शनिवार, 27 जून 2015

सेवा कार्य में हर एक को सहभागी होना चाहिए , गौ वंश की सेवा एवं रक्षा हमारा कर्तव्य - सुरेश जी, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख

सेवा कार्य में हर एक को सहभागी होना चाहिए , गौ वंश की सेवा एवं रक्षा हमारा कर्तव्य  - सुरेश जी, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख

तीन सेवा वाहनों  का लोकार्पण 




जोधपुर। मानव जीवन में सेवा कार्य सर्वश्रेष्ट है सेवा कार्य में हर एक को सहभागी होना चाहिए।  सेवा का मतलब है निस्वार्थ भाव से सेवा करना और कर्तव्य भाव से सेवा करना यह विचार राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख माननीय सुरेश जी ने पचरंगा रिसोर्ट में सुदर्शन सेवा संस्थान द्वारा तीन सेवा वाहनो के लोकार्पण करते हुए व्यक्त किये।

सुरेश जी ने अपने उध्बोधन में कहा  कि भारतीय समाज ने गाय को माँ की संज्ञा से पुकारा है. गाय बचेगी  तो देश बचेगा। गौ वंश की सेवा एवं रक्षा हमारा कर्तव्य है। गौ सेवा से अपने जीवन को सुखी, सम्रद्ध, निरोग, ऐश्वर्यवान एवं सौभाग्यशाली बनाया जा सकता है।  गौ सेवा वाहन को गौ माता के कल्याण के लिए उत्तम प्रयास बताया।

अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख माननीय सुरेश जी ने आव्हान किया कि  समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगो को सेवा कार्यो में सहयोग करना चाहिए।

सुदर्शन सेवा संस्थान द्वारा तीन सेवा वाहनों का लोकार्पण एक सादे समारोह में किया गया।एक वाहन  "गौ सेवा वाहन" है जिसका उपयोग घायल एवं बीमार गायों  को उपचार हेतु ले जाने में किया जायेगा, दूसरा वाहन "मोक्ष यात्रा वाहन" है एवं तीसरा वाहन "गौ उत्पादित दवाइयों " के  वितरण हेतु कार्य में लिया जायेगा।  तीनो सेवा वहां समाज की सर्वजातियों  के लिए निःशुल्क  उपलब्ध रहेंगे। जोधपुर में इस निशुल्क सुविधा के लिए सिर्फ एक फ़ोन कॉल पर यह सुविधा उपलब्ध करवाई जाएगी।

लोकार्पण समारोह में राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख माननीय सुरेश जी, क्षेत्रीय प्रचारक दुर्गादास जी , प्रान्त प्रचारक मुरलीधर जी, वरिष्ठ प्रचारक हरी ओम जी ने  तीनो सेवा वाहनो का लोकार्पण किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुदर्शन सेवा संस्थान के अध्यक्ष रतन लाल गुप्ता "काकाजी" ने की।

कार्यक्रम में उपमहापौर देवेन्द्र सालेचा, अशोक बाहेती, सांवरमल अग्रवाल, रतन छाजेड़, कनक मल डागा, हीरा लाल कुलरिया , नंदकिशोर बिड़ला , महावीर चौपड़ा, भाजपा जिलाध्यक्ष देवेन्द्र जोशी, देहात महामंत्री रामस्वरूप गोधा, नथमल पालीवाल अध्यक्ष देहात  युवा मोर्चा सहित गणमान्यगण उपस्थित थे.

सुदर्शन सेवा संस्थान के महामंत्री कमलेश गहलोत ने धन्यवाद ज्ञापित किया.


शुक्रवार, 26 जून 2015

शक्तिशाली संघ के रहते ‘आपातकाल’ कैसे टिक सकता था?'




- लखेश्वर चंद्रवंशी 'लखेश'
25 जून, 1975 की काली रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘आपातकाल’ (Emergency) लगाकर देश को लगभग 21 माह के लिए अराजकता और अत्याचार के घोर अंधकार में धकेल दिया। 21 मार्च, 1977 तक भारतीय लोकतंत्र ‘इंदिरा निरंकुश तंत्र’ बनकर रह गया। उस समय जिन्होंने आपातकाल की यातनाओं को सहा, उनकी वेदनाओं और अनुभवों को जब हम पढ़ते हैं या सुनते हैं तो बड़ी हैरत होती है। आपातकाल के दौरान समाचार-पत्रों पर तालाबंदी, मनमानी ढंग से जिसे चाहें उसे कैद कर लेना और उन्हें तरह-तरह की यातनाएं देना, न्यायालयों पर नियंत्रण, ‘न वकील न दलील’ जैसी स्थिति लगभग 21 माह तक बनी रही। आज की पीढ़ी ‘आपातकाल की स्थिति’ से अनभिज्ञ है, वह ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं कर सकती। क्योंकि हम लोग जो 80 के दशक के बाद पैदा हुए, हमें ‘इंदिरा के निरंकुश शासन’ के तथ्यों से दूर रखा गया। यही कारण है कि हमारी पीढ़ी ‘आपातकाल’ की जानकारी से सरोकार नहीं रख सके।
हम तो बचपन से एक ही बात सुनते आए हैं कि इंदिरा गांधी बहुत सक्षम और सुदृढ़ प्रधानमंत्री थीं। वे बहुत गरीब हितैषी,राष्ट्रीय सुरक्षा और बल इच्छाशक्ति वाली नारी थीं। ऐसे अनेक प्रशंसा के बोल अक्सर सुनने को मिलते रहे हैं। पर आज देश में भाजपानीत ‘एनडीए’ की मोदी सरकार का शासन है। यही कारण है तथ्यों से परदा उठना शुरू हो गया है। अब पता चल रहा है कि कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने किस तरह इंदिरा का महिमामंडन कर ‘आपातकाल’ के निरंकुश शासन के तथ्यों से देश को वंचित रखा।



आपातकाल लगाना जरुरी था या मज़बूरी?  
कांग्रेस के नेता यह दलील देते हैं कि उस समय ‘आपातकाल’ लगाना बहुत जरुरी था, इसके आभाव में शासन करना कठिन हो गया था। पर तथ्य कुछ और है? कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार से तंग आकर जनता ने भूराजस्व भी देना बंद कर दिया था। जनता ने अवैध सरकार के आदेशों की अवहेलना शुरू कर दी थी। पूरे देश में इन्दिरा सरकार इतनी अलोकप्रिय हो चुकी थी कि चारों ओर से बस एक ही आवाज़ आ रही थी - इन्दिरा गद्दी छोड़ो। इधर लोकनायक जय प्रकाश नारायण का आन्दोलन अपने चरम पर था। बिहार में प्रत्येक कस्बे, तहसील, जिला और राजधानी में भी जनता सरकारों का गठन हो चुका था। जनता सरकार के प्रतिनिधियों की बात मानने के लिए ज़िला प्रशासन भी विवश था। ऐसे में इंदिरा गांधी के लिए शासन करना कठिन हो गया।  

दूसरी ओर, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जब इन्दिरा गांधी के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव को अवैध ठहराने तथा उन्हें छह वर्षों तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया तो इंदिरा गांधी को अपनी सत्ता से बेदखल होने का दर सताने लगा। न्यायालय के इस निर्णय के बाद नैतिकता के आधार पर इंदिरा गांधी को इस्तीफा देना चाहिए था, लेकिन सत्ता के मोह ने उन्हें जकड लिया। सभी को किसी अनहोनी की आशंका तो थी ही, लेकिन  इंदिरा ऐसी निरंकुश हो जाएंगी, इसका किसी को अंदाजा नहीं था। उन्होंने इस्तीफ़ा नहीं दिया, बल्कि लोकतंत्र का गला घोंटना ही उचित समझा। 



प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आकाशवाणी से 25 जून, 1975 की रात को ‘आपातकाल (इमर्जेन्सी) की घोषणा कर दी और भोर होने से पूर्व ही सीपीआई को छोड़कर सभी विरोधी दलों के नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया। इस अराजक कार्रवाई में न किसी की उम्र का लिहाज किया गया और न किसी के स्वास्थ्य की फ़िक्र ही की गई, बस जिसे चाहा उसे कारावास में डाल दिया गया। आपातकाल के दौरान लोकनायक जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के तत्कालीन सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस सहित हजारों स्वयंसेवकों को कैद कर लिया गया। देश के इन राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को मीसा (Maintenance of Internal Security Act) के तहत अनजाने स्थान पर कैद कर रखा गया। मीसा वह काला कानून था जिसके तहत कैदी को कोर्ट में पेश करना आवश्यक नहीं था। इसमें ज़मानत का भी प्राविधान नहीं था।

सरकार ने जिनपर थोड़ी रियायत की उन्हें डीआईआर (Defence of India Rule) के तहत गिरफ़्तार किया गया। यह थोड़ा नरम कानून था। इसके तहत गिरफ़्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश किया जाता था।


आपातकाल और मीडिया
उस समय शहरों को छोड़कर दूरदर्शन की सुविधा कहीं थी नहीं। समाचारों के लिए सभी को आकाशवाणी तथा समाचार पत्रों पर ही निर्भर रहना पड़ता था। 25 जून, 1975 को आकाशवाणी ने रात के अपने समाचार बुलेटिन में यह समाचार प्रसारित किया कि अनियंत्रित आन्तरिक स्थितियों के कारण सरकार ने पूरे देश में आपातकाल (Emergency) की घोषणा कर दी है।

बुलेटिन में कहा गया कि आपातकाल के दौरान जनता के मौलिक अधिकार स्थगित रहेंगे और सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। समाचार पत्र विशेष आचार संहिता का पालन करेंगे जिसके तहत प्रकाशन के पूर्व सभी समाचारों और लेखों को सरकारी सेन्सर से गुजरना होगा।
आपातकाल के दौरान 250 भारतीय पत्रकारों को बंदी बनाया गया, वहीं 51 विदेशी पत्रकारों की मान्यता ही रद्द कर दी गई। इंदिरा गांधी के इस तानाशाही के आगे अधिकांश पत्रकारों ने घुटने ही टेक दिए, इतना ही नहीं तो पत्रकारों ने ‘आप जैसा कहें, वैसा लिखेंगे’ की तर्ज पर काम करने को राजी हो गए। उस दौरान ‘दी इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपना सम्पादकीय कॉलम कोरा प्रकाशित किया और ‘जनसत्ता’ ने प्रथम पृष्ठ पर कोई समाचार न छापकर पूरे पृष्ठ को काली स्याही से रंग कर ‘आपातकाल’ के खिलाफ अपना विरोध जताया था।



आपातकाल का उद्देश्य
- कांग्रेस विरोधी दलों को समाप्त करना।
- देश में भय का वातावरण निर्माण करना।
- प्रसार माध्यमों पर नियंत्रण रखना।
- ‘इंदिरा विरोधी शक्तियों को विदेशी शक्तियों के साथ सम्बन्ध’ की झूठी अफवाहों से जनता को भ्रमित करना, तथा इस आधार पर उन्हें कारागार में डालना। 
- लोक लुभावन घोषणा देकर जनमत को अपनी ओर खींचना।
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समाप्त कर संगठित विरोध को पूरी तरह समाप्त करने का षड़यंत्र।

आपातकाल की समाप्ति में संघ की भूमिका


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने ‘आपातकाल’ के विरुद्ध देश में भूमिगत आन्दोलन, सत्याग्रह और सत्याग्रहियों के निर्माण के लिए एक व्यापक योजना बनाई। संघ की प्रेरणा से चलाया गया भूमिगत आन्दोलन अहिंसक था। जिसका उद्देश्य देश में लोकतंत्र को बहाल करना था, जिसका आधार मानवीय सभ्यता की रक्षा, लोकतंत्र की विजय, पूंजीवाद व अधिनायकवाद का पराभव, गुलामी और शोषण का नाश, वैश्विक बंधुभाव जैसे उदात्त भाव समाहित था। आपातकाल के दौरान संघ ने भूमिगत संगठन और प्रचार की यंत्रणा स्थापित की, जिसके अंतर्गत सही जानकारी और समाचार गुप्त रूप से जनता तक पहुंचाने के लिए सम्पादन, प्रकाशन और वितरण की प्रभावी व्यवस्था बनाई गई।

साथ ही जेलों में बंद व्यक्तियों के परिवारजनों की सहायता के लिए भी व्यवस्थाएं विकसित की। संघ ने जनता के मनोधैर्य बना रहे, इसके लिए व्यापक कार्य किया। इस दौरान आपातकाल की सही जानकारी विदेशों में प्रसारित करने की भी योजना बनाई गई, इस कार्य के लिए सुब्रह्मण्यम स्वामी, मकरंद देसाई जैसे सक्षम लोग प्रयासरत थे।



आपातकाल के विरुद्ध सत्याग्रह 
आपातकाल के विरुद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जन आन्दोलन को सफल बनाने के लिए बहुत बहुत बड़ी भूमिका निभाई। 14 नवम्बर, 1975 से 14 जनवरी, 1976 तक पूरे देश में हजारों स्थानों पर सत्याग्रह हुए। तथ्यों के अनुसार देश में कुल 5349 स्थानों पर सत्याग्रह हुए, जिसमें 1,54,860 सत्याग्रही शामिल हुए। इन सत्याग्रहियों में 80 हजार
संघ के स्वयंसेवकों का समावेश था। सत्याग्रह के दौरान कुल 44,965 संघ से जुड़े लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 35,310 स्वयंसेवक थे तथा 9,655 संघ प्रेरित अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं का समावेश था।

संघ ने सत्याग्रहियों के निर्माण के लिए व्यापक अभियान चलाया। संघ समर्थक शक्तियों से सम्पर्क की यंत्रणा बनाई और सांकेतिक भाषा का उपयोग किया। देशभर में मनोधैर्य बनाए रखने तथा जागरूकता बहाल करने के लिए अनेक पत्रक बांटे गए। सारे देश में जन चेतना जाग्रत होने लगी। इसका ही परिणाम था कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मन में जन विरोध का भय सताने लगा। अचानक तानाशाही बंद  हो गईं, गिरफ़्तारियां थम गईं। पर लोकतंत्र को कुचलने के वे काले दिन इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया, पर ‘आपातकाल’ का इतिहास विद्यार्थियों तक पहुंच न सका। ऐसी आपातकाल देश में दुबारा न आए, पर पाठ्यक्रम में जरुर आना चाहिए जिससे इस पीढ़ी को जानकारी मिल सके।

गुरुवार, 25 जून 2015

आपातकाल इतिहास के झरोखे से .......

आपातकाल इतिहास के झरोखे से .......


आपातकाल के 40 वर्ष - भरे नहीं हैं जख्म आज भी




तत्कालीन केन्द्र सरकार ने अपने  राजनीतिक विरोधियों सर्वश्री जय प्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, चन्द्रशेखर, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव और रा. स्व. संघ के वरिष्ठ अधिकारियों को चुन-चुन कर जेल भिजवा दिया, लेकिन देश में इन्दिरा की तानाशाही और अत्याचार के विरुद्ध लोगों का आंदोलन
भीतर ही भीतर सुलगने लगा था। लोगों की जनसभाएं कांग्रेस की कुरीतियों के विरुद्ध जारी थीं। आपातकाल हटने के बाद कांग्रेस की आम चुनाव में हुई करारी हार ने न केवल इन्दिरा गांधी के तिलिस्म को तोड़ दिया, बल्कि बड़े-बड़े धुरंधरों को मुंह की खानी पड़ी। आज आपातकाल के 40 वर्ष बाद भी उसका दंश झेल चुके लोगों की आंखें भर आती हैं। आपातकाल के उस कालिमा भरे अध्याय को स्मरण कराती पाञ्चजन्य की रपट...

25 जून, 1975 की अर्द्धरात्रि में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा लगवाए गए आपातकाल के 40 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। उस दौरान पुलिस-प्रशासन द्वारा प्रताड़ना का शिकार हुए लोग आज भी आपातकाल की भयावह कारा के बारे में सोचकर कांप उठते हैं। उन पर हुए अत्याचारों, दमन और अमानवीय कृत्यों के जख्म आज भी ताजा हैं। 

आपातकाल यानी भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा लोकसभा चुनाव में अयोग्य ठहराए जाने के फैसले से तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी इस कदर बौखला गई थीं कि उन्होंने आपातकाल लगवा दिया। आपातकाल की इस आपाधापी में पुलिस भूमिका किसी खलनायक से कम न था क्योंकि अपने ही देश की पुलिस के अत्याचार ब्रिटिश राज के अत्याचारों को भी मात दे रहे थे। जो जहां, जिस हालत में मिला उसे जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया। चप्पे-चप्पे पर पुलिस के सीआईडी विभाग वाले नजर बनाए रहते थे। 

देश के नामीगिरामी राजनेताओं को रातोंरात गिरफ्तार कर लिया गया, आम व्यक्ति की तो हैसियत ही क्या थी। पुलिस की दबिश के डर से घर के घर खाली हो गए और लगभग प्रत्येक परिवार के पुरुष सदस्यों को भूमिगत होना पड़ा। वे लोग हर दिन अपना ठिकाना बदलने को विवश थे। मीडिया पर पाबंदी लगाकर सरकार ने खूब मनमानी की। आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने नसबंदी अभियान चलाया। शहर से लेकर गांव-गांव तक नसबंदी शिविर लगाकर लोगों के ऑपरेशन कर दिए गए। 

प्रस्तुति : राहुल शर्मा, आदित्य भारद्वाज, अजय मित्तल एवं सुरेन्द्र सिंघल


पुलिस का अमानवीय चेहरा आज भी याद है  मेरठ के प्रदीप कंसल आपातकाल की तानाशाही का विरोध कर 'मेंटीनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट' (मीसा) बंदी बनने वाले सबसे छोटी आयु के छात्र थे। वे तब स्नातक द्वितीय वर्ष के छात्र थे जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से उन्होंने ऐसा किया। बंदी बनाकर उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें नारकीय यातनाएं दीं। पुलिस उनसे रा. स्व. संघ., प्रचारकों तथा अन्य कार्यकर्ताओं की जानकारी हासिल करना चाहती थीं। 

विशेषकर रा. स्व. संघ. के मेरठ विभाग के तत्कालीन प्रचारक ज्योति जी (अब दिवंगत ), जो कुलदीप के नाम से भूमिगतअभियान चला रहे थे।  प्रदीप ने अल्पायु में भीषण शारीरिक अत्याचार सहे पर मुंह नहीं खोला। एक साल से अधिक कारावास में रहकर 1977 के आम चुनाव की घोषणा के बाद वे रिहा हुए तो मेरठ से अमेठी जा पहुंचे- संजय गांधी के विरुद्घ प्रचार करने और उनकी पराजय के बाद ही घर लौटे। 

रौंगटे खड़े कर देने वाली आपबीती...

 मैं  मेरठ कॉलेज में बी़ ए. का छात्र था, उस समय मैंने 29 जनवरी, 1976 को इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ सत्याग्रह किया। मैं तब रा. स्व. संघ. का स्वयंसेवक और विद्यार्थी परिषद की कॉलेज इकाई का संयोजक था। उस दिन मैं अपने कपड़ों में आतिशबाजी के बम की बहुत सारी लडि़यां छिपाकर ले गया था। 'बहरी सरकार को अपनी बात सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत है'-सरदार भगतसिंह का ये कथन मन में गूंज रहा था। 

जैसे ही दिन का दूसरा कालांश खत्म हुआ, मैं कक्षा से बाहर निकल आया। फिर एक-एक कर पटाखों की लडि़यां जलाकर धमाके कि ए। सारे कॉलेज में सनसनी फैल गई। हजारों छात्र कक्षाएं छोड़कर आसपास एकत्र हो गए। मैंने आपातकाल और इंदिरा की तानाशाही के विरुद्ध नारे लगाने शुरू किए जिन्हें विद्यार्थियों का भरपूर समर्थन मिला और पूरा महाविद्यालय नारों से गूंजने लगा। इसके बाद आपातकाल के विरोध में मैंने संक्षिप्त भाषण दिया कि तभी दो पुलिस वाले डंडे लेकर आ धमके। उन्होंने गालियां देते हुए छात्रों को वहां से भाग जाने के लिए कहा। फिर वे उन पर डंडे भी बरसाने लगे। 

विद्यार्थियों को गुस्सा आ गया। उन्होंने पुलिस वालों से डंडे छीनकर उन्हीं की पिटाई शुरू कर दी। मैंने चिल्ला-चिल्लाकर छात्रों को रोका, लेकिन  पुलिस वालों के द्वारा ताबड़तोड़ लाठियां बरसाए जाने के कारण कोई नहीं टिका। ऐसा कुछ देर और चलता रहता तो शायद वे जीवित नहीं बचते। मैंने आव देखा न ताव, उन्हें बचाने के लिए उनके ऊपर लेट गया, तब जाकर कहीं लाठी के प्रहार रुके। इसके बावजूद भी इंदिरा की तानाशाही के खिलाफ गगनभेदी नारों का दौर जारी रहा। तभी मेरठ के पुलिस उपाधीक्षक व सहायक नगर मजिस्ट्रेट सैकड़ों पुलिसवालों के साथ कॉलेज में घुसे। सात-आठ पुलिस वालों ने मुझे घसीटते हुए एक जीप में डाल दिया। दूसरे छात्रों पर भी लाठीचार्ज शुरू हो गया। कई के सिर फूटे, हाथ टूटे और कई चोटिल हुए, तब कहीं जाकर भीड़ हट सकी। दोपहर करीब 12 बजे मुझे समीपवर्ती लालकुर्ती थाने ले जाया गया। वहां मुझसे मेरे अन्य साथियों के बारे में पूछा गया। जवाब देने से मना करने पर एक दरोगा ने कहा कि इसे सिविल लाइन थाने ले चलो, वहां अच्छे से पूछेंगे। आबादी वाले इलाके से बाहर ले जाकर उस थाने में रात को मुझे खूंखार अपराधियों से पूछताछ
करने वाले विशेष पुलिस दस्ते के हवाले कर दिया गया। उनकी शुरुआत ही डराने-धमकाने से हुई। रा. स्व. संघ. के प्रचारक, कार्यकर्ता, मुझे सत्याग्रह हेतु प्रेरित करने वालों एवं मेरे साथियों के बारे में पूछा गया। 

 मैंने हर सवाल के जवाब में यही कहा कि मैं अकेला ही अपने विवेक से आपातकाल का विरोध करने निकला हूं। प्रश्नकर्ताओं का धैर्य जल्दी ही टूट गया। इसके बाद मुझे निर्वस्त्र कर थाने के फर्श पर उल्टा डाल दिया गया। मेरे पांव फैलाकर पांच पुलिस वाले मेरी पीठ पर खड़े हो गए। मैं समझ गया कि यातना का दौर शुरू होने जा रहा है। मैंने एक हाथ से फर्श की मिट्टी अपने माथे पर लगाई और भारत मां का स्मरण कर यातनाओं को सहने की शक्ति मांगी। 

पुलिस वाले अपने जूतों से मेरा बदन कुचल रहे थे और अपने सवाल दोहरा रहे थे। फिर दो अन्य पुलिस वाले मेरी दोनों हथेलियों पर खड़े होकर उन्हें भी कुचलने लगे। इस तरह सात यमदूत मुझे यम यातनाएं दे रहे थे। मेरे चुप्पी साध लेने से वे चिढ़ गए। फिर मेरी कोहनियों, कलाइयों, घुटनों, पांव की हड्डियों व तलवों पर लाठी-जूते बरसने लगे। कुछ देर असहनीय यातनाओं का दौर चला, फिर शरीर ऐसा सुन्न हो गया कि लगता था कि जहां चोट पड़ती थी, वह शरीर का हिस्सा ही नहीं है। गला सूख गया, मैं कुछ बोल नहीं सका और बेहोश हो गया। कितने घंटे अचेत रहा, कह नहीं सकता। फिर तीन-चार पुलिस वाले मुझे उठाकर चलाने की कोशिश कर रहे थे। 

कोई बोला चलेगा कैसे, दो बार तो खून की उल्टी कर चुका था। फिर उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठा दिया। मैं अधमरा सा था। देर रात कोई बड़ा अधिकारी आया और उसने आते ही पुलिस वालों से पूछा कि इसने कुछ बताया?  नकारात्मक जवाब सुनते ही उसने मेरे नाखून उखाड़ने के लिए प्लास मांगा। मेरे मन  में कितने ही क्रांतिकारियों के प्रसंग उमड़ पडे़, मैंने सोचा मेरी भी वैसी ही परीक्षा ली जा रही है, लेकिन दृढ़ निश्चय किया कि झुकना नहीं है। कुछ पुलिस वालों ने मेरा शरीर पकड़ा  और अधिकारी हाथ में प्लास लेकर आ गया। मेरे दायें पांव के अंगूठे को प्लास से दबाकर उसने नाखून खींच लिया और मैं बेहोश हो गया। 

सुबह जब होश आया तो मुझे न्यायालय लेकर जाने की तैयारी चल रही थी। पांव के अंगूठे व शरीर में अनेक जगह से खून रिस रहा था। पुलिस की पिटाई से शरीर ऐसा सूज चुका था कि कपडे़ पहने नहीं जा रहे थे। कमीज के बटन बंद नहीं हो सके। जूते पहन नहीं सका। न्यायालय पहंुचकर बिना न्यायिक मजिस्टे्रट के यहां पेश किए बिना मुझे जेल भेज दिया गया। 

जेल में दूसरे स्वयंसेवक मिले तो कुछ सुकून मिला, लेकिन सभी को अलग-अलग रखा गया। फरवरी, 1977 में आम चुनावों की घोषणा हुई और मैं अन्य साथियों सहित जेल से बाहर आ गया। मैं आपातकाल के 39 वर्ष बाद भी यातनाआंे को नहीं भुला पाया हूं। आज भी मेरा हाथ और पीठ सीधे नहीं हो पाते हैं, दायें पांव के अंगूठे पर नाखून नहीं आता है।

प्रदीप कंसल ने जेल से छूटने के बाद वर्ष 1978 में आपातकाल प्रताड़ना को लेकर गठित शाह आयोग में 10 अगस्त, 1978 को उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर उन्हें यातनाएं देने वाले पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग की थी। लेकिन आज तक उन्हें नहीं मालूम कि उन अधिकारियों पर सरकार ने कोई ठोस कार्रवाई की भी या नहीं। 

वे बताते हैं कि आपातकाल के दौरान पीडि़त परिवार के साथ-साथ उनके साथ संपर्क रखने वाले दूसरे लोगों को भी पुलिस प्रताड़ना का सामना करना पड़ता था। साथ रहने वाला ही नहीं, बल्कि के शक के आधार पर भी पुलिस लोगों को जबरन पूछताछ के लिए अज्ञात स्थानों पर ले जाकर सख्ती करती थी। पुलिस के भय से लोेगों में इस कदर दहशत हो जाती थी कि वे दोबारा अपने परिचित के यहां जाने का नाम भी नहीं लेते थे। ऐसे में जेल में बंद व्यक्ति का पूरा परिवार अलग-थलग पड़ जाता था।


मेरठ के प्रदीप कंसल आपातकाल की तानाशाही का विरोध कर 'मेंटीनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट' (मीसा) बंदी बनने वाले सबसे छोटी आयु के छात्र थे। वे तब स्नातक द्वितीय वर्ष के छात्र थे जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से उन्होंने ऐसा किया। बंदी बनाकर उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें नारकीय यातनाएं दीं। पुलिस उनसे रा. स्व. संघ., प्रचारकों तथा अन्य कार्यकर्ताओं की जानकारी हासिल करना चाहती थीं। 

विशेषकर रा. स्व. संघ. के मेरठ विभाग के तत्कालीन प्रचारक ज्योति जी (अब दिवंगत ), जो कुलदीप के नाम से भूमिगत अभियान चला रहे थे।  प्रदीप ने अल्पायु में भीषण शारीरिक अत्याचार सहे पर मुंह नहीं खोला। एक साल से अधिक कारावास में रहकर 1977 के आम चुनाव की घोषणा के बाद वे रिहा हुए तो मेरठ से अमेठी जा
पहुंचे- संजय गांधी के विरुद्घ प्रचार करने और उनकी पराजय के बाद ही घर लौटे।


 साभार:पाञ्चजन्य 

बुधवार, 24 जून 2015

देश की आर्थिक नीतियां स्वदेशी अनुरूप ही होनी चाहिए - सतीश कुमार

देश की आर्थिक नीतियां स्वदेशी अनुरूप ही होनी चाहिए - सतीश कुमार

जोधपुर 23 जून 2015. आर्थिक गुलामी से भारत को आजाद कराने के लिए देश की आर्थिक नीतियां स्वदेशी अनुरूप ही होनी चाहिए। 1992 में लाया गया आर्थिक उदारीकरण सिर्फ और सिर्फ अमेरिकी पूंजीवादी आर्थिक नीतियों पर आधारित था। वर्तमान में इन नीतियों की समीक्षा करने की आवश्यकता है। जिस लक्ष्य को लेकर इन नीतियों को लागू किया गया उस लक्ष्य को भारत ने जो वर्षो पहले प्राप्त कर लेना चाहिए था वो अभी तक प्राप्त नहीं किया है ऐसे में लागू इन नीतियों पर प्रश्न चिन्ह स्वभाविक है। हमारी आर्थिक नीतियों की लाईन स्वदेशी आधारित अर्थव्यवस्था से होनी चाहिए। अर्थशास्त्र का विकास या इसकी अवधारणाएं वर्तमान स्वरूप में केवल विदेशी अर्थशास्त्रीयों के आधार पर देखी जा रही है। वहीं हमारी स्वदेशी कौटिल्य के अर्थशास्त्र से लेकर वर्तमान के हमारे राष्ट्रचिन्तक अर्थशास्त्रीयों तक की सोच को ही आगे बढाने की आवश्यकता है। यह विचार स्वदेशी जागरण मंच के उत्तर भारत के संगठक सतीश कुमार ने जोधपुर में आयोजित मंच के जोधपुर महानगर कार्यकर्ता आमुखीकरण कार्यक्रम में बोलते हुए कहे। 

कार्यक्रम की जानकारी देते हुए मंच के महानगर संयोजक अनिल माहेश्वरी ने बताया कि स्वदेशी जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का आमुखीकरण मंगलवार को आयोजित किया गया। स्वदेशी जागरण मंच द्वारा वर्तमान में जी.एम. फसलो के खुले परीक्षण का विरोध ई-काॅमर्स में विदेशी कम्पनियों की खुली लूट विरोध में चलाये जा रहे राष्ट्रव्यापी अभियान की जानकारी दी। कार्यक्रम में स्थानीय ईकाई द्वारा किये जाने वाले आगामी आर्थिक कार्यक्रम की रचना को भी अन्तिम रूप दिया गया।

महानगर सम्पर्क प्रमुख जितेन्द्र मेहरा ने बताया कि कार्यक्रम में स्वदेशी जागरण मंच की स्थानीय ईकाई ने जोधपुर शहर में राखी व्यवसायों के साथ मिल कर राखी व्यवसाय पर चीनी राखियों की पड़ रही मार से बचने के लिए राज्य व केन्द्रीय सरकार के साथ नीति बनाने के लिए कार्य किया जायेगा। साथ ही मंच जोधपुर में चीनी राखियों का उपयोग न करने के लिए आमजन में जन-जागृति लाने के लिए विभिन्न संगठनो व मिडिया के सहयोग से विशेष अभियान चलायेगा।

कार्यक्रम में प्रदेश सह-संयोजक धर्मेन्द्र दुबे, विभाग संयोजक अनिल वर्मा व सह-संयोजक विनोद मेहरा ने भी अपने विचार रखे। कार्यकर्ता में महेश जांगिड़, रोहिताष पटेल, ओमप्रकाश भाटी, अशोक वैष्णव, रामेश्वरी पटेल, सत्येन्द्र कुमार आदि कार्यकर्ता उपस्थित थे।

जानिए : आरएसएस के शक्तिशाली और विस्तारित होने का रहस्य  '





- लखेश्वर चंद्रवंशी 'लखेश'

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सारी दुनिया के चिंतन का केन्द्रीभूत विषय बन गया है। संघ जहां धर्म, अध्यात्म, विश्व कल्याण और मानवीय मूल्यों की रक्षा करनेवालों के लिए शक्ति स्थल है, वहीं वह हिन्दू या भारत विरोधी शक्तियों के लिए चिंता और भय कम्पित करनेवाला संगठन भी है। विश्व के सबसे बड़े संगठन के रूप
में ख्यात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना सन 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में हुआ। पराधीन भारत में जन्में इस संगठन के विस्तार की राह आसान नहीं थी। संघ को रोकने के लिए विरोधी पग-पग पर कांटें बोते रहे पर वे संघ के संगठन शक्ति को रोक नहीं पाए।

आखिर, संघ के मूल में ऐसी कौन सी शक्ति छिपी है जिसने उसे इतना बड़ा कर दिया कि आज वह दुनिया के बुद्धिजीवियों के ध्यानाकर्षण का केन्द्र बन गया है। यही प्रश्न संघ के प्रशंसकों, विरोधियों और शोधकर्ताओं के मन में उठता है। इसलिए इन प्रश्नों के उत्तर यदि चाहिए तो सबको संघ संस्थापक एवं आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के विचारों को उचित परिप्रेक्ष्य में समझना होगा, क्योंकि उन्होंने ही संघ की स्थापना की और उसका लक्ष्य निर्धारित किया। वास्तव में डॉ.हेडगेवार के संदेशों में ही छिपा है आरएसएस के शक्तिशाली और विस्तारित होने का रहस्य।   
स्वयं के उद्धार के लिए संघ की स्थापना


डॉ. हेडगेवार ने 13 अक्टूबर, 1937 को विजयादशमी के दिन अपने प्रबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के उद्देश्य को निरुपित करते हुए कहा था कि,“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केवल अपने स्वयं के उद्धार के लिए ही किया गया है। संघ का कोई दूसरा-तीसरा उद्देश्य न होकर केवल स्वयं का उद्धार करना, यही उसकी इच्छा है। परन्तु स्वयं का उद्धार कैसे होगा, पहले हमें इस पर विचार करना होगा। स्वयं का उद्धार करने के लिए जीवित रहना पड़ता है,जो समाज जीवित रहेगा वही समाज स्वयं का और अन्यों का उद्धार कर सकता है और संघ की स्थापना इसी के लिए हुआ है। हिन्दू समाज जीवित रहे अथवा “Sarvival of the fittest” इस तत्व के अनुसार जीवित रहने योग्य रहे इस उद्देश्य से ही संघ का जन्म हुआ है।”



डॉ. हेडगेवार के इस आहवान को स्वीकार कर अनेकों ने संघ कार्य के लिए अपने जीवन को समर्पित किया, जिनमें श्रीगुरूजी गोलवलकर, बालासाहब देवरस, एकनाथ रानडे, भाउराव देवरस, यादवराव जोशी, दादा परमार्थ, बाबासाहेब आपटे तथा माधवराव मुले आदि महानुभावों प्रमुख थे।
आक्रान्ताओं को दोष न दें
डॉ.हेडगेवार ने कहा, 

“हिन्दू  राष्ट्र पर अतीत में अनेक आक्रमण हुए, वर्तमान में भी हो रहे हैं और कदाचित भविष्य में भी होता रहेगा, यह संघ जानता है। संघ को यह भी मालूम है कि  दूसरे समाज पर जो समाज आक्रमण करता है, दूर से देखनेवाले लोग उन्हें दोष  देते हैं और जिनपर आक्रमण होता है उसके प्रति सहानुभूति रखते हैं। पर ये  उनकी दृष्टि से ठीक है। अब जिनपर आक्रमण होता है उस समाज ने आक्रान्ताओं को दोष देते बैठे रहने के बजाय ये आक्रमण क्यों होते हैं, इसके कारणों को  खोजकर उसे दूर करना चाहिए। यह दृष्टि सामने रखकर अपने हिन्दू समाज की ओर  देखें तो ये अत्याचार व आक्रमण होने का मुख्य कारण हमारी दुर्बलता व नासमझी ही है। आज हिन्दू समाज इतना नासमझ हो गया है कि कोई भी आता है और अपने  सनकी मिजाज से हिन्दू समाज पर मनमानी अत्याचार करता है। पर अभी भी हमें  इसकी कोई चिंता नहीं होती तथा अपने असंगठित और बिखरेपन को दूर करने के लिए जैसा होना चाहिए वैसा प्रयास होता दिखाई नहीं देता, संघ को यह अच्छा नहीं  लगता। हमें गुस्सा आता है हिन्दुओं के इस तिरस्कृत मनोवृत्ति का, न कि  हिन्दुओं का। क्योंकि वे अपने ही हैं और उनके उद्धार के लिए ही हमारा जन्म
हुआ है। पर यह तिरस्करणीय मनोवृत्ति – स्वयं की रक्षा न करने की वृत्ति –  मौजूदगी की वजह से हिन्दू समाज पर होनेवाले आक्रमण समाप्त होना संभव नहीं। 


संघ को हिन्दुओं की इस कमजोरी को निकाल बाहर कर इस पाप को धोकर निकलना है
और इसलिए ही इस आसेतु हिमालय हिन्दुस्थान के प्रत्येक कोने में संघ की  शाखाओं का मजबूत संजाल फैलाकर सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित, प्रबल और  स्वरक्षणक्षम बनाना, यही यही संघ की इच्छा है।”




प्रत्यक्ष काम करनेवाले लोग चाहिए


29 अगस्त, 1939 को लाहौर में संपन्न हुए अधिकारी शिक्षण वर्ग में डॉ.हेडगेवार ने अपने भाषण में संघ को अपेक्षित स्वयंसेवकों की योग्यता और गुण संवर्धन को लेकर महत्वपूर्ण बातें कही थी। उन्होंने कहा,   

“संघ को  प्रत्यक्ष काम करनेवाले लोग चाहिए। संघ के पास ऐसी कोई सत्ता नहीं कि किसी  से काम करवा सके, न धन है जिससे तनखा दे सके। संघ का कार्य moral force  (नैतिक बल) से चलता है। वह किसी पर जबरदस्ती नहीं कर सकता। इसलिए नैतिक बल
से ही लोगों को खींच कर आप संघ में ला सकते हैं। आपकी संख्या इतनी हो जानी  चाहिए कि आप लोगों को आकर्षित कर सकें, उनके दिलों को मोह लें, अपने  character (चरित्र) के मोह से। आपके सम्बन्ध में लोगों के दिलों में प्रेम  होना चाहिए। इस दृष्टि से आप attraction centre (आकर्षण का केन्द्र) बनने  की कोशिश करें। लोगों के अन्दर जो तकरार होती है, हमारे में न हो। आपको लोग आदर्श समझे। वह कहे कि नौजवान वह, कि जो संघ के स्वयंसेवक जैसा हो। उनके  मन में ऐसा विचार हो कि मेरा छोटा भाई भी संघ में जाकर ऐसा बनें। संघ के  स्वयंसेवक पर इस नाते सभी जवाबदारी है।”

उन्होंने कहा,“आपके मन में विचार हो कि पढ़ना भी संघ का कार्य है, क्योंकि संघकार्य के लिए पढ़ना है। जितना ज्यादा पढ़ जाऊंगा उतना ज्यादा कार्य कर सकूंगा। आपका व्यवहार आदर्श हो। दूसरे लोगों को भी ऐसा बनाने की आपकी जिम्मेदारी है। संघ का काम करने के लिए आपको योग्य होना चाहिए, शरीर से, दिमाग से, सब ओर से। ताकतवर आदमी कमजोर से ज्यादा कार्य कर सकता है।”   
प्रेम से प्रेम की वृद्धि


डॉ. हेडगेवार स्वयंसेवकों को प्रेम का महत्त्व बताते हैं। वे कहते हैं,

“लोगों को ऐसा प्रतीत होना चाहिए कि यह हमारे पास आए, बैठे, बातचीत करें। ऐसा नहीं
कि आपको देखकर लोग दौड़े, छिपते फिरें। लोगों को आप प्रेम से देखें, तो लोग  भी आपको प्रेम से देखेंगे। प्रेम से प्रेम की वृद्धि होती है।”

उन्होंने कहा कि, “मेरा सन्देश यही है कि आप ऐसे प्रेम और आदर्श की मूर्ति बनें कि लोग आपकी ओर खींचे आए। आपके हाथ के साथ किसी का हाथ भी लगे, आपके साथ कोई बात भी कर ले फिर वह आपको न भूल सके। ऐसी आपकी वाणी में मिठास हो। किसी पुरुष के आप सदगुण ग्रहण करें, साथ ही अपने प्रभाव से उसके दुर्गुण दूर करें।”
डॉ. हेडगेवार स्वयंसेवकों को आत्मपरीक्षण की सलाह देते हुए कहते हैं कि, “आप कभी भी अपनाप को   सर्वगुणसम्पन्न मत समझो, नहीं तो आपके सब गुण निरर्थक हो

जाएंगे। आप रात को सोते समय विचार करें कि दिनभर मैंने क्या किया, क्या
गलती की है, आगे क्या करना है। ऐसा सोचने से तथा करने से आप समाज के नेता
बनेंगे और जाति का काम बहुत बढ़ा सकेंगे।”
 

डॉ. हेडगेवार राष्ट्र से जितना प्रेम करते थे, उतना ही प्रेम वे समाज व स्वयंसेवकों से करते थे। उनमें मनुष्य को
देशकार्य के लिए समर्पित होने की प्रेरणा देने का अदभुत कौशल था। वे स्वयंसेवकों को मातृवत स्नेह करते थे, सलाह देते थे, प्रेरित करते थे। उनकी वाणी, चरित्र और कार्य में इतना सामर्थ्य था कि उन्होंने जिसके कन्धों पर
हाथ रखा वे उनके साथ चलने लगे। उन्होंने जिसे पुकारा वे उनके हो गए।

उन्होंने जिनको संघ के माध्यम से राष्ट्रकार्य में लगाया, उन सभी ने अपने ही तरह सैंकड़ों को तैयार किया, सैंकड़ों ने हजारों को तैयार किया, हजारों ने लाखों स्वयंसेवकों का जीवन गढ़ा। अब स्वयंसेवकों की तादात करोड़ों में हो गई है और ये स्वयंसेवक देश और दुनिया में समाज के उत्थान के लिए सेवाकार्यों के माध्यम से अपना कर्तव्य कर रहे हैं।
आज संघ के ही एक स्वयंसेवक व प्रचारक श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं। उनके ही प्रस्ताव को मानकर हाल ही में 21 जून, 2015 को दुनियाभर में “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” मनाया गया।

यह संघ के स्वयंसेवक के प्रस्ताव की वैश्विक मान्यता का अनुपम उदाहरण है।   
साभार: न्यूज़ भारती newsbharati.com

सोमवार, 22 जून 2015

संस्कृति सत्य - आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के मूल निवासी थे भारतीय

संस्कृति सत्य - आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के मूल निवासी थे भारतीय





दक्षिण पूर्वी एशिया के 20-25 देशों में आजकल भारत महोत्सव अर्थात् 'फेस्टिवल ऑफ इंडिया' जोर-शोर से मनाए जा रहे हैं। इन में से हर एक देश में वहां के निवासियों के मूलत: भारतीय होने के साक्ष्य मिलते रहे हैं। इनमें से अनेक मुस्लिम देश हैं पर फिर भी वहां बात-बात पर रामायण-महाभारत से उदाहरण दिया जाना आश्चर्यजनक नहीं है। लेकिन इस वर्ष एक नई बात देखने में आई है कि
आस्ट्रेलिया में काफी लोग अपने भारतीय मूल के होने पर शोध के लिए आगे आए हंै। ये शोधकार्य जर्मनी स्थित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी नामक संस्था ने किए हैं। दो वर्ष पूर्व वे पहली बार सामने आए थे। लेकिन आज यह शोधकार्य दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों, न्यूजीलैंड और
फिजी जैसे देशों, जो आस्ट्रेलिया महाद्वीप के हिस्से हैं, के लोकजीवन तक पहुंचा है। इस संस्था की शोधकर्ता इरिना पुगुच का कहना है कि भारत से आस्ट्रेलिया में बड़े पैमाने पर लोगों एवं जानवरों की आवाजाही के प्रमाण
मिले हैं। वहां के लोकप्रिय कुत्ते 'डिंगो' के भी मूलत: भारतीय नस्ल के होने के निष्कर्ष सामने आए हैं।

इस शोधकार्य के कारण आज तक के इस हिस्से का जो इतिहास बताया गया है, उसे बड़े पैमाने पर झटका लगा है। आमतौर पर आस्ट्रेलिया के लोकजीवन के विषय में दो मत स्थापित थे- एक तो यह कि लगभग 250 वर्ष पूर्व कैप्टन कुक नामक अंग्रेज नाविक सन् 1770 में वहां पहुंचा था। तब से वहां सभ्यता, शिक्षा, खेती, विकास, औद्योगिकीकरण जैसे शब्द प्रचलित हुए। उससे पूर्व वहां लोगों की बस्ती तो थी लेकिन वह 45 हजार वर्ष पूर्व वहां आए मिस्र के लोगों की थी। यह स्पष्ट हो चुका है कि वे सब लोग आदिम तौर-तरीके से ही रहते थे। लंदन के द टेलिग्राफ अखबार ने तो जर्मन संस्था के शोध के बारे में दावा किया है कि दक्षिण पूर्वी एशिया के अन्य देशों की तरह आस्ट्रेलिया में भी भारतीय लोगों का ही प्रथम प्रवेश हुआ। इस शोध के कारण दक्षिण पूर्वी एशिया से न्यू गिनी एवं न्यूजीलैंड तक के क्षेत्र में भारतीयता का भाव नए सिरे से उभरा है।

जर्मनी स्थित इस संस्था द्वारा किए शोधकार्य को प्राथमिकता देना काफी मायने रखता है। इस शोधकार्य का असर अब वहां के लोकजीवन पर दिखने लगा है। मलेशिया, इंडोनेशिया, बोर्नियो, जावा, सुमात्रा, सिंगापुर में होने वाले 'फेस्टिवल ऑफ इंडिया' में आस्ट्रेलियाई लोग उसे 'अपना उत्सव' मानकर सहभागी हो रहे हैं। उनके साथ जुड़ने में एक और उपयोगी भाग है उस हिस्से में बोली जाने वाली एस्ट्रोनेशियाई भाषा। आस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्वी एशिया में बोली जाने वाली भाषाओं की एकरूपता पुन: स्पष्ट हुई है। यह भाषा समुदाय, जिसमें 35 करोड़ लोगों की बोलने एवं ज्ञान की भाषाएं हैं, भारतीय और ताइवानी भाषा से विकसित हुआ है। वहां भी मुख्यत: बौद्ध सभ्यता ही होने के कारण भारतीयता की भावना बढ़ रही है। इस सबके मद्देनजर उतनी ही महत्वपूर्ण अन्य बातों पर गौर करना भी आवश्यक है। वह यह कि यद्यपि इस हिस्से में भारतीय भाषाओं का वर्चस्व होना चाहिए, लेकिन पिछली कुछ सदियों में शिक्षा और प्रतिदिन के व्यवहार में अरबी एवं लातीनी लिपियों का प्रयोग बढ़ा है।

फिर भी उस भाषा के मूलत: दक्षिण भारत की पल्लव लिपि से विकसित होने के कारण उसमें भारतीयता आज भी कायम है। इसमें भारतीयों की दृष्टि से ध्यान देने की बात यह है कि दक्षिण पूर्वी एशिया एवं आस्ट्रेलिया में 'इंडियन ओरिजिन' के नाम पर सब लोग जब एक हो रहे हैं, तब 125 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत को उसकी अधिक जानकारी नहीं है। जर्मन संस्था जब वहां के समाज के मूलत: भारतीय होने पर शोध का निष्कर्ष सामने लाई तब वहां के लोगों ने महोत्सव मनाए, लेकिन भारत, जो उनका मूल देश है, से उनके स्वागत के लिए कोई नहीं पहुंचा।

आज नए सिरे से इसका उल्लेख करने का कारण यह है कि केवल दक्षिण पूर्वी एशिया और आस्ट्रेलिया ही नहीं बल्कि पिछले कुछ वषोंर् में पूरी दुनिया में 'भारत भाव' जागृत होता दिखा है। यह भारत भाव केवल भारतीय होने के गर्व तक सीमित नहीं है। विश्व के अलग-अलग हिस्सों में, कहीं दस हजार वर्ष पूर्व तो कहीं पांच हजार वर्ष पूर्व भारतीय अध्ययनकर्त्ताओं और विद्वानों ने वेदों, उपनिषदों और प्राचीन भारतीय शास्त्रों का संदेश पहुंचाया था।

आज पूरे विश्व में स्वीकारा जा रहा योग इसका एक खास उदाहरण है। अगले सप्ताह पूरे विश्व में 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' मनाया जा रहा है। योग केवल कसरत नहीं है। योग प्रतिदिन काम की क्षमता बढ़ाने वाली 'ऊर्जा' का साधन मात्र नहीं है। योग के कारण अनेक असाध्य रोग ठीक होते हैं, यह प्रमाणित हुआ है। मनुष्य का सवांर्गीण विकास ही योग का उद्देश्य है। जिसे पारलौकिकता की समझ हो उसके लिए वह पारलौकिक भी है और आध्यात्मिकता जिनका विषय नहीं है, उनके लिए भी वह उतना ही परिणामकारक है। योग भारतीय जीवनशैली का एक अंग है। नैतिकता के आधार पर खुद को, परिवार और सामाजिक जीवन को प्रतिदिन अधिकाधिक समृद्ध करने वाली हजारांे वर्ष से चली आ रही परंपरा का यही संदेश अनेक शास्त्रों, कलाओं के माध्यम से इस देश के ऋषि-मुनियों ने दिया है। हजारोें वर्ष से विश्व में उनका यह संदेश प्रसारित किया जा रहा है। पिछले एक हजार वर्ष तक भारत के परतंत्र रहने के कारण हम खुद और दुनिया भी उसे भूल चुकी थी।

अब फिर से सबको उसका एहसास हो रहा है । भारतीय मूल के लोग विश्व के कोने-कोने में पहुंचे थे। इसकी जानकारी तो थी, लेकिन पिछले कुछ वषोंर् में उसका और व्यापक स्वरूप सामने आ रहा है। यूरोप का हर देश अब भारत से स्वतंत्र नाता जता सकता है। अफ्रीका से जो संवाद था वह भी स्पष्ट हो रहा है। दक्षिण पूर्वी एशिया, चीन, जापान में भी कदम-कदम पर भारतीयता स्पष्ट हो रही है। आश्चर्य की बात तो यह है कि अमरीका के अनेक देशों से संबंध भी स्पष्ट हो रहे हैं। इस सबके बीच कई बार प्रतीत होता है कि कदाचित यह एक बड़ी प्रक्रिया का आरंभ तो नहीं। लेकिन पूरे विश्व में यह भावना  भारत के हर एक व्यक्ति तक पहुंचे, तभी सब एकाकार होंगे।

एकाकार होने की यह प्रक्रिया शायद अनेक वर्ष चले लेकिन वह शीघ्रातिशीघ्र शुरू होनी चाहिए। पूरे विश्व में हमारे बंधु कहां हैं और उनकी स्थिति आज कैसी है, इसका जायजा हमें लेना होगा।

जर्मनी की संस्था द्वारा किया गया काम बारीकी से देखना चाहिए। उसने आस्ट्रेलिया की भूमि में मिले इंसानों, जीव-जंतुओं और वनस्पति के जीवाश्मों के डीएनए का अध्ययन कर उपरोक्त निष्कर्ष निकाला है। उनका कहना है कि आस्ट्रेलिया, न्यू गिनी, फिलिपींस का ममन्वा समुदाय और न्यूजीलैंड में भी भारतीय मूल वाले जीवाश्म मिले हैं। आज की जानकारी के अनुसार, आस्ट्रेलिया के 11प्रतिशत लोग भारतीय मूल के हो सकते हैं। जर्मन शोधकर्ताओं का कहना है कि उस समय भारत से बड़े पैमाने पर आस्ट्रेलिया में 'जीन फ्लो' हुआ होगा।

आस्ट्रेलिया स्थित इन भारतीय मूल के लोगों की भाषा के बारे में भी यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टन् र आस्ट्रेलिया के शोधकर्ता डॉ. जो़ डोर्च ने शोध किया है। उनका कहना है कि न्यूजीलैंड, न्यू गिनी से मलेशिया तक के हिस्से के 35 करोड़ लोग जो भाषा बोलते हैं, उस भाषा और आस्ट्रेलिया के भारतीय मूल के लोगों की भाषा का आपस में संबंध है। डॉ. डोर्च आस्ट्रेलिया में मानवशास्त्र की दृष्टि से कई विश्व मान्य शोध करने वाले वैज्ञानिक हैं।

इसलिए जर्मनी की संस्था के शोधकार्य का और एक परिणाम सामने आया है और वह यह है कि दक्षिण पूर्वी एशिया में जो भारतीय सभ्यता आज दिखती है, उससे आस्ट्रेलिया स्थित भारतीय मूल के लोग जुड़े हुए हैं। मलेशिया, आस्ट्रेलिया और ताइवान में बोली जाने वाली भाषाओं के समूह के बारे में सर्वप्रथम जर्मन विद्वान डॉ. आटो डेम्पवुल्फ ने शोध किया। उनके मत में एस्ट्रोनेशियन भाषा एक भाषा नहीं है। इस भाषा को उस हिस्से में 'बहासा' कहा जाता है। डॉ. आटो डेम्पवुल्फ नामक वैज्ञानिक 20वीं सदी के प्रारंभ में हुए थे। आज लगभग 35 करोड़ लोग इस भाषा समूह के अंतर्गत आते हैं। इस शब्द का अर्थ ही है एशिया और आस्ट्रेलिया में बोली जाने वाली 'बहासा' अर्थात् भाषा। मलय भाषा इस समुदाय की प्रमुख भाषा है। हिंदी, संस्कृत, तमिल की ही तरह ताइवानी भाषा इसकी प्रमुख घटक है। इस भाषा के 300-400 वर्ष पूर्व के आलेख पल्लव लिपि में हैं। इस लिपि की शैली भले दक्षिणी लिपि जैसी हो लेकिन उसके मूल अक्षर 'क ख ग घ ङ ' ही  हैं। भारत की प्रगत भाषाओं में 'ऋ' मूल अक्षर का प्रयोग किया जाता है, उसी तरह मलय भाषा में भी 'ऋ' का मूल अक्षर के रूप में प्रयोग किया
जाता है। आज ये भाषाएं अरबी और लातिनी लिपि में प्रयुक्त की जाती हैं।

वहां इस्लाम का प्रभाव बढ़ने के बाद अरबी लिपि आई। यूरोपीय लोगों का प्रभाव बढ़ने के बाद लातिनी लिपि का प्रभाव बढ़ा। पिछली पांच-छह सदियों में इस भाषा की लिपि 'अरबी' हुई है। इस पूरे माहौल में भारत की भूमिका बड़े भाई की होने के बाद भी एक हजार वर्ष की दासता के कारण इस देश की भूमिका छोटे भाई से भी कम ही रही है। कुछ संस्थाएं उसके लिए काम कर रही थीं लेकिन सरकारी स्तर पर पिछले 68 वषोंर् तक इसकी उपेक्षा ही हुई। इनमें भाषा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का महत्व है ही, लेकिन सबसे महवपूर्ण तो यह है कि उन 35 करोड़ लोगों में हर एक व्यक्ति हमारा अपना है। आस्ट्रेलिया से लेकर माओरी समाज तक जो भारतीयता है वह वहां के लोगों द्वारा अत्यंत प्रतिकूल परिस्थिति में सहेजी गई भारतीयता है। आस्ट्रेलिया के युवाओं द्वारा पिछले 15-20 वर्ष में किया गया शोधकार्य देखा जाए तो दक्षिण पूर्वी एशियाई हिस्सों के सांस्कृतिक जीवन एवं जमीन के नीचे से मिले जीवाश्मों के डीएनए में भारत और आस्ट्रेलिया का असर कहां-कहां है, इस पर गौर किया जा रहा है।    - मोरेश्वर जोशी
साभार: पाञ्चजन्य

रविवार, 21 जून 2015

भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है ”योग“ ः दत्तात्रेय होसबाले

भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है ”योग“ ः दत्तात्रेय होसबाले
वाराणसी, 21 जून। निवेदिता ”िाक्षा सदन बालिका इण्टर कालेज, तुलसीपुर, महमूरगंज में अंतर्रा’ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आयोजित योग कार्यक्रम में रा’ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मा0 मोहन मधुकर भागवत जी की उपस्थिति में स्वयंसेवकों ने सामूहिक रूप् से भाग लिया। इस अवसर पर योग कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि योग भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है। योग का तात्पर्य जोड़ना है, योग मात्र आसन, प्राणायाम एवं रोगोपचार तक ही सीमित नही है। योग मन कोे “ारीर से, मनु’य को प्रकृति से, विचार को कर्म से तथा  परमपिता परमात्मा से आत्मा के मिलन का साधन है।
उन्होंने कहा कि योग किसी न किसी रूप में पूरे वि”व में प्रचलित है। योग जैसे ही भारत मूल के ध्यान को भी चीन एवं जापान में ”जेन“ के नाम से जाना जाता है। हजारों वर्’ा पहले से ही हमारे ऋ’िा-मुनियों ने योग को पूरे वि”व में फैलाने का प्रयास किया। योग वि”व में कई नामों से जाना जाता है- पातंजलि योग, हठ योग, लय योग, जैन योग, बौद्ध योग आदि। वि”व भी भारत की संस्कृति का गुणगान करता रहा है और इसकी महत्ता को समझ चुका है। यही कारण है कि संयुक्त रा’ट्र संघ ने कुछ वर्’ा पहले ऋग्वेद को वि”व धरोहर के रूप में स्वीकार किया। मा0 दत्तात्रेय जी ने भगवान ”िाव को आदियोग गुरू बताया क्योंकि भगवान ”िाव ने ही सप्त ऋ’िायों को प्रथम बार अ’टांग योग दर्”ान कराया। योग का महत्व हमारे मा0 प्रधानमंत्री जी ने अपने अमेरिकी यात्रा के दौरान वि”व के समक्ष रखा और उनका ध्यान आकर्’िात कराया। बाद में दिसम्बर मे आयोजित संयुक्त रा’ट्र संघ की बैठक में योग को 177 दे”ाों की मान्यता मिली और 21 जून को वि”व योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। रा.स्व.संघ ने भी 2015 मार्च में नागपुर में सम्पन्न अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बैठक में एक प्रस्ताव द्वारा संयुक्त रा’ट्र संघ के निर्णय का अभिनन्दन करते हुए सभी दे”ावासियों से योग दिवस में सहभागी होने के लिए आग्रह किया था। आज के दिन सैकड़ों दे”ा योग दिवस मना रहे हैं यह हम सब भारतवासियों के लिए गौरव का वि’ाय है। इसमें संघ के कई केन्द्रीय अधिकारी प्रमुख रूप से मा0 सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी, मा0 मधुभाई कुलकर्णी जी, मा0 इन्द्रे”ा कुमार जी, मा0 अनिल ओक जी एवं क्षेत्रीय, प्रान्तीय एवं जिलों से आये कार्यकर्ताओं ने भाग लिया

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जोधपुर प्रान्त में सम्पन्न अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की झलकियाँ

       जोधपुर प्रान्त में सम्पन्न अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की झलकियाँ 

जोधपुर 


जोधपुर 
गंगानगर 
सूरतगढ़ 
जोधपुर 




फलोदी  


बीकानेर 

बीकानेर 

शनिवार, 20 जून 2015

योग के लाभ से लाभान्वित होगा पूरा विश्व, 21 जून को दुनियाभर में 2 अरब लोगों के भाग लेने की संभावना

योग के लाभ से लाभान्वित होगा पूरा विश्व, 21 जून को दुनियाभर में 2 अरब लोगों के भाग लेने की संभावना

Yoga-for-harmony-peaceनई दिल्ली. योगश्चितवृत्तिनिरोध: अर्थात चित्तवृत्तिओं पर नियंत्रण ही योग है. मन और शरीर के मध्य सामंजस्य योग है. जीवन जीने की कला योग है. योग को धर्म के साथ जोड़ना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता. योग धर्म, आस्था, मान्यताओं से परे है. यह वसुधैव कुटुम्बकम के मार्ग पर चलने वाले भारत की दुनिया को अमूल्य देन है. योग न केवल एक चिकित्सा पद्धति है, अपितु मनुष्य योग के माध्यम से अपने जीवन की श्रेष्ठता को हासिल कर सकता है. जिस प्रकार हमारे ऋषियों, मुनियों ने हासिल की थी. आज भारत की धरोहर को वैश्विक पहचान मिल रही है, और पूर्ण विश्वास है कि समस्त विश्व इससे लाभान्वित होगा.

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर में भारत के प्रधानमंत्री के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम के कुटेसा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की और कहा कि 170 से अधिक देशों ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव का समर्थन किया, जिससे पता चलता है कि योग के अदृश्य और दृश्य लाभ विश्व के लोगों को कितना आकर्षित कर रहे हैं. अब संयुक्त राष्ट्र की सराहनीय पहल से पूरी दुनिया योग के लाभ से परिचित होगी.

महर्षि पतंजलि, ऋषियों के अनथक अनुसन्धान, तप और परिश्रम से योग व “पातंजल योगसूत्र” हमें प्राप्त हुआ. आज हमारी यह धरोहर विश्व के रोग, शोक, भय और उदासीनता को दूर करने के साधन के रूप में सबके सामने है. भारत की ओर से योग ऐसा उपहार है, जो मनुष्य को उसके जीवन लक्ष्य तक पहुंचाने का सहज माध्यम है.
इस अमूल्य भारतीय धरोहर को पूरे विश्व में प्रचारित करने को लेकर भारत सरकार ने भी योजनाबद्ध ढंग से हर संभव प्रयास किया है. ताकि पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन को सफल किया जा सके. संयुक्त राष्ट्र के अलावा गैर सरकारी संगठन अपने स्तर पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर कार्यक्रम करने वाले हैं. विभिन्न देशों में स्थित दूतावासों को योग दिवस पर कार्यक्रम के आयोजन और आयोजनों में सहयोग की जिम्मेदारी दी गई है. एक अनुमान के अनुसार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों में पूरी दुनिया में लगभग 2 अरब (दो बीलियन) लोग शामिल होंगे, जो अपने आप में एक अनूठा रिकार्ड होगा. विश्व के करीब 192 देशों के 256 शहरों में छोटे-बड़े स्तर पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित होने का अनुमान है.

विश्व भर में आयोजित कार्यक्रमों में एकरूपता लाने के लिए 17 सदस्यों वाली विशेषज्ञों की टीम (जिसमें बाबा रामदेव, एस-व्यासा के अध्यक्ष डॉ एचआर नागेंद्र, श्रीश्री रविशंकर सहित अन्य शामिल हैं) ने 35 मिनट की डीवीडी (प्रोटोकॉल, जिसमें विभिन्न योगासनों को शामिल किया है) तैयार की है, जिसे संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व के विभिन्न देशों को भेजा गया है. साथ ही विभिन्न देशों के सहयोग व योग दिवस पर होने वाले कार्यक्रम की सफलता के लिए भारत से 100 से अधिक प्रशिक्षित योग शिक्षकों को भी भेजे जाने की सूचना है.

देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले कार्यक्रम को भी विशेष बनाने की तैयारी है. अभी तक की जानकारी के अनुसार योग दिवस पर 35 हजार से अधिक लोग राजपथ पर सामूहिक रूप से योग करेंगे, कार्यक्रम में सौ से अधिक देशों के नागरिकों को शामिल करने के भी प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर कार्यक्रम की वैश्विक झलक दिल्ली में देखने को मिल सके. दिल्ली में होने वाले कार्यक्रम में प्रधानमंत्री स्वयं उपस्थित रहने वाले हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में एस व्यासा संस्थान, आरोग्य भारती सहित अन्य संगठन देश भर में मधुमेह मुक्त भारत अभियान के तहत योग शिविरों (साप्ताहिक) का आयोजन करने वाले हैं. शिविरों के आयोजन का क्रम 21 जून से जिला, नगर स्तर पर शुरू होगा. शिविरों का उद्देश्य योग के महत्व को प्रचारित करने के साथ ही मधुमेह मुक्त भारत का निर्माण करना है. शिविरों के लिए एक विशेष कोर्स तैयार किया गया है, जिससे मधुमेह से पीड़ित रोगियों को लाभ मिलेगा. विश्व के विभिन्न देशों में भी योग दिवस पर गैर सरकारी संगठन अपने स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन करने वाले हैं.

यह भी विडंबना ही है कि अपने ही देश में योग दिवस को लेकर विरोध व राजनीति भी खूब हो रही है. जहां पूरा विश्व योग को अपनाने को तैयार है, मुस्लिम देशों में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन होगा, इन देशों में तैयारी चल रही है. वहीं अपने देश में राजनीतिक पार्टियों के साथ ही कुछ धर्मों के लोग संभवतया बेवजह विवाद खड़ा कर रहे हैं. उन्हें समझना होगा कि योग किसी धर्म संप्रदाय से संबंधित नहीं है, श्रेष्ठ जीवन का आधार है. यह भारत की पूरी दुनिया को देन है. आश्चर्यजनक रूप से अपने ही देश में कुछ राज्यों से यह भी समाचार मिल रहे हैं कि सरकार ने सरकारी स्तर पर योग दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन न करने का निर्णय लिया है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम के कुटेसा के अनुसार “योग विचारों और कर्म को सामंजस्यपूर्ण ढंग से एकाकार करता है और स्वास्थ्य को ठीक रखता है.” भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अनुसार संयुक्त राष्ट्र की ओर से लिया गया फैसला वैश्विक स्तर पर योग को लोकप्रिय करेगा और इस ‘अमूल्य भारतीय धरोहर’ से दुनिया के लोग लाभ पा सकेंगे.

निकुंज सूद

शुक्रवार, 19 जून 2015

चीनी भाषा में प्रकाशित हुई ;भगवद गीता, योग दिवस को लेकर भी उत्सुकता'

चीनी भाषा में प्रकाशित हुई भगवद गीता; योग दिवस को लेकर भी उत्सुकता'




बीजिंग, जून 18 : भारतीय सनातन संस्कृति की सबसे
प्रसिद्ध और पूजनीय ग्रंथ 'भगवद गीता' के चीनी संस्करण को अब चीन में
प्रकाशित किया गया है। मानवीय जीवनदर्शन के लिए पथप्रदर्शक के तौर पर सबसे
उपयुक्त इस ग्रंथ को अंतर्राष्ट्रीय योग सम्मेलन के दौरान सबके सामने लाया
गया।



पवित्र भगवद गीता का चीनी भाषा में अनुवाद झेजियांग विश्वविद्यालय के
प्रोफेसर वांग झू चेंग तथा लिंग हाई ने किया है एवं इसे सिचुआन पीपल्स
प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इसे ग्रंथ का विमोचन सिचुआन प्रांत के
दक्षिण-पश्चिम में स्थित दुजियानज्ञान में एक योग फेस्टिवल कार्यक्रम के
दौरान किया गया जिसमें भारत से आए योग प्रशिक्षकों ने भी हिस्सा लिया था।


गीता के चीनी संस्करण का विमोचन चीन में भारत के राजदूत अशोक के कंठ ने
बुधवार को किया। इसमें प्रस्तावना का योगदान के नागराज नायडू ने दिया जो
कुछ समय पहले तक गुआंगझू में भारतीय काउंसल जनरल थे।


हालांकि, प्राचीन बौद्ध लेखन और ग्रन्थों को चीन में काफी जाना जाता रहा
है क्योंकि सातवीं सदी में भारत की यात्रा पर आए चीनी विचारक हुएन सांग ने
चीन में इनका काफी प्रचार-प्रसार किया लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब एक
प्राचीन हिन्दू सनातनी ग्रंथ को चीन में प्रकाशित किया जा रहा है।


पिछले वर्ष ही भारत व चीन ने दोनों देशों के सदियों पुराने संस्कृति पर
आधारित एक एनसाइक्लोपीडिया का प्रकाशन किया था जिसमें इनकी 2000 वर्ष से भी
पुरानी सभ्यता का वर्णन किया गया।


हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग
द्वारा कई मौकों पर सौहार्दपूर्ण मेल-मिलाप किया गया। और तो और पिछले ही
महीने प्रधानमंत्री मोदी ने चीन का सफलतम दौरा किया था जिसमें दोनों देशों
ने व्यापार से लेकर तकनीक और सवास्थ्य से संस्कृति के क्षेत्र में
आदान-प्रदान एवं सहयोग पर सहमति जताई थी। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को
ज़ोर-शोर से मनाने में भी चीन तत्पर है और कई सारे कार्यक्रमों को आयोजित भी
कर रहा है।


इसी को देखते हुए भारत-चीन (चेंगड़ू) अंतर्राष्ट्रीय योग फेस्टिवल में 21
नामचीन योग प्रशिक्षक पूरे चीन से आए 700 उत्साहित लोगों को प्रशिक्षण भी
दे रहे हैं। पाँच दिवसीय योग फेस्टिवल 21 जून तक चलना है और उस दीं तो वैसे
भी पूरे चीन में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन होने वाला है।










आडवाणी के बयान का गलत मतलब निकाला गया: संघ'





नई दिल्ली, जून 19: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने आडवाणी का बचाव करते हुए कहा कि उनके बयान का गलत मतलब निकाला गया है।




















संघ के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य ने कहा, उन्होंने आडवाणी का पूरा साक्षात्कार पढा है, उनकी बात को गलत समझा जा रहा है। मुझे नहीं लगता कि आपातकाल की स्थिति आएगी। आपातकाल किसी इलाके या प्रदेश में लगाई जा सकती है, पर पूरे देश में नहीं। मैं आडवाणी जी को जानता हूं, उनके बयान का गलत मतलब निकाला जा रहा है। उन्होंने आपातकाल लगाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आलोचना की।


वहीं कांग्रेस ने भी आडवाणी के बयान को सही बताते हुए मौजूदा समय को आपातकाल जैसा बताया है। कांग्रेस नेता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि जब सारा नियंत्रण कुछ व्यक्तियों के हाथों में सिमट जाता है तो आपातकाल का डर पैदा होना स्वाभाविक है और लोग भी इसका अनुभव कर रहे हैं। उन्होंने कहा, भाजपा के लोगों को ही लग रहा है कि आपातकाल की स्थिति आ गई है, लेकिन कोई कहने की हिम्मत नहीं कर रहा। अब लोगों के अधिकार पहले जैसे नहीं रहे, तभी उन्हें (आडवाणी) ऎसा लगता है।


सरकार" का नारा लगा रहे थे, हम तभी से चिंतित थे। क्योंकि अगर सब कुछ किसी एक व्यक्ति के हाथ में दे देंगे तो यह जनता के लिए बहुत खतरनाक होगा।
हिन्दुस्थान समाचार/नीरज/अनूप

साभार: न्यूज़ भारती

गुरुवार, 18 जून 2015

राजस्थान की सीमाजन कल्याण समिति को तृतीय सिंधुपति महाराजा दाहरसेन सम्मान

राजस्थान की सीमाजन कल्याण समिति को तृतीय सिंधुपति महाराजा दाहरसेन सम्मान
राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में श्रोताओं ने वीर रस की कविताओं से महाराजा दाहरसेन को किया नमन






 

अजमेर 16 जून। सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन स्मारक विकास एवं समारोह समिति अजमेर, अजमेर विकास प्राधिकरण, नगर निगम एवं पर्यटन विभाग के सहयोग से 1303वां बलिदान दिवस समारोह हरिभाऊ उपाध्याय नगर स्थित दाहरसेन स्मारक पर आयोजित किया गया। 
समारोह के आरंभ में महाराजा दाहरसेन सर्किल से सीमाजन कल्याण समिति, जोधपुर के प्रदेश महामंत्री एडवोकेट बंशीलाल जी भाटी व प्रदेश कोषाध्यक्ष जयकिशन जी डागा को बग्धी में बैठा कर और बैंड की धुन के बीच पुष्प वर्षा करते हुए मुख्य द्वार तक हरिभाऊ उपाध्याय नगर विस्तार के पदाधिकारियों द्वारा स्वागत किया गया, जिसका नेतृत्व महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमति अनिता जी भदेल ने किया। स्मारक में प्रवेश के बाद हिंगलाज माता की पूजा-अर्चना की गई और महापुरुषों के चित्रों के साथ महाराजा दाहरसेन के मूर्ति पर श्रद्धा-सुमन अर्पित किए।
 
समारोह की शुरुआत कुमारी ममता तुलस्यिाणी की ओर से प्रस्तुत राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् के साथ हुआ। इसके बाद संतों का माला व शॉल पहना कर स्वागत किया गया। स्वागत भाषण के बाद श्रीमती अनिता जी भदेल राज्य मंत्री महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, श्री ओंकार सिंह जी लखावत अध्यक्ष राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रौन्नति प्राधिकरण ने सभा को संबोधित किया। श्री चम्पालाल जी महाराज, मुख्य उपासक, भैरवधाम, राजगढ़ और स्वामी श्यामदास जी, बालकधाम, किशनगढ़, राष्ट्रीय महामंत्री, अखिल भारतीय सिन्धी साधु सन्त समाज, स्वामी आत्मदास निर्मलधाम ने आशीर्वचन देते हुये स्मारक से सनातन धर्म प्रचार का केन्द्र बताया।

तृतीय राष्ट्रीय सम्मान सीमाजन कल्याण समिति जोधपुर के साथ विजेता हुए पुरस्कृत

इसके बाद सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन का तृतीय राष्ट्रीय सम्मान सीमाजन कल्याण समिति, जोधपुर के बारे में संक्षिप्त परिचय देकर समिति के पदाधिरियों का सभी अतिथिगण व संत समाज के हाथों रुपये 51000 का ड्राफ्ट, शॉल, श्रीफल, माला इत्यादि से अभिनंदन किया गया। सम्मान लेने के बाद महामंत्री बंशीलाल जी भाटी का उद्बोधन में कहा कि यह सम्मान समिति के कार्याें व कार्यकर्ताओ के त्याग के कारण प्राप्त हुआ है।  यह राशि इन्ही सेवा कार्यों के साथ महाराजा द्ाहरसेन के बलिदान से प्रेरणा लेकर शिक्षा में उपयोग लिया जायेगा। सीमाजन कल्याण समिति, जोधपुर राजस्थान की सीमा क्षेत्र में रहने वाले विस्थापितों हेतु शिक्षा, राष्ट्रीय प्रेम भावना, गौसेवा, चिकित्सा सहित अन्य सेवाओं में समर्पित संस्था है।
 
ज्ञातव्य है समिति की ओर से हर वर्ष सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन के जीवन मूल्यों के संरक्षण, सवंर्द्धन एवं प्रकाशन के साथ सिन्धु सभ्यता पर किये गये शोध कार्य, साहित्यिक, लेखन कार्य, प्रकाशन एवं नाट्य विद्या में किये गये उल्लेखनीय कार्य व सिन्ध से आये विस्थापितों के पुनर्वास हेतु व्यक्तिगत या संस्था को राष्ट्रीय सम्मान दिया जाता है, जिसमें 51 हजार रुपये की नकद राशि श्रीफल, प्रशस्ति पत्र के साथ प्रदान किया जाता है। समिति द्वारा प्रथम सम्मान वर्ष 2013 में इण्डियन इंस्ट्यिूट ऑफ सिन्धोलॉजी, आदीपुर, गांधीधाम को एवं द्वितीय सम्मान पिछले वर्ष 2014 को शदाणी दरबार, रायपुर (छतीसगढ़) के सन्त युधिष्ठर लाल जी को समारोहपूर्वक कार्यक्रम आयोजित कर प्रदान किया गया था।
इस मौके पर रंगभरो प्रतियोगिता के विजेताओं का सम्मान स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र देकर किया गया। इस मौके पर राष्ट्रीय सिन्धी भाषा विकास परिषद, नई दिल्ली द्वारा सिन्ध की प्रदर्शनी के साथ पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई।
समारोह में नई दिल्ली से आए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. घनश्याम दास जी, भारतीय सिन्धु सभा के प्रदेश संगठन महामंत्री मोहनलाल वाधवाणी ने स्मारक पर विशाल आडिटोरियम व मदस विश्वविद्यालय में सिन्धु पीठ की चर्चा की। बाड़मेर से श्री तेजदानसिंह व मौल्लवी अब्दुल करीम ने भी अपने विचार प्रकट किये। स्वागत भाषण महेन्द्र कुमार तीर्थाणी व आभार संयोजक सम्पत सांखला ने किया। समारोह का सफल संचालन आभा भारद्वाज ने किया।

कवि सम्मेलन में हुआ देश भक्ति के साथ महाराजा द्ाहरसेन के बलिदान को किया याद

समारोह के दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन हुआ, जिसमें आरंभ में पार्षद श्री सम्पत सांखला द्वारा कविवृंद श्री हरिओम जी पंवार, श्री जगदीश सोलंकी, श्री अशोक चारण का परिचय दिया गया।
 
सम्मेलन में हरिओम पंवार ने कहा कि हम केवल हिन्दुस्तान के अन्दर क्रोध को जिन्दा करके रखे देखना जरूर सिन्ध को लेकर रहेगें........., संस्कार व संस्कृति के केन्द्र को सदैव याद रखना है...........।
 
अशोक चारण ने अजमेर की पवित्र धरती को देश भर में राष्ट्रभक्ति का केन्द्र बताकर कहा कि अब सीमा पर कोई ललकार के तो देखे ईट का जवाब पत्थर से दिया जायेगा.................का खूब तालिया से स्वागत किया गया। कवि जगदीश सोलंकी ने महारजा दाहरसेन के पूरे परिवार की बलिदान कीगाथा को वीर रस में प्रस्तुत कर जनता की खूब वाह वाह लूटी।
 
समारोह में अजमेर विकास प्राधिकरण की सचिव स्नेहलता पंवार, जिला रसद अधिकारी सुरेश सिन्धी, पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत, पूर्व विधायक श्री बाबूलाल सिंगारिया, श्री नवलराय बच्चाणी, हरीश झामनाणी, पूर्ण शंकर दशोरा, नवीन सोगाणी,कमल पंवार, शैलेन्द्र सतरावाला, तुलसी सोनी, खेमचन्द नारवाणी, नरेन शाहणी भग्त, महेश टेकचंदाणी नरेन्द्र बसराणी सहित प्रदेश के विभिन्न जिलो से कार्यकर्ता उपस्थित थे।


ऐसा प्रकल्प चले जो समाज को बल प्रदान कर सके - मुरलीधर जी

ऐसा प्रकल्प चले जो समाज को बल प्रदान कर सके - मुरलीधर जी 
दिवंगत पदाधिकारियों के स्मारक पर पुष्प अर्पित
 
 जैसलमेर। सीमाजन कल्याण समिति के दिवंगत पदाधिकारियों स्व. राकेश कुमार और स्व. भीखसिंह भाटी की प्रथम पुण्यतिथि पर सोढ़ाकोर गांव के समीप उनके स्मारक स्थल पर समिति व उसमें सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने पुष्प अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उसके पश्चात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक मुरलीधर ने कहा कि समिति के दो श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं का इसी स्थान पर सीमा सुरक्षा के निमित्त प्रवास करते हुए सड़क हादसे में देहावसान हो गया। अब उनके काम को आगे बढ़ाने के लिए हम सभी को अवसर मिला है। इस स्थान पर ऐसा प्रकल्प चले जो समाज को बल प्रदान कर सके। उन्होंने स्मारक के लिए एक बीघा जमीन दान करने वाले देवीसिंह परिवार के प्रति आभार जताया।

 इस अवसर पर सोढ़ाकोर सरपंच योगेश्वर भारती, समिति के प्रांतीय महामंत्री बंशीलाल भाटी, पदाधिकारी अलसगिरी, मुरलीधर खत्री, शरद व्यास, अमरसिंह सोढ़ा, वीरेन्द्रसिंह बैरसियाला, हमीर सिंह, भूरसिंह बीदा, लालूसिंह सोढ़ा, गणपतसिंह के साथ चांधन, सोढ़ाकोर व आसपास के सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।


भक्ति और शक्ति के स्तुति गान से बंध गये श्रोता

 बालोतरा के गायक प्रकाश माली ने यादगार प्रस्तुतियां दी



जैसलमेर । सीमाजन कल्याण समिति जैसलमेर के तत्वावधान में गुरुवार रात्रि को नगर के हनुमान चैराहा पर आयोजित भव्य भजन संध्या में बालोतरा के विख्यात गायक कलाकार प्रकाश माली ने ईश्वर भक्ति और देशभक्ति से संबंधित भजन और गीत सुना कर हजारों श्रोताओं को मानो जड़ कर दिया। उपस्थित जनसमुदाय ने करीब चार घंटे तक इस यादगार कार्यक्रम को दम साधकर देखा और सुना। समिति ने यह कार्यक्रम सीमा जागरण मंच के पूर्व अखिल भारतीय संगठन मंत्री स्व. राकेश कुमार और सीमाजन कल्याण समिति के पूर्व जिला संगठन मंत्री स्व. भीखसिंह भाटी की प्रथम पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर आयोजित करवाया।


कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में जोधपुर सांसद गजेन्द्रसिंह शेखावत और विशिष्ट अतिथियों के रूप में  जैसलमेर विधायक छोटूसिंह भाटी एवं पोकरण विधायक शैतानसिंह राठौड़ उपस्थित थे। संत सानिध्य के तौर पर ख्याला मठ के गोरखनाथजी महाराज, संत दीपक साहेबजी और शिवसुखनाथजी महाराज की मौजूदगी रही। प्रारंभ में भारतमाता के चित्र पर सांसद और विधायकों ने पुष्प अर्पित किये। सीमाजन की जिला टीम के सदस्यों ने संतों का श्रीफल भेंट कर स्वागत किया। कार्यक्रम की विषय वस्तु से सीमाजन के प्रांतीय महामंत्री बंशीलाल भाटी ने प्रस्तुत की। इस मौके पर स्व. भीखसिंह भाटी के परिवारजनों का भी सम्मान किया गया।

सांसद श्री शेखावत ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में स्व. राकेश कुमार और स्व. भीखसिंह भाटी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दोनों दिवंगत व्यक्तियों ने देश की सीमाओं की सुरक्षा में अपना जीवन खपा दिया। उनका असामयिक निधन एक अपूरणीय क्षति है लेकिन साथ ही उनके द्वारा किये गये कार्य हम सबको राष्ट्रसेवा के लिए अनुप्राणित करते रहेंगे।


करीब चार घंटे तक कार्यक्रम की शुरुआत प्रकाश माली ने श्रीगणेश वंदना से की। बाद में उन्होंने हनुमान चालीसा, बाबा रामदेव और माजीसा के भजनों की अनुपम प्रस्तुतियां दी। उनके गायन की विशिष्ट शैली एवं आवाज के आरोह-अवरोह तथा आर्केस्ट्रा की बुलंद स्वर लहरियों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। श्री माली ने महाराणा प्रताप पर आधारित गीत ‘‘मायड़ थारो पूत कठै’’ ने जनसमुदाय में देशभक्ति की लहर-सी पैदा कर दी। उनके आह्वान पर खचाखच भरे कार्यक्रम स्थल पर सभी लोगों ने दोनों हाथ ऊपर उठा कर उनके साथ-साथ तान मिलाई। प्रकाश माली ने गायन के बीच-बीच में वर्तमान में राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सिर उठाये हुए खतरों की तरफ ध्यान आकृष्ट करवाया।

मध्यरात्रि तक चले कार्यक्रम में श्रोता शुरुआत से आखिर तक जमे रहे। इनमें महिलाओं की उपस्थिति भी उल्लेखनीय थी। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी पदाधिकारी और स्वयंसेवकों के साथ संघ के आनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोग मौजूद थे। गांव-गांव से श्रोता यहां पहुंचे। कार्यक्रम का संचालन केसरसिंह सूर्यवंशी ने किया।



अंतरराष्ट्रीय योग दिवस : भारतीय विरासत की वैश्विक पहचान'



शिशिर सिन्हा
दिनांक - 14 जून, दिन - रविवार, समय – सुबह के पांच बजे, स्थान – नयी दिल्ली का जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम। आम तौर पर रविवार के दिन दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर सुबह-सुबह सैर, व्यायाम या योग करने वालों की संख्या कम ही दिखती है। वजह, सप्ताह भर की थकान को उतारने के लिए रविवार को देर तक सोने का चलन आम है। लेकिन 14 जून रविवार को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में तड़के चार बजे से ही बड़ी तादाद में हर उम्र के लोगों का जुटना शुरु हो गया था। मौका था, ठीक सात दिन बाद होने वाले अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस के पूर्व योग गुरु रामदेव की ओर से आयोजित प्रशिक्षण लेने का।

एक अनुमान के मुताबिक, पांच हजार से भी ज्यादा लोगों ने जहां इस शिविर में भाग लिया, वहीं टेलीविजन के माध्यम से देश विदेश में करोड़ों लोग जुड़े। यह तो महज प्रशिक्षण शिविर था ताकि लोग सात दिनों के बाद देश दुनिया में कहीं भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के सहभागी बने। इसी के साथ योग में विश्वास की बेहद बड़ी बानगी दिखेगी।

वैसे तो हम भारतीय आदि अनंत काल से योग करते आ रहे हैं, लेकिन जब से संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अपील पर 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया, उसके
बाद तो योग का स्वरूप ही बिल्कुल नया हो गया है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जब 31 मई को रेडियो पर अपने मन की बात कही तो योग दिवस का जिक्र कुछ इस तरह किया


 “मेरे प्यारे देश वासियों! याद है 21 जून? वैसे हमारे इस भू-भाग में 21जून को इसलिए याद रखा जाता है कि ये सबसे लंबा दिवस होता है। लेकिन 21 जून अब विश्व के लिए एक नई पहचान बन गया है। गत सितम्बर महीने में यूनाइटेड नेशन्स में संबोधन करते हुए मैंने एक विषय रखा था और एक प्रस्ताव रखा था कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस के रूप में मनाना चाहिए। और सारे विश्व को अचरज हो गया, आप को भी अचरज होगा, सौ दिन के भीतर भीतर एक सौ सतत्तर देशो के समर्थन से ये प्रस्ताव पारित हो गया, इस प्रकार के प्रस्ताव ऐसा यूनाइटेड नेशन्स के इतिहास में, सबसे ज्यादा देशों का समर्थन मिला, सबसे कम समय में प्रस्ताव पारित हुआ, और विश्व के सभी भू-भाग, इसमें शरीक हुए, किसी भी भारतीय के लिए, ये बहुत बड़ी गौरवपूर्ण घटना है।

लेकिन अब जिम्मेवारी हमारी बनती है। क्या कभी सोचा था हमने कि योग विश्व को भी जोड़ने का एक माध्यम बन सकता है? वसुधैव कुटुम्बकम की हमारे पूर्वजों ने जो कल्पना की थी, उसमें योग एक कैटलिटिक एजेंट के रूप में विश्व को जोड़ने का माध्यम बन रहा है। कितने बड़े गर्व की, ख़ुशी की बात है। लेकिन इसकी ताक़त तो तब बनेगी जब हम सब बहुत बड़ी मात्रा में योग के सही स्वरुप को, योग की सही शक्ति को, विश्व के सामने प्रस्तुत करें। योग दिल और दिमाग को जोड़ता है, योग रोगमुक्ति का भी माध्यम है, तो योग भोगमुक्ति का भी माध्यम है और अब तो में देख रहा हूँ, योग शरीर मन बुद्धि को ही जोड़ने का काम करे, उससे आगे विश्व को भी जोड़ने का काम कर सकता है।

हम क्यों न इसके एम्बेसेडर बने! हम क्यों न इस मानव कल्याण के लिए काम आने वाली, इस महत्वपूर्ण विद्या को सहज उपलब्ध कराएं। हिन्दुस्तान के हर कोने में 21 जून को योग दिवस मनाया जाए। आपके रिश्तेदार दुनिया के किसी भी हिस्से में रहते हों, आपके मित्र परिवार जन कहीं रहते हो, आप उनको भी टेलीफ़ोन करके बताएं कि वे भी वहाँ लोगो को इकट्ठा करके योग दिवस मनायें। 

अगर उनको योग का कोई ज्ञान नहीं है तो कोई किताब लेकर के, लेकिन पढ़कर के भी सबको समझाए कि योग क्या होता है। एक पत्र पढ़ लें, लेकिन मैं मानता हूँ कि हमने योग दिवस को सचमुच में विश्व कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण क़दम के रूप में, मानव जाति के कल्याण के रूप में और तनाव से ज़िन्दगी से गुजर रहा मानव समूह, कठिनाइयों के बीच हताश निराश बैठे हुए मानव को, नई चेतना, ऊर्जा देने का सामर्थ योग में है। 

मैं चाहूँगा कि विश्व ने जिसको स्वीकार किया है, विश्व ने जिसे सम्मानित किया है, विश्व को भारत ने जिसे दिया है, ये योग हम सबके लिए गर्व का विषय बनना चाहिए।“

क्या है योग

करीब 4000 वर्ष पूर्व ऋग्वेद में जिक्र किए योग को आप क्या कहेंगे? क्या एक तरह का व्यायाम, आसन या फिर कुछ और? श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग की मानें तो योग संस्कृत धातु 'युज' से उत्‍पन्न हुआ है जिसका अर्थ है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। करीब 5000 साल पुराने भारतीय ज्ञान का समुदाय की संज्ञा देते संस्था आगे कहती है यद्यपि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं जहाँ लोग शरीर को तोड़ते -मरोड़ते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं | 

वास्तव में देखा जाए तो ये क्रियाएँ मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमताओं की तमाम परतों को खोलने वाले ग़ूढ विज्ञान के बहुत ही सतही पहलू से संबंधित हैं, वहीं योग पूरी जीवन शैली से जुड़ा है।

वहीं योग का एक अर्थ ‘जोड़’ है। इस संदर्भ में कई ग्रंथों में कहा गया कि यह शरीर, मन और आत्मा को जोड़ने का एक माध्यम है। यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसका उल्लेख कई धर्म जैसे हिंदू, बौद्ध और जैन में मिलता है।
अब जब मामला आध्यात्म से जुड़ जाए तो कुछ धार्मिक संगठनों में योग को लेकर विवाद तो होना ही है। कुछ मुस्लिम संगठन योग को अपने धर्म के विरूद्ध मानते हैं। शायद इसी वजह से 2008 में मलयेशिया और फिर बाद में इंडोनेशिया की प्रमुख इस्लामिक संस्था ने योग के खिलाफ फतवा जारी किया, हालांकि इन फतवों को दारुल उलूम, देओबंद ने आलोचना की।

विवाद खत्म करने की कोशिश

इस्लामिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार भी साफ कर चुकी है कि योग करते वक्त ना तो श्लोक पढ़ना जरूरी है और ना ही सूर्य नमस्कार। 

आयूष मंत्री (जिस मंत्रालय पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन की जिम्मेदारी है) श्रीपद नायक कहते हैं कि मुस्लिम योग करते वक्त अल्लाह का नाम ले सकते हैं। वैसे भी दारूल उलूम, देवबंद ने भी योग दिवस का समर्थन करते हुए कहा है कि इसका किसी मजहब से कोई लेना-देना नहीं है। यह संस्था साफ तौर पर मानती है कि योग एक व्यायाम है।

योग के फायदे

अब ये सवाल उठता है कि योग क्यों? इस सवाल का जवाब पद्मविभूषण बेल्लूर कृष्णमचारी सुंदरराज यानी बीकेएस अयंगार की जिंदगी से मिल जाएगा। बीते वर्ष उनके निधन के बाद बीबीसी ने जहां उन्हे योग के ‘इंटरनेशनल ब्रांड ऐम्बैसडर’ के रुप में संबोधित किया, वहीं एक प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा कि
“विश्वविख्यात योग गुरु और अयंगार स्कूल ऑफ योग के संस्थापक बीकेएस अयंगार ने वर्ष 2002 में न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा था कि योग ने उन्हें 65 सालों का बोनस दिया है क्योंकि बचपन में कई बीमारियों से घिरे रहने के कारण बचपन में डॉक्टरों को यह उम्मीद नहीं थी कि वह 20 साल की उम्र से ज्यादा जी पाएंगे।” लेकिन उन्होंने एक लंबी जिंदगी जी और 95 वर्ष की उम्र में अंतिम सांसे ली। उन्होंने अयंगारयोग की स्थापना की तथा इसे सम्पूर्ण विश्व में मशहूर बनाया। उन्होंने विभिन्न देशों में अपने संस्थान की 100 से अधिक शाखाएं स्थापित की। यूरोप में योग फैलाने में वे सबसे आगे थे।

आयंगर जैसे कई और उदाहरण हमें अपने आस पास ही मिल जाएगें। कई चिकित्सक भी कहते हैं कि बीमारी से मुक्ति तो मिल ही सकती है, वहीं कई बीमारियों को अपने करीब फटकने से भी रोक सकते हैं। दरअसल, योग एक स्वस्थ्य जीवन का आधार है और इसके लिए सुबह-सुबह का वक्त सबसे अच्छा होता है जब पेट पूरी तरह से
खाली हो। जगह साफ-सुधरी हो और वहां पर ताजी हवा का प्रवाह होता रहे।

अब सवाल यह है कि योग कितनी देर की जाए। इस बारे में योग गुरु रामदेव कहते हैं कि 15-30 मिनट का समय पर्याप्त है, बस जरूरत इस बात कि है कि इसे पूरे ध्यान से किया जाए। यह भी सलाह दी जाती है कि जिस आसन के बारे में जानकारी नहीं है या करना नहीं आता, उसे नहीं करना चाहिए। यह बिल्कुल उसी तरह है जिस तरह से व्यायाम की कुछ विधियों के बारे में जानकारी नहीं है औऱ किया जाए तो उससे दिक्कत ही पैदा हो सकती है।

योग को नयी पहचान

फिलहाल, अब नजर 21 जून पर है जब दिल्ली के राजपथ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में 35 हजार से ज्यादा लोग योग करेंगे। इसके साथ ही विश्व के 190 देशों में (जिनमें इस्लामिक देशों के संगठन यानी OIC के 47
सदस्य भी शामिल है) भारतीय दूतावासों के सहयोग से योग कार्यक्रम की तैयारी है। वरिष्ठ मंत्रियो में जहां विदेश मंत्री सुषमा स्वराज न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में आयोजित विशेष कार्यक्रम में भाग लेंगी वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली सैन फ्रांसिस्को और अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला शिकागो के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। इसके अलावा भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी नागपुर, शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू चेन्नई, दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद कोलकाता, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी शिमला और संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी रामपुर में आयोजित योग कार्यक्रमों में मौजूद रहेंगे।

एक और महत्वपूर्ण बात। शायद दुनिया भर में यह पहला मौका है जब एक वर्ष के भीतर किसी भी सरकार के दो कार्यक्रमों को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह दिए जाने की तैयारी है। वित्तीय समावेशन के लिए सरकार की महत्वकांक्षी योजना प्रधानमंत्री जन धन य़ोजना को पहले ही गिनीज बुक में जगह दी गयी जब बीते वर्ष 23 से 29 अगस्त के बीच 1,80,96,130 बैंक खाते खोले गए। यह सात दिनों के भीतर सर्वाधिक खाता खोलने का कीर्तिमान है। अब कोशिश है कि एक साथ सबसे ज्यादा लोगों के द्वारा एक आसन करने का उपलब्धि दर्ज
करायी जाए।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित