स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को सौपा ज्ञापन
जोधपुर 20.04.2015 .सोमवार को मंच के स्थानिय इकाई द्वारा प्रधानमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौपा। ज्ञापन में कहा गया हैं कि स्वदेशी जारगण मंच का स्पष्ट मत है कि पिछले लगभग ढाई दशकों से चल रही आर्थिक नीतियों के फलस्वरूप देश की जनता के कष्टों में भारी वृद्धि हुई है, समाज में असमानताओं बढ़ी है, रोजगार के अवसर क्षीण हुए है। और देश का आर्थिक तंत्र छिन्न-भिन्न हुआ है। पिछली सरकार की पूंजीपतियों के साथ मिली भगत के फलस्वरूप कुछ चुनिंदा पूजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाभ देने में भ्रष्टाचार की पराकाष्ठ दिखाई दी। नई आर्थिक नितियों के नाम पर भ्रष्ट तरीकों से पूंजीपतियों को लाभान्वित करने के कृत्यों पर विराम लगाने और देश के आर्थिक तंत्र को पुनः पटरी लाने हेतु वर्तमान सरकार को मिला जनादेश इस आक्रोश का ही परिणाम है। स्वदेशी जागरण मंच ने वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा लागू की गई। वितिय समावेशन विशेष तौर पर जनधन योजना और मुद्रा बैंक की स्थापना सहित कई आर्थिक नीतियों का स्वागत किया।
ज्ञापन के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए विभाग संहसयोजक महेश जांगिड़ ने बताया कि केन्द्र सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण पुर्नस्थापना कानून 2013 संशोधन अध्यादेश 2014 के व्यापक विरोध के कारण 2015 के अध्यादेश में विभिन्न संशोधन जैसे प्रत्येक प्रभावित परिवारो में न्यूनतम एक व्यक्ति को रोजगार, जनजाति भूमि का अधिग्रहण न करने, निजी शिक्षण संस्थाओं एवं अस्पतालों के लिए भूमि अधिग्रहित न करने के फैसले के बावजूद भूमि अधिग्रहण पुनर्वास एवं पुर्नस्ािापना कानून 2013 (संशोधन) अध्यादेश 2015 के मूल में विभिन्न आपतिजनक प्रावधान है, जो किसान, कृषि, खाद्य सुरक्षा और प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध है।इस अध्यादेश में कुछ ओर संशोधन करने की मांग को लेकर ज्ञापन दिया गया जिसमें खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु बहुफसली भूमि व सिचिंत भूमि का अधिग्रहण नहीं होना चाहिए।
जांगिड़ ने बताया कि भूमि अधिग्रहण, जी. एम. फसलों के जमीनी परीक्षण पर रोक लगाने तथा ई-काॅमर्स में विदेशी निवेश तथा लघु उद्योगों की श्रेणी को बनाए रखने जैसे प्रमुख 12 निम्न मांगो पर ज्ञापन दिया-
1. भूमि सीमित साधन होने के नाते टुकड़ों-टुकड़ों में विचार करने के स्थान पर सरकार को इसको उपयोग में लाने का एक समुचित नीति बनानी चाहिए। जिसके अंतर्गत खेती, वन, उद्योग, सड़कों इत्यादि के लिए उपयोग में ला सकने वाली भूमि की सीमा बांधी जानी चाहिए।
2. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् आज तक सरकारों द्वारा अधिग्रहित भूमि और बड़े उद्योगपतियों के पास पड़ी बेकार भूमि, उसके वर्तमान उपयोग तथा खाली पड़ी शेष भूमि के बारे में एक श्वेत पत्र जारी किया जाए।
3. खेती तथा वन भूमि को किसी भी कीमत पर अन्य उपयोगों के लिए अनुमति नही मिलनी चाहिए।
4. निजी उद्योगों की भूमि आवश्यकता की पूर्ति सरकार की जिम्मेदारी नहीं मिलनी चाहिए।
5. इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए अधिग्रहित भूमि का संयमपूर्वक सदुपयोग होना चाहिए तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों और इंडस्ट्रीयल पार्कस के नाम पर अधिग्रहित भूमि जो अब बेकार पड़ी है, को सर्वप्रथम उपयोग मे लाया जाए।
6. भूमि अधिग्रहण में किसानों की सहमति सुनिश्चित हो।
7. भूमि अधिग्रहण से पहले उसकी जरूरत, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन हो।
8. विभिन्न स्तरों पर जी. एम. खाद्य फसलों के जमीनी परीक्षणों को दी गई अनुमतियों को वापिस लेते हुए, उन पर तुरन्त प्रभावी रोक लगाई जाये।
9. ई-काॅमर्स में विदेशी कंपनियों को प्रतिबंधित किया जाये।
10. बीमा मे विदेशी निवेश पर रोक लगाई जाये।
11. पिछले समय मे सामारिक साझेदारों को सार्वजनिक उद्यमों को बेचने (जैसे माॅर्डन फूड इंस्ट्रीज लिमिटेड, बालकों, हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड इत्यादि) के दुष्परिणाम देश देख चुका है। अतः बजट 2015-16 में सामरिक विनिवेश की घोषित नीति का परित्याग किया जाए।
12. आर्थिक नीतियों में आंतरिक उदारीकरण को प्रोत्साहन देने के साथ लघु उद्योगों को संरक्षण प्रदान किया जाए और लघु उद्योगों की परिभाषा को यथावत रखा जाए।
स्वदेशी जागरण मंच द्वारा ज्ञापन दिये जाने वाले प्रतिनिधि मंडल में अनिल वर्मा, सत्येन्द्र कुमार, ओमाराम जांगू, रामसिंह भाटी, धन्नाराम जोगावत, रोहिताश पटेल, गजेन्द्रसिंह परिहार, विनोद मेहरा, जितेन्द्रसिंह सिणली, राजेन्द्रसिंह मेहरा, लूणाराम सैन, मिथिलेश झा, अशोकसिंह राजपुरोहित, अशोक वैष्णव आदि कार्यकर्ता साथ थे।
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