शास्त्री जी ने दिल्ली में यातायात संभालने के लिये स्वयंसेवकों से किया था आग्रह – सुनील शास्त्री
वाराणसी.
लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र व पूर्व सांसद सुनील शास्त्री ने कहा कि संघ
के पूज्य सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने मेरे पिता लाल बहादुर शास्त्री के
आवास को देखा और आवास को अंतर्राष्ट्रीय धरोहर बनाने को कहा है. मुझे खुशी
होगी, जो बाबू जी का घर अंतर्राष्ट्रीय धरोहर बनेगा.
पूर्व सांसद व शास्त्री जी के पुत्र सुनील शास्त्री ने कहा कि ऐसा लग
रहा है, परिवार के मध्य खड़ा हूं. आप सभी के बीच में खड़े हो कर गौरवान्वित
हो रहा हूं, आज मैं पूजनीय पिता जी लाल बहादुर शास्त्री की धरती पर खड़ा
हूं. मैं बेहद भावुक हूं, संघ प्रमुख भागवत जी ने रामनगर में आ कर मेरे
बाबू जी का घर देखा और मुझसे कहा कि कैसे इसे धरोहर के रूप में संजोया
जाये, विदेशों से आने वाले भी यहां आकर पिता जी का घर देखें. उन्होंने
पैतृक आवास को एक अंतर्राष्ट्रीय धरोहर बनाने के लिए कहा है. हम बताना
चाहते है कि शास्त्री जी कैसे रहते थे, कैसे कपड़े पहनते थे, किताबें, जीवन
सभी कुछ दिखाना चाहते है.
देश के द्धितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और अपने पिता के जीवन
से जुड़ी कथाओं को सुनाते हुये सुनील शास्त्री ने कहा कि एक दिन सुबह सुबह
चार बजे बाबू जी आये और मेरे दूसरे भाई भी थे, परन्तु मुझे ही जगाया. मैं
तैयार हो गया और हम दिल्ली के पालम हवाई अड्डे की ओर बढ़ गये. जब पालम हवाई
अड्डा पहुंचे तो वहां जनरल शेख ने उन्हें सैल्यूट किया और उसके बाद हम
लाहौर के आर्मी के हवाई अड्डे पर पहुंचे, वहां उतरे तो बाबूजी ने मुझसे
कहा, चलिये. तत्पश्चात हम बार्डर पर छूकेनाल के नजदीक थे और मेरी पानी को
छूने की इच्छा हुई तो पिताजी ने मना किया. फिर मैंने एक अधिकारी संग पानी
छुआ तो आवाज आयी कि कैसे पानी छुआ, फिर वो अधिकारी मुझे फौरन वापस ले आये.
वहां से निकल हम बरकी गये और फिर लौटकर नई दिल्ली आये. जहां आर्मी के
अस्पताल गये और वहां पहली बार बाबूजी को फूट फूट कर रोते देखा.
मामला
था कि अस्पताल में मेजर भूपेन्द्र सिंह बम से छलनी हो गये थे, और उपचार के
लिये अस्भपताल में भर्ती थे. बाबूजी ने उनके उपर लगे नेट को हटाकर उनके
सिर पर हाथ रखा और मेजर के दोनो आंखों से आंसू आ गये. जब बाबूजी से मेजर ने
अपने हौसले को कमजोर न होने की बात कही, तो देखते ही देखते देश के
प्रधानमंत्री शास्त्री जी रो पड़े.
उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी और
राष्ट्रीस्वयंसेवक संघ के मध्य के रिश्तों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि
बाबूजी के मन में आरएसएस के लिये सम्मान भाव था, वे संघ को सम्मान देते
थे. देश में एक अहम बैठक होने वाली थी और प्रधानमंत्री के नाते बाबू जी ने
संघ के सरसंघचालक श्रीगुरूजी को भी बुलवाया था, जब श्री गुरूजी ने संघ के
राजनीतिक गतिविधियों में न भाग लेने की बात कहकर बैठक में आने से इंकार कर
दिया था. तब शास्त्री जी ने बैठक करने से ही मना कर दिया और कहा था, जब तक
संघ प्रमुख गुरूजी बैठक में नहीं आयेंगे, हमें बैठक नहीं करनी. बदली
परिस्थितियां देखकर श्री गुरूजी बैठक में आये. एक समय ऐसा भी आया, जब पिता
जी लाल बहादुर शास्त्री (तत्कालीन प्रधानमंत्री) ने दिल्ली की सड़कों पर
यातायात को नियंत्रण करने के लिये स्वयंसेवकों से उतरने का आग्रह किया था.
उन्होंने कहा कि बाबू जी का जीवन सरल था और वे खादी को विशेष रूप से
पसंद करते थे. अपने पुत्रों में मुझे पिताजी बम्बड़दास कह कर पुकारते थे.
एक बार उनके अलमारी को व्यवस्थित करते हुए मैंने उनके दो कुर्ते फटे देखे
और मां को दे दिये तो उन्होंने प्रेम से मुझे बुलाया और कुर्ते के बारे में
पूछा, जब मैंने फटे कुर्ते पहनने का विषय उठाया तो पिता जी ने कहा था, ये
नवम्बर का प्रथम सप्ताह है, ठंड आ रही है और ये फटे कुर्ते मैं सदरी के
नीचे पहनुंगा तो कोई क्या जान पायेगा कि देश का प्रधानमंत्री फटे कुर्ते
पहनता है.
साभार: vskbharat.com
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