विदेशी कंपनियों को आमंत्रण बंद करो :
स्वदेशी जागरण मंच
उड़ीसा. स्वदेशी जागरण मंच की 12वीं राष्ट्रीय सभा उड़ीसा के भुवनेश्वर
में संपन्न हुई। राष्ट्रीय सभा का आयोजन केआईआईटी संस्थान में किया गया था.
सभा का आयोजन 26 से 28 दिसंबर तक कया गया . वक्ताओं ने भारत की अर्थ नीति
को देश और जनता के हित में बनाने पर जोर दिया. राष्ट्रीय सभा में चार अहम
प्रस्ताव पारित किये गये.
प्रस्ताव एक – बौद्धिक संपदा अधिकारों पर अमेरिकी चेतावनी, मात्र एक दिखावा
विश्व की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बौद्धिक संपदा अधिकारों ने
विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत सन् 1995 में ट्रिप्स समझौता होने के
पश्चात एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है. अमेरिका की सकल आय का 35
प्रतिशत और यूरोपीय यूनियन की सकल आय का 39 प्रतिशत हिस्सा बौद्धिक सम्पदा
आधारित व्यवसायों पर आधारित एवं उनसे प्राप्त होने के कारण अमेरिका और
यूरोपीय यूनियन के लिए यह एक गम्भीर मुद्दा बन गया है. इसलिये पश्चिमी
देशों की ओर से भारत सहित अन्य विकासशील देशों पर इन देशों में लागू घरेलू
बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों में उनके हित में बदलाव करने का लगातार भारी
दबाव है. वर्तमान समय में भारत सरकार द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकार नीति
बनाए जाने की प्रक्रिया चलने और देश में लागू पेटेन्ट कानूनों में, विशेषकर
निम्न 3 या 4 मुद्दों में भारत सरकार द्वारा बदलाव न किए जाने पर बडी दवा
कंपनियों के दबाव में अमेरिका द्वारा आर्थिक प्रतिबन्धों की धमकी के
वातावरण में यह मुद्दा अत्यंत संवेदनशील हो गया है -
1. पेटेंट कानून, 1990 की धारा 3३ (डी) जिसके अन्तर्गत नोवार्टिस,
स्विट्जरलैंड की औषधि के फर्जी आविष्कार की पेटेंट मान्यता रद्द की गई थी
और माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा उक्त प्रावधान को ट्रिप्स समझौते के
पूर्ण रूपेण अनुरूप मानते हुए मान्य किया गया था.
2. अनिवार्य लाइसेंसिग से सम्बन्धित प्रावधान, विशेषकर ‘नाटको’ कंपनी को
कैन्सर की दवा के उत्पादन की अनुमति दिए जाने के कारण, क्योंकि यह दवा
जर्मनी की ‘बेयर’ कंपनी द्वारा अत्यंत महंगे दामों पर बेची जा रही थी.
3. दवाईयों से संबन्धित तथ्यों की गोपनीयता रखने की अवैधानिक मांग जोकि
ट्रिप्स समझौते की धारा 39.3 के अन्तर्गत भारत सरकार के औषधि नियंत्रण
प्राधिकरण को सार्वजनिक स्वास्थ्य और मानवीयता के आधार पर उक्त दवाईयों के
परीक्षण नतीजे भारतीय जेनरिक दवा कम्पनियों के साथ साझा करने से रोकती है.
इन मुद्दों के अलावा भी भारत सरकार को भारतीय पेटेंट कानून के वर्तमान
में लागू अन्य प्रावधानों जिसमें पेटेंट दिए जाने से पूर्व विरोध दर्ज करना
शामिल है, के संबंध में समझौता नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त, भारत
सरकार को ट्रिप्स समझौते के वर्तमान में लागू अनेक अहितकारी प्रावधानों की
पूर्ण समीक्षा एवं विश्व व्यापार संगठन के सभी संबन्धित मंचों पर पर्यावरण
एवं अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नवीन टैक्नोलोजी की सुगम उपलब्धता पर
पुनः चर्चा की मांग करनी चाहिए. हमें शराब आदि उत्पादों से आगे बढ कर
दार्जिलिंग चाय, बासमतीचावल, टैक्सटाइल उत्पादों और भारत के बहुत सारे अन्य
मूल कृषि उत्पादों की भौगोलिक पहचान के संरक्षण की विशेष मांग करनी चाहिए.
हमें हमारी जैव विविधता, पारम्परिक ज्ञान और लोक गीत के संरक्षण हेतु भी
वर्तमान में चल रहे दोहा प्रस्तावों के कार्यान्वयन के दौरान बिना चर्चा
में नए बिन्दु जोड़ने की मांग करनी चाहिए. भारत सरकार को नवोन्वेषण हेतु
देश के वैज्ञानिकों और कारीगरों को उचित सम्मान देते हुए शोध एवं विकास पर
किए जाने वाले सरकारी खर्च को बढाना चाहिए.
प्रस्ताव दो – स्वदेशी मॉडल से ही बचेगी धरती
एकमात्र जीवनपोषी ग्रह पृथ्वी तेजी से विनाश की ओर बढ़ रही है. अगले
पचास वर्षों या उससे कम में ही इसका पारिस्थितिक तंत्र नष्ट हो सकता है.
जलवायु परिवर्तन पर बनी अंतर्राष्ट्रीय सचेतक संस्था (आई.पी.सी.सी.) ने 27
सितंबर, 2014 को अपनी 50वीं आकलन रिपोर्ट में चेतावनी दे दी है. इस रिपोर्ट
के कुछ अंश निम्नवत है -
1) आज वातावरण में पिछले 800,000 वर्षों से अधिक कार्बनडाइआक्साड,
मीथेन, नाइट्रस आक्साइड जैसी हरित प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैसें हैं.
2) इन हरित प्रभाव वाली गैसों के सतत् उत्सर्जन से वर्ष 2040 तक 2
डिग्री सेल्सियस वैष्विक ताप वृद्धि क्रांतिक अवरोध (2 डिग्री से. वैरियस)
पार हो जायेगा.
3) वर्ष 2050 तक अंटार्कटिका पूर्णतः हिम (बर्फ) रहित हो जायेगा.
अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सचेतक संस्था की पांचवीं आकलन आधारित
आख्या जो 20-11-14 को प्रकाषित हुई में कहा गया है किः-
क) वर्ष 2070 तक अतिरिक्त कार्बनडाईआक्साइड उत्सर्जन शून्य करना अनिवार्य है.
ख) वर्ष 2100 तक सभी हरित प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैसों का अतिरिक्त उत्सर्जन शून्य होना चाहिए.
ख) वर्ष 2100 तक सभी हरित प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैसों का अतिरिक्त उत्सर्जन शून्य होना चाहिए.
जलवायु परिवर्तन के अउत्क्रमणीय (अपरिवर्तनीय), व्यापक एवं गंभीर
प्रभावों से बचने के लिए ऐसा परम् आवश्यक है. संयुक्त राज्य (यू.के.) के
राज समिति (रॉयल सोसायटी) द्वारा हाल में प्रकाषित एक शोध पत्र में चेतावनी
दी गई है कि भारतीय वैश्विक गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग) के परिणामतः 10 गुना
अन्यों से अधिक ताप तरंग भुगतेंगे. इन अत्यंत घातक चेतावनियों की हम
सर्वनाश के मूल्य पर ही उपेक्षा कर सकते हैं.भक्षण के लिए भेडि़या आप का
द्वार खटखटा रहा है. भारत आज प्रत्येक दिन 370 लाख बैरल पेट्रोलियम उत्पाद
जला रहा है. विश्व में पेट्रोलियम उत्पादों के खपत वाला भारत चौथा देश है.
प्रदूषण उत्पन्न करने में भी इसका यही स्थान है.
इस पृष्ठभूमि में अगले 25 से 30 वर्ष धरा के अस्तित्व के लिए अत्यंत
महत्वपूर्ण है, और जैसा है चलने दो कि नीति संकट को और आगे बढ़ाने का काम
करेगी. ऐसे में स्वदेषी जागरण मंच की 12वीं राष्ट्रीय सभा प्रस्ताव करती है
कि:-
1. दिसंबर माह में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारत सरकार के पक्ष की
सराहना और अनुमोदन करते हैं. सम्मेलन में भारत सरकार ने कहा कि औद्योगीकरण
का लाभ पाश्चात्य देशों ने उठाया है. दो शताब्दियों तक प्राकृतिक संसाधनों
का उन्होंने दोहन किया तथा अपना ही नहीं हमारा भी पर्यावरण प्रदूषित किया.
अब समय है कि भारत जैसे विकासशील देशों को पाश्चात्य देश थोड़ा अवकाश दें
तथा ‘‘पाल्यूटर पेज्’’ सिद्धांत पर विकास हेतु हरित तकनीक उपलब्ध
करायें. स्वदेशी जागरण मंच सरकार से यह आग्रह करती है कि वो संयुक्त
राष्ट्र के आगामी सम्मेलन में अपने वर्तमान कथन पर दृढ़ रहे.
2. साथ ही भारत सरकार भी अपने विकास नीति में प्रावधान करे कि न्यूनतम
प्रदूषणकारी तकनीकों को बढ़ावा मिले तथा जनसाधारण को सौर ऊर्जा जैसे
पर्यावरण हितैषी विकल्पों को वरण करने के लिए प्रोत्साहित करे. व्यक्तिगत
यातायात साधनों के स्थान पर जन यातायात साधन जैसे विकल्प पर्यावरण संरक्षण
में निश्चित मदद करेंगे.
3. स्वदेशी जागरण मंच देश की राष्ट्रभक्त जनता से भी अपील करती है कि
पर्यावरणीय संकट की गंभीरता को समझते हुए सरकार के पर्यावरण को बचाने में
प्रयासों में न केवल सहयोग करें, बल्कि पर्यावरणीय पोषक जीवन पद्धति जैसे
निजी एवं सार्वजनिक स्वच्छता, जल, बिजली, भोजन इत्यादि की न्यूनतम बर्बादी
इत्यादि को अपनायें. यदि हम पर्यावरण को बचा पाते हैं तो पर्यावरण हमें
बचायेगा. यदि हम इसे नष्ट करते हैं तो ये निश्चित हमें नष्ट कर देगा. चुनाव
हमें करना है.
प्रस्ताव तीन – विदेशी कंपनियों को आमंत्रण बंद करो
स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद सभा सरकार द्वारा विभिन्न
क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों को आमंत्रण दिये जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त
करती है. स्वदेशी जागरण मंच की स्पष्ट मान्यता है कि पिछले दो दशकों से चल
रहे भूमंडलीकरण का देश की अर्थव्यवस्था पर विध्वंसकारी प्रभाव पड़ा है. आज
देश पर कर्ज जीडीपी का 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जो हमें दुनिया के
सबसे अधिक कर्जदार देशों की श्रेणी में खड़ा कर रहा है. सरकार की हालिया
रिपोर्ट के अनुसार 52 प्रतिशत ग्रामीण कर्ज में डूब चुके हैं.
स्वदेशी जागरण मंच दिसंबर 2013 तिरूवनंतपुरम के राष्ट्रीय सम्मेलन के
प्रस्ताव को दोहराता है कि सरकार विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी पूंजी की
सीमाओं को बढ़ाने और विदेशियों को देश में आमंत्रण देने से पहले पिछले दो
दशकों से ज्यादा समय से चल रहे विदेशी निवेश के नफे-नुकसान के बारे में एक
श्वेत पत्र जारी करे. स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा 280 से ज्यादा
संगठनों और संस्थाओं के जयपुर में आयोजित स्वदेशी संगम के घोषणा पत्र का
अनुमोदन करती है कि सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ का नारा विदेशी कंपनियों को
आमंत्रण सरीखा है. स्वदेशी जागरण मंच की स्पष्ट मान्यता है कि भारत जो पीएसएलवी, अंतरिक्ष उपग्रह, आणविक बम, मिसाईल समेत उत्कृष्ट उत्पादन कर
सकता है और जिस देश के लोगों ने अपनी कुशाग्र बुद्धि, कौशल, मेहनत और लगन
के लिए दुनिया में अपना लोहा मनवाया है, उस देश की सरकार को देश निर्माण के
लिए विदेशियों की और देखने की जरूरत नहीं है.
सरकार केबिनेट द्वारा बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा को
वर्तमान 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करना, स्वदेशी जागरण मंच के
संघर्ष के परिणामस्वरूप एनडीए एक के उस संकल्प का उल्लंघन है, जिसमें सरकार
द्वारा संसद में वचन दिया गया था कि विदेशी निवेश की सीमा को आगे नहीं
बढ़ाया जायेगा.
स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि बीमा में विदेशी कंपनियों का आगमन शुभ
नहीं रहा है. विदेशी भागीदारी वाली जीवन बीमा कंपनियों में पॉलिसी बंदी और
जब्ती अनुपात 50 प्रतिशत और उससे भी ज्यादा होना, साधारण और स्वास्थ्य
बीमा में बढ़ते प्रीमियम और घटते क्लेम अनुपात आज मुख्य चिंता का विषय बने
हुए हैं. यह खुला सत्य है कि विश्व की प्रमुख बीमा कंपनियां दिवालियेपन के
कगार पर हैं, और अमरीकी सरकार की 170 अरब डालर की सहायता के बाद ही दुनिया
की सबसे बड़ी कंपनी एआईजी को डूबने से बचाया जा सका. ऐसी खोखली कंपनियां
हमारे देश के बीमा क्षेत्र का क्या भला करेंगी, यह समय के परे है. यही नहीं
बीमा और पेंशन फंडों में विदेशी निवेश को बढ़ावा देश की बहुमूल्य बचत पर
विदेशी कंपनियों का आधिपत्य जरूर बढ़ा देगा.
सरकार की विदेशी निवेश प्रोत्साहन नीति के कारण, कृषि क्षेत्र में भी
अनुबंध पर कृषि के माध्यम से विदेशी कंपनियां प्रवेश कर रही है और उनके
कारण जीएम फसलों के नाम पर देश की जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा पर तो संकट
है ही, देश की पूरी कृषि व्यवस्था भी ये कंपनियां हस्तगत करने की तैयारी
में हैं. स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा, सरकार से मांग करती है कि
विदेशी कंपनियों को ई-कॉमर्स में अनुमति न दे और विदेशी कंपनियों द्वारा
चोर दरवाजे से व्यापार पर रोक लगाने हेतु नियमों को दुरूस्त करे.
अतः स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा यह मांग करती है कि विदेशी
कंपनियों को आमंत्रित करने की मेक इन इंडिया की नीति का परित्याग किया जाए.
भारतीय प्रतिभा, कौशल और संसाधनों पर विश्वास करते हुए देश के विकास की
रणनीति तैयार हो.
प्रस्ताव चार- खेती में विदेशी प्रभाव समाप्त करो
पूंजी के अभाव, तकनीक विकास का अभाव, परंपरागत, रोजगार की
समाप्ति, प्राकृतिक जैविक खेती की समाप्ति ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग के
खात्मे तथा पलायन की मार झेल रही भारतीय खेती एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था की
कमर पिछले दस सालों की आर्थिक नीतियों ने और भी तोड़ दी है.
आज खेती, पशुपालन, मत्स्य पालन, वनोत्पाद संकट के दौर से गुजर रहा है.
एक तरफ कंपनियों की नजर भारत के प्राकृतिक क्षेत्र की जैवविविधता पर है और
खेती का व्यवसायीकरण बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ आधुनिक खेती के कारण भूमि के
बंजरीकरण का संकट और ज्यादा बढ़ गया है. विकास के नाम पर बड़ी परियोजनाओं
ने पर्यावरण संकट के साथ बड़े पैमाने पर उपजाऊ भूमि में जल-जमाव और दलदल का
संकट पैदा किया है. जल, जमीन और जंगल के सवाल गहरे अंतरविरोध को रेखांकित
कर रहे हैं. स्वदेशी जागरण मंच की सभा अपील करती है कि जमीन, जल और जंगल के
प्रबंधन एवं उपयोग का स्वदेशी मॉडल विकसित किया जाये. खेती के लिए
स्वदेश, उन्नत बीजों को विकसित किया जाये. वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून
द्वारा छोटे-छोटे गरीब किसानों से भूमि अधिग्रहण किया जाता है. रियल स्टेट
एवं विशेष आर्थिक क्षेत्रों के नाम पर किये जा रहे भूमि अधिग्रहण से खेती
को भयानक नुकसान हो रहा है. स्वदेशी जागरण मंच का विश्वास है कि
किसान, मजदूर, कारीगर और उनसे जुड़े सहायक
क्रियाकलाप, स्वदेषी, स्वावलंबी, स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण
में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के अलावा बड़े पैमाने पर रोजगार का अवसर
प्रदान करते हैं.
भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव किया जाये और भूमि अधिग्रहण कानून की
वर्तमान संरचना के वर्तमान कानून तत्काल बदले जाएं. भूमि अधिग्रहण के
समय अपवादों को छोड़कर किसी भी परिस्थिति में कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण
नहीं किया जाये. जमीन की मालकीयत का हस्तांतरण नहीं किया जाये और
जमीन 30 साल के पट्टे पर दी जाये, किसानों को कारखाने में हिस्सेदार भी
बनाया जाये ताकि किसान हिस्सा एवं पट्टे से प्राप्त राश से खेती लायक
बन सकें.
कारखाना, परियोजनाओं आदि के लिए बंजर, उसर और अनुपयोगी जमीन का ही उपयोग
हो. आधुनिक खेती पद्धति में परिवर्तन लाया जाये. जैविक एवं प्राकृतिक खेती
को बढ़ावा दिया जाये. ग्रामीण क्षेत्रों कृषि आधारित
उद्योग, ग्रामीण, कुटीर उद्योग तथा खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देकर
किसानों के लिए सम्मानजनक मूल्य तथा रोजगार के अवसर पैदा किये जायें.
जैव सवंर्द्धित खाद्यानों (जी.एम.) के बीजों के प्रयोग और परीक्षण पर तत्काल रोक लगे. वर्तमान सत्ताधारी दल ने अपने चुनावी घोषाणा पत्र में स्पष्ट कहा था कि कृषि समर्थन मूल्य लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त जोड़कर दिया जायेगा. यह बात स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट में भी कही गई है. उत्पादन मूल्य को समय-समय पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए और समय-समय पर तैयार करना चाहिए. मंच की राष्ट्रीय सभा सरकार से अपील एवं मांग करती है कि चुनावी घोषणा को तत्काल लागू करे.
बड़े पैमाने पर रख-रखाव एवं यातायात की असुविधा के कारण तैयार फसलों की
बर्बादी होती है. जिससे किसानों को घाटा होता है. एफडीआई. को खुदरा व्यापार
में लाने के पीछे यह कारण भी बताया गया था. किसानों को एफडीआई. की आवश्यकता नहीं है, परंतु उपयुक्त यातायात
सुविधा एवं भंडारण की आवश्यकता है. इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त
शीतगृह एवं गोदामों की व्यवस्था की जाये. राष्ट्रीय हित में स्थानीय स्तर
पर यातायात एवं भंडारण का तंत्र विकसित होना चाहिए.
स्वदेषी जागरण मंच यह मांग करता है कि खेती, खेती आधारित उद्योग, खाद्य
प्रसंस्करण उद्योग, कुटीर उद्योग, घरेलू उद्योग एवं ग्रामीण उद्योग, खादी
को मनरेगा के साथ संबद्ध कर उत्पादन व रोजगार को बढ़ावा दे. सरकार को एक
सबल, स्वावलंबी, स्वाभिमानी, स्वदेश तथा विकासशील भारत के निर्माण में मदद
करेगी तथा एक प्रकार से सामाजिक, आर्थिक क्रांति को जन्म देगा.
देश की अजीब विडंना है कि जहां एक ओर 55 प्रतिशत से ज्यादा लोग खेती में
लगे हैं, वहां कोई कृषि नीति ही नहीं है. सरकार भारतीय कृषि नीति अविलंब
घोषित करे.
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