सोमवार, 29 दिसंबर 2014

पाली में संपर्क विभाग का जिला स्तरीय प्रबुद्ध नागरिक सम्मलेन संपन्न

पाली में संपर्क विभाग का जिला स्तरीय प्रबुद्ध नागरिक सम्मलेन संपन्न 

साभार ::राजस्थान पत्रिका


साभार::दैनिक भास्कर


साक्षात्कार मनमोहन जी वैद्य के संग ::- अपनी जड़ों से जुड़ने की स्वाभाविक इच्छा कन्वर्जन नहीं-घर वापसी

साक्षात्कार मनमोहन जी वैद्य के संग 

अपनी जड़ों से जुड़ने की स्वाभाविक इच्छा  कन्वर्जन नहीं-घर वापसी 

साभार : पाञ्चजन्य

 

23 दिसम्बर को संसद के शीतकालीन सत्र का एक पूरा सप्ताह विपक्षी दलों के गतिरोध की भेंट चढ़ गया। इस कारण कई आवश्यक विधेयक सदन के पटल पर नहीं रखे जा सके। कांग्रेस, वामपंथियों और समाजवादी पार्टी सहित सभी सेकुलरवादी दलों ने आगरा में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा 57 परिवारों की घर वापसी को कन्वर्जन बताते हुए कई दिन तक संसद ठप्प रखी। सरकार ने ठोस कन्वर्जन विरोधी कानून बनाने की बात की तो इस पर सभी मौन हो गए। इस बहाने कन्वर्जन चर्चा का विषय बन गया है। इस विषय में पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक सूर्य प्रकाश सेमवाल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-

आगरा में कुछ मुस्लिम परिवारों के अपने मूल हिन्दू धर्म में लौटने को विपक्ष ने कन्वर्जन की संज्ञा दी और नरेन्द्र मोदी की सरकार को घेरने का प्रयत्न किया। इस प्रकरण पर आपका क्या विचार है?

 लोकसभा चुनावों में करारी हार मिलने के बाद से ही विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दा शेष नहीं बचा, इसलिए इस मुद्दे पर अनावश्यक हो-हल्ला मचाया गया। जिन घटनाओं का जिक्र विपक्षी दल या उनके सदस्य संसद में कर रहे हैं, वहां कन्वर्जन की कोई बात ही नहीं है, ये तो समाज जीवन की स्वाभाविक प्रक्रियाएं हैं। अपने मूल के साथ जुड़ने की यह भावना घर वापसी ही है, इससे ज्यादा कुछ नहीं है। जहां तक कन्वर्जन की बात है तो यह देश में लगातार मुसलमानों और ईसाई मिशनरियों द्वारा जारी है किन्तु वोट बैंक के लालची राजनीतिक दल उस पर बात भी करने से परहेज करते हैं। 

 देश के विपक्षी दलों और मीडिया वालों का तर्क है कि संविधान ने प्रत्येक व्यक्ति को आस्था और उपासना की स्वतंत्रता दी है, ऐसे में संघ परिवार के प्रकल्पों विशेषकर विहिप का यह अभियान समाज में विभाजन और देश में धु्रवीकरण की राजनीति को बढ़ाएगा, क्या यह सही है?


संविधान का जानकार ही नहीं भारत देश का सामान्य पढ़ा लिखा नागरिक भी इस बात को जानता है कि अनुच्छेद 25 के अंतर्गत व्यक्तिगत रूप से सभी को अपनी आस्था प्रकट करने या उपासना पद्धति चुनने की स्वतंत्रता है। व्यक्तिगत इच्छा आकांक्षा और मान्यता में संघ कहीं हस्तक्षेप नहीं करता किन्तु बल और छल तथा प्रलोभन से यदि किसी गरीब व्यक्ति को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया जाता है तो संघ की चिन्ता स्वाभाविक है। शंकराचायोंर्, धर्मगुरुओं और साधु संतों की सहमती से 1966 में विश्व हिन्दू परिषद के प्रथम सम्मेलन में मजबूरी में अपना धर्म छोड़ गए बंधुओं का हिन्दू धर्म में स्वागत करने का प्रस्ताव पारित किया गया। आज समाज भी उन अपनों को स्वीकार करने को उत्सुक है। जहां तक विरोध की बात है तो जिस मजहब से उनकी घर वापसी हो रही है वे स्थानीय लोग तो विरोध करेंगे ही क्योंकि बड़े प्रयास से तो वे अपनी संख्या बढ़ाते हैं। लेकिन हम इसे गैरकानूनी प्रक्रिया नहीं मानते।


केन्द्र सरकार ने विपक्ष को सटीक जवाब देते हुए कन्वर्जन के विरुद्ध ठोस कानून बनाने की बात कही, जिस पर विपक्ष चुप हो गया लेकिन फिर वही राग अलापता रहा। संघ ऐसे कानून के विषय में क्या सोचता है?


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज और देश के हित की बात सोचता है, ऐसा ठोस कानून आज नहीं बहुत पहले बनना चाहिए था और 1967 में मध्य प्रदेश और उड़ीसा की सरकारों में राज्य स्तर पर कन्वर्जन के विरुद्ध कानून बनाए थे। इस विषय में मध्य प्रदेश सरकार की ओर से नियोगी समिति भी बनाई गई जिसने व्यापक छानबीन कर यह संस्तुति दी थी कि ईसाई मिशनरियों के द्वारा जो कन्वर्जन किया जा रहा है वह असामाजिक व राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहन देता है। तब केन्द्र में भी कांग्रेस की ही सरकार थी और इन राज्यों में भी। बाद में अभी 5 वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने भी ऐसा कानून बनाया है। लेकिन ये सभी कानून प्रभावी नहीं हैं इस पर ठोस कानून बनना चाहिए। संघ कन्वर्जन के विरुद्ध सरकार से कानून बनाने की मांग तो नहीं कर रहा है लेकिन यदि बनता है तो ऐसे किसी भी प्रभावी कानून का हम समर्थन करेंगे।

सिख और बौद्ध मत में भी हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग जाते हैं, जाते रहे हैं। विपक्ष और मीडिया कहता है कि संघ इस पर भी रोक लगाए। इसे आप कैसे देखते हैं?


हम स्वेच्छा से कन्वर्जन का कोई विरोध नहीं करते, व्यक्ति स्वतंत्र है वह कोई भी मजहब स्वीकारे यह चिन्ता का विषय नहीं है। 


हमारी शाखाओं में और प्रशिक्षण शिविरों में मुस्लिम और ईसाई समुदाय भी स्वयंसेवक आते हैं, संघ अपनी शाखा में आने वाले स्वयंसेवकों का कन्वर्जन नहीं करता। मोहम्मद छागला का यह कथन प्रासंगिक लगता है- By religion I am muslim and by culture I am hindu अर्थात मजहब से मुसलमान होने पर भी सांस्कृतिक रूप से मैं हिन्दू हूं।

केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बहुमत वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद से विपक्षी दल अल्पसंख्यकों की असुरक्षा का शोर मचा रहे हैं जबकि संघ बहुत पहले से अपने स्तर पर अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों के बीच संवाद जारी रखे हुए है, इसके परिणाम कहीं परिलक्षित होते दिखते हैं क्या?


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने दरवाजे बिना जाति-पांति, क्षेत्र और समुदाय की भावना के खुले रखे हैं जो समाज और देश के विषय में निष्ठा से सोचते हैं और कार्य करना चाहते हैं उनका स्वागत है। वैसे भी भारत में पारसी और यहूदी समुदाय इस बात के उदाहरण हैं जिन्होंने उदारतापूर्वक भारतीयता को स्वीकार करते हुए अपने संस्कारों को भी नहीं छोड़ा है। पूर्व सरसंघचालक कुप. सी़ सुदर्शन जी ने एक विजयादशमी उत्सव पर भाषण में मुसलमान और ईसाइयों को आह्वान करते हुए इस्लाम के भारतीयकरण और स्वदेशी चर्च की बात की थी। इसके प्रतिसाद में कई मुस्लिम चिन्तक और धर्मगुरुओं ने संघ के साथ सम्वाद शुरू किया था। यह सम्वाद आज भी जारी है। 

नियोगी आयोग


1967 में मध्य प्रदेश सरकार ने ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों के विषय में एक जांच समिति का गठन किया था। इस आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी थे जो नागपुर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश थे। आयोग ने कन्वर्जन पर कानूनी रूप से रोक लगाने की सिफारिश की थी जिसे लागू नहीं किया गया। आयोग ने कुल 1,360 लोगों से संपर्क किया, 700 अलग-अलग गांव के लोगों से बातचीत की, 375 लिखित आवेदन आये तथा 385 लोगों ने प्रश्नावली का उत्तर दिया। 14 जिलों के अस्पताल, स्कूल, चर्च एवं अन्य संस्थानों का दौरा किया।

1. जिन मिशनरियों का मुख्य उद्देश्य केवल धर्म परिवर्तन है उन्हें वापस जाने को कहा जाए, देश में बहुत संख्या में ईसाई मिशनरियों का आना अवांछनीय है इसकी रोकथाम होनी चाहिए।
2. भारतीय चर्च के लिए प्रथम मार्ग यह है कि वह भारत में संयुक्त ईसाई चर्च की स्थापना करे जो विदेश से आने वाली सहायता पर नजर रखे।
3. ऐसी चिकित्सा संबंधी सेवाओं तथा अन्य सेवाओं को जो धर्म परिवर्तन के काम में लग जाती हों उन्हें कानूनन वर्जित कर देना चाहिए।
4. दबाव, छल कपट, अनुचित भय, आर्थिक या दूसरी प्रकार की सहायता का आश्वासन देकर किसी व्यक्ति की आवश्यकता, मानसिक दुर्बलता तथा मूर्खता का लाभ उठाकर कन्वर्जन के प्रयास को सर्वथा रोक देना चाहिए।
5. सरकार अनाथालयों का संचालन स्वयं करे क्योंकि जिन नाबालिगों के माता-पिता या संरक्षक नहीं हैं उनकी वैधानिक संरक्षक सरकार ही है।
6. धर्म प्रचार के लिए जो भी साहित्य हो बिना सरकार की अनुमति के वितरित नहीं किया जाना चाहए।

साभार : पाँचजन्य

विदेशी कंपनियों को आमंत्रण बंद करो : स्वदेशी जागरण मंच

विदेशी कंपनियों को आमंत्रण बंद करो : 

स्वदेशी जागरण मंच

 

उड़ीसा. स्वदेशी जागरण मंच की 12वीं राष्ट्रीय सभा उड़ीसा के भुवनेश्वर में संपन्न हुई। राष्ट्रीय सभा का आयोजन केआईआईटी संस्थान में किया गया था. सभा का आयोजन 26 से 28 दिसंबर तक कया गया . वक्ताओं ने भारत की अर्थ नीति को देश और जनता के हित में बनाने पर जोर दिया. राष्ट्रीय सभा में चार अहम प्रस्ताव पारित किये गये.

प्रस्ताव एक – बौद्धिक संपदा अधिकारों पर अमेरिकी चेतावनी, मात्र एक दिखावा

विश्व की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बौद्धिक संपदा अधिकारों ने विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत सन् 1995 में ट्रिप्स समझौता होने के पश्चात एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है. अमेरिका की सकल आय का 35 प्रतिशत और यूरोपीय यूनियन की सकल आय का 39 प्रतिशत हिस्सा बौद्धिक सम्पदा आधारित व्यवसायों पर आधारित एवं उनसे प्राप्त होने के कारण अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के लिए यह एक गम्भीर मुद्दा बन गया है. इसलिये पश्चिमी देशों की ओर से भारत सहित अन्य विकासशील देशों पर इन देशों में लागू घरेलू बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों में उनके हित में बदलाव करने का लगातार भारी दबाव है. वर्तमान समय में भारत सरकार द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकार नीति बनाए जाने की प्रक्रिया चलने और देश में लागू पेटेन्ट कानूनों में, विशेषकर निम्न 3 या 4 मुद्दों में भारत सरकार द्वारा बदलाव न किए जाने पर बडी दवा कंपनियों के दबाव में अमेरिका द्वारा आर्थिक प्रतिबन्धों की धमकी के वातावरण में यह मुद्दा अत्यंत संवेदनशील हो गया है -
1. पेटेंट कानून, 1990 की धारा 3३ (डी) जिसके अन्तर्गत नोवार्टिस, स्विट्जरलैंड की औषधि के फर्जी आविष्कार की पेटेंट मान्यता रद्द की गई थी और माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा उक्त प्रावधान को ट्रिप्स समझौते के पूर्ण रूपेण अनुरूप मानते हुए मान्य किया गया था.
2. अनिवार्य लाइसेंसिग से सम्बन्धित प्रावधान, विशेषकर ‘नाटको’ कंपनी को कैन्सर की दवा के उत्पादन की अनुमति दिए जाने के कारण, क्योंकि यह दवा जर्मनी की ‘बेयर’ कंपनी द्वारा अत्यंत महंगे दामों पर बेची जा रही थी.
3. दवाईयों से संबन्धित तथ्यों की गोपनीयता रखने की अवैधानिक मांग जोकि ट्रिप्स समझौते की धारा 39.3 के अन्तर्गत भारत सरकार के औषधि नियंत्रण प्राधिकरण को सार्वजनिक स्वास्थ्य और मानवीयता के आधार पर उक्त दवाईयों के परीक्षण नतीजे भारतीय जेनरिक दवा कम्पनियों के साथ साझा करने से रोकती है.

इन मुद्दों के अलावा भी भारत सरकार को भारतीय पेटेंट कानून के वर्तमान में लागू अन्य प्रावधानों जिसमें पेटेंट दिए जाने से पूर्व विरोध दर्ज करना शामिल है, के संबंध में समझौता नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त, भारत सरकार को ट्रिप्स समझौते के वर्तमान में लागू अनेक अहितकारी प्रावधानों की पूर्ण समीक्षा एवं विश्व व्यापार संगठन के सभी संबन्धित मंचों पर पर्यावरण एवं अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नवीन टैक्नोलोजी की सुगम उपलब्धता पर पुनः चर्चा की मांग करनी चाहिए. हमें शराब आदि उत्पादों से आगे बढ कर दार्जिलिंग चाय, बासमतीचावल, टैक्सटाइल उत्पादों और भारत के बहुत सारे अन्य मूल कृषि उत्पादों की भौगोलिक पहचान के संरक्षण की विशेष मांग करनी चाहिए.

हमें हमारी जैव विविधता, पारम्परिक ज्ञान और लोक गीत के संरक्षण हेतु भी वर्तमान में चल रहे दोहा प्रस्तावों के कार्यान्वयन के दौरान बिना चर्चा में नए बिन्दु जोड़ने की मांग करनी चाहिए. भारत सरकार को नवोन्वेषण हेतु देश के वैज्ञानिकों और कारीगरों को उचित सम्मान देते हुए शोध एवं विकास पर किए जाने वाले सरकारी खर्च को बढाना चाहिए.

प्रस्ताव दो – स्वदेशी मॉडल से ही बचेगी धरती
एकमात्र जीवनपोषी ग्रह पृथ्वी तेजी से विनाश की ओर बढ़ रही है. अगले पचास वर्षों या उससे कम में ही इसका पारिस्थितिक तंत्र नष्ट हो सकता है. जलवायु परिवर्तन पर बनी अंतर्राष्ट्रीय सचेतक संस्था (आई.पी.सी.सी.) ने 27 सितंबर, 2014 को अपनी 50वीं आकलन रिपोर्ट में चेतावनी दे दी है. इस रिपोर्ट के कुछ अंश निम्नवत है -
1) आज वातावरण में पिछले 800,000 वर्षों से अधिक कार्बनडाइआक्साड, मीथेन, नाइट्रस आक्साइड जैसी हरित प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैसें हैं.
2) इन हरित प्रभाव वाली गैसों के सतत् उत्सर्जन से वर्ष 2040 तक 2 डिग्री सेल्सियस वैष्विक ताप वृद्धि क्रांतिक अवरोध (2 डिग्री से. वैरियस) पार हो जायेगा.
3) वर्ष 2050 तक अंटार्कटिका पूर्णतः हिम (बर्फ) रहित हो जायेगा. अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सचेतक संस्था की पांचवीं आकलन आधारित आख्या जो 20-11-14 को प्रकाषित हुई में कहा गया है किः-
क) वर्ष 2070 तक अतिरिक्त कार्बनडाईआक्साइड उत्सर्जन शून्य करना अनिवार्य है.
ख) वर्ष 2100 तक सभी हरित प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैसों का अतिरिक्त उत्सर्जन शून्य होना चाहिए.

जलवायु परिवर्तन के अउत्क्रमणीय (अपरिवर्तनीय), व्यापक एवं गंभीर प्रभावों से बचने के लिए ऐसा परम् आवश्यक है. संयुक्त राज्य (यू.के.) के राज समिति (रॉयल सोसायटी) द्वारा हाल में प्रकाषित एक शोध पत्र में चेतावनी दी गई है कि भारतीय वैश्विक गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग) के परिणामतः 10 गुना अन्यों से अधिक ताप तरंग भुगतेंगे. इन अत्यंत घातक चेतावनियों की हम सर्वनाश के मूल्य पर ही उपेक्षा कर सकते हैं.भक्षण के लिए भेडि़या आप का द्वार खटखटा रहा है. भारत आज प्रत्येक दिन 370 लाख बैरल पेट्रोलियम उत्पाद जला रहा है. विश्व में पेट्रोलियम उत्पादों के खपत वाला भारत चौथा देश है. प्रदूषण उत्पन्न करने में भी इसका यही स्थान है.
इस पृष्ठभूमि में अगले 25 से 30 वर्ष धरा के अस्तित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और जैसा है चलने दो कि नीति संकट को और आगे बढ़ाने का काम करेगी. ऐसे में स्वदेषी जागरण मंच की 12वीं राष्ट्रीय सभा प्रस्ताव करती है कि:-
1. दिसंबर माह में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारत सरकार के पक्ष की सराहना और अनुमोदन करते हैं. सम्मेलन में भारत सरकार ने कहा कि औद्योगीकरण का लाभ पाश्चात्य देशों ने उठाया है. दो शताब्दियों तक प्राकृतिक संसाधनों का उन्होंने दोहन किया तथा अपना ही नहीं हमारा भी पर्यावरण प्रदूषित किया. अब समय है कि भारत जैसे विकासशील देशों को पाश्चात्य देश थोड़ा अवकाश दें
तथा ‘‘पाल्यूटर पेज्’’ सिद्धांत पर विकास हेतु हरित तकनीक उपलब्ध करायें. स्वदेशी जागरण मंच सरकार से यह आग्रह करती है कि वो संयुक्त राष्ट्र के आगामी सम्मेलन में अपने वर्तमान कथन पर दृढ़ रहे.
2. साथ ही भारत सरकार भी अपने विकास नीति में प्रावधान करे कि न्यूनतम प्रदूषणकारी तकनीकों को बढ़ावा मिले तथा जनसाधारण को सौर ऊर्जा जैसे पर्यावरण हितैषी विकल्पों को वरण करने के लिए प्रोत्साहित करे. व्यक्तिगत यातायात साधनों के स्थान पर जन यातायात साधन जैसे विकल्प पर्यावरण संरक्षण में निश्चित मदद करेंगे.
3. स्वदेशी जागरण मंच देश की राष्ट्रभक्त जनता से भी अपील करती है कि पर्यावरणीय संकट की गंभीरता को समझते हुए सरकार के पर्यावरण को बचाने में प्रयासों में न केवल सहयोग करें, बल्कि पर्यावरणीय पोषक जीवन पद्धति जैसे निजी एवं सार्वजनिक स्वच्छता, जल, बिजली, भोजन इत्यादि की न्यूनतम बर्बादी इत्यादि को अपनायें. यदि हम पर्यावरण को बचा पाते हैं तो पर्यावरण हमें बचायेगा. यदि हम इसे नष्ट करते हैं तो ये निश्चित हमें नष्ट कर देगा. चुनाव हमें करना है.

प्रस्ताव तीन – विदेशी कंपनियों को आमंत्रण बंद करो

स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद सभा सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों को आमंत्रण दिये जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त करती है. स्वदेशी जागरण मंच की स्पष्ट मान्यता है कि पिछले दो दशकों से चल रहे भूमंडलीकरण का देश की अर्थव्यवस्था पर विध्वंसकारी प्रभाव पड़ा है. आज देश पर कर्ज जीडीपी का 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जो हमें दुनिया के सबसे अधिक कर्जदार देशों की श्रेणी में खड़ा कर रहा है. सरकार की हालिया रिपोर्ट के अनुसार  52 प्रतिशत ग्रामीण कर्ज में डूब चुके हैं.

स्वदेशी जागरण मंच दिसंबर 2013 तिरूवनंतपुरम के राष्ट्रीय सम्मेलन के प्रस्ताव को दोहराता है कि सरकार विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी पूंजी की सीमाओं को बढ़ाने और विदेशियों को देश में आमंत्रण देने से पहले पिछले दो दशकों से ज्यादा समय से चल रहे विदेशी निवेश के नफे-नुकसान के बारे में एक श्वेत पत्र जारी करे. स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा 280 से ज्यादा संगठनों और संस्थाओं के जयपुर में आयोजित स्वदेशी संगम के घोषणा पत्र का अनुमोदन करती है कि सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ का नारा विदेशी कंपनियों को आमंत्रण सरीखा है. स्वदेशी जागरण मंच की स्पष्ट मान्यता है कि भारत जो पीएसएलवी, अंतरिक्ष उपग्रह, आणविक बम, मिसाईल समेत उत्कृष्ट उत्पादन कर सकता है और जिस देश के लोगों ने अपनी कुशाग्र बुद्धि, कौशल, मेहनत और लगन के लिए दुनिया में अपना लोहा मनवाया है, उस देश की सरकार को देश निर्माण के लिए विदेशियों की और देखने की जरूरत नहीं है.

सरकार केबिनेट द्वारा बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा को वर्तमान 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करना, स्वदेशी जागरण मंच के संघर्ष के परिणामस्वरूप एनडीए एक के उस संकल्प का उल्लंघन है, जिसमें सरकार द्वारा संसद में वचन दिया गया था कि विदेशी निवेश की सीमा को आगे नहीं बढ़ाया जायेगा.
स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि बीमा में विदेशी कंपनियों का आगमन शुभ नहीं रहा है. विदेशी भागीदारी वाली जीवन बीमा कंपनियों में पॉलिसी बंदी और जब्ती अनुपात 50 प्रतिशत और उससे भी ज्यादा होना, साधारण और स्वास्थ्य बीमा में बढ़ते प्रीमियम और घटते क्लेम अनुपात आज मुख्य चिंता का विषय बने हुए हैं. यह खुला सत्य है कि विश्व की प्रमुख बीमा कंपनियां दिवालियेपन के कगार पर हैं, और अमरीकी सरकार की 170 अरब डालर की सहायता के बाद ही दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी एआईजी को डूबने से बचाया जा सका. ऐसी खोखली कंपनियां हमारे देश के बीमा क्षेत्र का क्या भला करेंगी, यह समय के परे है. यही नहीं बीमा और पेंशन फंडों में विदेशी निवेश को बढ़ावा देश की बहुमूल्य बचत पर विदेशी कंपनियों का आधिपत्य जरूर बढ़ा देगा.
सरकार की विदेशी निवेश प्रोत्साहन नीति के कारण, कृषि क्षेत्र में भी अनुबंध पर कृषि के माध्यम से विदेशी कंपनियां प्रवेश कर रही है और उनके कारण जीएम फसलों के नाम पर देश की जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा पर तो संकट है ही, देश की पूरी कृषि व्यवस्था भी ये कंपनियां हस्तगत करने की तैयारी में हैं. स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा, सरकार से मांग करती है कि विदेशी कंपनियों को ई-कॉमर्स में अनुमति न दे और विदेशी कंपनियों द्वारा चोर दरवाजे से व्यापार पर रोक लगाने हेतु नियमों को दुरूस्त करे.

अतः स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा यह मांग करती है कि विदेशी कंपनियों को आमंत्रित करने की मेक इन इंडिया की नीति का परित्याग किया जाए. भारतीय प्रतिभा, कौशल और संसाधनों पर विश्वास करते हुए देश के विकास की रणनीति तैयार हो.

प्रस्ताव चार- खेती में विदेशी प्रभाव समाप्त करो
पूंजी के अभाव, तकनीक विकास का अभाव, परंपरागत, रोजगार की समाप्ति, प्राकृतिक जैविक खेती की समाप्ति ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग के खात्मे तथा पलायन की मार झेल रही भारतीय खेती एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कमर पिछले दस सालों की आर्थिक नीतियों ने और भी तोड़ दी है.

आज खेती, पशुपालन, मत्स्य पालन, वनोत्पाद संकट के दौर से गुजर रहा है. एक तरफ कंपनियों की नजर भारत के प्राकृतिक क्षेत्र की जैवविविधता पर है और खेती का व्यवसायीकरण बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ आधुनिक खेती के कारण भूमि के बंजरीकरण का संकट और ज्यादा बढ़ गया है. विकास के नाम पर बड़ी परियोजनाओं ने पर्यावरण संकट के साथ बड़े पैमाने पर उपजाऊ भूमि में जल-जमाव और दलदल का संकट पैदा किया है. जल, जमीन और जंगल के सवाल गहरे अंतरविरोध को रेखांकित कर रहे हैं. स्वदेशी जागरण मंच की सभा अपील करती है कि जमीन, जल और जंगल के प्रबंधन एवं उपयोग का स्वदेशी मॉडल विकसित किया जाये. खेती के लिए स्वदेश, उन्नत बीजों को विकसित किया जाये. वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून द्वारा छोटे-छोटे गरीब किसानों से भूमि अधिग्रहण किया जाता है. रियल स्टेट एवं विशेष आर्थिक क्षेत्रों के नाम पर किये जा रहे भूमि अधिग्रहण से खेती को भयानक नुकसान हो रहा है. स्वदेशी जागरण मंच का विश्वास है कि किसान, मजदूर, कारीगर और उनसे जुड़े सहायक क्रियाकलाप, स्वदेषी, स्वावलंबी, स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के अलावा बड़े पैमाने पर रोजगार का अवसर प्रदान करते हैं.
भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव किया जाये और भूमि अधिग्रहण कानून की वर्तमान संरचना के वर्तमान कानून तत्काल बदले जाएं. भूमि अधिग्रहण के समय अपवादों को छोड़कर किसी भी परिस्थिति में कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाये. जमीन की मालकीयत का हस्तांतरण नहीं किया जाये और जमीन 30 साल के पट्टे पर दी जाये, किसानों को कारखाने में हिस्सेदार भी बनाया जाये ताकि किसान हिस्सा एवं पट्टे से प्राप्त राश से खेती लायक बन सकें.

कारखाना, परियोजनाओं आदि के लिए बंजर, उसर और अनुपयोगी जमीन का ही उपयोग हो. आधुनिक खेती पद्धति में परिवर्तन लाया जाये. जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाये. ग्रामीण क्षेत्रों कृषि आधारित उद्योग, ग्रामीण, कुटीर उद्योग तथा खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देकर किसानों के लिए सम्मानजनक मूल्य तथा रोजगार के अवसर पैदा किये जायें.

जैव सवंर्द्धित खाद्यानों (जी.एम.) के बीजों के प्रयोग और परीक्षण पर तत्काल रोक लगे. वर्तमान सत्ताधारी दल ने अपने चुनावी घोषाणा पत्र में स्पष्ट कहा था कि कृषि समर्थन मूल्य लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त जोड़कर दिया जायेगा. यह बात स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट में भी कही गई है. उत्पादन मूल्य को समय-समय पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए और समय-समय पर तैयार करना चाहिए. मंच की राष्ट्रीय सभा सरकार से अपील एवं मांग करती है कि चुनावी घोषणा को तत्काल लागू करे.

बड़े पैमाने पर रख-रखाव एवं यातायात की असुविधा के कारण तैयार फसलों की बर्बादी होती है. जिससे किसानों को घाटा होता है. एफडीआई. को खुदरा व्यापार में लाने के पीछे यह कारण भी बताया गया था. किसानों को एफडीआई. की आवश्यकता नहीं है, परंतु उपयुक्त यातायात सुविधा एवं भंडारण की आवश्यकता है. इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त शीतगृह एवं गोदामों की व्यवस्था की जाये. राष्ट्रीय हित में स्थानीय स्तर पर यातायात एवं भंडारण का तंत्र विकसित होना चाहिए.

स्वदेषी जागरण मंच यह मांग करता है कि खेती, खेती आधारित उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, कुटीर उद्योग, घरेलू उद्योग एवं ग्रामीण उद्योग, खादी को मनरेगा के साथ संबद्ध कर उत्पादन व रोजगार को बढ़ावा दे. सरकार को एक सबल, स्वावलंबी, स्वाभिमानी, स्वदेश तथा विकासशील भारत के निर्माण में मदद करेगी तथा एक प्रकार से सामाजिक, आर्थिक क्रांति को जन्म देगा.

देश की अजीब विडंना है कि जहां एक ओर 55 प्रतिशत से ज्यादा लोग खेती में लगे हैं, वहां कोई कृषि नीति ही नहीं है. सरकार भारतीय कृषि नीति अविलंब घोषित करे.

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

कर्तव्यों के प्रति सजग होने पर ही अधिकारों की रक्षा : होसबाले

कर्तव्यों के प्रति सजग होने पर ही अधिकारों की रक्षा : होसबाले

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गोरखपुर. व्यक्ति के चरित्र से ही राष्ट्र के चरित्र का निर्माण होता है. मातृभूमि के प्रति समर्पण भाव का जागरण राष्ट्र की संकल्पना का आधार तत्व है. हमारे अधिकारों की रक्षा तभी संभव है, जब कर्तव्यों के प्रति सजग आचरण हो. ऐसे में समेकित विकास के लिये भारतीय पुरुषार्थ के चार सूत्र धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष स्वयं में एक संदेश देते हैं. यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने व्यक्त किये. वे विश्वविद्यालय के दीक्षा भवन में विश्व संवाद केंद्र व प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित ‘एकात्म मानव दर्शन और उसकी प्रासंगिकता’ विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे.

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उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आर्थिक चरित्र की रूपरेखा राष्ट्रीय जीवन के अनुकूल होनी चाहिये. वर्तमान युग भोगवाद की पीड़ा से ग्रस्त है. जहां केवल अर्थमूलक समाज की कल्पना हावी हो रही है जो व्यापक स्तर पर अमानवीय संघर्षो और शक्ति के दुरुपयोग की कहानी कह रही है. मानव शरीर, मन,बुद्धि और आत्मा का समुच्चय है. ऐसे में उसके सर्वांगीण विकास के लिये एकांगी नहीं समेकित दृष्टि की आवश्यकता है. होसबाले जी ने कहा कि एकात्म मानव दर्शन व्यष्टि से समष्टि में समरसता तथा समन्वय का क्रियान्वयन करता है. त्यागपूर्ण उपभोग की ईशावास्योपनिषद की अवधारणा को धारण करने वाली अर्थव्यवस्था से ही राष्ट्र का कल्याण संभव है और ऐसी अर्थव्यवस्था विकास की वर्तमान अपेक्षाओं की अभिपूर्ति का मार्ग है. एकात्म मानव दर्शन कर्मप्रधान पुरुषार्थ पर बल देता है जो कि त्याग व तपोमयी आचरण पद्धति की सांस्कृतिक विरासत धारण करता है. अंत्योदय तभी संभव है, जब राष्ट्रीय चरित्र की रूपरेखा भोगमयी न होकर योगमयी यानी त्याग की भावना से परिपूर्ण और विकेंद्रित हो.
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विशिष्ट अतिथि पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि एकात्म मानव दर्शन का प्रतिपादन पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने ग्वालियर में हुए जनसंघ अधिवेशन में किया था. भय, भूख और भ्रष्टाचार से ग्रस्त मानवता को एकात्म दर्शन की आज महती आवश्यकता है. प्रो. विनोद सोलंकी ने कहा कि एकात्म मानव दर्शन एक गहन अनुभूति का दर्शन है जो संतुलित विकास के लिये अपरिहार्य है. इसके पूर्व विश्व संवाद केंद्र की वार्षिक पत्रिका ‘पूर्वा संवाद’ तथा जागरण पत्रिका ‘ध्येय मार्ग’ का लोकार्पण भी हुआ. कार्यक्रम का संचालन डॉ. ओम उपाध्याय तथा आभार ज्ञापन प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने किया. प्रश्नोत्तर सत्र में संघ के सह सरकार्यवाह ने भारत को विभिन्न धर्मों का समुच्चय बताते हुए यहां की विविधता में एकता की विशेषता को विशेषत: रेखांकित किया.

केरल में 58 लोग फिर से हिंदू धर्म में लौटे


केरल में 58 लोग फिर से हिंदू धर्म में लौटे

तिरुवनंतपुरम. केरल के कोट्टयम जिले में क्रिसमस के दिन कम से कम 58 लोगों ने पुन: हिंदू धर्म अपना लिया. विश्व हिंदू परिषद की पहल पर दो मंदिरों में जिन लोगों ने घर वापसी की है, उनमें से अधिकतर ईसाई परिवारों के हैं. इनमें से एक व्यक्ति इस्लाम धर्मावलंबी था.

परिषद के जिला अध्यक्ष बालचंद्रन पिल्लै ने कहा कि 20 परिवारों के कम से कम 42 सदस्यों ने पोनकुन्नम के पुथियाकावू देवी मंदिर में फिर से हिंदू धर्म अपनाया. वहीं तिरनकारा के श्रीकृष्ण स्वामी मंदिर में आयोजित एक और समारोह में 16 लोग अपने मूल धर्म में लौटे हैं. 

श्री पिल्लै ने कहा कि धर्मांतरण करने वाले लोग वाइकोम, कुमारक्कम और कांजीरापल्ली के हैं और अपनी इच्छा से हिंदू धर्म में आए हैं. अन्य स्थानों पर भी ऐसे समारोह आयोजित किये जा रहे हैं.
बुधवार को 11 लोगों ने अलप्पुझा जिले में कायमकुलम के पास हिंदू धर्म अपनाया था. साथ ही जिले में 21 दिसंबर को अनुसूचित जाति के आठ परिवारों के 30 लोगों ने धर्म परिवर्तन किया था.
धर्मांतरण के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने बीते दिन कहा था कि इस परिस्थिति में सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है.

गो शिविर संचालकों का प्रशिक्षण वर्ग 27 को

गो शिविर संचालकों का प्रशिक्षण वर्ग 27 को

जैसलमेर । सीमाजन कल्याण समिति द्वारा संचालित किये जा रहे गो शिविरों के संचालकों का एकदिवसीय प्रशिक्षण वर्ग 27 दिसम्बर को किसनघाट स्थित सीमाजन छात्रावास के प्रांगण में आयोजित किया जायेगा। जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक मुरलीधर और समिति के संगठन मंत्री नीम्बसिंह द्वारा संचालकों  का मार्गदर्शन किया जायेगा।


समिति के जिला मंत्री शरद व्यास ने बताया कि आयोजित वर्ग में प्रत्येक गो शिविर केंद्र से दो-दो कार्यकर्ता भाग लेंगे। प्रशिक्षण वर्ग में गो शिविर से संबंधित क्रियाकलापों पर विस्तार से चर्चा की जायेगी। श्री व्यास ने बताया कि वर्तमान में समिति द्वारा राज्य सरकार से अनुदानित 30 गो शिविरों का संचालन किया जा रहा है। जिसमें देवीकोट और रामदेवरा में 2 नंदीशालाओं में 2000 बैलों (नर गोवंश) का संरक्षण किया जा रहा है।

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

भोगवाद से ग्रस्त अर्थमूलक है आज का समाज : होसबले


भोगवाद से ग्रस्त अर्थमूलक है आज का समाज : होसबले
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : मातृभूमि के प्रति समर्पण का भाव राष्ट्र की संकल्पना का आधार तत्व है। राष्ट्रीय आर्थिक चरित्र की रूपरेखा राष्ट्रीय जीवन के अनुकूल होनी चाहिए। वर्तमान युग भोगवाद की पीड़ा से ग्रस्त है जहां केवल अर्थमूलक समाज की कल्पना हावी हो रही है जो व्यापक स्तर पर अमानवीय संघर्षो और शक्ति के दुरुपयोग की कहानी कह रही है। मानव शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का समुच्चय है। ऐसे में उसके सर्वागीण विकास के लिए एकांगी नहीं समेकित दृष्टि की आवश्यकता है।
यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने एकात्म मानव दर्शन की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए। पं.दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानव दर्शन की प्रासंगिकता विषयक इस संगोष्ठी का आयोजन विश्व संवाद केंद्र गोरखपुर और गोरखपुर विवि के प्राचीन इतिहास विभाग की ओर से किया गया था। पं.दीनदयाल के सिद्धांत की चर्चा करते हुए होसबले ने कहा कि व्यक्ति के चरित्र से राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होता है। ऐसे में एकात्म मानव दर्शन व्यष्टि से समष्टि में समरसता तथा समन्वयक का क्रियान्वयन करता है। त्यागपूर्ण उपभोग की ईशावास्योपनिषद की अवधारणा को धारण करने वाली अर्थव्यवस्था से ही राष्ट्र का कल्याण संभव है और ऐसी अर्थव्यवस्था विकास की वर्तमान अपेक्षाओं की अभिपूर्ति का मार्ग है। एकात्म मानव दर्शन कर्मप्रधान पुरुषार्थ पर बल देता है जो कि त्याग तपोमयी आचरण पद्धति की सांस्कृतिक विरासत धारण करता है। अंत्योदय से सर्वोदय तभी संभव है जब राष्ट्रीय चरित्र की रूपरेखा भोगमयी न होकर योगमयी यानी त्याग की भावना से परिपूर्ण और विकेंद्रित हो। हमारे अधिकारों की रक्षा तभी संभव है जब कर्तव्यों का सजग आचरण हो। संगोष्ठी में बतौर विशिष्ट अतिथि पूर्वाचल विवि जौनपुर के पूर्व कुलपति प्रो.यूपी सिंह ने एकात्म मानव दर्शन की व्याख्या करते हुए वर्तमान समय में इसकी जरूरत पर बल दिया। जबकि अंग्रेजी विभाग की प्रो.विनोद सोलंकी ने कहा कि यह दर्शन एक गहन अनुभति का दर्शन है जो संतुलित विकास के लिए अपरिहार्य है। वहीं प्रश्नोत्तरी सत्र में संघ के सह सरकार्यवाह ने भारत को विभिन्न धर्मो का समुच्चय बताते हुए यहां की विविधता में एकता की विशेषता को खासतौर पर रेखांकित किया।
संगोष्ठी में विश्व संवाद केंद्र की वार्षिक पत्रिका पूर्वा संवाद तथा जागरण पत्रिका ध्येय मार्ग का नए शुभंकर के साथ लोकार्पण भी हुआ। संचालन डा.ओमजी उपाध्याय ने किया। इस मौके पर विश्वविद्यालय के शिक्षकों के अलावा संघ के पदाधिकारी, अनेक शिक्षाविद् मौजूद रहे।

(Hindi news from Dainik Jagran, 

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

जाग रहा है हिन्दू समाज : परम पूज्य सरसंघचालक

जाग रहा है हिन्दू समाज : परम पूज्य सरसंघचालक

हमने संकल्प किया है. हिन्दू समाज जब-जब मन से संकल्प करता है, उस संकल्प को अवरुद्ध करने की शक्ति दुनिया में किसी की नहीं होती. क्योंकि हिन्दू समाज का संकल्प सत्य संकल्प होता है. सबका मंगल करने वाला संकल्प होता है. किसी के विरोध में वह संकल्प नहीं होता है.  अपने पवित्र हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति व हिन्दू समाज के संरक्षण तथा उसकी सर्वांगींण उन्नति का वह संकल्प होता है. इतिहास साक्षी है कि जब-जब हिन्दू समाज की उन्नति हुई है, तब-तब सब प्रकार के संत्राषों  से आसमानिया सुलतानी संकटो से त्रस्त दुनिया को सुख-शांति का नया रास्ता मिला है. हम लोगों ने आज जो संक्ल्प लिया है वो सत्य संकल्प है. हम लोग संकल्प करते हैं, उल्टी-सीधी चर्चा करने वाले दुनिया में लोग हैं. उससे अपने मन में शंका नहीं लाना. यहाँ पर हम लोग सम्मलेन कर रहे है. हमारे कार्यकर्तागण हमारे लिये दिग्दर्शन दे रहे हैं. हमारे संतगण हमारे लिये संकल्प दे रहे हैं. उसमें सब के कल्याण की शुद्ध और सत्य भावना है. उस संकल्प के पीछे हम सब लोगों के दृढ़ संकल्प का और बाहुओं के बल का पुरुषार्थ खड़ा है.

हिन्दू समाज जाग रहा है. सज्जनों को हर्षित करने वाली और दुर्जनों को भयकंपित करने वाली बात अब प्रत्यक्ष हो रही है. हम लोगो को उस संकल्प पर पक्का रहना पड़ेगा. प्रत्येक को पक्का रहना पड़ेगा. हमें किसी प्रकार के भय की आवश्यकता नहीं है. किस बात का भय करना है ? हम अपने देश में हैं. हम कहीं दूसरी जगह से यहाँ पर घुस कर नहीं आये, घुसपैठ करके नहीं आये. हम बाहर से यहाँ बसने के लिये भी नहीं आये. हम यहीं पर जन्मे, इसी मिटटी में पले, इसी देश के उत्थान में लगे पूर्वजो के वंशज हैं. यह हमारा देश है. यह हमारा हिन्दू राष्ट्र है. हिन्दू भागेगा नहीं. हिन्दू अपनी भूमि, अपनी जगह छोड़ेगा नहीं. जो कुछ पहले की हमारी निद्रा के कारण गया है, उसको वापस लाने का पुरुषार्थ अब हम करेंगे. संपूर्ण दुनिया की भलाई के लिये हिन्दू जाग रहा है.  उसके जागने से किसी को डरना नहीं चाहिये. डरेंगे वही, जो स्वार्थी होंगे या दुष्ट होंगे और इसलिये हिन्दू समाज के जागरण के विरुद्ध उठने वाली आवाजें केवल उन्हीं लोगों की होतीं हैं, जिनके स्वार्थ को खतरा होता है या जिनकी दुष्टता पर प्रतिबन्ध लगता है.

हिसाब कर ले दुनिया. कभी हिन्दू समाज ने किसी और को दबाने की बात नहीं की है. वह ऐसा आज भी नहीं करता है. इतने अपराध पाकिस्तान करता है, इतने अपराध घुसपैठ करने वाले बंगलादेशियों की तरफ से होते हैं. हिन्दू अभी तक केवल सहता आ रहा है. लेकिन हमारे भगवान सिखाते हैं कि 100 अपराधों के बाद सहन भी मत करो. अब 100 अपराध पूरे हो गये हैं. अब और क्या होना बाकी है? कितना सहन करना है?  केवल हमको सहन नहीं करना पड़ता. इनको तो दुनिया को सहन करना पड़ रहा है और दुनिया के पास उपाय नहीं है.  हमारे पास उपाय है.  हम जानते हैं कि यदि हम खड़े हो जाते हैं तो फिर कोई दुष्ट ताकत, कोई स्वार्थी ताकत हमारी सम्मिलित संगठित शक्ति के सामने खड़ी नहीं रह सकती. लड़ने की बात तो और है.

एक बार अपना वाहन लेकर विष्णु जी कैलाश पर दर्शन के लिये शंकर जी से मिलने गये. शिवजी ने आशीर्वाद दिया, शुभकामनायें दी, दोनों की बात होने लगी. तो शंकर जी के गले में सांप था. उन्होंने देखा विष्णु जी गरुड़ पर बैठे हैं. गरुड़ के आगे सांप रहता नहीं भागता है. लेकिन अब शिवजी के गले में था इसलिये हिम्मत करके बोला, ‘क्यों गरुड़ जी सब हाल-चाल ठीक है ना’. तो गरुड़ जी ने कहा हाल-चाल तब तक ठीक है तब तक तुम शिवजी के गले में हो. जरा भूमि पर उतर आओ फिर हाल-चाल बताता हूँ. अब हिन्दू का यही कहना है कि शिवजी के गले में बैठे हो तब तक तुम्हारा सब कुछ ठीक है. अब जमीन पर उतरने की भूल मत करना. क्योंकि अब हिन्दू जाग रहा है. हिन्दू जागा है. हिन्दू अपनी सुरक्षा कर लेगा. हिन्दू अपनी उन्नति कर लेगा.  इतना ही नहीं दुनिया के सब संत्रस्त लोगों को हिन्दू अभय प्रदान करेगा. सारी दुनिया में सुख-शांति पूर्ण लोकजीवन चलता रहे, ऐसा कल्याणकारक पथ अपने पथ से सारी दुनिया को हिन्दू समाज बताएगा. लाउडस्पीकर पर इतने जोर से मैं बोल रहा हूँ, हमेशा नहीं बोलता. किसके भरोसे बोल रहा हूँ ? आप लोगो के भरोसे बोल रहा हूँ. आप लोगों ने संकल्प लिया है, ये देख कर बोल रहा हूँ. इतनी बड़ी संख्या में यहाँ पर लोग उपस्थित हैं, यह देखकर बोल रहा हूँ. हम इकट्ठा होंगे, हम संकल्प लेंगे, हम उसपर दृढ़ रहेंगे, हम उस संकल्प के योग्य अपने आप को बनायेंगे और मिलकर चलेंगे. केवल हमारा ही नहीं सारी दुनिया के भले लोगो का कल्याण होगा और सारी दुनिया के दुष्ट लोगों को अपना मुंह छिपाने के लिये अँधेरे कोने की तलाश करनी पड़ेगी. ये हमको करना है और ये पूरा होने तक अपने स्वार्थ का विचार नहीं करना. मेरा क्या होगा इससे डरना नहीं. हमारे स्वातंत्र्य योद्धा डरे नहीं. फांसी चढ़ रहे थे खुदीराम बोस. पब्लिक प्लेस में फांसी हो रही थी. सारा जनसमुदाय इकट्ठा हुआ, उसमे उनकी माता भी थी. माता की आँखों में आंसू थे, लेकिन खुदीराम बोस डरे नहीं. खुदीराम बोस ने माता से कहा कि हे माता! धीरज रखो. अभी तो मैं जा रहा हूँ, लेकिन मेरा काम अभी अधूरा पड़ा है. तो नौ महीने में वापिस आना है. तुम्हारे ही उदर में जन्म लूँगा और जन्म लेकर काम पूरा करूँगा. देशभक्त हिन्दू का, सत्यभक्त हिन्दू का ऐसा चरित्र होता है. मेरे नौजवान भाइयो! हमें उस चरित्र का परिचय फिर से देना पड़ेगा. हम केवल अपनी सुरक्षा के लिये नहीं लड़ रहे. केवल अपनी उन्नति के लिये नहीं लड़ रहे. हम तो अगर अपनी उन्नति और सुरक्षा की बलि देकर दुनिया का कल्याण होता है तो वह भी देने को तैयार रहने वाले हैं. दुनिया के कल्याण के लिये हलाहल कालकूट प्रसंग करने वाले शिवजी के हम वंशज हैं. शिवजी ने दुनिया को बचाने के लिये विष पी लिया था. आज दुनिया को बचाने के लिये सम्पूर्ण हिन्दू समाज फिर से अमृतसंजीवनी लेकर खड़ा हो, इसकी आवश्यकता है और इसलिये उस हिन्दू समाज को खड़ा कर रहे हैं. हम सब लोग मिलकर खड़ा कर रहे हैं.

जो भूले-भटके बिछुड़ गये, उनको वापस लायेंगे. हमारे बीच से ही गये हैं. खुद नहीं गये. लोभ, लालच, जबरदस्ती से लूट लिये गये. अब हमसे जो लूट लिये गये, तो चोर पकड़ा गया, उसके पास मेरा माल है. दुनिया जानती है, वो मेरा माल है तो मै उसको वापस लेता हूँ. इसमें क्या बुराई है? पसंद नहीं तो कानून बनाओ. संसद ने कानून बनाने के लिये कहा है. कानून बनाने के लिये तैयार नहीं तो क्या करेंगे ? हमको किसी को बदलना नहीं है. हिन्दू किसी को बदलने में विश्वास नहीं करता. हिन्दू कहता है परिवर्तन अन्दर से होता है. लेकिन हिन्दू को परिवर्तन नहीं करना है तो हिन्दू का भी परिवर्तन नहीं करना चहिये. इस पर हिन्दू आज अड़ा है. खड़ा होगा और अड़ेगा. ये सारे संकल्प अभी इसी क्षण से अपने नित्य आचरण में लाना और उन पर अड़े रहना, खड़े रहना. आज के युग में हिन्दू धर्म के आचरण के लिये उसके प्राथमिक आचरण का यह साल है. उस पहले पायदान पर हम सबको रहना है. इस साल को देना नहीं है. गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान हुआ. आरी से उनको चीरा गया, उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया आरी से. मुंह से एक सिसकारी नहीं निकली दर्द की. गर्दन काटने के बाद लोगों ने देखा रीड़ की हड्डी पर कोई कागज़ लपेटा है. उसपर लिखा था ‘ सर दिया लेकिन सार नहीं दिया’. आज हमको जो करना है उसका सारांश हमने संकल्प रूप में ग्रहण किया है. हम सर दे देंगे सार नहीं देंगे. और सर भी नहीं देंगे सर बचायेंगे.  सर काटने वालों से कटने वालों के सर बचायेंगे. सारी दुनिया को अभय देने वाला अपने आप में स्व-सुरक्षित, जिसकी और टेढ़ी आँख करके देखने की दुनिया के दुष्टों की हिम्मत नहीं होगी, ऐसा हिन्दू हम खड़ा करेंगे और हिन्दू के नाते सम्पूर्ण दुनिया को फिर से एक बार युगानुकूल मानव संस्कृति की दीक्षा देंगे. उस संकल्प के पूरा करने की ओर जाने के लिये ये जो छोटे-छोटे संकल्प आपको दिये हैं, उंनका आचरण शुरू करना, इसी क्षण से प्रारंभ करना. जिसको जितना तुरंत संभव है, उतना अपने रोज के आचरण में लागू करना, क्योंकि इस देश का हिन्दू इस देश के भाग्य के लिये उत्तरदायी है. हम जब कहते हैं कि भारत मेरा देश है तो हम ये नहीं कि कहते हम भारत के मालिक है. हम कहते हैं कि ये मातृभूमि है, मैं उसका पुत्र हूँ. माता के लिये मेरा जन्म है. हम इसके उत्तरदायी हैं.  जितने जल्दी हिन्दू समाज खड़ा हो जायेगा उतने जल्दी भारतभूमि पर बसने वाले हर एक का, वो किसी की भी पूजा करता हो, हर एक कल्याण होगा. और जब तक भारत भूमि में हिन्दू खड़ा नहीं है तब तक किसी का कल्याण नहीं है. क्या है, पाकिस्तान तो भारत भूमि ही है न. ये तो 1947 में कुछ हुआ इसलिये अभी वहां गयी है. परमानेंट थोड़े ही है. लेकिन आप देखिये वहां हिन्दू को खड़ा होने लायक नहीं रखा. उस दिन से आज तक पाक सुख में है या दुःख में? थोडा बहुत हिन्दू भारत में खड़ा है तो भारत पाकिस्तान से ज्यादा सुख में है कि दुःख में? यही है, जो भारत था उसमें हिन्दू जब तक खड़ा है, भारत के सब लोगों का कल्याण है. भारत में हिन्दू अगर उत्तरदायी होकर खड़ा नहीं होता,संगठित होकर खड़ा नहीं होता, शक्तिसंपन्न होकर खड़ा नहीं होता तो भारतवर्ष में रहने वाले प्रत्येक को दुःख का ही सामना करना पड़ेगा. हम अपना दुःख दूर कर रहे हैं, उससे दुनिया का दुःख दूर होने वाला है. ये समझें कि हम खड़े हो रहे हैं. जिनकी स्वार्थ की दूकान बंद होगी, जिनकी दुष्टता चल नहीं सकेगी, वे विरोध करने का थोड़ा-बहुत प्रयास करेंगे. संघर्ष थोड़ा- बहुत होगा. लेकिन संघर्ष करते समय भी हमको पता है कि ये तो हमारा दुष्टों की दुष्टता के विरुद्ध संघर्ष है. स्वार्थी लोगों के स्वार्थ के विरुद्ध संघर्ष है. हम किसी का व्देष नहीं करते. एक राजकुमार को पूछा युद्धविद्या सीखने के बाद कि कितना सीखे हो ? कितने लोगों से लड़ सकते हो ? उसने उत्तर दिया कि मैं लड़ता नहीं हूँ किसी से, मैं किसी से दुश्मनी नहीं करता क्योंकि कोई मेरा दुश्मन नहीं है. लेकिन मैं जानता हूँ कि दुनिया दुष्ट है और उसमें दुश्मनी करने वाले लोग हैं. तो ऐसे दुश्मनों से अपने आप को और अपनी प्रजा को मैं बचा सकता हूँ, इतना लड़ना मैं जानता हूँ. हिन्दू भी इतना लड़ना जानता है और हिन्दू इतना ही लड़ता है, इससे ज्यादा नहीं लड़ता.

हिन्दू के प्रति किसी प्रकार की शंका करने का कोई कारण नहीं. हम हिन्दू हैं, हम हिन्दू रहेंगे और हिंदुत्व के जो काल सुसंगत शाश्वत तत्व हैं, जो सारी दुनिया पर लागू होते हैं, जिनके आधार पर चलने से दुनिया का कल्याण होगा, उन तत्वों को अपने आचरण से हम सारी दुनिया को देने वाला हिन्दुस्थान खड़ा करना चाह रहे हैं. उसको हम खड़ा करके रहेंगे. आज के सम्मलेन का अंतिम वृहत संकल्प यही है. हिन्दुस्थान में परम वैभव संपन्न हिन्दू राष्ट्र और सुखी-सुन्दर मानवता संपन्न दुनिया बनाने वाला विश्व गुरु हिन्दुस्थान, इसको खड़ा करने के लिये हमने संकल्प लिया है ‘प्रारंभिक संकल्प’. हमें उसके आचरण पर पक्का रहना है. देखियेगा ज्यादा समय नहीं लगेगा. यहाँ बैठे हुए जवानों की जवानी पार होने के पहले जो परिवर्तन आप जीवन में चाहते हो, उस परिवर्तन को होता हुआ आप अपनी आँखों से देखोगे. एक शर्त है, आज जो संकल्प आपने लिये उन पर आपको हर कीमत पर पक्का रहना पड़ेगा. इसलिये इन संकल्पों का स्मरण नित्य मन में रखिये और अपना आचरण उस स्मरण के अनुसार कीजिये. एक ही बात मैं आपके सामने रखता हूँ. निर्भय होकर, आश्वस्त होकर अंतिम विजय की आश्वस्ति मन में लेकर हम सब लोग चलना प्रारंभ करें, इतना आह्वान करता हूँ.

(कोलकाता में शनिवार, 21 दिसंबर को विश्व हिन्दू परिषद व्दारा पहली बार आयोजित सार्वजनिक सभा में) 
साभार: vskbharat.com

पाक विस्थापितों को पांच साल तक का लम्बी अवधि का वीजा

पाक विस्थापितों  को पांच साल तक का लम्बी अवधि  का वीजा 

साभार:राजस्थान पत्रिका

मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

 पूजनीय सरसंघचालक त्रिदिवसीय  प्रवास पर दिल्ली   में 

 पूजनीय सरसंघचालक त्रिदिवसीय  प्रवास पर दिल्ली   में

परम पूज्य सरसंघचालक का वनवासी समाज के साथ भावनात्मक एकीकरण पर जोर



परम पूज्य सरसंघचालक का वनवासी समाज के साथ भावनात्मक एकीकरण पर जोर







नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने वनवासी समाज के साथ भावनात्मक एकीकरण को पवित्र राष्ट्रीय कर्तव्य बताते हुए कहा है कि वनवासी बंधु अभाव और असुविधाओं के कारण धर्मांतरण नहीं करते. उन्हें यदि विश्वास हो जाये कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज उनके साथ खड़ा है तो वे ऐसा कदापि नहीं करेंगे.

श्री हरि सत्संग समिति इन्द्रप्रस्थ द्वारा आयोजित वनवासी रक्षा परिवार कुंभ-2014 को संबोधित करते हुए परम पूज्य सरसंघचालक ने जहां नगरों में सभ्यता का विकास हुआ है, वहीं संस्कृति व पर्यावरण का क्षरण हुआ है, लेकिन वनवासी समाज के पास आज भी सम्पूर्ण संसार को मानवता का प्रकाश देने की क्षमता है. उन्होंने कहा कि शस्य श्यामला मातृभूमि पर निवास करने वाले हमारे समृद्ध राष्ट्र का ऐसा स्वभाव बना जिसमें भेदभाव या दूसरो का गला काटने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी बल्कि हजारों वर्षों तक अपने जीवन से सब मानवों को शिक्षा देने का सामर्थ्य दिखाया. हमारी मातृभूमि रेगिस्तानी या पथरीली होती तो संभवत: हम भी स्वार्थी बन जाते. उन्होंने कहा कि हम विविधता को सिर्फ सहते नहीं बल्कि सहज स्वीकार करते हैं.

परम पूज्य ने कहा कि विदेशी दासता के दौरान सुनियोजित तरीके से भ्रम फैलाकर हमारी उदात्त परम्पराओं को विकृत करने का प्रयास  किया गया. इसलिये एक वर्ग को टूटे दर्पण में अपना भग्न चेहरा चेहरा देखने की आदत पड़ गयी है. उन्होंने ऐसे लोगों को उन वनवासी बंधुओं के जीवन को निकट से देखने का प्रयास करना चाहिये, जिनके पास राष्ट्रीय स्वत्व अब भी सुरक्षित है. वे सभ्यता के विकास से वंचित अवश्य हैं, किंतु संस्कृति के रक्षक हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वनबंधुओं को आज अवश्य शहरी समृद्ध समाज की सहायता की आवश्यकता है, लेकिन बाद में वे भी देने वालेबन जायेंगे.

विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक श्री अशोक सिंघल ने कहा कि भय, प्रलोभन एवं दबाव से जिनका धर्मांतरण किया गया है, उनको फिर से गले लगाने की आवश्यकता है. उन्होंने चेतावनी दी कि  इनकी घर वापसी में देरी से समस्यायें, विशेषत: आतंकवाद, और जटिल बनेंगीं. श्री सिघल ने कहा कि लगभग नौ करोड़ वनवासियों और 18 करोड़ अस्पृश्य समाज का पिछले लगातार 150 वर्षों से धर्मांतरण जारी है. ईसाई मिशनरियां सेवा के नाम पर उनके बीच जातीं हैं, परंतु उनका उद्देश्य भोले-भाले समाज को ईसाई बनाना है. उन्होंने कहा कि भारत ही नहीं अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी ये मिशनरियां इसी काम में लगीं हैं. अफ्रीका में सारी भूमि ईसाइयों के कब्जे में चली गई है. उन्होंने कहा कि मोरक्को से लेकर हिंदेशिया तक भूमि हड़पने के यही षडयंत्र इस्लाम भी कर रहा है.

श्री सिंघल ने वनवासी रक्षा परिवार से आशा व्यक्त की कि वह घर-घर में व्याप्त भगवान श्री राम के वनवासी प्रेम को सबसे परिचित करायेगा. उन्होंने लोगों को मुक्त हस्त से वनवासी सेवा प्रकल्पों के लिये दान देने की भी अपील की.

निवृत्त जगद्गुरु शंकराचार्य एवं भारत माता मंदिर हरिद्वार के संस्थापक स्वामी श्री सत्यमित्रानंद जी महाराज ने घर वापसी या प्रत्यावर्तन पर हो रही आलोचना पर सरकार को परामर्श दिया कि वह धैर्यपूर्वक उनकी व्यथा सुनते रहें, शनै:-शनै: उनकी पीड़ा शांत हो जायेगी. इसके पीछे के मनोविज्ञान को समझाते हुए उन्होंने कहा कि जब कोई अपनी पराजय पचा नहीं पाता तब पीड़ा प्रकट होती है.

परम पूज्य स्वामी जी ने उपस्थित श्रोताओं में नारायण का दर्शन करते हुए उन्हें अपने शब्द- पुष्पअर्पित करते हुए कहा कि चींटी से सिंह तक में श्रद्धा रखने वाला हिंदू समाज पेशावर में 132 बच्चों की हत्या करने वोलों की तरह हिंसक नहीं है. उन्होंने वनवासी क्षेत्रों में वनवासी मेलों के आयोजन का परामर्श दिया. दान की अपील के साथ ही उन्होंने अपने उस चेन्नई के एक भक्त द्वारा दी गई क लाख रुपये की धनराशि वनवासी प्रकल्पों के लिये दान दी.

देशभर से बड़ी संख्या में वनवासी क्षेत्रों में काम कर रहे कार्यकर्ताओं, कथाकारों, वनवासी कलाकारों, संघ की भिन्न-भिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों और समाजसेवियों के साथ 5000 वनवासी रक्षा परिवारों सहित लगभग 40 हजार लोगों ने कुंभ में भाग लिया और देश के सर्वांगीण विकास में सुदूर वनों, पहाड़ों तथा सीमांत क्षेत्रों में बसे लोगों के विकास के लिये वनवासी रक्षा परिवार योजना के समर्थन और विस्तार का संकल्प लिया.

पश्चिम बंगाल से आये वनवासी कलारारों ने महिषासुर मर्दिनी की रोमांचक और विलक्षण नृत्यप्रस्तुति दी. भटनागर इण्टरनेशनल स्कूल के छात्रों ने देशभक्ति पर मनमोहक प्रस्तुति से दर्शकों का मनोरंजन किया.

कुंभ के संरक्षक उद्योगपति श्री मनोज अरोड़ा ने परम पूज्य सरसंघचालक को शॉल उड़ाकर परम्परागत सम्मान किया. कुंभ के स्वागताध्यक्ष श्री महेश भागचन्दका स्वागत संदेश दिया तथा स्वामी सत्यमित्रनंदजी व श्री अशोक सिंघल का अभिनंदन किया. कार्यक्रम का कुशल संचालन  श्रीमती मोनिका अरोड़ा ने किया. संयोजक श्री मुरारी लाल अग्रवाला ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

वनवासी रक्षा परिवार कुंभ 2014 की प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री श्री चम्पत राय जी ने कहा कि वनवासी क्षेत्रों की चुनौतियों, वहां की विशिष्ट सामाजिक, सांस्कृतिक व प्राकृतिक विरासत और समिति के कार्यों के बारे में नगरीय समाज को जागरूक करके ही वनबंधुओं के लिये साधन और सहयोग के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है. उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह प्रदर्शनी 20 हजार ग्रामों के संस्कार केन्द्र संचालन के लक्ष्य को प्राप्त करने तथा वनबंधुओं के विकास की योजना को और मुखरित तरीके से प्रस्तुत करने में सहायक होगी. उन्होंने संतोष व्यक्त करते यह भी कहा कि 25 वर्ष से पूर्व एकल विद्यालय की योजना के बारे में कोई सोच नहीं सकता था कि यह ऐसे वट-वृक्ष का रूप ले लेगी.

विश्व संवाद केंद्र जोधपुर के जनवरी से अभी तक के चित्रों का संग्रह गूगल प्लस द्वारा आपके लिए

रविवार, 21 दिसंबर 2014

मतांतरण पर बेजा शोर

मतांतरण पर बेजा शोर


आगरा में हुए कथित मतांतरण को लेकर मीडिया और संसद में कोहराम मचा है. मतांतरण की इस घटना पर गुस्सा क्या महज मतांतरण अभियान के कारण है या मतांतरण करने वाले और मतांतरित होने वालों के मजहब के कारण है? यदि मतांतरित होने वाले दलित समाज के होते और वे इस्लाम या ईसाइयत में मतांतरित होते तो क्या स्वयंभू सेक्युलरिस्टों की यही प्रतिक्रिया होती? अभी मध्य प्रदेश के रतलाम में ईसाई समाज की चंगाई सभा में वनवासियों (आदिवासियों) के मतांतरण कराये जाने का समाचार प्रकाशित हुआ है. इन वनवासियों को बीमारियों के इलाज और नौकरी का प्रलोभन दिया गया था. इस घटना पर खामोशी क्यों? आगरा में हुई घटना में लालच या प्रलोभन के बल पर मतांतरण हुआ या नहीं, इसका निर्णय न तो संसद और न ही मीडिया कर सकता है. अंततोगत्वा इसका फैसला तो न्यायालय को करना होगा और सभ्य समाज को उसके निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिये. किसी नागरिक को लालच, डर या धोखे से मतांतरित करना दंडनीय अपराध होना ही चाहिये. कोई व्यक्ति अपने विवेक और स्वेच्छा से उपासना पद्धति बदलता है तो उस पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती. यह दूसरी बात है कि अधिकांश इस्लामी देशों में स्वेच्छा से इस्लाम छोड़ने की सजा मृत्युदंड है. क्या एक सभ्य समाज स्वयं के मजहब के प्रचार के नाम पर दूसरों के मजहब की निंदा कर, प्रलोभन दे या भय दिखाकर उनका मतांतरण करना स्वीकार कर सकता है?

भारत की कालजयी सनातनी मजहबी परंपरा सदियों से भय, लालच और धोखे की शिकार रही है. अंग्रेजों के सत्ता में आने के बाद ईसाई मिशनरियों ने हिंदुओं की आस्था का जहां मखौल उड़ाया वहीं उनके मानबिंदुओं पर भी चोट की. इस बीमारी का संज्ञान गांधीजी ने बहुत गंभीरता से लिया था. अपनी आत्मकथा में गांधीजी ने लिखा है, ”उन दिनों ईसाई मिशनरी लोग हाईस्कूल के पास एक नुक्कड़ पर खड़े हो जाते थे और हिंदुओं तथा देवी-देवताओं पर गालियां उड़ेलते हुए अपने पंथ का प्रचार करते…मैंने यह भी सुना कि नया ‘कन्वर्ट’ अपने पूर्वजों के धर्म को, उनके रहन-सहन को तथा उनके देश को गालियां देने लगा है. इन सबसे मुझमें ईसाइयत के प्रति नापसंदगी पैदा हो गई.” गांधी जी का मानना था कि भारत में ईसाइयत अराष्ट्रीयता का पर्याय बन गई है. गांधीजी से मई, 1935 में एक मिशनरी नर्स ने भेंट वार्ता में पूछा कि क्या आप मतांतरण के लिये मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगाना चाहते हैं तो जवाब में गांधीजी ने कहा था, ‘अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं तो मैं मतांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूं. मिशनरियों के प्रवेश से उन हिंदू परिवारों में, जहां मिशनरी पैठे हैं, वेषभूषा, रीति-रिवाज और खानपान तक में अंतर आ गया है.”

इस्लाम के साथ भी भारत का ऐसा ही कटु अनुभव है. 711 ई. में मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद से इस्लामी आक्रांताओं ने तलवार के भय से और हिंदुओं के पूजा स्थलों को ध्वस्त करके उनका मतांतरण किया. उस बर्बर दौर का विस्तृत वर्णन मुस्लिम काल के इतिहासकारों की लेखनी से उपलब्ध है. वास्तव में देखा जाये तो भारतीय उपमहाद्वीप में मतांतरण एकतरफा है. सनातन संस्कृति में हर व्यक्ति को अपनी मान्यताओं के अनुसार जीवन जीने का अधिकार है और यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है. इसका लाभ उठाकर हिंदू समाज के कमजोर भाग को इस्लाम और ईसाइयत जैसे संगठित पंथ निगलने का प्रयास करते हैं. स्वामी दयानंद सरस्वती के काल से हिंदू समाज ने ‘शुद्धि’ के माध्यम से इस्लाम और मिशनरी समाज की नकल करने की कोशिश की है, किंतु चूंकि हिंदू चिंतन में इसका आधार नहीं है इसलिये ज्यादा सफलता नहीं मिली. हाल की घटना में भी शोर अधिक है, किंतु उसके ठोस परिणाम सामने नहीं आये हैं.

आगरा के बहाने संघ परिवार पर देश में हिंदुत्व एजेंडा थोपने का आरोप हास्यास्पद और तर्कहीन है. भारतीय उपमहाद्वीप में सन् 1941 में हिंदू धर्मावलंबियों का अनुपात 84.4 प्रतिशत था. आज आंकड़े क्या हैं? भारत की आबादी 120 करोड़ है. पाकिस्तान और बांग्लादेश की आबादी 20-20 करोड़ अर्थात् इन तीनों देशों की कुल आबादी 160 करोड़ है. भारत की आबादी में आज 80 प्रतिशत हिंदू होने का अर्थ हुआ कि यहां 96 करोड़ हिंदू आबादी है. पाकिस्तान और बांग्लादेश की करीब दो करोड़ हिंदू-सिख आबादी को मिला दें तो आज इन तीनों देशों में कुल 98 करोड़ हिंदू हैं, जो 160 करोड़ की आबादी का 61.25 प्रतिशत है. यदि हिंदुओं का अनुपात 1941 के आंकड़ों के अनुसार बना रहता तो आज इन तीनों देशों में हिंदुओं की कुल आबादी 135 करोड़ होनी चाहिए थी. बाकी के 37 करोड़ लोग कहां गये? स्वाभाविक है कि या तो उन्हें मार दिया गया या उनका जबरन मतांतरण किया गया.

इसके विपरीत उत्तर प्रदेश, बिहार-झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम के सीमावर्ती पट्टी में सन् 1951 में मुसलमानों का अनुपात 20.49 प्रतिशत था, अब यह 29 प्रतिशत है. राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो हिंदुओं की प्रतिशत जनसंख्या में जहां निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है, वहीं मुसलमान और ईसाइयों के मामले में लगातार वृद्धि के आंकड़े हैं. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी मिशनरियों की गतिविधियां चलती रहीं. इसकी जांच के लिये मध्य प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल ने 14 अप्रैल, 1955 को पूर्व न्यायाधीश डॉ. भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी. 1982 में तमिलनाडु में वेणुगोपाल आयोग, 1989 में उड़ीसा में वाधवा आयोग गठित हुआ. इन सबने मिशनरियों द्वारा कराए गये मतांतरण को अवैध बताते हुए कानून बनाने की संस्तुति की. मध्य प्रदेश और उड़ीसा की प्रांतीय सरकारों ने छल-फरेब और प्रलोभन के बल पर होने वाले मतांतरण के विरुद्ध कानून बनाये. वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में मतांतरण विरोधी कानून हैं. आज आवश्यकता इस बात की है कि झूठ-फरेब, प्रलोभन और बलात् मतांतरण के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कठोर कानून बनाया जाये. जिन लोगों (या जिनके पूर्वजों) का शर्मनाक तरीकों से मतांतरण किया गया उन्हें वापस अपने पुरखों के मत में लौटने की स्वतंत्रता होनी चाहिये. संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ऐसा विचार राष्ट्र के सामने रखा है. देखना यह है कि आगरा की घटना पर हाय-तौबा मचाने वालों की इस सुझाव के प्रति क्या प्रतिक्रिया रहती है?

(लेखक बलबीर पुंज, भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं)
Source: vskbharat.com

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

प्रदेश संगठन मंत्री ने गो शिविरों का निरीक्षण किया



                         प्रदेश संगठन मंत्री ने गो शिविरों का निरीक्षण किया
 
गौ शिविर के निरीक्षण करते और गोपालकों से चर्चा करते सीमाजन कल्याण समिति के प्रदेश संग़ठन  मंत्री

जैसलमेर । सीमाजन कल्याण समिति के प्रदेश संगठन मंत्री नीम्बसिंह ने जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में समिति द्वारा संचालित किये जा रहे गो शिविरों का निरीक्षण किया और संचालकों को आवश्यक दिशा निर्देश दिये।

नीम्बसिंह ने जिले के मिठड़ाऊ, म्याजलार, बींजराज का तला, पोछीना, करड़ा, मसूरिया, देवीकोट, बोगनियाई, मोढ़ा, रणधा, लखा, केसरसिंह का तला, फुलिया, बैरसियाला, काठा, धाणेली और खुहड़ी में संचालित शिविरों का निरीक्षण करते हुए व्यवस्थाओं की जांच की। उन्हांेने ग्रामीणों से कहा कि वे गो शिविर स्थलों की साफ सफाई का पूरा ख्याल रखें। साथ ही गायों में किसी तरह की छोटी-बड़ी बीमारी की जानकारी मिलने पर तुरंत पशु चिकित्सक को सूचित करें।

 प्रदेश संगठन मंत्री नीम्बसिंह ने  गो शिविर पर साइन बोर्ड लगाने के लिए भी शिविर संचालकों से अनुरोध किया। उन्हांेने ग्रामीणों से बातचीत में कहा कि अकाल के मौजूदा हालात में गोधन सर्वाधिक प्रभावित है। गोधन को इस मुश्किल घड़ी से उबारने में प्रत्येक जन को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। नीम्बसिंह ने गो सेवा को सबसे बड़ी सेवा बताया।

कई गांवों में ग्रामीणों ने सीमाजन के प्रदेश संगठन मंत्री को बताया कि गांव में पेयजल की आपूर्ति के साथ बिजली आपूर्ति की समस्या विद्यमान है। इस मौके पर समिति के जिलाध्यक्ष अलसगिरी तथा डाॅ. विरेन्द्रसिंह बैरसियाला उनके साथ थे।

गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

अकाल में चीत्कार करती गोमाता को बचाएं: प्रतापपुरी



अकाल में चीत्कार करती गोमाता को बचाएं: प्रतापपुरी




गौ सरंक्षण बैठक को सम्बोधित करते हुए

गौ सरंक्षण बैठक का इक दृश्य

जैसलमेर । तारातरा मठ के स्वामी प्रतापपुरी महाराज ने स्थानीय जनसेवा समिति के सभागार में आयोजित  प्रबुद्ध नागरिकों की बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि हिंदू संस्कृति गाय पर टिकी है। हमारे सारे रीति-रिवाज और जीवन से मृत्यु तक के सभी 16 संस्कार गाय के बिना अधूरे हैं परंतु अकाल जैसी विषम परिस्थितियों में पशुपालकों के लिए यह ‘धण’ अब ‘ढोर’ बनने लगा है।

उन्होंने  अकाल में चीत्कार कर रही गो माता के संरक्षण के कार्य में जुटी सीमाजन कल्याण समिति के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि गाय का समाज और विज्ञान में महत्व सार्वभौमिक है इसलिए इसे केवल अर्थ से नहीं जोड़ना चाहिए। गाय की सेवा करने से रोग और क्लेश हमसे दूर रहते हैं। समाज के सभी वर्गों को इस अकाल की घड़ी में काल का ग्रास बन रहे गोवंश को बचाने के लिए आगे आना चाहिए।

जैसलमेर के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों में सीमाजन कल्याण समिति द्वारा संचालित गो शिविरों के मार्गदर्शक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक बाबूलाल ने कहा कि हम संपूर्ण मानव समाज के साथ प्राणियों की रक्षा के लिए चिन्ता करने वाले हैं। गोचर और ओरण की जमीन हमारे यहां रखी जाती है ताकि पशुओं का स्वतंत्र विचरण और संरक्षण हो सके।

जैसलमेर-बाड़मेर के सीमावर्ती गांवों में गोवंश चारे-पानी के संकट से गुजर रहा है। हमने सरकारी अनुदान के बिना ही प्रभावित क्षेत्रों में चारा डिपो शुरू कर दिये थे। इन दिनों जिले में 30 गो शिविरों में 7600 गोवंश का संरक्षण किया जा रहा है। रामदेवरा और देवीकोट में असहाय नर गोवंश (बैलों) को रखा जा रहा हे ताकि सर्दी के प्रकोप का शिकार होने और बूचड़खानों में जाने से उन्हें रोका जा सके।

सीमाजन कल्याण समिति के प्रदेश संगठन मंत्री नीम्बसिंह ने अतिथियों का परिचय करवाया। संघ के विभाग संघचालक डाॅ. दाऊलाल शर्मा ने उपस्थित प्रबुद्धजनों से गोवंश को बचाने के लिए चल रहे इस महायज्ञ में अर्थ की आहुति देने का अनुरोध किया। इस अवसर पर मंच पर सीमाजन कल्याण समिति के जिलाध्यक्ष अलसगिरी उपस्थित थे। संरक्षक मुरलीधर खत्री ने आभार जताया। मंच संचालन भगवतदान रतनू ने किया।

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित