम व रघुनाथसिंह बरडाना सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

सांकड़ा ग्राम पंचायत के सार्वजनिक सभा भवन में संघ के सह जिला कार्यवाहक चिरंजीलाल सोनी, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य शैतानसिंह सांकड़ा सहित सैकड़ों की संख्या में आस पास की ढाणियों के ग्रामीण उपस्थित थे। बैठक में सर कार्यवाह चिरंजीलाल ने हिंदु समाज का इतिहास, शौर्य, पराक्रम, तथा हिंदु समाज के साथ हुए कुठाराघात के संबंध में उपस्थित ग्रामीणों को अवगत करवाया। तथा आगामी अक्टूबर को जैसलमेर में आयोजित होने वाले विराट पंथ संचलन व हिंदु सम्मेलन ने ग्रामीणों से अधिक से अधिक संख्या में शामिल होने का आह्वान किया। बैठक में कस्बे सहित आसपास क्षेत्र के सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे। बैठक में भीख सिंह, बीजराजसिंह, सूरजमल, दौलतसिंह, धनसिंह, खेताराम लीलड़, खंगार राम माली, शंभूसिंह, डला राम भील, चुतरसिंह, माधापुरा, सज्जनसिंह, दुर्ग सिंह, नकताराम भील, हमथाराम, नकताराम, चन्द्रपुरी स्वामी, पर्वतसिंह, सबलसिंह, नेपालसिंह सहित अनेक ग्रामीण व स्वयंसेवक उपस्थित थे।

सोमवार, 24 सितंबर 2012

जम्मू कश्मीर का भारत में विलय सम्पूर्ण

जम्मू कश्मीर का भारत में विलय सम्पूर्ण

स्रोत: News Bharati Hindi      तारीख: 9/23/2012 8:27:13 PM
Maharaja_of_Kashmir,_Hari_Singh_(1895_-_1961) 

जम्मू कश्मीर प्रांत में पाकिस्तान समर्थित अलगाव वाद तथा आतंकवाद ने तूल पकडा है।

आज दि. २३ सितंबर, कश्मीर के दिवंगत महाराजा हरि सिंह जी का जयंती दिन है। इस अवसर पर कश्मीर के भारत में विलिनिकरण प्रक्रिया पर नजर डाल रहें हैं आशुतोष...

- आशुतोष 

 “मैं, श्रीमान् ...... महाराजाधिराज श्री हरी सिंह जी ........ जम्मू व कश्मीर का शासक ........ “रियासत पर अपनी संप्रभुता का निर्वाह करते हुए एतद्द्वारा अपने इस विलय के प्रपत्र का निष्पादन करता हूं ....” यह वही प्रपत्र है जिस पर देश की सभी रियासतों के शासकों ने हस्ताक्षर किये थे। जम्मू कश्मीर के शासक महाराजा हरी सिंह ने भी इस प्रपत्रपर ही हस्ताक्षर किये थे। इस विलय को स्वीकार करते हुए तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने लिखा “..... मैं एतद्द्वारा विलय के इस प्रपत्र को अक्तूबर के सत्ताईसवें दिन सन् उन्नीस सौ सैंतालीस को स्वीकार करता हूं।“ यह भी वहीं भाषा है जिसे माउंटबेटन ने अन्य सभी रियासतों के विलय को स्वीकार करते हुए लिखा था। जब विलय का प्रपत्र और स्वीकृति, दोनों ही सभी रियासतों के समान थे तो विवाद का विषय ही कहां बचता है ? अतः कथित विवाद का जो रूप आज हमें अनुभव होता है, वह तथ्य नहीं बल्कि प्रयासपूर्वक गढ़ा गया एक भ्रम है जिसे बनाये रखने में न केवल अलगाववादी तत्वों की बल्कि राज्य व केन्द्र सरकार की भी भूमिका है।
सच यह है कि पाकिस्तान की ओर से हुए आक्रमण की भारी कीमत राज्य के नागरिकों को उठानी पड़ी जिसके कारण आम नागरिक भी पाकिस्तान को आक्रमणकारी मानता था और उसके साथ विलय की सोच भी नहीं सकता था। यहां तक कि प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के सबसे निकट रहे शेख अब्दुल्ला, जिन्हें राज्य का प्रधानमंत्री बनाये जाने की जिद के चलते ही जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय में इतना विलम्ब हुआ, अपने ही कारणों से जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद का विरोध करते थे और पाकिस्तान में विलय के पूरी तरह खिलाफ थे। 
इसके बावजूद जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को लेकर जो भ्रम उत्पन्न हुआ उसका मुख्य कारण नेहरू द्वारा राज्य के साथ अन्य रियासतों से भिन्न दृष्टिकोण अपनाया जाना है। विलय करने वाली रियासतों के साथ सामान्य नीति यह थी कि एक चुनी हुई स्थानीय लोकप्रिय सरकार बनायी जाय जिसमें एक मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री राजा के दीवान की वरिष्ठ स्थिति में हो जब तक कि नवस्वाधीन राष्ट्र व्यवस्था को अपने हाथ में न ले ले। जम्मू कश्मीर में यह व्यवस्था भिन्न रूप में पहले से ही लागू थी। किन्तु पं नेहरू की यह जिद थी कि महाराजा विलय के पूर्व ही शेख अब्दुल्ला को सत्ता सौंप दें। महाराजा को यह स्वीकार नहीं था। महाराजा की इस हिचक को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है।
यह नहीं भूलना चाहिये कि हरि सिंह देश की सबसे बड़ी रियासतों में से एक के महाराजा थे। महाराजा हरि सिंह एक देश भक्त राजा थे ।
‘नरेन्द्र मण्डल’ के अध्यक्ष की हैसियत से ही उन्होंने लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था जिसमें उन्होंने दृढ़ता से भारत की स्वतंत्रता का पक्ष रखा था। उन्होंने ब्रिटिश प्रतिनिधियों को यह भी परामर्श दिया कि वे रियासतों के राजाओं की स्थिति के बारे में अधिक चिंतित न हो और स्वतंत्रता के बाद रियासतों के साथ संबंध का मामला वे रियासतों के राजाओं पर छोड़ दें। स्वाभाविक ही अंग्रेजों को महाराजा का यह आग्रह पसंद नहीं आया और उन्होंने महाराजा को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया। १९४७ में उन्हें यह अवसर मिल गया। 
पृष्ठभूमि
Maharaja_Hari_Singh_1944_जम्मू कश्मीर में स्वतंत्रता से पूर्व नेशनल कांफ्रेंस और  मुस्लिम कांफ्रेंस दो प्रमुख  दल सक्रिय थे। १९३९ में नेशनल कांफ्रेंस
का गठन हुआ। नेशनल कांफ्रेंस का केवल कश्मीर घाटी में अच्छा प्रभाव था  ।  मुस्लिम कांफ्रेंस को जम्मू के अनेक क्षेत्रो छिट-पुट समर्थन हासिल था। कोई भी दल भारत के खिलाफ नहीं था जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि राज्य की जनता में भारत में विलय के संबंध में कोई ऊहा-पोह थी। 
जब भारत की स्वतंत्रता का निश्चय हो गया और यह चर्चा शुरू हो गयी कि अंग्रेज कांग्रेस को सत्ता सौंपेंगे, साथ ही भारत का एक हिस्सा काट कर पाकिस्तान नाम का नया राज्य बनेगा जिसकी बागडोर जिन्ना संभालेंगे, तो शेख के मन में भी यह इच्छा बलवती हो गयी कि कश्मीर की सत्ता उसे सौंपी जानी चाहिये। १९४६ में नेशनल कांफ्रेस ने ‘कश्मीर छोड़ो’ का नारा दिया जो अंग्रेजो  के विरुद्ध नहीं बल्कि महाराजा के खिलाफ था। उसकी मांग थी कि कांग्रेस की तर्ज पर नेशनल कांफ्रेंस को सत्ता सौंप कर महाराजा कश्मीर छोड़ दें। परिणामस्वरूप महाराजा ने राजद्रोह के आरोप में शेख को कारावास में डाल दिया। पं नेहरू ने शेख के आंदोलन का समर्थन किया जो महाराज और नेहरू के संबंधों में खटास का कारण बना। 
पं नेहरू की जिद के चलते महाराजा को शेख के हाथों सत्ता सौंपने को विवश होना पड़ा। किन्तु इससे पूर्व शेख को जेल से तभी छोड़ा गया जब उसने महाराजा के प्रति निष्ठा की शपथ ली। दि.२६ सितम्बर १९४७ को महाराजा को लिखे गये अपने पत्र में शेख अब्दुल्ला ने लिखा :–
“इस बात के बावजूद कि भूतकाल में क्या हुआ है, मैं महाराजा को यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैंने और मेरी पार्टी ने कभी भी महाराज या उनकी राजगद्दी या उनके राजवंश के प्रति कभी भी अनिष्ठा की भावना नहीं रखी है। ...... महाराज, मैं अपने और अपने संगठन की ओर से आपको पूर्ण निष्ठा व समर्थन का आश्वासन देता हूं .... पत्र खत्म करने से पहले महाराज मैं एक बार फिर अपनी अविचल निष्ठा का आश्वासन देता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह मुझे महामहिम के संरक्षण में वह अवसर प्रदान करें कि इस राज्य को शांति, समृद्धि और सुशासन हासिल हो सके।“
दि. १ अक्तूबर १९४७ को श्रीनगर के हजूरी बाग में एक सभा को संबोधित करते हुए शेख ने कहा – ‘जब तक मेरे शरीर में खून की आखिरी बूंद है तब तक मैं द्विराष्ट्र के सिद्धांत में विश्वास नहीं करूंगा।‘ यह दर्शाता है कि मतभेद के बावजूद शेख स्वयं भी पाकिस्तान के साथ जाने को तत्पर नहीं थे। यद्यपि भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७ के अनुसार विलय का निर्णय करने का अधिकार केवल शासक को ही था, जनमत का वहां कोई संदर्भ ही न था, फिर भी, कहा जा सकता है कि जम्मू कश्मीर का बहुमत, यहां तक कि मुस्लिम बहुमत भी भारत में विलय के विरुद्ध नहीं था।
विवाद की जड़ देखा जाय तो सारे विवाद की जड़ में है विलय पत्र पर हस्ताक्षर के साथ ही माउंटबेटन द्वारा महाराजा हरि सिंह को लिखा गया पत्र, जिसमें उन्होंने जनता की राय लेने की बात कही। उन्होंने लिखा – “अपनी उस नीति को ध्यान में रखते हुए कि जिस रियासत में विलय का मुद्दा विवादास्पद हो वहां विलय की समस्या का समाधान रियासत के लोगों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए किया जाय, मेरी सरकार की इच्छा है कि जब रियासत में कानून और व्यवस्था बहाल हो जाय और इसकी भूमि को आक्रमणकारियों से मुक्त कर दिया जाय तो रियासत के विलय का मामला लोगों की राय लेकर सुलझाया जाय।“ इस पत्र की कीमत सिर्फ यही है कि यह गवर्नर जनरल द्वारा महाराजा हरि सिंह को लिखा गया है। इसकी कोई वैधानिक स्थिति नहीं है क्योंकि इस प्रकार के सशर्त विलय का कोई प्रावधान भारत स्वतंत्रता अधिनियम १९४७ में नहीं था। 
यह तथ्य है कि महाराजा ने अपने हस्ताक्षर किये हुए विलय पत्र के साथ एक पत्र भेजा था जिसमें विलय का निर्णय करने में हुए विलम्ब के कारणों पर प्रकाश डाला था। किन्तु उन्होंने इसमें कहीं भी राज्य में विलय को लेकर हुए किसी विवाद की चर्चा तक नहीं की है। न तो उसमें भारत में विलय को लेकर जनता के विरोध का उल्लेख है और न ही पाकिस्तान के साथ विलय अथवा स्वतंत्रता की मांग संबंधी किसी आन्दोलन का जिक्र। अन्य उपलब्ध दस्तावेजों में भी कहीं ऐसे किसी विवाद का संदर्भ नहीं मिलता। फिर भी माउंटबेटन द्वारा विलय को विवादित बताया जाना किसी दूरगामी राजनीति की ओर संकेत करता है। 
माउंटबेटन ने दि.२७ अक्तूबर १९४७ को यह पत्र महाराजा के पत्र के उत्तर में लिखा था। यद्यपि वैधानिक आधार पर इस पत्र का कोई मूल्य नहीं, किन्तु फिर भी गवर्नर जनरल ने जनमत संग्रह का प्रपंच रचते समय इसे अपनी निजी राय नहीं बताया। वे इसे ‘अपनी सरकार की इच्छा’ कहते हैं। यदि यह सत्य है तो इसके कारण राष्टीय हित को पहुंचे नुकसान की जिम्मेदारी तत्कालीन कांग्रेस सरकार तथा व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री नेहरू की बनती है। यदि यह झूठ है तो गवर्नर जनरल द्वारा सरकार का नाम लेकर लिखे गये इस झूठ का आज तक खण्डन क्यों नहीं किया गया ? साथ ही, यदि यह सरकार की नीति थी तो इसे केवल जम्मू कश्मीर पर ही क्यों लादा गया ? माउंटबेटन अथवा सरकार द्वारा किसी भी रियासत को इस प्रकार का कोई पत्र नहीं भेजा गया। यह प्रश्न आज भी जिंदा हैं और उत्तर चाहते हैं।
इस पत्र में माउंटबेटन यह भी लिखते हैं कि – ‘मुझे और मेरी सरकार को यह जानकर काफी संतुष्टि है कि महामहिम ने अपने प्रधानमंत्री के साथ काम काम करने के लिये शेख अब्दुल्ला को अंतरिम सरकार बनाने के लिये आमंत्रित किया है।‘ अनेक बार लोग कश्मीर में नेहरू की व्यक्तिगत रुचि तथा शेख के साथ उनकी व्यक्तिगत मित्रता को सारे फसाद की जड़ बताते हैं किन्तु इन जटिल परिस्थितियों में जेल से छुड़ा कर शेख को सत्ता सौंपने में माउंटबेटन की इतनी रुचि क्यों थी, इसका उत्तर उनके पत्र से नहीं मिलता। महाराजा हरि सिंह द्वारा माउंटबेटन अथवा ‘उनकी सरकार’ द्वारा विलय के साथ जोड़ी गयी कथित शर्तों को स्वीकार किया गया था अथवा यह शर्तें विलयपत्र का अंग बनीं, इसकी पुष्टि करने वाला भी कोई दस्तावेज मौजूद नहीं है। इसके बावजूद पत्र का सहारा लेने वाले अलगाववादी महाराजा हरिसिंह द्वारा लिखे गये पत्र को जान-बूझ कर नजरअंदाज कर देते हैं जिसमें वे स्पष्ट लिखते हैं कि मेरी रियासत के लोगों, हिन्दू और मुसलमान दोनों ही ने आम तौर पर इस उथल-पुथल में कोई हिस्सा नहीं लिया है। भारत सरकार द्वारा भी इस भ्रम को दूर करने के लिये अपेक्षित उपाय नहीं किये गये। माउंटबेटन के इस अवांछित हस्तक्षेप के पीछे पं. नेहरू से निजी संबंध तो संभवतः कारण थे ही, ब्रिटिश रणनीति भी कहीं-न-कहीं साथ चल रही थी। दि.५ फरवरी १९४८ को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बहस के दौरान शेख अब्दुल्ला द्वारा “जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण मुद्दा है, विलय नहीं” कहे जाने के बावजूद पाकिस्तान के खिलाफ भारत की शिकायत की सुनवाई के समय इंग्लैंड और अमेरिका द्वारा जिस तरह पाकिस्तान का पक्ष लिया गया उससे इस संदेह की पुष्टि होती है। पाकिस्तान द्वारा जम्मू कश्मीर राज्य की भूमि को आक्रमणकारियों द्वारा खाली कराये जाने के अपने ही प्रस्ताव को लागू कराने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भी कुछ नहीं किया गया। 
पाकिस्तान के खिलाफ शिकायत का मसौदा बनाये जाते समय और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समक्ष शिकायत दर्ज कराते समय भारत सरकार द्वारा महाराजा हरि सिंह से परामर्श नहीं किया गया। तत्कालीन उपप्रधानमंत्री वल्लभ भाई पटेल को संबोधित दि.३१ जनवरी १९४८ के पत्र में महाराज हरि सिंह ने इस संदर्भ में अपनी चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने इस पर गहरा खेद व्यक्त किया कि विलय के दो महींने के भीतर ही भारत ने मंगला घाटी, अलीबेग, गुरद्वारा, मीरपुर कस्बा, भिम्बर कस्बा, देवा और कोटली क्षेत्र, पाकिस्तान के हाथों गंवा दिये। उन्होंने यहां तक प्रस्ताव किया कि वह खुद भारतीय सेना की कमान का नेतृत्व करना चाहते हैं ताकि राज्य से घुसपैठियों और पाकिस्तानी सैन्य बलों को खदेड़ा जा सके। किन्तु लगता है कि विलय के पश्चात भारत सरकार ने महाराजा की पूर्ण उपेक्षा का मन बना लिया था। 
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दि.१ जनवरी १९४८ को संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद ३५ के अनुसार जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान के आक्रमण के मुद्दे को सुरक्षा परिषद में उठाते हुए भारत सरकार ने कहा - “वे आक्रमणकारी जिनमें पाकिस्तान के नागरिक और कबाइली शामिल हैं, जम्मू-व-कश्मीर जिसने भारत में विलय कर लिया है और जो भारत का अंग है, में कार्रवाई करने के लिये पाकिस्तान से सहायता ले रहे हैं। इस कारण से भारत और पाकिस्तान के बीच यह स्थिति पैदा हुई है। भारत सरकार सुरक्षा परिषद से प्रार्थना करती है कि वे पाकिस्तान से इस तरह की कार्रवाई रोकने के लिये कहें क्योंकि ऐसी सहायता भारत के विरुद्ध आक्रमण की कार्रवाई है और यदि पाकिस्तान नहीं रुका तो भारत सरकार आत्मरक्षा में पाकिस्तानी सीमा में घुसने और आक्रमणकारियों के विरुद्ध सैनिक अभियान चलाने के लिये मजबूर हो जायेगी।“ इसके ठीक एक वर्ष बाद १ जनवरी १९४९ को पाकिस्तान के अवैध कब्जे को खाली कराये बिना ही भारत ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी। युद्ध विराम के समय पाकिस्तान ८५००० वर्ग किमी भू-भाग पर अवैध अधिकार किये हुए था जो आज भी जारी है। 
संवैधानिक स्थिति दि.१७ जून १९४७ को भारतीय स्वाधीनता अधिनियम-१९४७ ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया। १८ जुलाई को इसे शाही स्वीकृति मिली जिसके अनुसार दि.१५ अगस्त १९४७ को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तथा उसके एक भाग को काट कर नवगठित राज्य पाकिस्तान का उदय हुआ। पाकिस्तान के अधीन पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब, उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत एवं सिंध का भाग आया। ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहा शेष भू-भाग भारत के साथ रहा।
* इस अधिनियम से ब्रिटिश भारत की रियासतें अंग्रेजी राज की परमोच्चता से तो मुक्त हो गईं, परन्तु उन्हें राष्ट्र का दर्जा नहीं मिला और उन्हें यह सुझाव दिया गया कि भारत या पाकिस्तान में जुड़ने में ही उनका हित है। इस अधिनियम के लागू होते ही रियासतों की सुरक्षा की अंग्रेजों की जिम्मेदारी भी स्वयमेव समाप्त हो गई। 
* भारत शासन अधिनियम १९३५, जिसे भारतीय स्वाधीनता अधिनियम १९४७ में शामिल किया गया, के अनुसार विलय के बारे में निर्णय का अधिकार राज्य के राजा को दिया गया। यह भी निश्चित किया गया कि कोई भी भारतीय रियासत उसी स्थिति में दो राष्ट्रों में से किसी एक में मिली मानी जायेगी, जब गवर्नर जनरल उस रियासत के शासन द्वारा निष्पादित विलय पत्र को स्वीकृति प्रदान करें।
* भारतीय स्वाधीनता अधिनियम १९४७ में सशर्त विलय के लिये कोई प्रावधान नहीं था। 
दि.२६ अक्तूबर १९४७ को महाराजा हरिसिंह ने भारत वर्ष में जम्मू-कश्मीर का विलय उसी वैधानिक विलय पत्र के आधार पर किया, जिसके आधार पर शेष सभी रजवाड़ों का भारत में विलय हुआ था तथा भारत के उस समय के गवर्नर जनरल माउण्टबेटन ने उस पर हस्ताक्षर किये थे.... “मैं एतद्द्वारा इस विलय पत्र को स्वीकार करता हूं'' दिनांक सत्ताईस अक्तूबर उन्नीस सौ सैंतालीस (दि.२७ अक्तूबर १९४७) महाराजा हरिसिंह द्वारा हस्ताक्षरित जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र से संबंधित अनुच्छेद, जो कि जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को पूर्ण व अंतिम दर्शाते हैं, इस प्रकार हैं :-
(अनुच्छेद -१) ''मैं एतद्द्वारा घोषणा करता हूं कि मैं भारतवर्ष में इस उद्देश्य से शामिल होता हूं कि भारत के गवर्नर जनरल, अधिराज्य का विधानमंडल, संघीय न्यायालय, तथा अधिराज्य के उद्देश्यों से स्थापित अन्य कोई भी अधिकरण (Authority), मेरे इस विलय पत्र के आधार पर किन्तु हमेशा इसमें विद्यमान अनुबंधों (Terms) के अनुसार, केवल अधिराज्य के प्रयोजनों से ही, कार्यों का निष्पादन (Execute) करेंगे।''
(अनुच्छेद - ९) ''मैं एतद्द्वारा यह घोषणा करता हूं कि मैं इस राज्य की ओर से इस विलय पत्र का क्रियान्वयन (Execute) करता हूं तथा इस पत्र में मेरे या इस राज्य के शासक के किसी भी उल्लेख में मेरे वारिसों व उतराधिकारियों का उल्लेख भी अभिप्रेत हैं। 
विलय पत्र में अनुच्छेद -१ के अनुसार, जम्मू-कश्मीर भारत का स्थायी भाग है। 
* भारतीय संविधान के अनुच्छेद -१ के अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है। भारत संघ कहने के पश्चात दी गई राज्यों की सूची में जम्मू-कश्मीर क्रमांक -१५ का राज्य है। 
महाराजा हरिसिंह ने अपने पत्र में कहा :- “मेरे इस विलय पत्र की शर्तें भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७ के किसी भी संशोधन द्वारा परिवर्तित नहीं की जायेंगी, जब तक कि मैं इस संशोधन को इस विलय पत्र के पूरक (Instrument Supplementary) में स्वीकार नहीं करता।''
भारतीय स्वाधीनता अधिनियम १९४७ के अनुसार शासक द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के उपरान्त आपत्ति करने का अधिकार पंडित नेहरू, लार्ड माउण्टबेटन, मोहम्मद अली जिन्ना, इंग्लैंड की महारानी, इंग्लैंड की संसद तथा संबंधित राज्यों के निवासियों को भी नहीं था। 
१९५१ में राज्य संविधानसभा का निर्वाचन हुआ। संविधान सभा में विपक्षी दलों के सभी प्रत्याशियों के नामांकन निरस्त कर दिये गये। सभी ७५ सदस्य शेख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के थे जिनमें से ७३ कोई अन्य प्रत्याशी न होने के कारण निर्विरोध निर्वाचित मान लिये गये। मौलाना मसूदी इसके अध्यक्ष बने। इसी संविधान सभा ने दि.६ फरवरी १९५४ को राज्य के भारत में विलय की अभिपुष्टि की। दि.१४ मई १९५४ को भारत के महामहिम राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान के अस्थायी अनुच्छेद ३७० के अंतर्गत संविधान आदेश (जम्मू व कश्मीर पर लागू) जारी किया जिसमें राष्ट्र के संविधान को कुछ अपवादों और सुधारों के साथ जम्मू व कश्मीर राज्य पर लागू किया गया।
राज्य का अपना संविधान दि.२६ जनवरी १९५७ को लागू किया गया जिसके अनुसार :-
धारा - ३ : जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। 
धारा - ४ : जम्मू-कश्मीर राज्य का अर्थ वह भू-भाग है जो दि.१५ अगस्त १९४७ तक राज्य के राजा के आधिपत्य या संप्रभुता के अधीन था I 
इसी संविधान की धारा -१४७ में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धारा - ३ व धारा - ४ को कभी बदला नहीं जा सकता। 
१९७४ के इंदिरा-शेख अब्दुल्ला समझौते में पुन: यह कहा गया कि :- जम्मू-कश्मीर राज्य भारतीय संघ का एक अविभाज्य अंग है, इसका संघ के 'साथ' अपने संबंधों का निर्धारण भारतीय संविधान के अस्थायी अनुच्छेद -३७० के अंतर्गत ही रहेगा। 
दि.१४ नवम्बर १९६२ को संसद में पारित संकल्प एवं दि.२२ फरवरी १९९४ को संसद में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि जो क्षेत्र चीन द्वारा (१९६२ में) व पाकिस्तान द्वारा (१९४७ में) हस्तगत कर लिये गये, वह हम वापिस लेकर रहेंगे, और इन क्षेत्रों के बारे में कोई सरकार समझौता नहीं कर सकती। 
इतने तथ्यों के बावजूद जो लोग भ्रम का वातावरण निर्माण कर रहे हैं अथवा अलगाववादी मांगों का समर्थन कर रहे हैं वे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में सहभागी है। समय आ गया है कि केन्द्र व राज्य सरकार ऐसे तत्वों से कड़ाई से निपटे। साथ ही इन तथ्यों को देश की जनता तक स्पष्ट रूप से पहुंचाए जाने के गंभीर प्रयास हों ताकि इस विषय पर गत छः दशक से अधिक से छाया कुहासा छंट सके। दि.२३ सितम्बर को महाराजा हरि सिंह के जन्म दिवस तथा २६ अक्तूबर को विलय दिवस के रूप में इन घटनाओं का स्मरण प्रासंगिक होगा।

शनिवार, 22 सितंबर 2012

सभी को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया था सुदर्शन जी ने - गंगा विशन

साभार : दैनिक भास्कर , बाड़मेर 

सात हजार पाक विस्थापितों को नागरिकता का इंतजार



सात हजार पाक विस्थापितों को नागरिकता का इंतजार
 
जोधपुर। पाकिस्तान में उत्पीड़न से परेशान होकर भारत आए सात हजार लोग नागरिकता मिलने का इंतजार कर रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा पांच हजार विस्थापित अकेले जोधपुर में हैं। सरकार ने अब इनकी नागरिकता के लिए जिला प्रशासन को आवेदन भरवाकर कर भिजवाने के निर्देश दिए हैं। ये विस्थापित पाकिस्तान से थार एक्सप्रेस व अन्य माध्यमों से समय-समय पर भारत आते रहे हैं। फारेनर रजिस्ट्रेशन अधिकारी और विस्थापितों के पुनर्वास से जुड़े सीमांत लोक संगठन के अनुसार कुल सात हजार पाक विस्थापित बिना नागरिकता के रह रहे हैं। इनमें जोधपुर शहर में पांच हजार विस्थापित हैं। शेष्ा जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर, पाली, जालोर, सिरोही और कुछ अजमेर व जयपुर मे रह रहे हैं।

2005 में मिली थी नागरिकता
विस्थापितों के पुनर्वास से जुड़े सीमांत लोक संगठन के अनुसार वर्ष 2005 में जोधपुर में पाक विस्थापितों को नागरिकता प्रदान करने के लिए शिविर लगाया गया था। इसमें पूरे राजस्थान से 13 हजार विस्थापितों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई। इनमें जोधपुर में रहने वाले पांच हजार पाक विस्थापितों को भी नागरिकता मिली। सूत्रों की मानें तो उस समय तक विस्थापितों को नागरिकता प्रदान करने का अधिकार जिला कलक्टर के हाथ में था, लेकिन इसके बाद ये अधिकार केन्द्र सरकार ने वापस ले लिए। अब केन्द्रीय गृह मंत्रालय की ओर से ही नागरिकता प्रदान की जाती है।
विस्थापितों से नागरिकता आवेदन लेने की सतत प्रक्रिया है। जो पाक विस्थापित सात साल से यहां रह रहे हैं, उनके आवेदन हम गृह मंत्रालय को आगे भेजते हैं। बाद में गृह मंत्रालय की ओर से मिले निर्देशों के अनुसार काम किया जाता हैं।
- रमेश कुमार जैन, संभागीय आयुक्त, जोधपुर।
सात साल से रह रहे पाक विस्थापितों के मामले में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने डेढ माह पहले ही नागरिकता के आवेदन मांगे हैं। उन्हें भरकर भिजवाया जा रहा है।
-सिद्धार्थ महाजन, कलक्टर, जोधपुर
यह है नागरिकता की प्रक्रिया
पाकिस्तान से लोग धार्मिक, भ्रमण और व्यावसायिक वीजा पर भारत पहुंचते हैं। धार्मिक और व्यावसायिक वीजा एक-एक माह के लिए और भ्रमण वीजा तीन माह के लिए मिलता है। जो व्यक्ति वापस पाकिस्तान नहीं जाना चाहते वे पुलिस विभाग (सतर्कता) के फॉरेनर रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (एफआरओ) के यहां स्थाई वास की अनुमति के लिए आवेदन करते हैं। यहां से पूरी जांच कर उनका आवेदन गृह मंत्रालय को भेजा जाता है। प्रारम्भिक तौर पर उनकी छह माह की वीजा अनुमति बढ़ा दी जाती है। इसी अवधि में दुबारा आवेदन कर छह माह, एक साल और उसके बाद दो-दो साल की अनुमति दी जाती है। यहां सात साल नियमित रहने पर उन्हें भारत की नागरिकता दी जाती है। बच्चों से बड़ों तक अलग-अलग श्रेणी के लिए तीन हजार रूपए से बीस हजार रूपए तक नागरिकता फीस है।

श्यामवीर सिंह
स्त्रोत: http://www.patrika.com/news.aspx?id=९०५१५८

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

गौ विज्ञान अनुसंधान परीक्षा में दिखाया उत्साह

परीक्षा से पहले विद्यार्थियों को सम्भोदित करते हुए जिला कलेक्टर नीरज के पवन 



पाली 21 सितम्बर 2012 ek/ko xkS foKku vuqla/kku ds rRok/kku esa ikyh ftys ds 225 fo|ky;ksa ds 21205 fo|kfFkZ;ks us ifj{kk nhA ek/ko xkS foKku vuqla/kku ds v/;{k dey fd’kksj xks;y dh v/;{krk esa Jh x.ks’k fo|k eafnj esa dysDVj uhjt ds iou ds dj deyks }kjk xkS foKku ifj{kk 2012 ds isij dk yksdki.kZ fd;k x;kA ;g ifj{kk nks oxksZ esa vk;ksftr dh xbZ d{kk 6 ls 8 d oxZ o 9 ls 12  oxZ ds fo|kFkhZ ‘शkfey gq;sA ifj{kk vk/kqfud rjhds ls mRrjiqfLrdk ds :i esa vks,evkj lhV nh xbZA ftlls fo|kfFkZ;ks esa Hkkjh mRlkg FkkA lokZf/kd ifj{kkFkhZ 618 Jh x.ks’k fo|k eafnj ds fo|kfFkZ;ks us ifj{kk nhA yksdki.kZ ds ekSds ij foHkkx la;kstd ijes’oj tks’kh fou; cEc iz/kkukpk;Z fnus’k tks’kh mifLFkr FksA 

गौ विज्ञान अनुसंधान परीक्षा में दिखाया उत्साह

जोधपुर माधव गौ विज्ञान अनुसंधान संस्थान नोगांवा (भीलवाड़ा की ओर से शुक्रवार को विभिन्न सरकारी व गैरसरकारी स्कूलों में गौ विषयक परीक्षा संपन्न हुई। प्रांत संयोजक राज जोशी ने बताया कि प्रत्येक जिले में परीक्षा केंद्र बनाए गए थे।परीक्षा में गौ रक्षा संवर्धन एवं गौ महत्व से संबंधित प्रश्न पूछे गए थे विद्यार्थियों को ओएमआर शीट पर उत्तर लिखने थे। परीक्षा क्षेत्रीय अध्यक्ष कमल गोयल व जयपुर प्रांत संयोजक नवरंग शर्मा चित्तौड़ प्रांत संयोजक भुवन मुकन पंड्या व महिपालसिंह राठौड़ के निर्देशन में हुई। जोशी ने बताया कि परीक्षा में प्रदेश भर से 5 लाख से अधिक विद्यार्थियों ने भाग लिया। आयोजन में अनिल अग्रवाल रतनलाल डागा घनश्याम ओझा कृष्णगोपाल वैष्णव कैलाश चंद्र मेघवाल संयोजक जेठानंद व्यास पूनम पालीवाल प्रकाश राणेजा परमेश्वर जोशी जगदीश पुरोहित बन्नाराम श्याम पालीवाल मनीष दवे रामस्वरूप गोधा ओम गौड़ सुनील सोनी जगदीश पुरोहित ने सहयोग दिया।  


जैसलमेर. गौ विज्ञान सामान्य ज्ञान परीक्षा शुक्रवार को संपन्न हुई। प्रतियोगिता संयोजक ने बताया कि जिले के 88 परीक्षा केन्द्रों पर हुई यह परीक्षा दो स्तरों में संपन्न हुई। क वर्ग में कक्षा छह से आठ तथा ख वर्ग में नौ से बारहवीं तक के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। परीक्षा में सात हजार से अधिक विद्यार्थियों ने भाग लिया। परीक्षा में गौ रक्षा, संवर्धन एवं गौ महत्व से संबंधित प्रश्न पूछे गए थे। संयोजक राजेश व्यास ने परीक्षा के आयोजन में सहयोग देने पर आभार प्रकट किया। 


साभार : दैनिक नवज्योति, जोधपुर 
जालोर शहर के आदर्श विद्या मंदिर बालिका माध्यमिक में शुक्रवार को गौ- विज्ञान परीक्षा का आयोजन किया गया। जिसमें स्कूल की करीब डेढ़ सौ बालिकाओं और राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के ७० छात्रों ने भाग लिया। परीक्षा में गौवंश पर आधारित प्रश्न पूछे गए थे। परीक्षा का आयोजन माधव गौ विज्ञान अनुसंधान संस्थान भीलवाड़ा की ओर से किया जाता है। इस मौके प्रधानाचार्या बीना शर्मा, रविंद्र प्रजापत, प्रधानाध्यापिका गायत्री, मंजू, प्रज्ञा नाग, मिनक्षी दवे, रीना, उर्वशी और शीतल मौजूद थी।

आहोर खारा मार्ग पर स्थित आदर्श विद्या मंदिर माध्यमिक विद्यालय सहित कस्बे की सरकारी व गैर सरकारी विद्यालयों में शुक्रवार को गौ विज्ञान अनुसंधान एवं सामान्य ज्ञान परीक्षा माधव गौ-विज्ञान अनुसंधान संस्थान भीलवाड़ा के तत्वाधान में आयोजित हुई। संस्था प्रधान नितिन ठाकूर ने बताया कि आदर्श विद्या मंदिर परीक्षा केन्द्र में कक्षा ६ से १० तक के ६६ छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। परीक्षा में गौ माता के महत्त्व के बारे में प्रश्न पत्र पूछे गए। इस दौरान वीक्षक वनेसिंह उदावत, महेन्द्रसिंह राठौड़, सुरेन्द्रसिंह, चंपालाल, कविता रावल सहित शिक्षक व छात्र-छात्राएं मौजूद थे।

रामसीन आदर्श विद्या मंदिर में शुक्रवार को माधव गो-विज्ञान अनुसंधान संस्थान भीलवाड़ा की ओर से गो-विज्ञान अनुसंधान एवं सामान्य ज्ञान परीक्षा हुई। संस्था प्रधान अनिल व्यास ने बताया कि परीक्षा का मुख्य उद्देश्य गो-वंश का बचाना है। परीक्षा में विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
 

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित