बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

हिंदू हमारी राष्ट्रीयता की पहचान: सरसंघचालक



हिंदू हमारी राष्ट्रीयता की पहचान: सरसंघचालक

नई दिल्ली, 24 फरवरी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक  संघ के सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने हिंदू शब्द को संकुचित मानने के लिये हिंदुओं को समान रूप से दोषी मानते हुए कहा है कि यह स्थिति आत्मविस्मृति के कारण पैदा हुई है. उन्होंने कहा कि हिंदुत्व हमारा राष्ट्र-तत्व और हिंदू हमारी राष्ट्रीयता की पहचान है.
विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में पूर्व राजनयिक ओपी गुप्ता की पुस्तक डिफाइनिंग हिंदुत्व  का विमोचन करने के बाद अपने उद्बोधन में परमपूज्य सरसंघचालक ने कहा कि वस्तुत: हिंदू शब्द अपरिभाष्य है, क्योंकि यह वह जीवन पद्धति है, जो परम सत्य के अन्वेषण के लिये सतत तपशील रहती है. इसकी विशेषता यह है कि यह सबको अपना मानता है. साथ ही, उन्होंने कहा कि शास्त्र विस्मरण के बाद हिंदू समाज रूढ़ि से चलने लगा, अतएव अब हिंदू शब्द के सर्वार्थ से समाज को परिचित कराना आवश्यक है. उन्होंने हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पं. हजारी प्रसाद व्दिवेदी को उद्धृत करते हुए कहा कि हिंदू शब्द यहीं से संसार के कोने-कोने में प्रचारित-प्रसारित हुआ, क्योंकि हम परोपकार की दृष्टि रखकर सत्य को पूरी दुनिया तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं.      
डा. भागवत ने कहा कि समूचा विश्व हमें हिंदू के रूप में पहचानता है. हमें भी विविधता में एकता के सूत्रों की फिर से पहचान करनी चाहिये. यह भी एक वास्तविकता है कि पिछले 40 हजार वर्ष से काबुल से लेकर तिब्बत और चीन से श्रीलंका तक  यानी इंडो-ईरानी प्लेट के लोगों का डीएनए एकसमान है. उन्होंने स्वामी राम कृष्ण परमहंस का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे ऋषियों ने अन्य उपासना पद्धतियों के अनुसार भी सत्य के अनुभूत प्रयोग किये. उन्होंने पाया कि उसमें कोई अंतर नहीं है.
एक मुस्लिम राजनीतिज्ञ से हुई एक चर्चा का दृष्टांत सुनाते हुए उन्होंने कहा कि यदि अन्य उपासना पद्धतियों को मानने वाले लोग हिंदू को अपनी राष्ट्रीय पहचान मान लें, तो सारे विरोध समाप्त हो सकते हैं. वे मुस्लिम राजनीतिज्ञ स्वयं को हिंदू मानते थे, इसलिये उन्होंने इस आधार पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये बने 2006 में बने सच्चर आयोग की सिफारिशों के विरोध पर सवाल उठाया. मैंने उनसे कहा कि यदि सम्पूर्ण मुस्लिम समाज जो आप मानते हैं, मान ले तो हम अपना विरोध वापस ले लेंगे”.
पुस्तक विमोचन समारोह में फाउंडेशन के निदेशक श्री अजित डोवाल, पुस्तक के लेखक श्री ओपी गुप्ता और संकल्प के श्री संतोष तनेजा ने पुस्तक के विषय में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया.

रविवार, 23 फ़रवरी 2014






भोपाल, दिनांक 23 फरवरी 2014
प.पू. सरसंघचालक श्री मोहन जी भागवत द्वारा मॉडल स्कूल भोपाल में दिए उद्बोधन के अंश -
आज का समता व शारीरिक कार्यक्रम बहुत अच्छा हुआ | किन्तु यदि संतोष हो जाए तो उसका अर्थ होता है विकास पर विराम | और अच्छा होने की कोई सीमा रेखा नहीं होती | किसी व्यक्ति, संस्था अथवा देश की सफलता के लिए भी यही द्रष्टि आवश्यक है | नेता के अनुसार चलने वाले अनुयाई भी आवश्यक हैं | रणभूमि में ताना जी मौलसिरे की मृत्यु के बाद यदि अनुयाईयों में शौर्य नहीं होता तो क्या कोंडाना का युद्ध जीता जा सकता था ? नेता और जनता दोनों के मन में निस्वार्थ भाव से बिना किसी भेदभाव के देश को उठाने का भाव हो तो ही देश का भाग्य बदल सकता है | संघ ने शाखा के माध्यम से घर घर, गाँव गाँव में शुद्ध चरित्र वाले, सबको साथ लेकर चलने वाले निस्वार्थ लोग खड़े करने का कार्य हाथ में लिया है | समाज का चरित्र बदले तो ही देश का भाग्य बदलेगा |
शारीरिक कार्यक्रम कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं है, हिन्दू समाज को शक्ति संपन्न बनाने के लिए हैं | आवश्यक गुण संपदा इन्हीं कार्यक्रमों से प्राप्त होती है | राष्ट्र उन्नति हो, दुनिया सुखी हो इसके लिए हर घर, गाँव शहर में यह मनुष्य बनाने का कार्य सतत, निरंतर, प्रखर, उत्कट होना चाहिए | जैसे लोटा रोज मांजा जाता है, उसी प्रकार स्वयं को भी रोज मांजना | यह नहीं मानना चाहिए कि मैं कभी मैला नहीं हो सकता | यह सब कार्यक्रम केवल कार्य के लिए | यंत्रवत नहीं श्रद्धा व भावना के साथ | कृष्ण की पत्नियों में रुक्मिणी पटरानी थीं | सत्यभामा को इर्ष्या हुई | नारद जी ने सुझाव दिया कि कृष्ण का तुलादान करो | न केवल सत्यभामा बल्कि सातों रानियों के सारे अलंकरण भी कृष्ण का पलड़ा नहीं उठा पाए | अंत में रुक्मिणी ने जब तुलसीदल डाला तब कृष्ण का पलड़ा उठा | वजन भाव का होता है | नेता सरकार सब बदलकर देख लिया, किन्तु परिश्रम और प्रामाणिकता नहीं इसलिए फल नहीं | भाव को उत्कट बनायेंगे तो परिश्रम अधिक होगा तथा पूर्णता की मर्यादा को हाथ लगा सकेंगे |


 स्त्रोत: vsk Madhay Bharat

देश को क्रान्ति नहीं, संक्रान्ति की आवश्यकता : सरसंघचालक

देश को क्रान्ति नहीं, संक्रान्ति की आवश्यकता : सरसंघचालक

भोपाल, 20 फरवरी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने कहा है कि देश को क्रान्ति की नहीं संक्रान्ति की आवश्यकता है. संक्रांति को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि इसका आशय समाज में सकारात्मक परिवर्तन से है. इसके लिये प्रबोधन के माध्यम से समाज का जागरण करना होगा. डा. भागवत ने सावधान करते हुए कहा कि क्रान्ति के माध्यम से कुछ समय के लिये आंशिक उथल-पुथल हो सकती हैकिंतु इसके साथ स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों से नहीं बचा जा सकता. डा. भागवत 20 फरवरी को एलएनसीटी परिसर में आयोजित संघ के मध्यक्षेत्र की तीन दिवसीय बैठक के अन्तर्गत विविध क्षेत्रों के स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे.

देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का उल्लेख करते हुए डा. भागवत ने कहा कि हमारे देश की राष्ट्रीय पहचान हिन्दू पहचान है. जो इस पहचान से दूर होगावह मतांतरण का शिकार होगा. उन्होंने कहा कि गौरवशाली अतीत का धनी हिन्दू समाज लंबे पराधीनताकाल के कारण आत्मविस्मृति का शिकार है. संघ इसका पुनर्स्मरण कराने के साथ हिंदुत्व के आधार पर समाज को एक सूत्र में पिरोना युगधर्म मानता है. इसीलिये वह इस कार्य में निरंतर जुटा है. उसकी लंबी साधना एवं तपस्या के कारण समाज की दृष्टि में भी संघ को अब सकारात्मक परिवर्तन के संवाहक के रूप में देखा जा रहा है. आवश्यकता इस बात की है कि तदनुरूप हम अपने आचरण एवं व्यवहार से निर्णायक बल प्राप्त करें.

सरसंघचालक ने कहा कि आज देश को मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता हैपरन्तु यह तभी संभव होगा जब हम सब व्यक्तिगत आग्रह-दुराग्रह को दूर रखते हुये समाज में एक सकारात्मक वातावरण निर्मित करें. तीन सत्रों में चली इस बैठक में स्वयंसेवकों ने अपनी जिज्ञासायें भी रखींजिनका समाधान उन्होंने किया. पूर्व सरसंघचालक स्वर्गीय के.एस.सुदर्शन की स्मृति में 600 पृष्ठीय सुदर्शन स्मृति ग्रन्थ’ सहित 'स्वास्थ्य चेतना' पुस्तक का भी विमोचन उन्होंने किया. इस अवसर पर क्षेत्र संघचालक श्री श्रीकृष्ण माहेश्वरी एवं क्षेत्र कार्यवाह श्री माधव विद्वांस उनके साथ मंचासीन थे. बैठक में 48 संगठनों के 410 स्वयंसेवक उपस्थित थे.
Source: VSK-ENG      

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

72 फीसदी अमेरिकी भारत को पसंद करते हैं

साभार: दैनिक भास्कर

वाशिंगटन. 72 फीसदी अमेरिकी भारत को पसंद करते हैं, जबकि सिर्फ 17 फीसदी अमेरिकियों की पसंद पाकिस्तान बना हुआ है। यह आंकड़े गैलप के सालाना सर्वे में सामने आए हैं।
सर्वे के मुताबिक चीन को 43 प्रतिशत अमेरिकी पसंद करते हैं, जबकि उत्तर कोरिया को सिर्फ 11 फीसदी अमेरिकियों का समर्थन हासिल हुआ है।
अमेरिका के लोगों के लिए सबसे लोकप्रिय देश कनाडा रहा। कनाडा को 93 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया, जबकि ग्रेट ब्रिटेन को 90 फीसदी लोगों का समर्थन मिला। जर्मनी को 81 प्रतिशत, जापान को 80 प्रतिशत और फ्रांस को 78 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया।
वहीं, अफगानिस्तान को 14 प्रतिशत, सीरिया को 13 प्रतिशत और ईरान को 12 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया।
गैलप 2014 वर्ल्ड अफेयर्स सर्वे में पिछले साल के 68 प्रतिशत की तुलना में इस साल 72 प्रतिशत अमेरिकी लोगों ने भारत के प्रति सकारात्मक विचार जाहिर किए।
यह सर्वे भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े मामले में दोनों देशों के रिश्तों में आई तल्खी के बाद किया गया। भारत के प्रति सकारात्मक नजरिए में पिछले साल की तुलना में चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
गौरतलब है कि अपनी नौकरानी के वीजा आवेदन में झूठे दावे करने के आरोप में न्यूयार्क में पिछले साल 12 दिसंबर को देवयानी को गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तल्खी आ गई थी।
स्त्रोत:http://www.bhaskar.com/article/INT-72-percent-americans-view-india-favourably-poll-4527793-NOR.html

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

पाकिस्तानमें जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर गुस्से में है हिंदू समुदाय

पाकिस्तानमें जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर गुस्से में है हिंदू समुदाय
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय में जबरन धर्म परिवर्तन की बढ़ रही घटनाओं को लेकर खासा गुस्सा है। समुदाय के नेताओं का आरोप है कि महज छह साल के बच्चों पर भी जबरन धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाया जा रहा है।

कराची प्रेस क्लब में 'पाकिस्तान में हिंदू-मुद्दे और समाधान' विषय पर आयोजित सेमिनार में राजकुमार ने सवाल पूछा कि क्या आप अपनी उन बेटियों को स्वीकार करेंगे जिनकी जबरदस्ती हिंदू पुरुष से शादी करा दी गई हो? वर्ष 2012 में राजकुमार की भतीजी रिंकल कुमारी का जबरन धर्म परिवर्तन कराकर उसका निकाह एक मुसलमान से कराए जाने का मामला सुर्खियों में छाया था। रिंकल के परिजन न्याय पाने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट तक गए, लेकिन जबरिया निकाह का शिकार रिंकल ने भयवश यह मान लिया था कि उसने स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन किया है।
स्त्रोत: http://www.jagran.com/news/world-pakistani-hindus-angered-by-forced-conversions-11097286.html

इस्लामाबाद : पाकिस्तान में हिंदू समुदाय जबरन धर्मातरण की समस्या का सामना कर रहे हैं। यह मुद्दा कराची प्रेस क्लब में `पाकिस्तान में हिंदू-मुद्दे और समाधान` विषय पर आयोजित एक सेमिनार में उभर कर सामने आया।

रविवार को आयोजित सेमिनार में एक हिंदू लड़की रिंकल कुमारी के चाचा राजकुमार ने सवाल किया, क्या आप अपनी बेटी की किसी हिंदू के साथ जबरन शादी को स्वीकार कर सकते हैं? एक स्‍थानीय समाचार पत्र में सोमवार को प्रकाशित खबर के मुताबिक, मंच पर छह वर्ष की एक बच्ची जुमना की ओर इशारा करते हुए कहा कि वह और उसकी 10 वर्ष की बहन का जबरन धर्म बदलवा दिया गया।

उन्होंने कहा कि जुमना और पूजा जैसी बच्चियां इस्लाम और अपने धर्म व जिस मकसद के लिए धर्मातरण हो रहा उसे जानकार क्या करेंगे? यह जुल्म की हद है। जुमना के माता-पिता ने कहा कि खिलौने बेचने के लिए निकली उनकी बेटी 4 फरवरी से अपने घर नहीं लौटी है। उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ आवाज भी उठाई। यह पाया गया कि वह एक मुस्लिम के साथ रह रही है। उन्होंने कहा कि पुलिस उन्हें एक मुस्लिम बच्ची की तरह अदालत लाई और माता-पिता को अपनी बेटियों को देखने नहीं दिया गया।

हिंदू अधिकार संगठन के अध्यक्ष किशन चंद परवानी ने कहा कि यह देख कर दुख होता है पाकिस्तान में अल्पसंख्यक जिस तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं उससे उनकी संख्या बढ़ने की जगह घट रही है। परवानी ने कहा कि दुनिया में हर जगह अल्पसंख्यकों को कानूनी संरक्षण हासिल है, लेकिन पाकिस्तान में हिंदू समुदाय को हर स्तर पर प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। लेखिका और शायर फातिमा रिआज ने सामने आकर अपनी समस्‍या उठाने के लिए हिंदू समुदाय को धन्यवाद दिया। (एजेंसी)
स्त्रोत: http://zeenews.india.com/hindi/news/world/forcible-conversion-hindus-are-going-on-in-pakistan/202665

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

घुसपैठ, हिन्दू विस्थापितों के पुनर्वास, तस्करी, सीमा क्षेत्र में बढ़ रही राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और जासूसी जैसे विषयों पर गहराई से चिंतन

सीमा जागरण संगठनों कि दो दिवसीय बैठक जोधपुर के शहीद राम-शरद कोठारी भवन खेतनादि में संपन्न हुई जिसमे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारणी के सदश्य श्री इंद्रेश कुमार ने प्रतिभागियों से देश कि सीमाओं कि सुरक्षा और जन सामान्य को सुदृढ़ सीमा के लिए सिद्ध रहने कि आवश्यकता पर बल दिया। 
दो दिन चली इस बैठक में देश कि अंतरष्ट्रीय जमीनी सीमा से लगे हुए १२ राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और सीमा संगठनों कि गतिविधयों के जानकारी एकत्र कर आगामी कार्य योजना बनायीं गयी। श्री इंद्रेश कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि सीमा क्षेत्रों में यवाओं में परंपरागत भारतीय खेलों का प्रचलन बढे, उनको भागीदारी सुरक्षा बालों में भी अधिकतम हो। श्री इंद्रेश कुमार ने प्रतिभागियों से यह भी आग्रह किया कि आगामी आम चुनाव देश में लोकतंत्र का बड़े महा यज्ञ के रूप में हो रहे हैं अतः सभी देशवासियों को इसमे आहुति देने के लिए तैयार होना चाहिए। अधिकतम मतदान हो, मतदान जाति, पंथ, भाषा, मजहब या क्षेत्रवाद के आधार पर नहीं देश के हित में देश सुरक्षा, स्वावलम्बन और विकास के आधार पर हो यह विचार लेकर जन सामान्य के बीच जाना चाहिए। 
बैठक में सीमा जागरण संगठनों के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री राकेश कुमार ने सीमा संगठनों कि अपने सीमा क्षेत्रों में भूमिका को और भी प्रभावी बनाने के लिए अधिकतम ग्रामों तक संपर्क कार्य योजना पर बल दिया। 
सीमाजन कल्याण समिति राजस्थान के प्रदेश महामंत्री बंशीलाल भाटी ने जानकारी दी कि दो दिवसीय बैठक में १२ राज्यों के कुल ३८ प्रतिनिधियों ने भाग लिया और अपने प्रदेश में सीमावर्ती क्षत्रों कि समश्याओं और उनसे से निराकरण के लिए किये जा रहे प्रयत्नों के सम्बन्ध में अनुभव आपस में बांटे। प्रतिभागियों ने घुसपैठ, हिन्दू विस्थापितों के पुनर्वास, तस्करी, सीमा क्षेत्र में बढ़ रही राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और जासूसी जैसे विषयों पर गहराई से चिंतन किया। 
समिति के प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल ठाकुर ने जानकारी दी कि सीमा क्षेत्र में किसानो को कृषि कार्य करने में आने वाली परिस्तिथियों के निराकरण के लिए सरकार को ज्ञापन देकर समश्याओं का निराकरण का प्रयत्न किया जाएगा। 
बैठक के अंत में सभी प्रतिभागियों ने यह संकल्प व्यक्त किया कि देश कि सीमायें अब और न कटेगी न घटेगी इसके लिए सम्पूर्ण शक्ति लगा कर संगठन को सक्रीय करेंगे। 
उल्लेखनीय है कि देश के सीमा क्षेत्रों में राष्ट्रवादी गतिविधयों को बढ़ने और सुरक्षा बालों को समर्थन और सहयोग देने वाला सीमाजन बनाने के लिए १९८५ में जोधपुर में ही सबसे पहले सीमा संगठनों कि स्थापना कि गयी थी जो आज देशव्यापी स्वरुप के साथ प्रभावी भूमिका में कार्यरत है।



सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

साधु-संतों को झूठे मामलों में फंसाकर जेल में डालने की घिनौनी हरकत से बाज आए केंद्र : श्रीश्री रविशंकर

बंगलुरु। प्रसिद्ध धर्मगुरु श्रीश्री रविशंकर ने केंद्र  सरकार पर भारतीय संस्कृति और देश की प्रतिष्ठा को नष्ट करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया है। धर्मगुरु ने सरकार को आगाह किया है कि वह अपने राजनीतिक लाभ के लिए साधु संतों को झूठे मामले में फंसाकर जेल में डालने की घिनौनी हरकत से तुरंत बाज आए। उन्होंने कहा कि इसी साजिश के तहत कांची कामकोटि के वरिष्ठ शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती तथा विजयेंद्र सरस्वती को गिरफ्तार करके करीब १० साल तथा साध्वी प्रज्ञा को छह साल तक झूठे मामले में जेल में रखा गया। आखिरकार अदालतों ने उन्हें निर्दोष घोषित करके बरी कर दिया है। इससे स्पष्ट होता है कि सरकार साधु संतों के खिलाफ जानबूझकर ऐसी कार्यवाही कर रही है।
बंगलुरु से 35 किलोमीटर दूर अपने आश्रम में श्रीश्री रविशंकर ने इस बात पर गम्भीर चिंता जताई की कि केंद्र की संप्रग सरकार खासकर इसकी अगुआ कांग्रेस इस देश की संस्कृति पर चोट करके इसके वैभव को धूल में मिलाने की अंतरराष्ट्रीय साजिश को समझ नहीं पा रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ऐसी बाहरी ताकतों के हाथों में खेलकर अपने राजनीतिक लाभ के लिए निर्दोष साधु संतों को झूठे मामलों में फंसा कर जेल में बंद कर रही है। उन्होंने कहा कि कोई भी संत सामान्यत: आतंकवाद से कोई वास्ता नहीं रखते हैं और शंकराचार्य जैसे अति सम्मानित धर्म गुरुओं की तो आतंकवाद और हिंसा में शामिल होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह सरकार केवल इन्हीं साधु संतों के पीछे पड़ी है। उन्होंने स्वीकार किया कि हो सकता है कि कुछ मामलों में धर्मिक क्षेत्र से जुड़े लोग हिंसा या अपराध की घटनाओं में लिप्त होते हों लेकिन इस बात को समझा जाना चाहिए कि ऐसे लोग धर्म की श्रद्धा का दुरुपयोग करते हैं और वे वास्तव में धर्मिक व्यक्ति नहीं होते।
उन्होंने कहा कि यूं तो उनका किसी राजनीतिक दल से सम्बन्ध नहीं है लेकिन जो पार्टी भारतीय संस्कृति की बात करें, उसके साथ उनकी निकटता होना स्वाभाविक है। जब कांग्रेस भारतीय संस्कृति तथा साधु संतों के पीछे पड़ी है तो वह ऐेसी पार्टी का समर्थन कैसे कर सकते हैं। वह ऐसी पार्टी का समर्थन करेंगे जो भारतीय संस्कृति तथा हिंदू धर्म की बात करती हो। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में स्वीकार किया कि भारतीय जनता पार्टी अन्य पार्टियों से बेहतर है। उन्होंने स्वीकार किया कि कांग्रेस की विफलताओं और देश की निराशाजनक स्थिति को देखते हुए भाजपा नेता एवं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना देशहित में होगा। धार्मिक व्यक्तियों के राजनीति में प्रवेश के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें सीधे प्रवेश करने की बजाए नेताओं का मार्गदर्शन करना चाहिए जैसा कि प्राचीनकाल में इस देश में हुआ करता था। उन्होंने योग गुरु बाबा रामदेव को भी सलाह दी कि उन्हें राजनीति में सीधे प्रवेश करने के बजाय नेताओं और सरकारों को मार्गदर्शन करने की महती भूमिका निभानी चाहिए।
यह पूछे जाने पर कि अंतरराष्ट्रीय साजिश से उनका क्या आशय है, श्रीश्री रविशंकर ने कहा कि भारत से ईष्र्या करने वाली पश्चिमी ताकतें यह साजिश हमेशा करती रहती हैं। ऐसी ताकतों को लगता है कि भारत को कमजोर तभी किया जा सकता है जब इसकी संस्कृति कमजोर हो जाए। उन्होंने सरकार को आगाह किया कि वह ऐसी बाहरी साजिशों को समझें और अपने तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए देश को कमजोर नहीं करें। 147 देशों में आर्ट ऑफ लिविंग नामक संस्था के प्रणेता श्रीश्री रविशंकर ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उसकी गलत नीतियों की वजह से आज किसान आत्महत्या कर रहे हैं। किसानों को पर्याप्त सब्सिडी दिए जाने की आवश्यकता है लेकिन सब्सिडी पशुओं का मांस निर्यात करने वाले व्यापारियों को दी जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार चीनी का निर्यात तो मात्र 12 रुपए की दर से कर रही है जबकि देश में चीनी 34 रुपए की कीमत से कम में उपलब्ध नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चीनी एवं चावल का रंग साफ करने के चक्कर में उसमें गम्भीर बीमारियां पैदा करने वाले रसायन मिलाए जा रहे हैं।
उन्होंने मौजूदा भ्रष्टाचार समेत देश की विभिन्न समस्याओं के लिए एक ही पार्टी के लगातार लम्बे समय तक सत्ता में रहने को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि परिवर्तन तो जरूरी है। उन्होंने कहा कि अमेरिका तथा अन्य देशों की तरह यहां भी सत्ता नियंत्रण हर बार बदलते रहना चाहिए ताकि कोई भी पार्टी अपने को अपरिहार्य मान कर मनमानी न करने पाए। देश की ऐसी व्यवस्था के मध्य स्वयं उन्होंने राजनिति में आने की सम्भावना से साफ इन्कार करते हुए युवाओं को आगे आने एवं इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करने का आह्वान किया। उन्होंने 'आप' नेता और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को सलाह दी कि वह फिलहाल लोकसभा चुनाव के बजाय नगर निकायों और विधानसभा चुनावों तक ही अपने को सीमित रखें और इससे अनुभव प्राप्त करने के बाद लोकसभा चुनाव की तरफ 

बाल स्वयंसेवकों ने मोहा मन


पाली  सिर पर काली टोपी और हाथ लाठी थामे घोष की मधुर धुन के साथ कदम से कदम मिलाकर आरएसएस के स्वयंसेवकों की ओर से शहर में पथ संचलन निकाला गया। पूर्ण गणवेश के साथ स्वयंसेवकों का यह पथ संचलन राजकीय बालिया बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय के खेल मैदान से रवाना होकर धानमंडी, सोमनाथ मंदिर, सूरजपोल से नवलखा मंदिर होते हुए पुन: बालिया स्कूल पहुंचकर विसर्जित हुआ। संचलन में खेड़ापा रामद्वारा के स्वामी सुरजनदास महाराज का सानिध्य रहा। इस मौके पर विभाग संघ चालक कमलकिशोर गोयल, जिला संघ चालक डॉ. श्रीलाल, नगर संघ चालक नेमीचंद अखावत समेत कई स्वयंसेवक मौजूद थे।
पथ संचलन के दौरान दुर्गावाहिनी एवं महाशक्ति के कार्यकर्ताओं द्वारा बादशाह का झंडा पर पुष्पवर्षा कर स्वागत किया गया। इस मौके पर पुष्पा मुंदड़ा, आशा बिड़ला, हेमंत, सुनीता, सारिका शर्मा व लीला देवी समेत कई महिलाएं मौजूद थीं। इसी प्रकार बजरंग दल की ओर से भी नगर सह संयोजक प्रवीण उपाध्याय के नेतृत्व में गुलजार चौक पर स्वयंसेवकों का स्वागत किया गया। इसके अलावा भी दल की ओर से पुराना बस स्टैंड व सूरजपोल पर स्वागत किया गया। इस मौके विहिप सहमंत्री सत्यनारायण मुंदड़ा, नरेश सिंधी, अनिल चौहान, रवि जावा, ऋषिराज जावा व अजय समेत कई कार्यकर्ता मौजूद थे।
शहरवासियों ने सजाई रंगोली और पुष्पवर्षा से किया स्वागत
पंथ संचलन के दौरान कई स्थानों पर समाजसेवी संगठनों द्वारा स्वयंसेवकों का स्वागत किया गया। पंथ संचलन से पूर्व कई स्थानों पर लोगों ने मनमोहक रंगोली सजाकर स्वयंसेवकों का अभिनंदन किया। सूरजपोल चौराहे पर महाराणा कमांडो फोर्स व भारत विकास परिषद व मातृशक्ति द्वारा पुष्पवर्षा की गई। उत्साहित नौजवानों ने भारत माता की जय तथा वंदे मातरम के उद्घोष लगाकर वातावरण को उत्साहवर्धक बनाए रखा।
बाल स्वयंसेवकों ने मोहा मन
पथ संचलन के दौरान बाल स्वयंसेवकों ने सभी को काफी मोहित किया। बालकों द्वारा घोष वादन व बिगुल की मधुर धुन सभी को पसंद आई। पथ संचलन में घोष वादन करते चल रही स्वयंसेवकों की तीन टीमों में शामिल नन्हे स्वयंसेवकों को भी शहरवासी निहारते रहे।
 
साभार: दैनिक भास्कर, पाली  

साभार: राजस्थान पत्रिका , पाली

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

अल्पसंख्यकवाद की अवधारणा ही देश के विरुद्ध है, समाज को तोड़ने वाली है। -भैयाजी जोशी, सरकार्यवाह, रा. स्व.संघ

तो अब हम अरिहंतों का नमन पराए होकर करेंगे? 

अल्पसंख्यकवाद की अवधारणा ही देश के विरुद्ध है,  समाज को तोड़ने वाली है।  

-भैयाजी जोशी, सरकार्यवाह, रा. स्व.संघ

तरुण विजय
जैन समाज के प्रभावशाली लोगों ने अंतत: स्वयं को हिन्दू समाज से अलग घोषित करवा ही लिया। अल्पसंख्यकवाद और सेकुलर वोट बैंकों का ऐसा चलन चला है कि लगभग पचास लाख की आबादी वाला यह वर्ग भी स्वयं को अल्पसंख्यक घोषित करने में ही लाभ और श्रेष्ठतर भविष्य ढूंढने लगा। कहीं कोई सन्नाटे को तोड़ने वाली आवाज भी नहीं हुई। हम सुनना चाहते थे हिन्दू और राष्ट्रीयता की दृष्टि से सोचने वाले हमसे अलग लोग भी कम से कम इतना तो कहेंगे कि हिन्दू समाज को तोड़ते-तोड़ते कहीं भारत न टूटने लगे। यह अलगाव का उन्माद कहीं तो थमना चाहिए।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी के इस बारे में स्पष्ट मत हैं। जैन समाज को अब अल्पसंख्यक घोषित करने पर उनसे हुई चर्चा में कहा कि अल्पसंख्यकवाद की अवधारणा ही देश के विरुद्ध है, समाज को तोड़ने वाली है। राजनीतिक दलों में जिस प्रकार से तात्कालिक स्वार्थों के लिए दीर्घकालिक हितों पर आघात का चलन चला है वह भविष्य के लिए ठीक नहीं है। राष्ट्रीयता और समरसता की भावना ही सामाजिक एकजुटता को मजबूत कर सकती है।
विडंबना यह है कि इतने बड़े आघात के बावजूद केवल 2014 का चुनाव राजनीतिक पटल पर छाया हुआ है। वे जैन समाज के संत और महात्मा जो सम्पूर्ण हिन्दू समाज की अबाधित और असंदिग्ध श्रद्धा एवं सम्मान के पात्र हैं, क्या अब केवल इसलिए हमसे अलग, पराए और पृथक मान लिए जाएंगे क्योंकि सरकार के कागज में उन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर दिया गया है और अचानक उनकी गिनती मुस्लिम और ईसाई समाज के साथ होने लग जाएगी? क्या केवल छह दशक पुराना सरकारी संविधान हजारों वर्ष पुराने भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक संविधान पर हावी हो जाएगा? अपने शिक्षण संस्थान बचाने, व्यापार और धार्मिक स्थानों में बेहतर सुविधा और सुरक्षा के लिए जैन  समाज के मूर्धन्य चिंतक अल्पसंख्यकवाद के समक्ष इस प्रकार झुक जाएंगे? क्या अब हम सब अरिहंतों का नमन पराए होकर करेंगे? या चूंकि अब आप अल्पसंख्यक हो गए हैं इसलिए रोटी-बेटी के रिश्ते, शादी-ब्याह, धर्म-कर्म में साझेदारी, मां, बेटे, बेटी, पिता और नाते-रिश्तेदारों के संबंध अब सरकारी कागजों के फतवे से निर्धारित होने लगेंगे? क्या किसी ने इस राजनीतिक और गर्हित फैसले के अगले बीस, पचास और सौ साल में होने वाले असर के बारे में सोचा है जब तीन, चार, पांच पीढि़यों के बाद नई नस्ल सीधे-सीधे ये सवाल किया करेगी कि जब सरकार और हमारे ह्यमहानह्ण नेताओं ने ही हमें हिन्दू नहीं माना तो हमारा तुमसे संबंध ही क्या है? इसका परिणाम भारत और यहां के सामाजिक ताने-बाने पर क्या होगा?
आज तो बड़ी सरलता से कह दिया जाएगा कि अजी, ऐसा कुछ नहीं होने वाला। हमारा आपका तो रक्त और मांस का संबंध है। हममें आपमें फर्क ही क्या है? ये सरकारी कागज हमें अलग थोड़े ही करेंगे। हमारे संत, ग्रंथ, धार्मिक परम्पराएं, रीति-रिवाज अल्पसंख्यक आयोग थोड़े ही तय करेगा। जब घर में दीवार उठती है तो ऐसा ही कहा जाता है, लेकिन दीवार तो उठ ही जाती है। किसी को जैन समाज के उन लोगों से पूछना चाहिए जिन्होंने स्वयं को अल्पसंख्यक घोषित करने के लिए कुछ वर्षों से लगातार अभियान छेड़ा हुआ है कि हिन्दू समाज का अंग होते हुए उन्हें किस भेदभाव, अस्पृश्यता, उपेक्षा, आघात और तिरस्कार अथवा आगे बढ़ने के मार्ग पर बाधाओं का सामना करना पड़ा? क्या कभी उनको यह अनुभव हुआ कि हिन्दू समाज का अंग होते हुए वे पिछड़ेपन का शिकार हो रहे हैं तथा जिस क्षण में वे अहिंदू और अल्पसंख्यक घोषित हो जाएंगे उसी क्षण उनकी प्रगति और विकास के अवसर निर्बाध हो जाएंगे?
यह स्थिति हिन्दू समाज की कमजोरी का भी द्योतक है। देश की विभिन्न पार्टियां जो केन्द्र या राज्यों में सत्ता चला रही हैं, शासन और प्रशासन में जो शीर्षस्थ अधिकारी सरकारी आदेश को अमल में ला रहे हैं, उनमें अधिकांश हिन्दू ही हैं। लेकिन हिन्दू के नाते न सोचने के कारण आज सब ओर हिन्दू अरक्षित हो गया है। कभी लाला लाजपत राय जैसे नेता पंजाब से बोलते थे तो सारा देश सुनता था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल से आवाज उठाते थे तो कश्मीर तक हिलता था। आज हिन्दू वेदना चुनावी लाभ का विषय भी नहीं है और सामाजिक उन्नयन का भी। पंजाब में हिन्दू समाज का मनोबल राजनीतिक समझौतावादिता, वोट राजनीति एवं तात्कालिक फायदे के लिए दबने के कारण टूटता जा रहा है। कश्मीर से हिन्दू बाहर कर दिया गया। उत्तर-पूर्वांचल में केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि उनके साथ खड़े रहने वाले हिम्मती गैर-ईसाई जनजातीय संगठन डरे हुए जी रहे हैं। उनके बीच में जितनी मात्रा में कार्यकर्ता और संसाधन भेजे जाने चाहिए उनकी अपार कमी है। मेघालय में सेंगखासी समाज पर लगभग 90 प्रतिशत ईसाई समाज का लगातार दबाव बना हुआ है कि वे भी मतांतरित हो जाएं। सेंगखासी को अल्पसंख्यक दर्जा भी नहीं दिया गया ताकि उन्हें केन्द्र से अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सहायता से वंचित रखा जाए। पर इन बेचारे सेंगखासी समाज के लोगों की आवाज सुनने और उन्हें बचाने के लिए दिल्ली के कोलाहल में किसे फुर्सत है। हिन्दुओं के अधिकांश बड़े मंदिर सरकारी नियंत्रण में हैं। उनसे होने वाली आय गैर हिन्दू कार्यों पर खर्च की जाती है। इसका भी कोई समाधान नहीं निकल पा रहा है।
कमजोर, विखंडनवाद के शिकार एवं स्वयं ही स्वयं से लड़ने में व्यस्त हिन्दुओं के साथ रहना अपनी रक्षा सुनिश्चित करने जैसा नहीं रह गया है। हिन्दुओं के नेता भी सेकुलर मुद्दों पर अपना राजनीतिक जीवन बचाना चाहते हैं। इसलिए ऐसे भ्रमों के भंवर में फंसे हिन्दुओं से अगर मजबूत और वैभव संपन्न कोई वर्ग अलग होता है तो इसमें आश्चर्य ही क्या है? यह समय है जब हिन्दू समाज के सभी संगठनों को आपस में मिलकर पारस्परिक समन्वय एवं हिन्दू समाज के समक्ष आ रही चुनौतियों का सामना करने के लिए स्वयं में अपेक्षित परिवर्तन और सुधार लाने का कोई युगांतरकारी उपाय सोचना चाहिए।
साभार: पाञ्चजन्य

स्वर निनाद शिविर संपन्न

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित