शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

एकांत में आत्म साधना, लोकान्त में सेवा परोपकार, ऐसा अपना जीवन होना चाहिये – डॉ. मोहन भागवत जी

एकांत में आत्म साधना, लोकान्त में सेवा परोपकार, ऐसा अपना जीवन होना चाहिये – डॉ. मोहन भागवत जी

discussion1डेंकानाल, उड़ीसा (विसंकें). माघ मेले की संध्या पर महिमा धर्म पीठ में धर्मसभा का आयोजन किया गया. इस दौरान महिमा समाज से साधु रघुनाथ बाबा, साधु पवित्र बाबा सहित अन्य पूज्य संत उपस्थित थे. सभा के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने दो पुस्तकों का लोकार्पण भी किया. कार्यक्रम के दौरान सह सरकार्यवाह वी भगैय्या जी, क्षेत्र कार्यवाह गोपाल प्रसाद महापात्र, क्षेत्र प्रचारक प्रदीप जोशी जी उपस्थित थे. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि पहले पहल अजीत महापात्र व सुदर्शन जी के मुख से महिमा की महिमा सुनी, तो ऐसा लगा कि अपने देश में समय-समय पर सनातन धर्म को सत्य रूप में प्रवाहित करने वाली जो धाराएं चलती हैं, उसमें महिमा धर्म भी एक है. इसलिए वहां जाकर दर्शन करना चाहिये, उसे समझना चाहिये.

उन्होंने कहा कि अभी हम सब लोग अपने सुख का विचार करते हैं. लेकिन सुख क्या है, हमको पता नहीं है और सुख प्राप्त करने के लिये बहुत सारे प्रयत्न करते हैं, लेकिन किस प्रयत्न से सुख मिलता है, हमें वो भी पता नहीं. ये कोई अपनी बात नहीं, पूरी दुनिया की बात है. 2000 वर्षों से सुख के लिये अनेक प्रयास करके पूरी दुनिया थक गई है और भारत की ओर देख रही है. क्योंकि भारत ने कभी दुनिया में अपने आप को ऐसा खड़ा किया था. सोने की चिड़िया भारत, भरपूर अमीरी थी, भरपूर नीति थी. वो भारत वैभव संपन्न था, नीति संपन्न था. विद्या का स्थान था, तक्षशिला, नालंदा और अनेक विद्यापीठ थे. सारी दुनिया के लोग भारत में पढ़ने के लिये आते थे. ऐसा अपना देश था, यह इतिहास को मालूम है. अपना इतिहास हम नहीं जानते, हमको पढ़ाया भी नहीं जाता जो पढ़ाया जाता है वो उल्टा इतिहास पढ़ाया जाता है. सत्य बताने वाला भी कोई नहीं है, लेकिन दुनिया को सत्य इतिहास पता है. साधन संपन्नता के बावजूद संयम के साथ जीवन जीते थे, ऐसा अपना ज्ञान था. आज दुनिया उसी ज्ञान की ओर देख रही है. हमें अपना ज्ञान लेकर खड़ा होने की आवश्यकता है, अपने जीवन से सिखाने की जरूरत है.

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सरसंघचालक जी ने कहा कि वास्तविक सत्य समय से भी परे है, वो समय के साथ नहीं बदलता. समय बदल जाता है, सत्य शाश्वत है. जिनके पास वास्तविक सत्य नहीं, वो समय के परे होकर शाश्वत नहीं हो सकता. एक अपने भारत का सनातन का विचार ऐसा है, धर्म का विचार ऐसा है, जिसके मूल में सत्य है. उसका समय के साथ नष्ट होने का प्रश्न ही नहीं आता. सबमें एक ही परब्रह्म है, सभी प्राणियों में एक ही का रूप है, सबके अंतः (भीतर) में है. उसे पाना ही सुख है, वो समय के साथ नष्ट नहीं होता, सदा रहने वाला है, और आनंदमय है. बाकि सुख कुछ दिन सुख देंगे, बाद में नष्ट हो जाएंगे.

sadhu-1उन्होंने कहा कि दुनिया वास्तविक सत्य पर विचार करने के लिये मजबूर क्यों हुई. दुनिया असत्य सुख के पीछे, माया के पीछे ज्यादा दौड़ी. सत्य को छोड़कर असत्य के पीछे भाग रही थी, तो सुख कैसे प्राप्त होता. जिस प्रकार पेड़ हवा आने पर झुकता है, फिर अपनी स्थिति में आ जाता है. जो पेड़ जड़ को मिट्टी में बिना हिलाए स्थिर रखता है, वही टिकता है. दुनिया ने सत्य की जड़ छोड़ दी, और असत्य की हवा में एक बार झुक गए तो झुके ही रहे, गिरते ही चले गए. इसीलिए दुनिया को सुख नहीं मिला, सब प्रयोग कर देखे, पर कोई सुख नहीं मिला. अब दुनिया को अपेक्षा है कि भारत कोई रास्ता दिखाए. पर्यावरण पर विश्व मंच की बैठक हुई, उसकी एक सीडी निकली है. उसमें अधिकांश वेदों की ऋचाएं, उपनिषदों के मंत्र हैं. क्यों, क्योंकि दुनिया जानती है कि पर्यावरण और विकास को साथ चलाने की कला सत्य के आधार पर चलने वाले हिन्दू विचार में ही है. दुनिया का मार्गदर्शन करने के लिए हम सब लोगों को तैयार होना चाहिये.
 
उन्होंने कहा कि उस वास्तविक सत्य को देखने के लिये तपश्चर्या करनी पड़ती है, बहुत कीमती वस्तु है, उसकी कीमत चुकानी पड़ती है. ऐसे सत्य को जानने वाले लोग, जो सत्य तक पहुंचे हैं, अपने जीवन से उदाहरण देने वाले लोग, समाज को आत्मीय मानकर समाज में सत्य जगाने की चेष्टा परिश्रमपूर्वक, पदक्रमण पूर्वक करते रहे हैं, वो हमारी संत शक्ति है. आत्मा ही परमात्मा है, आत्मा का साक्षात्कार सर्वोच्च जीवन लक्ष्य है. यह हमारे भारतीय समाज की पहचान का अंग है.

 दूसरा हमारी मान्यता है कि सुख दुःख जो हम कहते हैं, ये अपनी ही करनी है. जैसा कर्म करोगे, वैसा भरोगे. कर्म ठीक करो, तुम्हारा जीवन ठीक हो जाएगा, तपश्चर्या का कर्म शुद्ध नीति से करो, तुम्हें सत्य मिल जाएगा. एकांत में आत्म साधना, लोकान्त में सेवा परोपकार, ऐसा अपना जीवन होना चाहिये. क्योंकि कर्म के परिणाम भुगतने पड़ते हैं, उससे छुट्टी नहीं होती. हमारे पूर्वजों ने भी कहा कि सारा समाज संतों का अनुसरण करे, उनके उपदेशों पर चलकर सत्य को पाए, और समाज, दुनिया, मानवता की सेवा अपना कुटुंब मानकर करे.


भागवत जी ने कहा कि लेकिन समय बदलता है तो सत्य की विस्मृति हो जाती है, हमें भी विस्मृति हो गई. पर, कृपा है उस परब्रह्म परमात्मा की, सत्य को याद दिलाने वाले सदा आते रहे और यह सत्य धर्म हमको बताते रहे. उस सत्य धर्म को समाज को बताने का काम महिमा समाज के सभी श्रद्धेय संत बहुत तपश्चर्या पूर्वक कर रहे हैं. पूरे समाज से आह्वान करता हूं कि इसको एक धारा न मानें, यह हमारे अस्तित्व की पहचान की ही पूरी की पूरी एक स्वरूप श्लाका है, इसको पूरा सहयोग दीजिये. इसके तत्व अपने सनातन धर्म के सत्य तत्व हैं, उसको आचरण में लाइये, साथ ही सहयोग भी कीजिए. साथ ही संतों से करबद्ध प्रार्थना है कि जल्द विस्तारित हों, पूरे समाज तक पहुंचें, सबको बांटिये. सभी को सत्य तत्व की आवश्यकता है. ये होगा तो भारत समर्थ बनेगा, अपने जीवन से सारी दुनिया को नई सुंदर दुनिया बनाने की राह दिखाने वाला भारत खड़ा होगा. और वह दिन सारी दुनिया के लिये मंगल कुशल का दिन होगा.

हमने सत्ता के अनुगामी समाज को नहीं देखना है, अपने यहां सत्ता समाज का एक साधन है और साधन ने अपना काम ठीक करना चाहिये, ये देखने वाला समाज है. जितना कर्तव्य सरकार का है, वो उसको करना है. पर, हम उस पर निर्भर क्यों हो जाएं. सारी दुनिया को धारण करने वाले की उपासना हम करते हैं. हमारी धारणा करने के लिये दूसरा क्यों चाहिये, हम अपनी धारणा करेंगे. धर्म मनुष्य को सुखी बनाता है, धर्म मनुष्य को सत्यान्वेशी बनाता है, धर्म मनुष्य को स्वावलंबी भी बनाता है.

साभार:vskbharat.com

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित