बुधवार, 15 जनवरी 2014

युवा मार्डन बनें लेकिन पश्चिम से परहेज करें ..... मोहन भागवत

युवा मार्डन बनें लेकिन पश्चिम से परहेज करें- मोहन भागवत
सरसंघचालक, गणितज्ञ और अभिनेता ने युवाओं को किया प्रेरित  
नागपुर, जनवरी 12 : स्वामी विवेकानन्द के विचारों को आचरणीय बनाना आज की आवश्यक है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, बलवान बनो। शक्ति की उपासना करो, क्योंकि निर्बल की बात कोई नहीं सुनता। दुर्बल के सत्य की कोई कीमत नहीं होती। पर शील विहीन शक्ति समाज को अवनति की तरफ ले जाता है। उक्त विचारों से युवाओं को चारित्र्य के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि शील विहीन शक्ति रावण की शक्ति की तरह होती है, इसलिए शरीर, मन तथा बुद्धि की शक्ति के साथ शील का होना आवश्यक है। इसी से महान चरित्र बनता है।
डॉ. भागवत स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति, नागपुर की ओर से आयोजित ‘युवा शंखनाद’ कार्यकम में उपस्थित 30 हजार से अधिक युवाओं को सम्बोधित कर रहे थे। इस भव्य युवा सम्मलेन में मुख्य अतिथि के रूप में अभिनेता विवेक ओबेराय, सुपर-30 के जनक एवं गणितज्ञ आनंद कुमार के साथ ही नागपुर के महापौर प्रा.अनिल सोले, सार्ध शती समारोह समिति के विदर्भ अध्यक्ष विलास काले, समीर बेंद्रे, सोमदत्त करंजेकर समेत नगर के खेल, पर्यावरण और अध्यात्म जगत के गणमान्य युवा प्रतिनिधि व्यासपीठ पर विराजमान थे। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों ने स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा पर पुष्पार्पण किया।
ध्येय सिद्धि के लिए तपस्या आवश्यक
डॉ. भागवत ने आगे कहा कि स्वामी विवेकानन्द बनने का स्वप्न तो हर कोई देख सकता है। पर स्वामीजी के विचारों को आचरण में ढालना आसान बात नहीं है। उन्होंने कहा कि बिना मेहनत, बिना परिश्रम के किसी भी लक्ष्य को नहीं प्राप्त किया जा सकता। महान उद्यम और कड़ी तपस्या से ही ध्येय की सिद्धि होती है। इसलिए युवा भारत को कठोर तपस्या, कठिन परिश्रम का व्रत लेना होगा। फौलादी स्नायु, मजबूत आत्मबल और गंगा की तरह निर्मल मन बनाकर की सूर्य जैसा प्रखर तेजस्विता को धारण किया जा सकता है। इसी से विवेक शक्ति विकसित होती है और जो व्यक्ति पूर्ण प्रामाणिकता से कार्य करता है उसी के शब्दों पर समाज विश्वास करता है।    

संघ के मूल में विवेकानन्द का विचार
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के विचारों को हमारी पुरानी पीढ़ी ने अपने चरित्र में ढाला था और तब जाकर देश को स्वतंत्रता मिली। उनकी प्रेरणा से ही समाज में सुधार आया। उन्होंने बताया कि आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार कलकत्ता में अपने मेडिकल पढ़ाई के दौरान रामकृष्ण मठ jayaकरते थे। मठ के अनेक सेवा कार्यों में वे सक्रिय भूमिका निभाते थे। डॉ. भागवत ने बताया कि संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरूजी गोलवलकर ने स्वामी अखंडानन्द (स्वामी विवेकानन्द के गुरुभाई) से दीक्षा ली थी। इस प्रकार संघ के मूल में की स्वामी विवेकानन्द के विचार निहित है।

मार्डन बनों पर वेस्टर्न नहीं
सरसंघचालक ने युवाओं को सचेत करते हुए कहा कि आज हमारे समाज में पश्चिमी जगत के अन्धानुकरण का फैशन चल रहा है। लोग अपनी भाषा, संस्कृति, धर्म और सभ्यता को अभिव्यक्त करने के लिए शरमाते हैं। पर हमारा देश महान है, हमारी संस्कृति महान है, इसलिए हमें इसपर गौरव होना चाहिए। अपना देश, अपनी संस्कृति, अपना धर्म और अपने लोग के साथ हमें आगे बढ़ना है। समय के साथ बदलाव जरुरी है। हम मार्डन बनें पर वेस्टर्न नहीं। उन्होंने कहा कि हमें आगे बढ़ने के लिए किसी देश की नक़ल करने की आवश्यकता नहीं है। हम भारत बनकर आगे बढ़ेंगे, अपनी सांस्कृतिक जड़ों से मजबूती से जुड़कर आगे बढ़ेंगे। क्योंकि जो अपने जड़ों को छोड़ देता है वो बह जाते हैं, टूट जाते हैं।
डॉ. भागवत ने कहा कि न हम किसी प्रलोभन के प्रवाह में बहेंगे, न ही टूटेंगे। हमें इस संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा। अपने समाज के प्रति गहन आत्मीयता के साथ सेवाकार्य के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती के समापन पर युवाओं से आह्वान किया कि सारी निराशाओं को त्यागकर अपने ‘स्वत्व’ पर अभिमान, शील और बल की उपासना करते हुए, किसी संगठन के साथ जुड़कर अपने जीवन का यश प्राप्त करें।        
       
स्वामीजी की 1 रूपये की किताब ने बदल दी जिंदगी
युवा शंखनाद कार्यक्रम में आए सुपर-30 के जनक और गणितज्ञ आनंद कुमार ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के विचारों पर आधारित 1 रुपये की किताब ने उनके जीवन को सही दिशा दी। जब वे शिक्षा जगत में छाए उदासीनता को अनुभव कर रहे थे, तब स्वामी विवेकानन्द के विचारों ने उन्हें आत्मबल प्रदान किया। इतना ही नहीं तो गरीब छात्रों को शिक्षित कर उन्हें स्वावलंबी बनाने की प्रेरणा भी उन्हें स्वामीजी के विचारों से मिली। आनंद कुमार ने उपस्थित युवाओं को स्वामी विवेकानन्द की पुस्तकों को पढ़ने का आह्वान किया।
वहीं अधिनेता विवेक ओबेराय ने भी बताया कि उनके पिताजी अभिनेता सुरेश ओबेराय भी बचपन में उन्हें स्वामीजी के संदेशों को रोज पढ़कर सुनाया करते थे। उन्होंने कहा कि स्वामीजी का वह सन्देश, जिसमें कहा गया था- ‘वही जीवित हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं, शेष तो मृतप्राय जीव है’, ने उनके जीवन को सेवाकार्यों के लिए प्रेरित किया।    

पाठ्यक्रम बदलाव गरीब विरोधी : आनंद कुमार 

इस अवसर पर गणितज्ञ आनंद कुमार ने कहा कि शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में बदलाव गरीब विरोधी साबित हो रहे हैं। आईआईटी में कुछ ऐसे बदलाव किए गए हैं कि गरीब छात्र प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं। संघ लोकसेवा आयोग का पैटर्न बदला। अंग्रेजी अनिवार्य कर दी गई। परीक्षा प्रक्रिया ऐसी है कि शहरी छात्रों की तुलना में ग्रामीण छात्रों को अधिक रुपए देने पड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं को हर क्षेत्र में आगे आना चाहिए। जातिवाद ठीक नहीं है। सभी मिल-जुलकर रहें। स्वदेशी वस्तुओं का अधिक से अधिक उपयोग किया जाना चाहिए। गांवों में कुटीर उद्योग को बढ़ावा देना होगा। उन्होंने सुपर-30 के तहत गरीब छात्रों को दी जा रही शैक्षणिक सेवाओं की जानकारी देते हुए कहा कि इच्छाशक्ति से हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। 

पहला कदम तुम रखो 

अभिनेता विवेक ओबेराय ने कहा कि अच्छे कार्यों को शुरू करने के लिए पहला कदम युवा को रखना चाहिए। स्वामी विवेकानन्द ने यह संदेश दिया था। सुनामी प्रभावितों को मदद, वृंदावन में शोषित किशोरियों को दी जा रही मदद, केदारनाथ क्षेत्र में विधवाओं को दी गई मदद का जिक्र करते हुए ओबेराय ने कहा कि सामाजिक सरोकारों से युवाओं को जुड़े रहना चाहिए। उन्होंने अच्छे संस्कारों को अपनाने का आह्वान किया। 

इस युवा शंखनाद सम्मलेन में 30 हजार से अधिक महाविद्यालयीन छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। कार्यक्रम के प्रारंभ में सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत देशभक्ति गीत, लघु नाटिका, तलवारबाजी, शंखनाद और ढोल बजाकर सम्मलेन को रोमांचित बनाया गया। स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति के महानगर संयोजक सोमदत्त करंजेकर ने प्रस्तावना रखी तथा अध्यक्ष समीर बेंद्रे ने आभार माना। सम्मलेन में आए युवाओं के लिए प्रवेश द्वार पर स्वामी विवेकानन्द का चित्र रखा गया था, प्रवेश के दौरान सभी युवाओं ने स्वामीजी की प्रतिमा पर पुष्पार्पण किया।

इस अवसर पर विविध क्षेत्रों में सफल प्रतिभावान युवाओं को सम्मानित किया गया। खेल क्षेत्र से मोनिका राऊत, दीपाली सबाने, धनश्री लेकुरवाड़े, जीतेश मेसावत, जय कविश्वर, संदीप सेलूकर आध्यात्मिक क्षेत्र से आशीष भागवतकर, सुमेधा बोधी, अंकित शर्मा, गुड्डू केवलरामानी, मनीष बदियानी, स्वामी अनंत शेष, ज्ञानदास सामाजिक क्षेत्र से प्रा. राम वाघ, वरुण श्रीवास्तव, राज मदनकर, अशोक मुंगने, करण नायक, सतीश भोयर शामिल थे।

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित