मंगलवार, 30 सितंबर 2014

मरुधरा शक्ति संगम, त्रिवेणी संगम-पथ संचलन स्वयंसेवको ने किया पूर्वाभ्यास

मरुधरा शक्ति संगम, त्रिवेणी संगम-पथ संचलन

स्वयंसेवको ने किया पूर्वाभ्यास 
साभार: राजस्थान पत्रिका

संघ पंथ नहीं , संगठन है

संघ पंथ नहीं , संगठन है
    
साभार:पाञ्चजन्य

परमपूज्य सरसंघचालक का सत्य आधारित जीवन जीने का आह्वान

परमपूज्य सरसंघचालक का सत्य आधारित जीवन जीने का आह्वान

Pradhyapak Sangoshthi-Yuva Sankalp Shivir
सोनीपत (हरियाणा). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत ने कहा है कि मनुष्य को अपना और अन्य जीवों का कल्याण करना है तो उसे सत्य पर आधारित जीवन जीना होगा. सत्य है कि आत्मा एक है और यही आत्मा परमात्मा है. यही आत्मा हर जीव के में विद्यमान है. परमात्मा की सेवा करना ही हमारा लक्ष्य है. इसलिये सारी दुनिया के सुख के लिये हमारा जीवन है. जब हम ऐसा करते हैं तो हमारा जीवन उपयोगी होता है, सुख देता है और दुनिया का भी भला करता है. डा. भागवत ने यह भी कहा कि हिन्दू वही है, जो सबके सुख और उन्नति की कामना करता है और सृष्टि के सभी जीवों को समान भाव से देखता है.
यहां भगवान महावीर इन्सटीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में 25 से 28 सितम्बर तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रांत द्वारा युवा संकल्प शिविर आयोजित हुआ. शिविर में दिल्ली के वे स्वयंसेवक शामिल हुये, जो किसी न किसी महाविद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं. छात्रों की कुल संख्या 2028 थी. चार दिवसीय इस शिविर में छात्रों ने जहां विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया, वहीं उन्हें परम-पूज्य सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत एवं वरिष्ठ प्रचारकों का मार्गदर्शन मिला.
शिविर का औपचारिक उद्घाटन 26 सितम्बर को प. पू. डॉ. भागवत ने दीप प्रज्वलित कर किया. उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि थे प्रसिद्ध वैज्ञानिक और परमाणु आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोदकर. मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रांत के प्रांत संघचालक श्री कुलभूषण आहूजा भी उपस्थित थे.
डॉ. अनिल काकोदकर ने युवाओं को संबोधित करते हुये कहा कि अच्छी शिक्षा प्राप्त कर उस शिक्षा का राष्ट्र के हित में उपयोग करें और कुछ ऐसा कर दिखायें कि हमारे न रहने से भी हमारे कार्य का प्रभाव समाज पर दिखे.
इस अवसर पर अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य, अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण प्रमुख श्री अनिल ओक, क्षेत्रीय प्रचारक श्री रामेश्वर, सह क्षेत्र प्रचारक श्री प्रेम कुमार, क्षेत्र कार्यवाह श्री सीताराम व्यास, सह क्षेत्र कार्यवाह श्री विजय कुमार सहित अनेक वरिष्ठ प्रचारक और कार्यकर्ता उपस्थित थे.
शिविर के दूसरे दिन ‘राष्ट्र उत्थान में प्राध्यापकों की भूमिका’ विषय पर एक गोष्ठी आयोजित हुई. गोष्ठी को संबोधित करते हुये परम-पूज्य सरसंघचालक डा. मोहन जी भागवत ने कहा कि आज राष्ट्र निर्माण का काम संघ कर रहा है, लेकिन कुछ लोगों को संघ के विषय में ठीक प्रकार से जानकारी नहीं है.
कार्यक्रम के मध्य में प्रश्नोत्तर का भी कार्यक्रम था. जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक भूपेश कुमार ने सरसंघचालक से पूछा कि संघ समाज के हर अच्छे काम का सहभागी है लेकिन प्रचार क्यों नहीं करता? इस प्रश्न पर सरसंघचालक ने कहा कि हमारा अपना प्रचार का तंत्र है. हम घर-घर जाते हैं, लोगों से मिलते हैं और अपना कार्य करते हैं. एक प्राध्यापक ने सवाल किया कि आज हम डॉ. और इंजीनियर बनाते जा रहे हैं, लेकिन इसका परिणाम यह हो रहा है कि वे राष्ट्र भाव से दूर होते जा रहे हैं? इस पर श्री भागवत ने कहा कि सबसे पहले अपने बच्चों की इच्छा को जानना चाहिये. अधिकतर परिवारों में बच्चों पर दबाव होता है कि आपको इन क्षेत्रों में ही जाना है, पर बच्चों की रुचि किसी अन्य क्षेत्र में होती है. जब वे अपनी रुचि के  क्षेत्र में नहीं जाते हैं, तो इन क्षेत्रों में आकर उनका एक ही उद्देश्य होजाता है धन अर्जित करना और इसी के चलते वे धन के लालच में राष्ट्र भाव से दूर होते चले जाते हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ से जुड़े राकेश कंवर ने प्रश्न किया कि उन पर आरोप लगने लगता है कि वे राजनीतिक हैं. इस पर सरसंघचालक ने कहा हम राष्ट्र की बात करने वालों का समर्थन करते हैं. जो राष्ट्र की बातें करता है संघ उसके साथ है. अच्छे काम के लिये संघ सभी के साथ है. गोहत्या बंद हो, राम मंदिर का निर्माण हो, यह हमारा कार्य है. संघ से जुड़ने वालों को अलग नजर से देखा जाये यह स्वाभाविक है. कार्यक्रम के अन्त में प्राध्यापकों को संबोधित करते हुये मोहन जी भागवत ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है.शिक्षक को आज शिक्षार्थियों को बताना है कि सत्य पर ही रहना है किसी भी परिस्थिति में सत्य से नहीं डिगना है. चाहे कितने ही संकट क्यों न आयें.
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं उत्तर क्षेत्र के संघचालक डॉ. बजरंगलाल गुप्त और दिल्ली प्रान्त के प्रान्त कार्यवाह श्री भरत भूषण सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे.
शिविर का समापन 28 सितम्बर को हुआ. समापन समारोह को सम्बोधित करते हुये परम पूज्य सरसंघचालक ने कहा कि संघ को समझना है तो डॉ. हेडगेवार के जीवन को समझो और डॉ. हेडगेवार को समझना है तो संघ को समझो. उन्होंने अपने खून को पानी कर संघ के लिये काम किया. हिन्दू समाज को संगठित किया. यदि आप उनके बौद्धिकों को पढ़ें तो उन्होंने परिस्थितियों के बारे में बहुत कम कहा है. हमें क्या करना चाहिये, इस बारे में उन्होंने सबसे ज्यादा कहा है. संघ में व्यक्ति वंदना नहीं होती, बल्कि संघ कौटुम्बिक आधार पर चलता है. संघ आत्मीयता से चलता है. उन्होंने एक लघु कथा के जरिये स्वयंसेवकों को जीवन में सक्रिय रहने व अपने उद्देश्य के प्रति जागरूक रहने का संदेश दिया. श्री भागवत ने कहा कि संघ में हमारा रिश्ता नेता कार्यकर्ता का नहीं होता, बल्कि एक कुटुंब में आत्मीयता से रहने का होता है. हमें अपने दायित्व को पूरी निष्ठा के साथ निभाना चाहिये. दायित्व छोटा या बड़ा नहीं होता. इसलिये आपको जो भी दायित्व मिले, उसे सर्वश्रेष्ठ मानकर पूरी ईमानदारी से अपने कार्यको करना चाहिये. संघ के स्वयंसेवक को पहले संघ बनना पड़ता है. संघ के आचरण को अपने जीवन में उतारना पड़ता है. संघ के कार्य को आगे बढ़ाने के लिये हमें निरंतर में सक्रिय रहना चाहिये. तभी संघ का कार्य आगे बढ़ेगा. कार्य करने से ही कार्य आगे बढ़ता है, सिर्फ योजना बनाने से नहीं. इसलिये यदि स्वयंसेवक अपने कार्य के प्रति ईमानदारी से सक्रिय रहेंगे तो संघ का कार्य कर सकेंगे.

 साभार:इन्द्रप्रस्थ विश्व संवाद केन्द्र 

सोमवार, 29 सितंबर 2014

शनिवार, 27 सितंबर 2014

जोधपुर "लव जिहाद " मामला

जोधपुर "लव जिहाद " मामला
साभार: राजस्थान पत्रिका

जोधपुर में भी सामने आया "लव जिहाद " !!!

जोधपुर में भी सामने आया "लव जिहाद " !!!

साभार: राजस्थान पत्रिका

संगठित हिन्दू से होगा समृद्द भारत निर्माण

संगठित हिन्दू  से होगा समृद्द भारत निर्माण

साभार: राजस्थान पत्रिका

साभार: दैनिक भास्कर

परम पूज्य सरसंघचालक का आह्वान: सेवा के माध्यम से समाज से जुड़ें

परम पूज्य सरसंघचालक का आह्वान: सेवा के माध्यम से समाज से जुड़ें

 

Madhav Sadan Lokarpan

लुधियाना (विसंके). राष्ट्रीय स्वयंसेवक के परम पूजनीय सरसंघचालक डा. मोहन भागवत जी ने सेवा के माध्यम से समाज से जुडऩे का आह्वान किया है.

माधव राव मुले स्मारक समिति के पुनर्निर्मित कार्यालय के लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए  उन्होंने कहा कि माधव सदन का भवन तो पहले भी यहां था, अभी भी यहां है, मात्र आवश्यकता के अनुसार इसका रूप बदला है. इसका अत्यंत हर्ष है, लेकिन रूप तो अक्सर बदलते हैं परंतु आत्मा नहीं बदलती. इसी प्रकार हमें अपनी सोच व लक्ष्य को याद रख राष्ट्रहित में ही अग्रसर होना होगा. महानगर में बड़े भवन का लोकार्पण हुआ है, उसी प्रकार राष्ट्र हित में चल रहे कार्यक्रमों में भी गति आनी चाहिये.
Bhawan Lokarpan KaryakramBhawan Lokarpan







Bhawan Lokarpan karyakram-- इस अवसर पर माधव राव मुले समिति के अध्यक्ष मास्टर राम लाल और विभाग संघचालक श्री फूलचंद जैन द्वारा सरसंघचालक का अभिनंदन किया गया.

 

बुधवार, 24 सितंबर 2014

मरुधरा शक्ति संगम, त्रिवेणी संगम-पथ संचलन की तैयारियों की समीक्षा


मरुधरा शक्ति संगम, त्रिवेणी संगम-पथ संचलन की तैयारियों की समीक्षा

फलौदी | राष्ट्रीय स्वयंसेवक  संघ के  २ अक्टूबर को होने वाले मरुधरा शक्ति संगम के अवसर पर आयोजित  होने वाले त्रिवेणी संगम को अंतिम रूप देने के लिए मंगलवार को जिले के प्रमुख कार्यकर्ताओं एवं स्वयं सेवकों की बैठक मंगलवार को जिला प्रचारक श्यामसिंह की अध्यक्षता में हुई। उन्होंने बताया कि फलौदी में इस प्रकार का पथ संचलन पहली बार होगा। इसमें राईका बाग स्थित हनुमान मंदिर मैदान से शेरगढ़ एवं ओसियां, लटियालपुरा स्कूल से फलौदी तहसील एवं मालियों का बास से बाप लोहावट तहसील के स्वयं सेवक एकत्र होकर तीन अलग अलग धाराओं के रूप में संचलन करते हुए नगरपालिका चौराहा पर दोपहर 3 बज कर 3 मिनट पर संगम करते हुए सामुदायिक भवन आदर्शनगर 3.15 बजे पहुंचेंगे। मुख्य कार्यक्रम 430 बजे रहेगा। 


जिला प्रचार प्रमुख मनमोहन ने बताया कि शक्ति, शौर्य, समरसता नाम संगम से पूर्व संचलन को ब्रह्म सभा 2.35 बजे राजपूत छात्रावास, 2.27 बजे मधुजी की बेरी, 2.28 बजे त्रिपोलिया, 2.37 बजे लटियाल मंदिर, 2.39 बजे राईका बाग, 2.42 बजे मलार रोड चौराहा, 2.39 बजे जवाहर प्याऊ, 2.52 बजे पुराना बस स्टैंड, 2.46 बजे जयनारायण व्यास सर्किल पर 2.46 एवं 2.55 बजे देखा जा सकेगा। भारतीय किसान संघ, राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय, विश्व हिन्दू परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, सेवा भारती, विद्यार्थी परिषद, बजरंग दल, संस्कृत भारती आदि के कार्यकर्ता ग्रामीण क्षेत्रों में घर घर संपर्क कर रहे हैं। बैठक में संचलन प्रभारी तुलसाराम जिला कार्यवाह, धनराज सोनी, बिरमाराम, प्रीतेश, भगवान, भंवरसिंह, भीखालाल, सोहनराम, मनोज व्यास, भंवरलाल सोलंकी, हर्ष छंगाणी, जयेश पुरोहित आदि उपस्थित थे।

देशभर से जुटे पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर प्रतिनिधि

देशभर से जुटे पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर प्रतिनिधि

सोमवार, 22 सितंबर 2014

फलोदी में २ अक्टूबर २०१४ को आयोजित होने वाले मरुधरा शक्ति संगम एवं विजयदशमी उत्सव की तैयारियों की खबरे समाचार पत्रो से

साभार: भास्कर

साभार:राजस्थान पत्रिका
साभार: राजस्थान पत्रिका
फलोदी में   २ अक्टूबर २०१४ को आयोजित होने वाले मरुधरा  शक्ति संगम एवं विजयदशमी उत्सव की तैयारियों की खबरे समाचार पत्रो से

घर बैठे संस्कृत सीखें: देवपुजारी

घर बैठे संस्कृत सीखें: देवपुजारी

जबलपुर । संस्कृत भारती कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं है । यह सामाजिक संस्था है । इसका मुख्य कार्य उन लोगों को संस्कृत भाषा सिखाना है जो स्कूल कालेज आदि में पढ़ाई नहीं करते । इस संस्था की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि यह लोगों को बिना किताब के ही बोलना सिखाती हैं । यह कहना है संस्कृत भारती के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्रीश देव पुजारी का । वे एक साक्षात्कार में बोल रहे थे ।
उन्होंने बताया कि संस्कृत भारती के प्रयासों से आज राजगढ़ जिले के ग्राम झिरी के सभी लोग संस्कृत में बाते करते है । इस भाषा को सिखाने के लिये कोई अलग से स्कूल या काॅलेज नहीं चलाया जाता । बल्कि 15-20 लोगों का समूह बनाया जाता है और जहाॅं जगह मिलती है वहीं पर बैठ कर पढ़ाना शुरू कर दिया जाता है ।  लगातार बीस दिन तक एक घंटे पढ़ने से व्यक्ति संस्कृत बोलना सीख जाता है ।  आगे और दक्षता हासिल करने के लिये वर्ग लगाकर तैयारी कराई जाती है ।  इस तरह के वर्ग प्रांत में सन् 2000 से लग रहे है । अखिल भारतीय योजना के अनुसार 2014 मेें जिला स्तरीय सम्मेलन हो रहे है ।  2015 में प्रांत स्तर के और 2016 में अखिल भारतीय सम्मेलन होंगे ।
श्री देवपुजारी ने बताया कि संस्था जो शिक्षा देती है वो पूर्णतः निःशुल्क है । भाषा को पत्राचार के माध्यम से भी सिखाने की व्यवस्था की गई है । इस भाषा के प्रति रूचि जगाने के लिये कक्षा दूसरी से ही इसे पढ़ा रहे है ।  उन्होंने बताया कि नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल और मेघालय को छोड़कर शेष भारत में संस्कृत भारती का काम अच्छा चल रहा है ।  थोड़ी बहुत कठिनाई आ रही है पंजाब प्रांत मेें ।  यहाॅं के निवासियों को संस्कृत के शब्दों का उच्चारण करने में कठिनाई होती है ।  तमिलनाडू में डीएमके पार्टी इस भाषा का विरोध करती है और सरकार भी इसकी अनुमति नहीं देती ।  जबकि छात्र केन्द्र सरकार की नौकरी पाने के लिये इस भाषा को पढ़ाये जाने के लिये राज्य सरकार पर दबाव बना रहे है ।
उन्होंने बताया कि संस्कृत भारती ने 7 से 13 अगस्त तक संस्कृत सप्ताह मनाया था इसमें पूरे देश से सबसे ज्यादा प्रविष्टियां तमिलनाडू से आई थी ।  आज संस्कृत भाषा का प्रभाव दूसरे देशों में भी देखने को मिल रहा है । यही कारण है कि हमने अपने ही देश में इन विदेशियों को संस्कृत भाषा सिखाने की व्यवस्था कर रखी है । इसके तहत दिल्ली में हर महिने की 1 से 14 और 16-29 तारीख तक में भाषा ज्ञान कराया जाता है । इसके अतिरिक्त बैंगलुरू में भी उक्त भाषा सिखाने की व्यवस्था की गई है ।  हर वर्ष लगभग 40 विदेशी इसमें महिला और पुरुष दोनों है संस्कृत सीखने आते है ।  श्री देवपुजारी ने बताया कि संस्कृत भारती का काम देश के साथ साथ विदेशों में अमेरिका, यू.ए..ई. इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया में भी चलता है । 
साभार:संवाद केंद्र ,जबलपुर

दस वर्ष में 50 हजार लोग बोलने लगे संस्कृत

दस वर्ष में 50 हजार लोग बोलने लगे संस्कृत

जबलपुर. संस्कृत भारती संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार ज्ञानवर्धन के लिये करती है. आज देश में स्थिति यह है कि जो शिक्षक संस्कृत पढ़ा रहे है, उन्हें ही यह भाषा नहीं आती. इसी कमी को दूर करने का काम संस्कृत भारती कर रही है. यह कहना है संस्कृत भारती के अखिल भारतीय प्रचार-प्रसार प्रमुख श्री देवपुजारी का. वे सरस्वती शिक्षा परिषद के भवन में पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा का प्रयोग लिखने-पढ़ने में तो होता है, किन्तु बोलचाल में नहीं होता. यही कारण है कि इस भाषा के साथ अन्याय हो रहा है और यह सिर्फ ग्रन्थों की भाषा बनकर रह गई है. श्री देवपुजारी ने बताया कि पिछले 10 वर्ष में 50 हजार लोग सेंस्कृत बोलने लगे हैं. संस्कृत भारती का कार्य नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल और मेघालय छोड़कर पूरे देश में चल रहा है. इस संस्था का कार्य चार सौ जिलों में दो हजार स्थानों पर चल रहा है.
संस्कृत भारती की जबलपुर में चल रही अखिल भारतीय बैठक में भाग लेने आये श्री देवपुजारी ने बताया कि बैठक में 39 जिलों के लगभग 215 प्रतिनिधि सम्मिलित हो रहे हैं. इस वर्ष संस्कृत भाषा की तरफ रुझान बढ़ाये जाने के लिये जो अभियान चलाया जा रहा है, उसमें भिन्न-भिन्न भाषाओं के लगभग 50 हजार शिक्षार्थियों के जुड़ने की संभावना है. संस्कृत भारती संस्था की योजना बताते हुये आपने कहा कि इस शैक्षणिक वर्ष में पूरे भारत में जनपद सम्मेलनों का आयोजन कर संस्कृत सिखाई जा रही है.
प्रचार-प्रसार प्रमुख ने बताया कि संस्कृत विषय लेकर पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ाने हेतु संस्कृत भारती दूसरी कक्षा से लेकर पाँचवीं कक्षा तक चार परिक्षायें आयोजित करती है. विद्यार्थियों को पढ़ाने की व्यवस्था भी करती है. इससे रूचि जागृत होकर छात्र छठवीं से संस्कृत विषय का चयन करता है. वे आगे की पढ़ाई में भी संस्कृत विषय को अपनाये रखें, इसके लिये संस्कृत भारती प्रयासरत है. इस भाषा को सिखाने के लिये संस्था पत्राचार पाठ्यक्रम भी चलाती है.
स्त्रोत:vskbharat.com 

शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

भारत को इस्लामिक देश बनाना चाहता है इंडियन मुजाहिदीन: राजस्थान एटीएस



भारत को इस्लामिक देश बनाना चाहता है इंडियन मुजाहिदीन: राजस्थान एटीएस

 
 साभार:राजस्थान पत्रिका
जोधपुर/जयपुर। आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का प्रमुख उद्देश्य जेहाद के माध्यम से तालिबान, अल कायदा, लश्कर ए तैयबा जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से मिलकर भारत में इस्लामिक साम्राज्य स्थापित करना है। इसके लिए देश के नागरिकों में आतंक व असुरक्षा उत्पन्न करना, अर्थव्यवस्था को नष्ट कर एकता व अखण्डता को खत्म करना और जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, पुष्कर और जैसलमेर के पर्यटन व यहूदियों के धार्मिक स्थलों पर बम धमाकों की योजना थी। गत मार्च में दिल्ली पुलिस की विशेष सैल की मदद से पकड़ में आए आईएम मॉडयूलों से जांच में यह सामने आया है।

आईएम के राजस्थान मॉड्यूल के पकड़े गए 16 आतंकी और उनके सहयोगियों के खिलाफ एटीएस ने छह माह की जांच के बाद गुरूवार को जयपुर और जोधपुर न्यायालय में चार्जशीट पेश की। मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, जयपुर महानगर के न्यायाधीश के समक्ष 13 अभियुक्तों के खिलाफ और जोधपुर में 10 अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट पेश की गई। इनमें 7 अभियुक्त दोनों ही चार्जशीट में शामिल हैं। एटीएस के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक आशीष प्रभाकर ने 125 पृष्ठ की चार्जशीट जोधपुर के एसीएमएम-1 कोर्ट में दायर की।

इसमें 2294 दस्तावेज हैं। जबकि 98 लोगों को गवाह बनाया गया है। इस संबंध में गत 23 मार्च को प्रतापनगर थाने में मामला दर्ज किया गया था। उप निरीक्षक सोमरण ने बतौर थानाधिकारी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। एटीएस ने आतंकियों के राजस्थान मॉड्यूल में जयपुर, जोधपुर और सीकर मॉड्यूल बताए हैं। एटीएस के एडीजी डॉ. आलोक त्रिपाठी ने बताया कि जयपुर व जोधपुर में पेश की गई चार्जशाीट में कुछ अभियुक्त दोनों जगह सक्रिय थे। इनका सरगना मारूफ था। इनका देश व प्रदेश में कई स्थानों पर तबाही मचाने का मंसूबा था।

दंगों का बदला लेने के लिए बने आतंकी
एटीएस सूत्रों के मुताबिक, पूछताछ में सामने आया कि अभियुक्त गुजरात और राजस्थान के गोपालगढ़ दंगों का बदला लेने के लिए आतंकी बने। वे राजस्थान के कई प्रमुख शहरों में विस्फोट करने की तैयारी कर रहे थे।
इन धाराओं में पेश हुई चार्जशीट
जयपुर में पेश चार्जशीट में धारा 4,5,6, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम 1908 एवं 16,17,18, 18, 18बी, 19,20,23 विधि विरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1967,121, 121, 122 एवं सहपठित धारा 120बी आईपीसी में और कुछ अभियुक्तों के खिलाफ धारा 465, 468, 471 आईपीसी और जोड़ी है। 
 - See more at: http://www.patrika.com/news/indian-mujahideen-wants-to-turn-india-into-islamic-country-rajasthan-ats/1030873#sthash.TqFbRG0U.dpuf
 Source:http://www.patrika.com/news/indian-mujahideen-wants-to-turn-india-into-islamic-country-rajasthan-ats/1030873

साभार:राजस्थान पत्रिका

साभार:  दैनिक भास्कर

मंगलवार, 16 सितंबर 2014

मरुधरा शक्ति संगम, फलोदी, जोधपुर में २ अक्टुम्बर २०१४ को

मरुधरा शक्ति संगम ,फलोदी, जोधपुर में २ अक्टुबर २०१४ को 


जोधपुर।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ फलोदी  जिले का विराट हिन्दू सम्मलेन दुर्गाष्टमी , गुरुवार २ अक्टुबर २०१४ को सामुदायिक सभा भवन, आदर्श नगर में सायं ४.३० बजे संपन्न होगा। 
इस विराट  हिन्दू सम्मलेन में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य माननीय इन्द्रेश कुमार होंगे. 
इससे पूर्व पथ संचलन का आयोजन होगा , त्रिवेणी संगम ठीक ३. ०३ बजे नगर पालिका चौराहे पर होगा। 
 



मेरठ में हिंदी पत्रकारिता दिवस पर मनमोहन वैद्य जी का उद्बोधन



मेरठ में हिंदी पत्रकारिता दिवस पर मनमोहन वैद्य जी का उद्बोधन

मेरठ। सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना करने वाला देश  है भारत। भिन्न भाषाएं और भिन्न लोगों के मन और आकांक्षाए एक होने से ही राष्ट्र का निर्माण संभव है। भारतीय भाषा में ही राष्ट्रीयता की पहचान संभव है। हिंदी भारत की भाषा है। हिंदी की सभी बातें अंग्रेजी में अनुवादित करना संभव नहीं। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख  डाॅ. मनमोहन वैद्य ने गंगानगर स्थित आईआईएमटी काॅलेज में ”हिंदी पत्रकारिता में राष्ट्रीयता“ आयोजित संगोष्ठी में कहीं। 

आईआईएमटी चैयरमेन श्री योगेश मोहनजी गुप्ता ओर प्रबंध निदेशक श्री मयंक अग्रवाल ने पुष्प गुच्छ देकर डाॅ. वैद्य का स्वागत किया और उनके आगमन को गौरवान्वित करने वाला व छात्रों के लिए सही मार्गदर्शन  देने वाला बताया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचारक कृपाषंकर, प्रांत प्रचारक अजय मित्तल, सह प्रांत प्रचारक ललित और समाचार पत्र आॅर्गेनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर भी मौजूद रहे।

मनमोहन वैद्य ने हिंदी पत्रकारिता में राष्ट्रीयता होने पर बल दिया। कहा कि समाचार पत्रों में समाज का चित्र घटनाएं सही होने के बावजूद नकारात्मक चित्रण हो रहा है। अनेक अच्छे काम भी समाज में हो रहे हैं, जो पत्रों में आने चाहिए। डाॅ. वैद्य ने विवेकानंद द्वारा शिकागो में दिए गए ऐतिहासिक भाषण का भी जिक्र किया। बताया कि आध्यात्मिकता भारत की आत्मा है। हरेक व्यक्ति में ईश्वर  का अंश है। उन्होंने धर्म का अंग्रेजी में कोई अर्थ न होने की बात भी कही। धर्म के लिए अंग्रेजी में प्रयुक्त शब्द रिलीजन को उन्होंने गलत माना। कहा कि धर्म की अवधारणा भारतीय है। साथ ही राष्ट्र, राज्य और देश की अवधारणाओं को भी उन्होंने अलग-अलग बताया। छात्रों ने प्रश्न  पूछकर अपनी जिज्ञासाएं शांत  कीं।
कार्यक्रम के समापन पर आईआईएमटी परिवार की ओर से स्मृति चिन्ह देकर डाॅ. वैद्य को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन संजीब कुमार मिश्रा ने किया। कार्यक्रम में निदेशक डाॅ. आषीष अग्रवाल, बीजेएमसी विभागाध्यक्ष डाॅ. नरेंद्र मिश्रा, बीसीए विभागाध्यक्ष डाॅ. नीरज शर्मा, बीबीए विभागाध्यक्ष डाॅ. मयंक जैन, डाॅ. प्रशांत , विशाल शर्मा, यतिन राय कक्कड़, डाॅ. प्रियांक, डाॅ. वीरेंद्र, वरूण गुप्ता, अमित सैनी, रचना, वर्षा चैधरी और अमित वर्मा समेत अन्य शिक्षक  व सैंकड़ों छात्र शामिल रहे .
साभार:

शनिवार, 13 सितंबर 2014

हिंदी है हम : भारत के माथे की बिंदी, हिन्दी

हिंदी है हम : भारत के माथे की बिंदी, हिन्दी

भारत देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। देश को स्वतंत्रता दिलाने में हिन्दी भाषा की भी प्रमुख भूमिका थी। देश को स्वतंत्र हुए 60 दशक से अधिक हो गए हैं परन्तु् देश और इस देश की जनता का यह दुर्भाग्य है कि उसकी अभी तक कोई अपनी राष्ट्रभाषा नहीं है जिस पर वह गर्व कर सके जबकि आज हम स्वतंत्रता दिवस की 68वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। कहा जाता है कि देश के न्यायालयों से न्याय मिलता है लेकिन यह भी सच है कि देश के न्यायालय द्वारा निर्णय अभी भी देश की जनता की भाषा (अर्थात् हिन्दी भाषा अथवा अन्य भारतीय भाषाएं) में नहीं दिए जा रहे हैं, जो देश की जनता के साथ छलावा है। देश के न्यायालय अंग्रेज काल से लेकर आज तक धड़ल्ले से अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे हैं जबकि संविधान में कहा गया है कि हिन्दी भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग करते हुए धीरे-धीरे अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को कम किया जाए लेकिन स्वतंत्रता के इतने वषोंर् बाद भी आज हम भाषायी दृष्टि से गुलाम ही हैं। रूस, जर्मनी, चीन, फ्रांस इत्यादि देश आज अपना सरकारी कामकाज अपनी-अपनी भाषा में करते हैं और पूरी तरह से विकसित हैं। ये देश अपनी भाषा के प्रति बहुत संवेदनशील हैं जबकि भारत देश में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता। विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी भाषा को तीसरा स्थान प्राप्त है और विश्व में हिन्दी भाषा बोलने वाले 500 से 600 मिलियन लोग हैं। किसी भी देश को एकता के सूत्र में बांधे रखने में एक भाषा की भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
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संविधान के अनुच्छेद 120, 210 और 343 से अनुच्छेद 351 तक के अंतर्गत हिन्दी भाषा को लेकर सांविधिक प्रावधान किए गए तत्पश्चात राष्ट्रपति आदेश, राजभाषा अधिनियम, राजभाषा नियम आदि जारी किए गए एवं राजभाषा हिन्दी के कार्यान्वयन की मॉनिटरिंग करने हेतु कई समितियां जैसे केंद्रीय हिन्दी समिति, हिन्दी सलाहकार समिति, संसदीय राजभाषा समिति, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, राजभाषा कार्यान्वयन समिति इत्यादि बनाई गईं ताकि हिन्दी भाषा का उत्थान हो सके और पूरा देश भाषा रूपी एकता के सूत्र में बंध सके। वर्तमान में राजभाषा हिन्दी के कार्यान्वयन से संबंधित सभी कार्य गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा विभाग देखता है। सरकार संविधान के अनुसार सरकारी कामकाज में राजभाषा हिन्दी का कार्यान्वयन कराने के लिए जनता से टैक्स के रूप में करोड़ों-अरबों रुपए पानी की तरह बहा रही है और परिणाम वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति है। इससे सिद्घ होता है कि देश की सरकारें, उच्च पदस्थ अधिकारीगण, जनता का कुछ भाग यह नहीं चाहते हैं कि देश का शासन जनता की भाषा (अर्थात हिन्दी भाषा अथवा अन्य भारतीय भाषाएं) में हो क्योंाकि यदि शासन न्यायालय का सारा कामकाज जनता की भाषा (अर्थात हिन्दी भाषा अथवा अन्य भारतीय भाषाएं) में होने लगेगा तो सरकार एवं उच्च पदस्थ अधिकारीगण की योजनाओं-नीतियों को जनता आसानी से समझ लेगी और उस पर जनता आसानी से प्रतिक्रिया दे देगी, साथ ही तर्क-वितर्क भी करने में सक्षम होगी। इससे बचने के लिए आज तक सरकारें व न्यायालय अपना सारा कामकाज बेधड़क अंग्रेजी भाषा में करते हैं जिससे जनता आसानी से न समझ सके। सर्वे के दौरान अब यह भी बात मालूम हो चुकी है कि देश में अच्छी अंग्रेजी बोलने, लिखने एवं पढ़ने वालों की संख्या बहुत ही कम है या कहा जा सकता है कि देश में हिन्दी भाषा या अन्य भारतीय भाषाओं को बोलने वाली जनसंख्या का प्रतिशत काफी है। इसके बावजूद ऐसा लगता है कि हिन्दी अपने ही घर में पराई हो गई और सरकार सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को हिन्दी में सरकारी कार्य करने के लिए केवल प्रोत्साहन प्रशिक्षण देकर अपनी जिम्मेदारी से बच रही है, साथ ही सरकारी कार्यालय संविधान, राष्ट्रपति आदेश, राजभाषा अधिनियम, राजभाषा नियम इत्यादि का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं उन पर कोई दंड नहीं लगाया जाता है। जब तक सरकार हिन्दी भाषा को लेकर ठोस योजना बनाने के साथ-साथ दंड का प्रावधान नहीं करती तब तक हिन्दी को उचित स्थान प्राप्त नहीं होगा और करोड़ों-अरबों रुपए की ऐसे ही बर्बादी होती रहेगी जो देश की जनता के कल्याण हेतु खर्च की जा सकती थी।
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हिन्दी को अपने ही घर में संघर्ष करना पड़ रहा है कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ राजनीतिक दलों ने इसको राजनीतिक मुद्दा बना दिया है और वे बिलकुल नहीं चाहते हैं कि पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक देश की जनता भाषायी दृष्टि से एकता के सूत्र में बंधे तथा भारत देश की हिन्दी भाषा को राजकीयभाषा, राजभाषा से बढ़कर राष्ट्रभाषा बनाया जा सके जो देश और देश की जनता का गौरव बन सके। यह भी एक दिलचस्प बात है कि जनता से वोट तो मांगे जाते हैं हिन्दी भाषा या अन्य भारतीय भाषाओं में लेकिन सरकार बनाने के बाद सत्तापक्ष शासन देश की भाषा में न करके अंग्रेजी भाषा की तरफदारी करते हैं जो अन्याय है। इसी प्रकार हिन्दी भाषा या अन्य भारतीय भाषाओं के कारण फिल्मी अभिनेताओं को सफलता व प्रसिद्घि मिलती है लेकिन वे इंटरव्यू अंग्रेजी भाषा में देते हैं, इससे वे क्या सिद्घ करना चाहते हैं? यदि इनको अंग्रेजी भाषा से इतना लगाव है तो उसी भाषा में फिल्म बनाएं फिर देखिए उनकी सफलता व प्रसिद्घि का ग्राफ क्या होता है यह तो वही कहावत चरितार्थ होती है कि खाएं हिन्दी की और गावें अंग्रेजी की। ठीक ऐसे ही देश के कुछ खिलाड़ी भी करते हैं। इन सभी को तो अपना साक्षात्कार हिन्दी भाषा में देने में गौरव महसूस करना चाहिए। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान में 13 सितंबर, 1949 के दिन बहस में भाग लेते हुए तीन प्रमुख बातें कही थीं-
1. किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता है।
2. कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती है।
3. भारत के हित में, भारत को शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो आत्मां को पहचाने, जिसे आत्म विश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिन्दी अपनानी चाहिए।
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तत्पश्चात संविधान ने 14 सितंबर, 1949 को हिन्दी भाषा को संघ की राजभाषा (लिपि-देवनागरी एवं अंकों का रूप अंतरराष्ट्रीय) के रूप में स्वीकार किया था, इसलिए भारत देश में प्रतिवर्ष सितंबर महीने की 14 तारीख को 'हिन्दी दिवस' के रूप में मनाया जाता है और विभिन्न शासकीय, अशासकीय कार्यालयांे, शिक्षा संस्थाओं इत्यादि में विविध संगोष्ठियों, सम्मेलनों, प्रतियोगिताओं तथा अन्य कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। परंतु दु:ख इस बात का है कि ये सभी आयोजन केवल औपचारिकता मात्र बनते जा रहे हैं और जनता की गाढ़ी कमाई इस पर खर्च की जा रही है जो जनता के कल्यांण पर खर्च की जा सकती थी।  हिन्दी भाषा अपने आप में एक समर्थ भाषा है। प्रकृति से यह उदार, ग्रहणशील, सहिष्णु और भारत की राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका है। ध्वन्यात्मकता, वैज्ञानिकता एवं अक्षरात्मकता का गुण हिन्दी भाषा की प्रमुख विशेषताएं हैं। ध्वन्यात्मकता गुण के कारण हिन्दी भाषा को जैसा बोला जाता है वैसा ही लिखा जाता और जैसा लिखा जाता है वैसा ही पढ़ा जाता है। जबकि अंग्रेजी में इस प्रकार की कोई विशेषता नहीं है। इसलिए हिन्दी भाषा को आसानी से सीखा जा सकता है। यदि अंग्रेजी का इतिहास देखें तो हम पाते हैं कि श्री जोन्स द्वारा लिखित अंग्रेजी पुस्तक 'टर्म्स आफ दि इंगलिश लैंग्वेज' के अनुसार सन् 1650 तक अंग्रेजी इंग्लैंड की राजभाषा नहीं थी। अंग्रेजों की मातृभाषा अंग्रेजी होने के बावजूद वहां फ्रेंच एवं लैटिन का बोलबाला था। वस्तुत: 1066 में नार्मन्स के आधिपत्य के बाद इंग्लैंड में शासन का सारा कार्य फ्रेंच एवं लैटिन में होता था क्योंकि नार्मन्स की अपनी भाषा फ्रेंच थी। शासन एवं न्यायालयों की भाषा फ्रेंच थी। कानून फ्रेंच में बनते थे। उच्च शिक्षा का माध्यम लैटिन थी। अंग्रेजी को 1 जनवरी 1363 से प्रशासन की आधिकारिक भाषा बनाया गया था इसके बावजूद इंग्लैंड के वकील, डॉक्टर, नेता आदि लोग फ्रेंच और लैटिन का प्रयोग करते थे और उनका तर्क था कि अंग्रेजी इस लायक नहीं कि चिकित्सा एवं अभियांत्रिकी की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से की जाए। अंग्रेजी को बैरक-लैंग्वेज कहा जाने लगा था। अंग्रेज लोग अंग्रेजी में बात करना पसंद नहीं करते थे। अंग्रेजी की वकालत करने वाले को गंवार समझा जाता था। बाद में अंग्रेजों ने अपने भीतर राष्ट्र प्रेम तथा स्वाभिमान को उद्वेलित किया और उच्च वर्ग का दृष्टिकोण भी अंग्रेजी के प्रति अनुकूल हो गया। इंग्लैंड की संसद में सन् 1650 को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया जिसमें फ्रेंच एवं लैटिन को गुलामी का सबूत कहा गया। ब्रिटेन की संसद ने 22 नवंबर 1650 को निर्णय लिया कि 1 जनवरी 1651 से इंग्लैंड में फ्रेंच एवं लैटिन भाषा में शासकीय या गैर शासकीय कामकाज नहीं होगा और उनकी जगह अंग्रेजी प्रयोग की जाएगी। सरकार ने 38 दिनों के भीतर सारी व्यावस्था कर ली और इस प्रकार अंग्रेजी इंग्लैंड की राष्ट्रभाषा बन गई। कहने का तात्पर्य है कि राष्ट्र प्रेमी अंग्रेजों ने अपने दृढ़ संकल्प से दो विदेशी भाषाओं को देश से बाहर निकाल फेंका तो भारत देश में राष्ट्रप्रेमी भारतीय हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बना पा रहे हैं?
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हिन्दी भाषा के पक्ष में कई विद्वानों जैसे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, रवीन्द्रनाथ टैगोर, भारतेंदु हरिश्चंद्र, स्वामी विवेकानंद इत्यादि ने अपने-अपने मत दिए हैं। फिर ऐसे कौन-से कारण हैं कि जिनकी वजह से आज राजभाषा हिन्दी की यह स्थिति हुई, इस पर चर्चा करने से पहले हम इस बात पर प्रकाश डालना चाहते हैं कि आज किस प्रकार एक सोची-समझी रणनीति के तहत भारत देश में हिन्दी भाषा एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति षड्यंत्र रचा जा रहा है। यदि हम विश्लेषण करें तो पाएंगे कि भारत देश में हिन्दी भाषा एवं अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ाई कराने वाले विद्यालयों की संख्या में कमी आई है जबकि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई कराने वाले विद्यालयों की संख्या में इजाफा हुआ है ऐसा क्यों? ध्यान होगा कि जब अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा का भारत में सबसे पहले समर्थन किया था तो अंग्रेजी पढ़ने वालों को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की थी। आज भी प्रत्येक सरकारी नौकरी में अंग्रेजी विषय का अनिवार्य प्रश्नपत्र होता है जिसमें उत्तीर्ण होना आवश्यक है लेकिन हिन्दी विषय का अनिवार्य प्रश्नपत्र क्यों नहीं होता? सरकार की नीतियों के कारण एवं उच्चपदस्थ अधिकारियों पर सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के कार्यान्वयन को लेकर सरकार का अंकुश न होने के कारण ऐसा घटित हो रहा है। सरकार की नीतियों के कारण ही दिन-प्रतिदिन अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई कराने वाले विद्यालयों की संख्या में इजाफा हो रहा है। मेरा मानना है कि यदि किसी भी नौकरी के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान आवश्यक है तो उस पर अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने का बोझ क्यों डाला जाता है जबकि उसे हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ाई कराते हुए अंग्रेजी भाषा या अन्य किसी अंतरराष्ट्रीय भाषा को एक विषय के रूप में पढ़ाया जा सकता था। विद्यार्थियों को शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जानी चाहिए जबकि ऐसा बिलकुल नहीं हो रहा है और षड्यंत्र के तहत उन पर अंग्रेजी माध्यम जबरदस्ती थोपा जा रहा है जिससे विद्यार्थियों का आधा समय अंग्रेजी समझने में चला जाता है और उन्हें विषय को समझने में बहुत कम समय मिल पाता है। अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा अब केवल रटने वाली शिक्षा हो गई है। आज भी भारत देश के कई विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से प्रदान की जाती है और स्वतंत्रता के इतने वषोंर् के बाद भी सरकार देश की जनता के लिए उच्च शिक्षा हिन्दी भाषा एवं अन्य भारतीय भाषाओं में मुहैया नहीं करा पाई है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।
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अंग्रेजी भाषा को चालाकी से रोजगार से जोड़ दिया गया है इसलिए अंग्रेजी का कद घटने के बजाए बढ़ता जा रहा है हमलोग कितने हिन्दी दिवस, हिन्दी पखवाड़े मनाकर भी हिन्दी भाषा को उचित स्थान नहीं दिलवा सकते हैं। यदि हिन्दी भाषा को रोजगार से जोड़ दिया जाए तो शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो इसे पढ़ना नहीं चाहेगा। अंग्रेजी का कद बढ़ने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि सरकार सारी योजनाएं-नीतियों को उच्च पदस्थ अधिकारियों से अंग्रेजी में तैयार करवाती है ताकि देश की जनता उनकी योजनाओं-नीतियों को आसानी से न समझ सके। बाद में बहुत कम समय में उनका हिन्दी अनुवाद कराया जाता है जिसे समझना कठिन होता है। एक धारणा है कि पहले किसी भाषा को कठिन बताओ और उस पर छींटाकशी करो साथ ही उसका प्रयोग कम करवा दो तो वह भाषा अपने आप मृत हो जाएगी। ठीक ऐसा ही हिन्दी भाषा एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साथ हो रहा है।
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हमारा मानना है कि जब देश की जनता ने चुनकर संसद में भेजा है तो देश के लिए बनाई जाने वाली नीतियां-योजनाएं में हिन्दी भाषा में बनाई जाएं और बाद में अंग्रेजी में अनुवाद करवाया जाए अथवा अंग्रेजी में अनुवाद कराने की कोई जरूरत नहीं है। शुरुआत में थोड़ी दिक्कत होगी बाद में सब ठीक हो जाएगा। मेरा मानना है कि यदि रक्षा मंत्रालय का सारा कामकाज हिन्दी भाषा में किया जाए तो सोने पर सुहागा होगा क्योंकि हमारे देश के अधिकारी एवं सैनिक हिन्दी भाषा को आसानी से समझ सकेंगे और गोपनीयता बनी रहेगी जबकि दूसरे देशों के अधिकारियों एवं सैनिकों के लिए हिन्दी भाषा एक कूट भाषा होगी। आजकल मीडिया द्वारा हिन्दी में अंग्रेजी के शब्दों के भरपूर प्रयोग का प्रचलन जोरों पर है जिससे हिन्दी का काफी नुकसान हो रहा है और जो व्यक्ति हिन्दी भाषा में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करता है उसे योग्य माना जाता है जबकि दूसरी तरफ यदि कोई अंग्रेजी भाषा में हिन्दी के शब्दों को प्रयोग करता है तो उसे गंवार समझा जाता है ऐसा दोहरा मापदंड क्यों? यहाँ एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं कि यदि अंग्रेजी ही विद्वता का मापदंड होता तो अमरीका, ब्रिटेन आदि के सभी नागरिक विद्वान होते और वहां अन्यान्य देशों के प्रतिभाशाली व्यक्तियों की मांग बिलकुल नहीं होती। यह सत्य है कि सारी सृजनात्मकता व्यक्ति की मातृभाषा में ही हो सकती है तो फिर हम सभी अंग्रेजी के पीछे क्यों पड़े हैं? जिस प्रकार परिवार में किसी एक को मुखिया बनाना आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार भारतीय भाषाओं में हिन्दी भाषा को मुखिया बनाकर राष्ट्रभाषा बनाने का मार्ग प्रशस्त कर हम राष्ट्र प्रेमी बनें, जिससे भारत देश को राष्ट्रभाषा मिलेगी जो देश का गौरव होगा और जिस पर देश की जनता को गर्व होगा। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने मातृभाषा की सेवा में अपना जीवन ही नहीं संपूर्ण धन भी अर्पित कर दिया। हिन्दी भाषा की उन्नति उनका मूलमंत्र था-
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान कै मिटै न हिय को शूल॥
और अंत में, भाषा अपनी और अपना देश, यही है गौरव का संदेश। - आनंद कुमार सोनी
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में  सहायक कुलसचिव (राजभाषा) हैं)
Source:panchjany.com

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित