खाद्य प्रसंस्करण एवं ई-कॉमर्स में 50 प्रतिशत से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रभाव विषय पर संगोष्ठी का आयोजन
जोधपुर . जोधपुर के पूर्व सहकारिता सचिव आरसीएस जोधा ने कहा कि सरकार की
मजबूरी हो सकती है, हमारी नहीं. हमें देश का अहित करने वाला खाद्य
प्रसंस्करण व ई-कॉमर्स में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश किसी भी शर्त पर मजूंर
नहीं. यह खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का पिछले दरवाजे से
विदेशी करण है. वह रविवार को स्वदेशी जागरण मंच के विचार वलय में खाद्य
प्रसंस्करण एवं ई-कॉमर्स में 50 प्रतिशत से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के
प्रभाव विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि हमारा सहकारिता तंत्र इसके कारण पंगु हो जाएगा. दूध,
खाद्यान्न एवं पशुपालन, कुटीर उद्योगों पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव रोजगार
सृजन की तुलना में लोगों को बेरोजगार बनाएंगे. हमारे मारवाड़ क्षेत्र के
पापड़, बड़ियां, खिचीयां, व पंचकुटा जैसी चीजों पर खाद्य प्रसंस्करण में
एफडीआई के चलते विदेशी कम्पनियों का एकाधिकार हो जाएगा.
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय प्रबन्ध अध्ययन संकाय के प्रो. रामचन्द्र
सिंह राजपुरोहित ने कहा कि आज हमारी सरकार विश्व व्यापार संगठन एवं अन्य
समझौतों के चलते विदेशी निवेश की तरफ बढ़ रही है. देश की जीडीपी को बढ़ाने
एवं विदेशी मुद्रा भण्डार के लिए ऐसा किया जा रहा है, लेकिन जिस प्रकार
किसी भी देश की प्रगति उसके स्वयं के संसाधनों के विकसित करने से होती है.
परन्तु गत 25 वर्षों से किये जा रहे. आर्थिक विकास में हम केवल विदेशी
पूँजी को बढ़ाने की बात कर देश के व्यापार को अन्तरराष्ट्रीय कम्पनियों के
हाथों में सौंपते जा रहे हैं जो हमारे आने वाले भविष्य के लिए घातक सिद्व
हो सकता है. वर्तमान में सत्ताइस प्रतिशत बढ़ोतरी से एफडीआई बढ़ रही है,
सरकार इसके तहत 2020 तक फूड ट्रेड सेक्टर को डेढ़ प्रतिशत से बढ़ाकर तीन
प्रतिशत तक ले जाने के लक्ष्य को लेकर चल रही है. देश में पैंतीस से अधिक
मेगाफूड पार्क बनाने का लक्ष्य रखा है.
मंच
के प्रदेश संयोजक धमेन्द्र दुबे ने कहा कि इन क्षेत्रों में सरकार द्वारा
एफडीआई की छूट देना हमारे छोटे-छोटे उद्योग धन्धों व खुदरा व्यापारियों को
चौपट करने के लिए एक बड़ा विध्वंसकारी कदम होगा. आने वाले समय में एमबीए
युवा सड़कों पर मोटरसाईकिल के माध्यम से घरों तक सामान का पहुंचाने का
कार्य कर रोजगार प्राप्त करेंगे. उन्होंने कहा कि एग्रीकल्चर प्रॉड्यूस
निर्यात विकास एजेन्सी के अनुसार सभी कृषि उत्पाद, फल, फ्लोरी कल्चर,
सब्जियां, मसाले, पोल्ट्री, उत्पाद दूध एवं दूध उत्पाद, एल्कॉहोली उत्पाद,
मछली उद्योग, आइसक्रीम, आचार, प्लांटेशन, कन्फैक्शनरी, बिस्कुट, ब्रेड,
चॉकलेट, सोया आधारित उत्पाद, खाद्य तेल, दालें, तिलहन, सॉफ्ट ड्रिंक्स,
नमक, चीनी, कहने का तात्पर्य यह है कि दवा के अलावा मुख से ग्रहण की जाने
वाली वस्तुएं खाद्य प्रसंस्करण श्रेणी में आती है. जिन पर एफडीआई के चलते
विदेशी एकाधिकार हो जाएगा, वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या अपनी आय का
औसतन सत्रह प्रतिशत खर्च इन उत्पादों पर करती है, वहीं मध्यम एवं उच्च वर्ग
की जनसंख्या अपनी कुल आय का तीस प्रतिशत खाद्य प्रसंस्करण पर खर्च करती
है, जिसे विदेशी कम्पनियों की हड़पने की नजर है. ई-कॉमर्स व खाद्य
प्रसंस्करण में एफडीआई के कारण खाद्य प्रसंस्करण के व्यापार में प्रत्यक्ष
रूप से लगे एक करोड़ तीस लाख एवं अप्रत्यक्ष रूप से लगे तीन करोड़ तीस लाख
लोगों के रोजगार पर बड़ा हमला साबित होगा.
विचार वलय का संचालन विभाग संयोजक अनिल वर्मा ने किया. वित्त मंत्रालय
के आंकड़ों में वर्ष दो हजार तेरह चौदह के सर्वे अनुसार लगभग सात करोड़
नागरिकों की आय का मुख्य स्त्रोत दूध है. कृषि एवं मांस उद्योग भी भारी
मात्रा में रोजगार प्रदान करता है, इसके अतिरिक्त देश में विभिन्न उत्सवों
के अवसर पर खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ जाती है, उस समय लगभग अस्सी लाख लोग
अतिरिक्त रोजगार प्राप्त करते है. इन सब पर एफडीआई के कारण खतरे के बादल
मंडरा रहे हैं.
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