रविवार, 25 नवंबर 2018

जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण हेतु कानून लाए सरकार : सरसंघचालक



जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण हेतु कानून लाए सरकार : सरसंघचालक

विहिप द्वारा आयोजित धर्म सभाओ में जुटे लाखों रामभक्तों ने भरी हुंकार

       नई दिल्ली, 25 नवंबर 2018 | विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा आज अयोध्या, नागपुर, मेंगलूरु, हुबली गुवाहाटी व शाहजहांपुर समेत देश में अनेक स्थानों पर आयोजित धर्मसभाओं में उपस्थित पूज्य संतों, धर्माचार्यों विहिप पदाधिकारियों व अन्य राम भक्तों ने एक स्वर में केंद्र सरकार से कहा कि श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की बाधाओं को अबिलम्ब दूर करे. उन्होंने कहा कि लगभग पाँच शताब्दियों से हिन्दू समाज भगवान श्रीराम की जन्मभूमि की मुक्ति के लिए संघर्षरत है जिनमें एक शताब्दी से अधिक समय न्यायालयों के चक्कर लगाने में व्यतीत हो गए फिर भी न्याय नहीं मिला. अब बारी रामभक्त सरकार की है कि वह जन भावनाओं का सम्मान करते हुए जन्मभूमि मंदिर का मार्ग प्रशस्त करे.
       भगवान श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास, रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य जी, स्वामी हंसदेवाचार्य, वासुदेवाचार्य युग पुरुष परमानंद तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री कृष्ण गोपाल जी, विहिप उपाध्यक्ष श्री चम्पतराय ने कहा कि रामजन्मभूमि का विभाजन अस्वीकार्य है.  अब अयोध्या में राम के अलावा कुछ भी स्वीकार्य नहीं. 
       विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा नागपुर में बुलाई गई धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन राव भागवत ने केंद्र सरकार को श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण हेतु अविलम्ब कानून बनाने की अपनी मांग दोहराते हुए कहा कि सदियों से प्रतीक्षारत हिन्दू समाज अब और बिलंब नहीं चाहता. इसी मंच से विहिप कार्याध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आलोक कुमार ने संसदीय कानून का विरोध करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि न्यायालय में विषय लंबित होते हुए भी कानून बनाने में किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं है. लोकतंत्र में संसद का जन-हित में कानून बनाने का अधिकार क्षेत्र असीमित है. अत: इसमें और किसी प्रकार का विचार या विलम्ब हिन्दू समाज के लिए पीड़ादायक होगा. राम जन्मभूमि आन्दोलन के प्रारम्भ से जुडी दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि जिस दिन माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मात्र तीन मिनिट में बिना किसी पक्षकार को सुने श्रीराम जन्मभूमि मामले की सुनवाई तीन महीने के लिए बिना बेंच के गठन के ही यह कह कर टाल दी कि इसकी अभी कोई जल्दी नहीं है, हिन्दू समाज स्वयं को ठगा हुए सा महसूस करने लगा है. अब वह आखिर जाए तो किधर जाए. संसद व राम भक्त सरकार से ही तो अब उसे आशा है. स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि जन्मभूमि स्थानांतरित नहीं हो सकती. उन्होंने पूछा कि देश के लिए कोर्ट है या कोर्ट के लिए लिए देश है. कोर्ट को भी देश की जनभावनाओं का सम्मान करना चाहिए. हुंकार सभा की अध्यक्षता करते हुए जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि भगवान श्रीराम के यूँ तो असंख्य मंदिर हैं किन्तु  जन्मभूमि का मंदिर तो जन्म भूमि पर ही बनेगा ना. अब और देर असहनीय है.   
            हुबली में हुई धर्म सभा में श्री पूज्य महा मंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानन्द गिरी जी महाराज, स्वामी बसवालिंग महास्वामी, पू श्रीश्रीश्री सिध्द शिवयोगी जी, जैन मुनि ज्योतिषाचार्य डा हेम चन्द्र सूरीश्वर जी के अलावा विहिप के क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री केशव हेगड़े तथा प्रांत संगठन मंत्री श्री केशव राजू ने रामजन्म भूमि पर भव्य मन्दिर हेतु संसद द्वारा कानून बनाने की मांग करते हुए कहा कि अब हिन्दू समाज की भावनाओं का सम्मान सभी राजनैतिक लोगों को करना ही होगा.
       मेंगलूरू की धर्मसभा में पूज्य श्री वीरेन्द्र हेगड़े व बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक श्री सोहन सिंह सोलंकी ने राम भक्तों का आह्वाहन करते हुये कहा कि जन्मभूमि पर मंदिर के अलावा न कुछ स्वीकार्य है और न ही इसमें किसी भी प्रकार की देरी अब और बर्दास्त होगी. बजरंग दल के युवा अब भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण हेतु पूज्य संतो के आदेशों के पालन हेतु कृत संकल्पित है.

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

राम मंदिर का मुद्दा करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़ा है : श्री भैयाजी जोशी



मुंबई ,2 नवम्बर। मुंबई के भायंदर में केशव सृष्टि में तीन दिन तक चली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में विचार किए गए विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर सरकार्यवाह श्री सुरेश उपाख्य भैयाजी जोशी ने पत्रकारों से विस्तार से चर्चा की।

भैयाजी जोशी ने कहा कि, राम मंदिर का मुद्दा करोड़ों हिंदुओं की भावना से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा है और इस पर न्यायालय को शीघ्र विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ने राम मंदिर को लेकर विगत 30 वर्षों से वर्तमान आंदोलन चलाया है। हिंदू समाज की अपेक्षा है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने और इससे जुड़ी सभी बाधाएँ दूर हों। लेकिन ये प्रतीक्षा अब लंबी हो चुकी है। 2010 में उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को लेकर फैसला दिया था। 2011 से ये मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। सर्वोच्च न्यायालय की तीन जजों की पुनर्गठित बेंच जो इस मामले की सुनवाई कर रही थी उसने फिर से इसे लंबे समय के लिए टाल दिया गया। जब न्यायालय से ये पूछा गया कि इस मामले की सुनवाई कब होगी तो कहा गया कि, हमारी अपनी प्राथमिकताएँ हैं। कब सुनना यह न्यायालय का अपना अधिकार है लेकिन न्यायालय के इस जवाब से हिंदू समाज अपने आपको अपमानित महसूस कर रहा है और ये बात समस्त हिंदू समाज के लिए आश्चर्यजनक और वेदनापूर्ण है। सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले पर पुनर्विचार करना चाहिए।समाज को न्यायालय का सम्मान करना चाहिए और न्यायालय को भी सामान्य समाज की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

<
राम मंदिर के मुद्दे पर कानून व अध्यादेश के विकल्प पर भैयाजी ने कहा कि ये सरकार का अधिकार है कि वह इस पर कब विचार करे। उन्होंने कहा कि नरसिंह राव प्रणित केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में शपथ पत्र दिया था कि अगर उस स्थान की खुदाई में मंदिर होने के प्रमाण मिलेंगे तो सरकार वहाँ मंदिर बनाने के लिए सहायता करेगी। अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय में पुरातत्व विभाग द्वारा दिए गए प्रमाणों से ये सिध्द हो चुका है कि वहाँ मंदिर का अस्तित्व रहा है, तो फिर वहाँ मंदिर बनाने को लेकर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि राम मंदिर को लेकर हम सरकार पर कोई दबाव नहीं डाल रहे हैं बल्कि आपसी सहमति से इसका हल निकालने की बात कर रहे हैं। पूज्य संतों से बातचीत करनी चाहिए और हल निकालना चाहिए। कोई भी सरकार सहमति और कानून दोनों के संतुलन से चलती है। सरकार द्वारा मंदिर को लेकर कानून नहीं बनाने को लेकर भैयाजी ने कहा कि बहुमत होने के बाद भी सरकार द्वारा कानून नहीं बनाना न्यायालय के प्रति उसके विश्वास को दर्शाता है, लेकिन न्यायालय भी इस मुद्दे की संवेदनशीलता को समझे और इस पर विचार करे।

शबरीमाला को लेकर उन्होंने कहा कि ये मुद्दा महिलाओं के मंदिर में प्रवेश देना होता तो हम उसका समर्थन करते है। हिंदू समाज में कोई भी पूजा पति और पत्नी के बगैर पूरी नहीं होती। हिंदू परंपरा में स्त्री और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं होता है। लेकिन मंदिरों के अपने नियम होते हैं, कोई भी समाज मात्र अधिकारों पर नहीं बल्कि परंपराओं और मान्यताओँ पर चलता है। सभी मंदिरों में महिलाओं को समान प्रवेश मिले लेकिन जहाँ कुछ मंदिरों की विशिष्ट परंपराओं का प्रश्न है इसमें उन मंदिरों की व्यवस्था से जुड़े लोगों से चर्चा किए बगैर कोई निर्णय लिया जाता है तो ये उचित नहीं। ऐसे निर्णय देते वक्त न्यायालय ने इन विषयों से जुडे सभी घटकों को एकमत करने का प्रयास करना चाहिए।

संघ की कार्यकारिणी मंडल की बैठक की चर्चा करते हुए भैयाजी ने कहा कि इसमें संघ के कार्यों की समीक्षा की गई । उन्होंने बताया कि विगत 6 वर्षों में हम तेज गति से आगे बढ़े हैं। इन 6 वर्षों में हमारा काम डेढ़ गुना बढ़ा है। आज देश भर में 35 हजार 500 गाँवों में संघ की शाखायें चल रही हैं। गत वर्ष की तुलना में इस साल हम 1400 नए स्थानों पर पहुँचे हैं। संघ की शाखा की संख्या 55825 हो चुकी है। गत एक वर्ष में 2200 शाखाओं की वृध्दि हुई है।

संघ का साप्तहिक मिलन 17 हजार गाँवों में नियमित रूप से हो रहा है। मासिक मिलन का कार्य 9 हजार स्थानों पर चल रहा है। 61 हजार स्थानों पर संघ प्रत्यक्ष कार्य कर रहा है। गत वर्ष की तुलना में संघ के स्वयंसेवकों की संख्या में एक लाख की वृध्दि हुई है। संघ अपने कार्य के विस्तार के लिए भौगोलिक दृष्टि से तालुका, ब्लाक, और मंडल बनाकर अपना कार्य कर रहा है। ऐसे लगभग 56 हजार 600 मंडल बनाए गए है, जिसमें से हम 32 हजार तक सीधे पहुँच चुके हैं।

देश भर में संघ के 1.70 लाख सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। ये सेवा कार्य ग्रामीण, आदिवासी और शहरी क्षेत्रों में चल रहे हैं। संघ द्वारा 25 बड़े अस्पताल, 12 ब्लड बैंक और वनवासी क्षेत्रों में एकल विद्यालय के माध्यम से एक शिक्षक वाले स्कूल 50 हजार से अधिक गाँवों में चलाए जा रहे हैं। कई गाँवों में फर्स्टएड की सेवा भी चलाई जा रही है और 10 हजार आरोग्य रक्षकों के माध्यम से सामान्य बीमारियों में ग्रामीणों को तत्काल चिकित्सा सुविधा दी जा सके। इसी तरह महिलाओं के 20 हजार सेल्फ हेल्प ग्रुप चल रहे हैं। इसके अलावा होस्टल, कोचिंग क्लास आदि का भी संचालन किया जा रहा है। गत वर्ष संघ के 30 हजार स्वयंसेवकों के माध्यम से देश भर में 2000 स्थानों पर 13 लाख पेड़ लगाए गए। आने वाले दिनों में इस क्षेत्र में सतत् कार्य किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कार्यकारी मंडल ने जल और पर्यावरण संरक्षण को गंभीरता से लिया है, और आने वाले दिनों में इस पर बड़े पैमाने पर कार्य किया जाएगा।


बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक आरंभ- पर्यावरण और जल संरक्षण पर होगी चर्चा




राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक आरंभ
पर्यावरण और जल संरक्षण पर होगी चर्चा
मुंबई, 31 अक्टूबर। मुंबई के केशव सृष्टि परिसर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक आरम्भ हुई। बैठक का आरम्भ सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत और सरकार्यवाह श्री सुरेशजी जोशी ने छत्रपति शिवाजी महाराज तथा भारत माता के चित्र को पुष्पांजली अर्पित करके किया।
इस अवसर पर रामभाऊ म्हालगी सभागार में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक प्रतिवर्ष दो बार आयोजित की जाती है। एक मार्च में और दूसरी दीपावली के पूर्व। इस बैठक में देश भर से संघ के अखिल भारतीय, क्षेत्र तथा प्रांत के पदाधिकारी शामिल होते हैं। पत्रकार वार्ता में उनके साथ संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री अरुण कुमार व सह प्रचार प्रमुख श्री नरेन्द्र ठाकुर भी उपस्थित थे। यह बैठक 2 नवंबर तक चलेगी। उन्होंने बताया कि इसी श्रृंखला में ये बैठक इस बार मुंबई में आयोजित की गई है जिसमें देश भर से 350 प्रतिनिधि शामिल हुए हैं।
डॉ. वैद्य ने बताया कि इस बैठक में संघ द्वारा विभिन्न राष्ट्रीय विषयों पर चर्चा करने के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में पिछले वर्ष किए गए कार्यों व आने वाले साल में किए जाने वाले कार्यों पर चर्चा होगी। इसके साथ ही जिन क्षेत्रों में संघ द्वारा कुछ विशेष कार्य या नए प्रयोग किए गए हैं उन पर भी चर्चा होगी।
2010 से संघ ने कार्य विस्तार की कुछ विशेष योजनाएँ हाथ में ली है। संघ का कार्य दैनिक शाखाओं के माध्यम से विस्तारित किया जाता है। आज संघ की 55 हजार से अधिक शाखाएँ देश भर में लेह लद्दाख से लेकर त्रिपुरा और अंडमान तक संचालित हो रही है। संघ का कार्य देश भर के 850 जिलों और 6 हजार तहसीलों में फैला है। 90 प्रतिशत खंडों(तहसीलों) पर संघ की शाखाएँ नियमित रूप से चल रही है। संघ द्वारा 10 से 12 गाँवों का मंडल बनाया गया है। ऐसे 56 हजार मंडल बनाकर सभी गाँवों को इसमें जोड़ा गया है। इसमें से 58 प्रतिशत मंडलों तक हमारा कार्य पहुँच चुका है। विगत तीन वर्षों में मंडलों में 5 प्रतिशत की और शाखाओं में 3 प्रतिशत की वृध्दि हुई है। इस समय 31 हजार से ज्यादा स्थानों में शाखाएँ चल रही है, उनमें 82 प्रतिशत शाखाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में व 12 प्रतिशत नगरीय क्षेत्रों में चल रही है।
उन्होंने बताया कि बैठक में पर्यावरण और जल संरक्षण विषय पर विशेष ध्यान देने के लिए चर्चा होगी। स्वयंसेवक समाज को साथ लेकर इन मुद्दों पर कैसे काम करें इस पर विशेष चर्चा होगी।1998 से ग्राम विकास गतिविधि चल रही है। इसके कारण 600 गाँव में प्रत्यक्ष परिणाम देखने को मिला, इन गाँवों से मिले परिणामों के आधार पर 2 हजार गाँवों में विभिन्न कार्य किए जा रहे हैं।
उन्होने कहा कि गौ संवर्धन गतिविधि के अंतर्गत भारतीय नस्ल की गायों का संरक्षण, गौ आधारित कृषि, गौ चिकित्सा आदि के प्रयोग चल रहे हैं। आज पूरी दुनिया में ब्राजील, न्यूज़ीलैंड में इसका महत्व बढ़ रहा है। 2010 के बाद इस दिशा में व्यापक स्तर पर कार्य शुरु किया गया है। अब तक 1500 नई गौशालाएँ शुरु की गई है। गौ अनुसंधान केंद्रों के माध्यम से गौमूत्र और गोबर पर प्रयोग किए जा रहे हैं।
कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से परिवारों को जोड़ने का एक और महत्वपूर्ण कार्य संघ ने हाथ में लिया है। आज परिवार बिखर रहे हैं, परिवारों को कैसे बचाया जाए, ये संघ की प्रमुख चिंता है। इसी विषय पर व्यापक गतिविधियाँ कैसे चलाई जाए इस पर भी चर्चा होगी।
उन्होंने बताया कि संघ के स्वयंसेवक हर दैवीय आपदा में सेवा देते हैं, लेकिन वे इन कामों के लिए प्रशिक्षित नहीं होते हैं। इस बैठक में विपदा राहत कार्य में सेवा देने वाले संघ के स्वयंसेवकों को कैसे प्रशिक्षित किया जाए इस पर भी चर्चा होगी। वर्तमान में 1.50 लाख सेवा प्रकल्प स्वयंसेवक चलाते हैं। अब देश भर में स्वयंसेवकों के बीच एक सर्वे कराया जा रहा है कि वे किस विषय में रुचि रखते हैं। उनकी रुचि के अनुसार उन्हें सेवा कार्यों में जोड़ा जाएगा। इस पर भी चर्चा होगी। इसके साथ ही अलग-अलग प्रदेशों से आए प्रतिनिधियों द्वारा रखे गए विषयों पर भी चर्चा होगी।
राम मंदिर मुद्दे को लेकर एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि यह मुद्दा न हिंदू –मुस्लिम का है और न ही मंदिर-मस्जिद के विवाद का है। बाबर के सेनापति ने जब अयोध्या में आक्रमण किया तो ऐसा नहीं था कि वहाँ नमाज के लिए जमीन नहीं थी। वहाँ खूब जमीन थी, मस्जिद बना सकते थे। पर उसने आक्रमण कर मंदिर को तोड़ा था। पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में यह सिद्ध हो चुका है कि इस स्थान पर पहले मंदिर था। इस्लामी विद्वानों के अनुसार भी ज़बरदस्ती क़ब्ज़ाई भूमि पर पढ़ी गई नमाज़ क़बूल नहीं होती है और सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने फ़ैसले में कहा है कि नमाज के लिए मस्जिद जरुरी नहीं होती, ये कहीं भी पढ़ी जा सकती है।
राम मंदिर राष्ट्रीय स्वाभिमान और गौरव का विषय है। उन्होंने कहा कि जैसे सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद खुद प्राणप्रतिष्ठा में गए थे। उन्होंने कहा कि इसी तरह सरकार को चाहिए कि वह मंदिर के लिए भूमि अधिग्रहीत कर उसे राम मंदिर निर्माण के लिए सौंप दे। इसके लिए सरकार कानून बनाए।
  
स्त्रोत :विश्व संवाद केंद्र भारत दिल्ली

सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

संघ की तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक 31 अक्तूबर से 2 नवंबर तक ठाणे स्थित केशवसृष्टि में

कार्यकारी मंडल की बैठक में संगठन की गुणात्मकता बढ़ाने पर चर्चा होगी


केशवसृष्टि (ठाणे). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार जी ने कहा कि संघ की तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक में संगठन की गुणात्मकता बढ़ाने पर चर्चा की जाएगी. यह बैठक 31 अक्तूबर से 2 नवंबर तक ठाणे स्थित केशवसृष्टि में आयोजित की गई है.
संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए अरुण कुमार जी ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वर्ष में दो बार इस प्रकार की बैठकों का आयोजन करता है. मार्च में होने वाली प्रतिनिधि सभा बैठक में करीब 1400 सदस्य हिस्सा लेते हैं. जबकि दशहरे से दीवाली के बीच होने वाली बैठक में करीब 350 सदस्य उपस्थित रहते हैं. बुधवार से शुरू हो रही बैठक में संघ के 11 क्षेत्रों एवं 43 प्रांतों के संघचालक, कार्यवाह एवं प्रचारकों सहित सात आनुशांगिक संगठनों के संगठन सचिव हिस्सा लेंगे. बुधवार को सुबह 8:30 बजे केशवसृष्टि प्रांगण स्थित रामरतन विद्यामंदिर के बालासाहब देवरस सभागार में बैठक शुरू होगी. जिसमें पूरे समय संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत एवं सरकार्यवाह भय्याजी जोशी उपस्थित रहेंगे.
बैठक के दौरान प्रतिनिधि सभा बैठक में बनाई गई योजनाओं की समीक्षा के साथ-साथ देश की वर्तमान परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में समसामयिक विषयों पर भी चर्चा होगी. बैठक में संगठन की गुणात्मकता बढ़ाने पर चर्चा की जाएगी. उन्होंने कहा कि कार्यकारी मंडल बैठक में इस विषय पर भी विचार होगा कि देश के विचारवान लोगों तक अपनी पहुंच कैसे बढ़ाई जाए और संघ की आंतरिक संगठन को किस प्रकार मजबूत किया जाए. लेकिन कोई नया प्रस्ताव इस बैठक में नहीं लाया जाएगा.
इस दौरान पत्रकारों द्वारा श्रीरामजन्मभूमि के संबंध में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए अरुण जी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में यह स्वीकार किया था कि उपरोक्त स्थान रामलला का जन्म स्थान है. तथ्य और प्राप्त साक्ष्यों से भी यह सिद्ध हो चुका है कि मंदिर तोड़कर ही वहाँ कोई ढांचा बनाने का प्रयास किया गया और पूर्व में वहाँ मंदिर ही था. संघ का मत है कि जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर शीघ्र बनना चाहिए और जन्म स्थान पर मन्दिर निर्माण के लिये भूमि मिलनी चाहिए. मन्दिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण निर्माण होगा. इस दृष्टि से सर्वोच्च न्यायालय शीघ्र निर्णय करे, और अगर कुछ कठिनाई हो तो सरकार कानून बनाकर मन्दिर निर्माण के मार्ग की सभी बाधाओं को दूर कर श्रीराम जन्मभूमि न्यास को भूमि सौंपे. उन्होंने कहा कि जब से यह आंदोलन प्रारंभ हुआ है पूज्य संतों और धर्म संसद के नेतृत्व में आन्दोलन चल रहा है, और उसका हमने समर्थन किया है, आगे भी वे जो निर्णय करेंगे उसमें हम उनका समर्थन करेंगे.

श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण शीघ्र हो



उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में यह स्वीकार किया था कि उपरोक्त स्थान रामलला का जन्म स्थान है. तथ्य और प्राप्त साक्ष्यों से भी यह सिद्ध हो चुका है कि मंदिर तोड़कर ही वहाँ कोई ढांचा बनाने का प्रयास किया गया और पूर्व में वहाँ मंदिर ही था.
संघ का मत है कि जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर शीघ्र बनना चाहिए और जन्म स्थान पर मन्दिर निर्माण के लिये भूमि मिलनी चाहिए. मन्दिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण निर्माण होगा.
इस दृष्टि से सर्वोच्च न्यायालय शीघ्र निर्णय करे, और अगर कुछ कठिनाई हो तो सरकार कानून बनाकर मन्दिर निर्माण के मार्ग की सभी बाधाओं को दूर कर श्रीराम जन्मभूमि न्यास को भूमि सौंपे.
जब से यह आंदोलन प्रारंभ हुआ है पूज्य संतों और धर्म संसद के नेतृत्व में आन्दोलन चल रहा है, और उसका हमने समर्थन किया है, आगे भी वे जो निर्णय करेंगे उसमें हम उनका समर्थन करेंगे.
अरुण कुमार
अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

जोधपुर - प्रान्त विजयदशमी उत्सव की खबरे समाचारपत्रों से

जोधपुर - प्रान्त विजयदशमी उत्सव की खबरे समाचारपत्रों से 

साभार: दैनिक नवज्योति 

साभार: राजस्थान पत्रिका

साभार: दैनिक नवज्योति

साभार: दैनिक नवज्योति

साभार: दैनिक नवज्योति

साभार: राजस्थान पत्रिका

साभार: राजस्थान पत्रिका

साभार : राजस्थान पत्रिका




 

विजयदशमी उत्सव की खबरे जोधपुर प्रान्त से

विजयदशमी उत्सव की खबरे जोधपुर  प्रान्त से 

 जैसलमेर नगर ने स्थापना दिवस पर शस्त्र पूजा के साथ मनाई विजयदशमी

जैसलमेर।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसलमेर नगर की ओर से आदर्श विद्या मंदिर गांधी कॉलोनी में स्थापना दिवस पर शस्त्र पूज कर  विजयादशमी उत्सव मनाया गया।  कार्यक्रम संघ के विभाग संघचालक दाऊलाल शर्मा जिला संघचालक त्रिलोक चन्द्र खत्री व नगर संघचालक  पुराराम के सानिध्य में सम्पन्न हुआ ।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राजस्थान क्षेत्र के सहक्षेत्र प्रचारक निम्बाराम के सानिध्य में आयोजित कार्यक्रम में शहरभर से स्वयंसेवक मौजूद थे।
कार्यक्रम में ध्वजारोहण के बाद शस्त्र पूजन किया गया । इस मौके पर स्वयंसेवकों ने दण्ड एवं समता संचलन का प्रदर्शन किया।
निम्बाराम जी ने अपने उध्बोधन में कहा कि वर्ष 1925 में संघ के गठन के बाद से ही संघ विजयदशमी को अपने स्थापना दिवस के तौर पर मनाता आ रहा है | आज संघ अपनी स्थापना के गौरवशाली 93वर्ष पूर्ण कर रहा है ।संघ विजय की ओर बढ़ता जा रहा है । संघ जब से शुरू हुआ तब से आज तक एक ही ध्येय के साथ कार्य कर रहा है । स्वयंसेवक एकत्रीकरण पर संघ के कार्यों की चर्चा की जाती है । नए स्वयंसेवकों को यह ज्ञात रहना चाहिए कि संघ को खड़ा करने के लिए किन लोगों ने प्रयास किये हैं । सभी स्वयंसेवकों को डॉ. हेडगेवार जी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए ।
निम्बाराम जी ने कहा कि स्वतंत्रता के आंदोलन को लेकर संघ के योगदान पर प्रश्न खड़े होते हैं पर हमें डॉ. हेडगेवार जी के जीवन में देखना चाहिए कि डॉ. जी गांधी जी के साथ अग्रिम पंक्ति में खड़े थे । उस समय देश मे राष्ट्रीयता के विषय को लेकर कोई स्पष्टता नही थी। तब 27 सितम्बर 1925 को डॉ. जी ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर संघ की स्थापना की । विजयदशमी विजय का उत्सव है, उसी दिन डॉ. हेडगेवार जी ने एक संघठन तैयार करने का निर्णय लिया उसके पश्चात कुछ विद्यार्थियों एवं तरुणों को लेकर मोहितों के बाड़े में शाखा लगाई । जाति,पंथ, भाषा एवं भौगोलिक विविधता के देश को एक माला में पिरोने हेतु संघ कार्य कर रहा है ।
निम्बाराम जी ने मार्गदर्शन देते हुए कहा कि संघ की शाखा मनुष्य निर्माण का केंद्र है । आज पर्सनेलिटी डेवलोपमेन्ट के केंद्र चलाये जा रहे हैं । परंतु संघ स्थान पर निरन्तर व्यक्ति निर्माण किया जा रहा है ।डॉ जी ने अपने अंतिम बौद्धिक में कहा कि मैं आज लघु भारत को देख रहा हूँ । डॉ जी ने कहा कि जीवन मे कभी ये कहने का अवसर न मिले कि मैं संघ का स्वयंसेवक था । संघ सिर्फ शाखा चलाएगा एवं उन शाखाओं में तैयार संघ के स्वयंसेवक समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं ।डॉ जी ने कहा मैं अपने इस हिन्दू समाज को संगठित संस्कारित समरस निर्दोष बनाना चाहता हूं ।
समाज संघ पर विश्वास करता है क्योंकि संघ की कथनी करनी में फर्क नहीं है । संघ की इतनी लंबी यात्रा में भी संघ बिना परिवर्तन के एक ध्येय के साथ कार्य कर रहा है । स्वयंसेवकों द्वारा समाज मे स्वास्थ्य एवं स्वच्छता की दृष्टि से भी निरन्तर जागरूकता फैलाई जा रही है ।

सामान्य से दिखने वाले स्वयंसेवक समाजोत्थान के बहुत बड़े बड़े कार्य कर लेते हैं । 
निम्बाराम जी ने आगे कहा कि संघ पर प्रतिबंध काल के संस्मरण सुनाते हुए वरिष्ठ स्वयंसेवक कहते हैं चुनोतियों को स्वीकारने में ही मज़ा है । शाखा समाज की आवश्यकता है । शाखा से समाज परिवर्तन का लाभ मिले । शाखाओं में समरसता, कुटुंब प्रबोधन, सम्पर्क, गौ संवर्धन एवं सेवा बस्तियों में सेवा कार्य किये जा रहे हैं । स्वयंसेवको को अभिरुचि के हिसाब से समाज जीवन मे सक्रिय करना है । संघ में नये स्वयंसेवको के जुड़ने की होड़ मची है परन्तु पुराने स्वयंसेवको को भी अपने अनुभव के साथ विभिन्न संगठनों के साथ जोड़कर कार्य करना है ।
संघ ने हिन्दू की सात्विक शक्ति को जाग्रत किया है ।
हमारे पूर्वज जयम देयी बलम देयी का उद्घोष करते थे ।



बालोतरा नगर में  विजयादशमी उत्सव सम्पन्न
18 अक्टूबर 18 . बालोतरा नगर में  विजयादशमी उत्सव मनाया गया. उत्सव पर बालोतरा नगर के नगर संघचालक माननीय डॉक्टर घेवरराम जी भील, जिला कार्यवाह मेघा राम जी, प्रांत गौ सेवा प्रमुख श्री श्याम सुंदर जी राठी,प्रचारक श्री  शिवकुमार जी प्रांत के सामाजिक समरसता सह संयोजक, विभाग सामाजिक समरसता संयोजक श्री निर्मल जी लुक्कड़ उपस्थित रहे। 
 
कार्यक्रम में जोधपुर प्रान्त के प्रान्त प्रचारक योगेंद्र जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीमान पृथ्वीराज जी दवे  सेवानिवृत्त उप निर्देशक रहे । वर्तमान में आप शांति निकेतन विद्यालय में निदेशक है 
कार्यक्रम की शुरुआत शस्त्र पूजन से की गई । पूजन के पश्चात अवतरण, काव्य गीत,सूर्य नमस्कार  शारीरिक के कार्यक्रम में  दंड के प्रयोग भी हुए। 

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत के श्री विजयादशमी उत्सव 2018 (गुरुवार दिनांक 18 अक्तूबर 2018) के अवसर पर दिये गये उद्बोधन का सारांश

प्रास्ताविक
इस वर्ष की विजयादशमी के पावन अवसर को संपन्न करने के लिये हम सब आज यहाँ पर एकत्रित है। यह वर्ष श्रीगुरुनानक देव जी के प्रकाश का 550 वाँ वर्ष है। अपने भारतवर्ष की प्राचीन परम्परा से प्राप्त सत्य को भूलकर, आत्मविस्मृत होकर जब अपना सारा समाज दम्भ, मिथ्याचार, स्वार्थ तथा भेद की दलदल में आकण्ठ फँस गया था और दुर्बल, पराजित व विघटित होकर लगातार सीमा पार से आने वाले क्रूर विदेशी असहिष्णु आक्रामकों की बर्बर प्रताड़नाओं को झेलकर तार-तार हो रहा था, तब श्रीगुरुनानक देव जी ने अपने जीवन की ज्योति जलाकर समाज को अध्यात्म के युगानुकूल आचरण से आत्मोद्धार का नया मार्ग दिखाया, भटकी हुई परम्परा का शोधन कर समाज को एकात्मता व नवचैतन्य का संजीवन दिया। उन्हीं की परम्परा ने हमको देश की दीन-हीन अवस्था को दूर करने वाले दस गुरुओं की सुन्दर व तेजस्वी मालिका दी।
उसी सत्य व प्रेम पर स्थापित सर्वसमावेशी संस्कृति के, देश में विभिन्न महापुरुषों के द्वारा समय-समय पर पुरस्कृत व प्रवर्तित, देश काल परिस्थिति के अनुरूप प्रबोधन के सातत्य का परिणाम है कि जिनके जन्म का यह 150वाँ वर्ष है ऐसे महात्मा गाँधी जी ने इस देश के स्वतंत्रता आन्दोलन को सत्य व अहिंसा पर आधारित राजनीतिक अधिष्ठान पर खड़ा किया। ऐसे सभी प्रयासों के कारण देश की सामान्य जनता स्वराज्य के लिए घर के बाहर आकर, मुखर होकर अंग्रेजी दमनचक्र के आगे नैतिक बल लेकर खड़ी हो गयी। एक सौ वर्ष पहले अमृतसर के जलियाँवाला बाग में स्वराज्य के लिये तथा ”रौलेट कानून“ के अन्याय व दमन के विरुद्ध संकल्पबद्ध, चारों ओर से घेरकर जनरल डायर के नेतृत्व में जिन्हें गोलीबारी का शिकार बनाया गया, उन हमारे सैकड़ों निहत्थे देशबांधवों के त्याग, बलिदान व समर्पण का स्मरण भी इस नैतिक बल को हम में जागृत करता है।
इस वर्ष के इन औचित्यपूर्ण संस्मरणों का उल्लेख इसलिए आवश्यक है कि स्वतंत्रता के 71 वर्षों में हमारे देश ने उन्नति के कई आयामों में एक अच्छा स्तर प्राप्त कर लिया है, परन्तु सर्वांगपरिपूर्ण राष्ट्रीय जीवन के और भी कई आयामों में अभी हमें बढ़ना है। हमारे देश के विश्व में सुसंगठित, समर्थ व वैभव-सम्पन्न बन कर आगे आने से जिन शक्तियों के स्वार्थ-साधन का खेल समाप्त या अवरुद्ध हो जाता है, वे शक्तियाँ तरह-तरह के कुचक्र चलाकर देश की राह में रोड़े अटकाने से बाज नहीं आयी है। कई चुनौतियों को हमें अभी पार करना है। हमारे पूर्वज महापुरुषों द्वारा स्वयं के जीवन के उदाहरण से, उपदेश से जो सत्यनिष्ठा, प्रेम, त्याग, पवित्रता व तपस् के आदर्श समाज में स्थापित व आचरण में प्रवर्तित किये गये, उन्हीं पर चलकर हम इस कार्य को कर सकेंगे। देश के परिदृश्य पर थोड़ा गौर करने पर वहाँ चले हुए धूप-छाँव के खेल में यही बोध दृष्टिगत होता है।
 
देश की सुरक्षा
किसी भी देश के लिए उस देश की सीमाओं की सुरक्षा तथा अंतर्गत सुरक्षा की स्थिति विचार का विषय पहला रहता है क्योंकि इनके ठीक रहने से ही देश की समृद्धि व विकास के लिए प्रयास करने हेतु अवकाश व अवसर उपलब्ध होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के तानों-बानों को ठीक से समझकर अपने देश की सुरक्षा-चिन्ताओं से उनको अवगत कराना व उनका सहयोग समर्थन प्राप्त करना यह भी सफल प्रयास हुआ है। पड़ोसी देशों सहित सब देशों से शांतिपूर्ण व सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाने बढ़ाने की अपनी इच्छा, वाणी व कृति को कायम रखते हुए, देश के सुरक्षा संदर्भ में जहाँ आवश्यक वहाँ दृढ़ता से खड़े व अड़े रहना तथा साहसपूर्ण पहल करके अपने सामथ्र्य का विवेकी उपयोग करना यह भी अपना रुख सेना, शासन व प्रशासन ने स्पष्ट दिखाया है। इस दृष्टि से अपनी सेना तथा रक्षक बलों का नीति धैर्य बढ़ाना, उनको साधन-सम्पन्न बनाना, नयी तकनीक उपलब्ध कराना आदि बातों का प्रारम्भ होकर उनकी गति बढ़ रही है। दुनिया के देशों में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ने का यह भी एक कारण है।
साथ-साथ ही सुरक्षा बलों, रक्षक बलों तथा उनके परिवारों के योगक्षेम की व्यवस्था पर ध्यान बढ़ाना आवश्यक है। इस दिशा में कुछ अच्छे प्रयास शासन के द्वारा हुए हैं। उन को लागू करने की गति कैसे बढ़ सकती है इस पर विचार करना आवश्यक है। सैनिक अधिकारी व नागरिक प्रशासकीय अधिकारी, गृहमंत्रालय, सुरक्षा मंत्रालय, अर्थ मंत्रालय आदि अनेक विभागों में से इन योजनाओं का विचार व अमल होना प्रशासकीय दृष्टि से अनिवार्य है। इन बलों के कार्य का तथा उस कार्य के लिए प्राणों तक की बाजी लगा देने की तैयारी का इन विभागों के सब व्यक्तियों के मन में समान सम्मान व संवेदना रहे यह स्वाभाविक अपेक्षा चर्चा में सुनाई देती है। यह अपेक्षा जितनी शासन से व प्रशासन से है उतनी ही समाज से भी है, यह प्रत्येक देशवासी को ध्यान में रखना चाहिए। सीमा पार तथा आवश्यकतानुसार देश के अंदर भी समाज की सुरक्षा के लिए जूझनेवाले अपने बंधु अपने परिवार की सुव्यवस्था व सुरक्षा के बारे में निश्चिन्त होकर अपना काम कर सकें यह आवश्यक है। अभी पश्चिम सीमापार के देश में हुए सत्तापरिवर्तन से हमारे सीमा पर तथा पंजाब, जम्मू व कश्मीर जैसे राज्यों में चली उसकी प्रकट अथवा छुपी उकसाऊ गतिविधियों में कोई कमी आने की न अपेक्षा थी, न वैसा हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय घटनाचक्र के परिप्रेक्ष्य में सागरी सीमा की सुरक्षा एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय बना है। मुख्यभूमि से लगे सागरी क्षेत्र में कम अधिक दूरी पर भारत में अंतर्भूत सैकड़ों द्वीप हैं। अन्दमान निकोबार द्वीप समूह सहित ये सभी द्वीप सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर स्थित हैं। उनकी निगरानी व्यवस्था तथा सुरक्षा की दृष्टि से वहाँ की व्यवस्था का सबलीकरण यह अतिशीघ्रता से ध्यान देकर पूर्ण करने का विषय है। सागरी सीमा व द्वीपों पर ध्यान देनेवाली नौसेना तथा अन्य बल इन में आपसी तालमेल, सहयोग व साधनसंपन्नता पर शीघ्र अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। भू तथा सागरी सीमावर्ती क्षेत्र में रहनेवाले अपने बंधु कई सीमाविशिष्ट परिस्थितियों का सामना करते हुए भी धैर्यपूर्वक डटे रहते आये हैं। उनकी वहाँ व्यवस्था ठीक रहे तो आतंकी घुसपैठ, तस्करी आदि समस्याओं को कम करने में वे सहायक भी हो सकते हैं। उनको समय-समय पर उचित राहत मिले, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की व्यवस्था उन तक पहुँचती रहे तथा उनमें साहस, संस्कार व देशभक्ति की उत्कटता बनी रहे, इसके लिए शासन व समाज दोनों के प्रयास अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है।
सुरक्षा उत्पादों के मामले में देश की संपूर्ण आत्मनिर्भरता को - अन्य देशों के साथ आपसी आदान-प्रदान की उचित मात्रा रखते हुए भी - साधे बिना हम देश की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त नहीं हो सकते। इस दिशा में देश में प्रयासों की गति बहुत अधिक होनी पड़ेगी।
 
आन्तरिक सुरक्षा
देश की सीमाओं की सुरक्षा के साथ ही देश में अंतर्गत सुरक्षा का विषय भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। उसके उपायों का एक पहलू केन्द्र व राज्य शासनों तथा प्रशासन के द्वारा कड़ाई के साथ कानून, संविधान तथा देश की सार्वभौम संप्रभुता को चुनौती देने वाली, हिंसक गतिविधियाँ करने वाली, देश के अन्दर तथा बाहर से प्रेरित अथवा प्रेषित मंडलियों का बंदोबस्त करना है। इसमें केन्द्र व राज्य सरकारों की तथा पुलिस व अर्धसैनिक बलों की कार्यवाई सफलतापूर्वक चली है। निरन्तर सजगता के साथ उन्हें उसको जारी रखना पड़ेगा। परन्तु ऐसी हिंसक तथा सीधे तौर पर गैरकानूनी गतिविधियों में भाग लेनेवाले लोग अपने ही समाज में से मिल जाते हैं यह वस्तुस्थिति है। उसके मूल में अपने समाज में व्याप्त अज्ञान, विकास तथा सुविधाओं का अभाव, बेरोजगारी, अन्याय, शोषण, विषमता का व्यवहार तथा स्वतंत्र देश में आवश्यक विवेक व संवेदना का समाज बड़ी मात्रा में अभाव है। उसे दूर करने में शासन-प्रशासन की भूमिका अवश्य है। परन्तु उससे बड़ी समाज की भूमिका है। समाज में इन सब त्रुटियों को दूर कर उसके शिकार हुए समाज के अपने इन बंधुओं को स्नेह व सम्मान से गले लगाकर समाज में सद्भावपूर्ण व आत्मीय व्यवहार का प्रचलन बढ़ाना पड़ेगा। समाजजीवन के इस परिष्कार का प्रारम्भ पहले स्वयं के मन मस्तिष्क के परिष्कार तथा अपने आचरण से करना होगा। समाज के सब प्रकार के वर्गों से आत्मीय व नित्य संपर्क स्थापित कर उनके सुखःदुख का भागी बनना पड़ेगा।
अनुसूचित जाति व जनजाति वर्गों के लिए बनी हुई योजनाएँ, उपयोजनाएँ [sub-plans] व कई प्रकार के प्रावधान समय पर तथा ठीक से लागू करना इस बारे में केन्द्र व राज्य शासनों को अधिक तत्परता व संवेदना का परिचय देने की व अधिक पारदर्शिता बरतने की आवश्यकता है ऐसा प्रतीत होता है। अंतर्गत सुरक्षा व्यवस्था का पहला प्रहरी देश का पुलिस बल है। उनकी व्यवस्था के सुधार की अनुशंसा भी ”पुलिस आयोग“ ने की है। अनेक वर्षों से लंबित उस अनुशंसा पर विचार व सुधार के प्रयास की आवश्यकता है।
 
चिंताजनक प्रवृत्तियाँ
देश को चलानेवाला व्यवस्थातंत्र तथा देश-समाज के द्वारा समाज के दुर्बल घटकों के साथ, उनके उन्नति के प्रयासों में तत्परता, संवेदनशील आत्मीयता तथा पारदर्शिता व आदरसम्मान का व्यवहार बरतने में त्रुटियाँ रह जाने से अभाव, उपेक्षा व अन्याय की मार से जर्जर ऐसे वर्गों के मन में संशय, अलगाव, अविवेक, विद्रोह व द्वेष तथा हिंसा के बीज बोना व पनपाना आसानी से संभव हो जाता है। इसी का लाभ लेकर उनको अपने स्वार्थप्रेरित उद्देश्य के लिए, देशविरोधी कृत्यों के लिए, आपराधिक गतिविधियों के लिए गोला बारूद [cannon fodder] के रूप में उपयोग करना चाहनेवाली शक्तियाँ उनमें अपने छल-कपट के खेल खेलती है। गत 4 वर्षों में समाज में घटी कुछ अवांछित घटनाएँ, समाज के विभिन्न वर्गों में व्याप्त नई-पुरानी समस्याएँ, विभिन्न नयी-पुरानी माँगें आदि को लेकर आन्दोलनों को एक विशिष्ट रूप देने का जो लगातार प्रयास हुआ, उससे यह बात सभी के ध्यान में आती है। आनेवाले चुनाव के वोटों पर ध्यान रखकर, सामाजिक एकात्मता, कानून संविधान का अनुशासन आदि की नितांत उपेक्षा करके चलने वाली स्वार्थी, सत्तालोलुप राजनीति तो ऐसे हथकण्डों के पीछे स्पष्ट दिखती रही है। परन्तु इस बार इन सब निमित्तों को लेकर समाज में भटकाव का, अलगाव का, हिंसा का, अत्यंत विषाक्त द्वेष का तथा देश विरोधिता तक का भी वातावरण खड़ा करने का प्रयास हो रहा है। ”भारत तेरे टुकड़े होंगे“ आदि घोषणाएँ जिन समूहों से उठीं उन समूहों के कुछ प्रमुख चेहरे कहीं-कहीं इन घटनाओं में प्रमुखता से अपने भड़काऊ भाषणों के साथ सामने आये। दृढ़ता से वन प्रदेशों में अथवा अन्य सुदूर क्षेत्रों में दबाये गये हिंसात्मक गतिविधियों के कर्ता-धर्ता व पृष्ठपोषण करनेवाले अब शहरी माओवाद [urban naxalism] के पुरोधा बनकर ऐसे आन्दोलनों में अग्रपंक्ति में दिखाई दिये। पहले छोटे-छोटे अनेक संगठनों के जाल फैलाकर तथा छात्रावास आदि में लगातार संपर्क के माध्यम से एक वैचारिक अनुयायी वर्ग खड़ा किया जाता है। फिर उग्र व हिंसक कार्यवाईयों को छोटे-बड़े आन्दोलनों में घुसाकर, अराजकता का अनुभव देकर, उन अनुयायियों में प्रशासन व कानून का डर तथा नागरिक अनुशासन का डर समाप्त किया जाता है। दूसरी ओर समाज में आपस में व स्थापित व्यवस्था व नेतृत्व के बारे में तिरस्कार व द्वेष उत्पन्न किया जाता है। ऐसी अचानक उग्र रूप लेनेवाली घटनाओं के माध्यम से समाज के सब अंगों में प्रस्थापित सभी विचारों का नेतृत्व, जो समाज व्यवस्था व नागरिक व्यवहार की भद्रता के अनुशासन से कम अधिक मात्रा में ही सही बंधा रहता है, अचानक ध्वस्त किया जाता है। नया अपरिचित, अनियंत्रित, केवल नक्सली नेतृत्व से ही बँधा हुआ अंधानुयायी व खुला पक्षपाती नेतृत्व स्थापित करना, यह इन शहरी माओवादियों की ही नव वामपंथी कार्यपद्धति है। social media, अन्य माध्यम तथा बुद्धिजीवियों व अन्य संस्थाओं में पहले से तथा बाद तक स्थापित इनके हस्तक ऐसी घटनाओं में, इनसे संबद्ध भ्रमपूर्ण प्रचार अभियान में, बौद्धिक व अन्य सभी प्रकार का समर्थन आदि में, सुरक्षित अंतर पर व तथाकथित कृत्रिम प्रतिष्ठा के कवच में रहकर संलग्न रहते हैं। उनके प्रचार का विषैलापन अधिक प्रभावी करने के लिए उन्हें असत्य तथा जहरीली भड़काऊ भाषा का उपयोग स्वछन्दतापूर्वक करना भी आता है। देश के शत्रुपक्ष से सहायता लेकर स्वदेशद्रोह करना तो अतिरिक्त कौशल्य माना जाता है। social media के इनके आशय [content] व कथ्य [narration] का उद्गम कहाँ से है यह जाँच-पड़ताल की जाय तो यह बात सामने आती है। जिहादी व अन्य कट्टरपंथी व्यक्तियों की कहीं न कहीं प्रत्यक्ष उपस्थिति भी इन सभी घटनाओं में समान बात है। इसलिए यह सारा घटनाक्रम केवल प्रतिपक्ष की सत्ताप्राप्ति की राजनीति मात्र न रहकर देशी-विदेशी भारतविरोधी ताकतों की सांठगांठ से धूर्ततापूर्वक चलाया गया कोई बड़ा षड्यंत्र है; जिसमें राजनीतिक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति अथवा समूह जाने-अनजाने तथा अभाव व उपेक्षा में पिसने वाला समाज का दुर्बल वर्ग अनजाने व अनचाहे गोलाबारूद के रूप में उपयोग में लाये जाने के लिए खींचा जा रहा है, इस निष्कर्ष पर आना पड़ता है। सारा विषाक्त व विद्वेषी वातावरण बनाकर देश की अंतर्गत सुरक्षा का मुख्य आधार समाज के सामरस्य को ही जर्जर बनाकर ढहा देनेवाला मानसशास्त्रीय युद्ध, जिसको अपनी राजनीति-शास्त्र की परम्परा में ”मंत्रयुद्ध“ कहा गया, उसी की सृष्टि की जा रही है।
इसके निरस्तीकरण के लिए शासन-प्रशासन को सजग होकर, समाज में एक ओर ऐसी घटनाएँ न घट पायें जिनका लाभ उपद्रवी शक्तियाँ ले पावें; तथा दूसरी ओर ऐसी उपद्रवी शक्तियों व व्यक्तियों पर चैकस नजर रखकर वे उपद्रवी कार्यवाई न कर पायें यह करना पड़ेगा। धीरे-धीरे समाज का लेशमात्र भी प्रश्रय न मिलने से यह उपद्रवी तत्त्व पूर्ण शमित हो जायेंगे। प्रशासन को अपने सूचना तंत्र को भी व्यापक व सजग बनना पड़ेगा। जनहित की योजनाओं का तत्पर क्रियान्वयन करते हुए समाज के अंतिम पंक्ति तक उन योजनाओं को पहुँचाना पड़ेगा। कानून सुव्यवस्था का पालन करवाने के लिए दक्ष व कुशल होकर काम करना पड़ेगा।
परन्तु इस परिस्थिति का संपूर्ण व अचूक उपाय तभी हो सकता है जब समाज के सभी वर्गों में, बुद्धि व भावना सहित आचरण में, आपस में सद्भावना व अपनेपन का व्यवहार हो। पंथ-सम्प्रदाय, जाति-उपजाति, भाषा, प्रान्त आदि की विविधता को हम एकता की दृष्टि से देखें। वर्गविशेष की समस्या व परिस्थिति को अपना दायित्व मानकर सारा समाज मिल-बैठकर उसका न्याय व सद्भावनापूर्वक हल ढूँढे। इसलिए आपस में निरंतर आत्मीय संवाद हो सके ऐसा वातावरण अपने संपर्क व संबंधों को बढ़ाकर उत्पन्न करें। अपने जीवन व्यवहार में नागरिक अनुशासन व कानून व्यवस्था की मर्यादा का आचरण करें। इस सम्बन्ध में हमारे राजनेताओं सहित समाज के प्रत्येक व्यक्ति को पू. डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर का (25 नवम्बर 1949 का) वह प्रसिद्ध भाषण नित्य स्मरण में रखना चाहिए जिसमें वे परामर्श देते हैं कि न्याय, समता व स्वातंत्र्य की दिशा में देश का बढ़ना, राजनीतिक व आर्थिक प्रजातंत्र के साथ सामाजिक प्रजातंत्र की ओर बढ़ना, समाज में बंधुभाव के व्यापक प्रसार के बिना संभव नहीं। बिना उसके इन प्रजातांत्रिक मूल्यों की व अपनी स्वतंत्रता की भी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। पारतंत्र्य में हमने अपनी मांगों की आवाज उठाने के लिए जो पद्धतियाँ अपनायीं वे स्वातंत्र्य की स्थिति में छोड़ देनी पड़ेगी। हमें लोकतंत्र के अनुशासन में बैठ सकने वाली पूर्णतः संवैधानिक पद्धतियों का ही अवलम्बन करना पड़ेगा।
भगिनी निवेदिता ने भी नागरिकता की समझदारी [ Civic consciousness] को ही स्वतंत्र देश में देशभक्ति की दैनन्दिन जीवन में अभिव्यक्ति माना है।
 
परिवार में संस्कार आवश्यक
देश की राजनीति, कार्यपालिका, न्यायपालिका, स्थानीय प्रशासन, संगठन, संस्थाएँ, विशेष व्यक्ति व जनता इन सबकी इसके बारे में एक व पक्की सहमति तथा समाज की आत्मीय एकात्मता की भावना ही देश में स्थिरता, विकास व सुरक्षा की गारण्टी है। यह संस्कार नई पीढ़ी को भी शैशवकाल से ही घर में, शिक्षा में तथा समाज के क्रियाकलापों में से प्राप्त होने चाहिए। घर से नई पीढ़ी में मनुष्य के मनुष्यत्व व सच्चारित्र्य की नींवरूप सुसंस्कारों का मिलना आज के समय में बहुत अधिक महत्त्व का हो गया है। समाज के वातावरण तथा शिक्षा के पाठ्यक्रमों में आजकल इन बातों का अभाव सा हो गया है। शिक्षा की नयी नीति प्रत्यक्ष लागू होने की प्रतीक्षा में समय हाथ से निकलता जा रहा है। यद्यपि इन दोनों परिवर्तनों के लिए अनेक व्यक्ति व संगठनों के प्रयास शासकीय व सामाजिक ऐसे दोनों स्तरों पर बढ़ रहे हैं, तथापि हमारे हाथ में सर्वथा हमारा अपना घर व हमारा अपना परिवार तो है ही। उसमें हमारी स्वाभाविक आत्मीयता, पारिवारिक व सामाजिक दायित्वबोध, स्वविवेक का निर्माण आदि संस्कारों को अंकित करनेवाला अनौपचारिक शुचितामय प्रसन्न वातावरण अपने उदाहरण सहित देते रहने का अपना नई पीढ़ी के प्रति दायित्व ठीक से निभा रहे हैं यह सजगता से देखने की आवश्यकता है। बदला हुआ समय, उसमें बढ़ा हुआ प्रसार माध्यमों का व्यापक प्रसार व प्रभाव, नई तकनीकी के माध्यम से व्यक्ति को अधिक आत्मकेन्द्रित बनानेवाले तथा व्यक्ति के विवेकबुद्धि को समझे बिना विश्व की सारी सही-गलत सूचनाओं व ज्ञान को उससे साक्षात् करानेवाले साधन इसमें बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता विश्व में सभी को प्रतीत हो रही है। ऐसे समय में परिवार की स्वपरंपरा के सुसंस्कार मिलते रहे। नई दुनिया में जो भद्र है उसे खुले मन से आत्मसात करते हुए भी अपने मूल्यबोध के आधार पर अभद्र से बचने-बचाने का नीर-क्षीर विवेक, उदाहरण व आत्मीयता से नयी पीढ़ी में भरना ही होगा।
देश में पारिवारिक क्लेश, ऋणग्रस्तता, निकट के ही व्यक्तियों द्वारा बलात्कार-व्यभिचार, आत्महत्यायें तथा जातीय संघर्ष व भेदभाव की घटनाओं के समाचार निष्चित ही पीड़ादायक व चिंताजनक है। इन समस्याओं का समाधान भी अंततोगत्वा स्नेह व आत्मीयपूर्ण पारिवारिक वातावरण एवं सामाजिक सद्भाव निर्माण करने में ही है। इस दृष्टि से समाज के सुधी वर्ग एवं प्रमुख प्रबुद्धजनों सहित संपूर्ण समाज को इस दिशा में कर्तव्यरत होना पडेगा।
 
चिन्तन में समग्रता
हमारी प्रत्येक कृति, उक्ति व मन से भी व्यक्ति, परिवार, समाज, मानवता व सृष्टि, सभी का सुपोषण हो, यह विशेषकर विविध अंगों में समाज का दिग्दर्शन करने वाले सभी को ध्यान में रखना चाहिए। विश्व में कहीं भी समाज का स्वस्थ व शांतिपूर्ण जीवन केवल विधिव्यवस्था व दंड के भय से न चला है न चल सकता है। समाज के द्वारा कानून का पालन समाज के नीतिबोध का परिणाम है न कि कारण। और समाज का नीतिबोध उसके परंपरागत मूल्यबोध से बनता है। मूल्यों के आधार पर पक्का रहकर ही समयानुकूल आचारधर्म अपनाने के लिए नीतिकल्पना व नियम बदलने चाहिए। समाज के आचरण के कारण बननेवाली प्रकृतिगत काम व अर्थ की प्रवृत्ति, उसको मर्यादित कर, उपयोगी व सुख के साथ संतोष व आनंद देने वाली बनाने का काम करनेवाली नीति, नीतिबंधन के अनुशासन से समाज व परिवार एकात्म होकर चलते रहे यह देखनेवाला विधि तथा इन सबका निर्णायक मूल्यबोध यह सब जहाँ परस्परानुकूल सुसंगति से चलते हैं वहाँ वास्तविक व संपूर्ण न्याय होता है। समग्रतापूर्वक विचार तथा धैर्यपूर्वक मन बनाये बिना निर्णयों का समाज के आचरण में स्वीकार तथा उससे देशकाल परिस्थितिनुरुप समाज की नवरचना का निर्माण नहीं होगा। हाल ही में दिये गये शबरीमलै देवस्थान के सम्बंध में निर्णय से उत्पन्न स्थिति भी यही दर्शाति है। सैकड़ों वर्षों से चलती आयी परम्परा, जो समाज में अपनी स्वीकार्यता बना चुकी है, उसके स्वरूप व कारणों के मूल का विचार नहीं किया गया। धार्मिक परम्पराओं के प्रमुख कर्ताधर्ताओं का पक्ष, करोड़ों भक्तों की श्रद्धा को परामर्श में नहीं लिया। महिलाओं में भी बहुत बड़ा वर्ग जो इन नियमों को मानकर चलता है, उनकी बात नहीं सुनी गयी। कानूनी निर्णय से समाज में शांति, सुस्थिरता व समानता के स्थान पर अशांति, अस्थिरता व भेदों का सृजन हुआ। क्यों, हिन्दू समाज की श्रद्धाओं पर ही ऐसे आघात लगातार व बिना संकोच किये जाते हैं, ऐसे प्रश्न समाज मन में उठते हैं व असंतोष की स्थिति बनती चली जाती है। यह स्थिति समाज जीवन की स्वस्थता व शांति के लिये कतई ठीक नहीं है।
 
स्वतंत्र देश का ”स्व“ आधारित तंत्र
भारत के जीवन के सभी अंगों के नवनिर्माण में भारत के मूल्यबोध के शाश्वत आधार पर पक्का रहकर ही प्रगति करनी पड़ेगी। अपने देश में जो है उसको देश-काल-परिस्थिति-अनुरुप सुधार कर, परिवर्तित कर अथवा आवश्यक है तो कुछ बातों को पूर्णतः त्यागकर भी युगानुकूल बनाना तथा विश्व में जो भद्र है, अच्छा है उसको देशानुकूल बनाना इन दोनों के निर्णय का आधार यही मूल्यबोध है। यही अपने देश का प्रकृतिस्वभाव है। यही हिन्दुत्व है। अपने प्रकृतिस्वभाव पर पक्का व स्थिर रहकर ही कोई देश उन्नत होता है। अंधानुकरण से नहीं।
शासन की अच्छी नीतियों के परिणाम समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक अनुभव में आये, इसलिए प्रशासन के द्वारा उनकी तत्परता, संवेदनशीलता, पारदर्शिता व संपूर्णता के साथ जो कार्यवाही होनी चाहिए, उस प्रमाण में अभी भी नहीं हो रही है। अंग्रेजों का परकीय राज्य व प्रशासन हमारे भूमि व राज्यों पर केवल सत्ता चलाने का काम करता था। अब स्वतंत्र भारत में हमारे अपने शासक हमारे अपने प्रशासन को प्रजापालक प्रशासन बनाएँ यह अपेक्षा है।
केवल राजनैतिक स्वतंत्रता अपने आप में पूर्ण नहीं होती। राष्ट्र के जीवन व्यवहार के सभी पहलुओं की पुनर्रचना उसी ‘स्व’ तथा स्वगौरव के आधार पर खड़ी करनी पड़ती है, जिनसे हमें स्वतंत्रता के संघर्ष के लिए एक जन के नाते प्राणवान बनाकर प्रेरित किया। स्वतंत्र भारत की जनाकांक्षा हमारे संविधान की प्रस्तावना, मूल अधिकार, मार्गदर्शकतत्त्व, व मूलभूत कर्तव्य इन चारों प्रकरणों में परिभाषित हैं। उनके प्रकाश में हमें राष्ट्र के जीवन व्यवहार की, राष्ट्र के विकास की लक्ष्यदृष्टि, दिशा व तद्नुरूप जीवन के अर्थायाम सहित सभी अंगों के विकास का अपना विशिष्ट भारतीय प्रतिमान खड़ा करना पड़ेगा। तब हमारे सारे प्रयास, नीतियाँ पूर्णतः क्रियान्वित व प्रतिफलित होती दिखेंगी।
विश्वभर की अच्छी बातें लेकर भी हम अपने तत्त्वदृष्टि के नींव पर अपना विशिष्ट विकास प्रतिमान व तद्नुरुप व्यवस्था खड़ी करें यह अपने देश के विकास की अनिवार्य आवश्यकता है।
 
श्रीराम जन्मभूमि
राष्ट्र के ‘स्व’ के गौरव के ही संदर्भ में अपने करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्ममर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचन्द्र का भव्य राममंदिर बनाने के प्रयास में संघ सहयोगी है। सब प्रकार के साक्ष्य वहाँ कभी मंदिर था, यह बता रहे हैं; फिर भी मंदिर निर्माण के लिए जन्मभूमि का स्थान उपलब्ध होना बाकी है। न्यायिक प्रक्रिया में तरह-तरह की नई बातें उपस्थित कर निर्णय न होने देने का स्पष्ट खेल कतिपय शक्तियों द्वारा चल रहा है। समाज के धैर्य की बिनाकारण परीक्षा यह किसी के हित में नहीं है। मंदिर का बनना स्वगौरव की दृष्टि से आवश्यक है ही, मंदिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण बनना प्रारम्भ होगा। देशहित की इस बात में कुछ कट्टरपंथी व सांप्रदायिक राजनीति को उभारकर अपना स्वार्थसाधन करनेवाली शक्तियाँ बाधाएँ खड़ी कर रही हैं। ऐसे छलकपट के बावजूद शीघ्रतापूर्वक उस भूमि के स्वामित्व के संबंध में निर्णय हो तथा शासन के द्वारा उचित व आवश्यक कानून बनाकर भव्य मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया जाना चाहिये।
 
निर्वाचन
देश का नेतृत्व कौन करें? जो नीतियाँ चली हैं वह सही हैं अथवा गलत? इन सब बातों का निर्णय प्रजातंत्र की अपने देश की व्यवस्था में पाँच वर्षों में एक बार सामान्य मतदाता करें, यह कर्तव्य उसी का माना जाता है। वह पंचवर्षीय निर्वाचन अपने सामने है। एक प्रकार से इस अधिकार से हम भारत के लोग, सामान्य जनता ही भारत की परिस्थिति का निर्णय व नियंत्रण करनेवाले हो जाते हैं। परन्तु हम यह भी जानते हैं कि उस एक दिन के मतदान से हम जो निर्णय करते हैं, उसके अच्छे-बुरे तात्कालिक परिणाम भोगना; व दीर्घकालीन नफा-नुकसान को झेलने का काम आगे बहुत वर्षों तक अथवा जीवनभर करते रहना; बस! उस एक दिन के पश्चात् हमारे हाथ में इस से अधिक कुछ नहीं रह जाता। पछताना न पड़े ऐसा निर्णय मतदाताओं के द्वारा प्राप्त होना है तो, मतदाताओं को राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर; स्वार्थ, संकुचित भावनाएँ व अपने भाषा, प्रान्त, जाति आदि छोटे दायरों के अभिनिवेश से ऊपर उठकर विचार करना पड़ेगा। उम्मीदवार की प्रामाणिकता व क्षमता, दल के नीति की राष्ट्रहित व राष्ट्र की एकात्मता के साथ प्रतिबद्धता तथा इन दोनों के पहले के तथा वर्तमान के क्रियाकलापों के अनुभव; इनका स्वतंत्र बुद्धि से मतदाताओं को विचार करना पड़ेगा।
प्रजातंत्र की राजनीति का चरित्र ऐसा रहता आया है कि संपूर्णतया योग्य अथवा संपूर्णतया अयोग्य किसी को नहीं मान सकते। ऐसी स्थिति में मतदान न करना अथवा [NOTA] के अधिकार का उपयोग करना, मतदाता की दृष्टि में जो सबसे अयोग्य है उसी के पक्ष में जाता है। इसलिए सभी तरफ के प्रचार को सुनकर, उसके जाल में न फंसते हुए राष्ट्रहित सर्वोपरि रखकर 100 प्रतिशत मतदान आवश्यक है। भारत का चुनाव आयोग भी इसी प्रकार से 100 प्रतिशत मतदान व विचारपूर्वक मतदान का आग्रह करता है। इस नागरिक कर्तव्य की अनुपालना संघ के स्वयंसेवक भी करते आये हैं; व सदा की भाँति इस बार भी करेंगे।
दलगत राजनीति, जातिसम्प्रदायों के प्रभाव की राजनीति आदि से संघ अपने जन्म से सोच-समझकर अलग रहता आया है, रहेगा। परन्तु सम्पूर्ण देश में व्याप्त स्वयंसेवकों की संख्या नागरिक के नाते अपने कर्तव्यों को पूर्ण करे तथा समग्र व सम्यक् राष्ट्रहित के पक्ष में अपनी शक्ति को खड़ा करे, यह देशहित के लिए आवश्यक कार्य है।
 
आवाहन
देशहित की मूलभूत अनिवार्य आवश्यकता है कि भारत के ‘स्व’ की पहचान के सुस्पष्ट अधिष्ठान पर खड़ा हुआ सामथ्र्यसंपन्न व गुणवत्तावाला संगठित समाज इस देश में बने। वह हमारी पहचान हिन्दू पहचान है जो हमें सबका आदर, सबका स्वीकार, सबका मेलमिलाप व सबका भला करना सिखाती है। इसलिए संघ हिन्दू समाज को संगठित व अजेय सामर्थ्यसंपन्न बनाना चाहता है और इस कार्य को सम्पूर्ण संपन्न करके रहेगा। अपने-अपने सम्प्रदाय, परंपरा व रहन-सहन को लेकर अपने आप को अलग माननेवाले अथवा ”हिन्दू“ शब्द से भयभीत होनेवाले समाज के वर्गों को यह समझने की आवश्यकता है कि हिन्दुत्व तो इस देश के सनातन मूल्यबोध को ही कहते हैं। उसके इस सत्य व शाश्वत अंतरंग को कायम रखकर ही उसमें देश-काल-परिस्थति-अनुरुप स्वरूप व व्यवहार के परिवर्तन आये हैं व आगे भी आवश्यकतानुरूप हो सकते है। हिमालय से समुद्रपर्यन्त अखंड भारतभूमि के साथ हिन्दुत्व का तादात्म्य है। उस मूल्यबोध से अनुप्राणित भारत की एक संस्कृति के रंग में सभी भारतीय रंग लें, यह संघ की इच्छा हैं। भारत के सभी पंथ-सम्प्रदायों का आचार धर्म उसी को आधार बनाकर चलता है। इस हिन्दू संस्कृति व समाज की सुरक्षा तथा संवर्धना के लिए प्रखर परिश्रम करनेवाले, प्राणोत्सर्ग करनेवाले महापुरुष हम सबके पूर्वज, हम सबके गौरव हैं। संपूर्ण विश्व को, उसकी विशिष्ट विविधताओं का स्वागत व स्वीकार करते हुए हृदय से अपनाने की क्षमता भारत में इस हिन्दुत्व के कारण है। इसलिए भारत हिन्दुराष्ट्र है। संगठित हिन्दू समाज ही देश की अखण्डता, एकात्मता व निरन्तर उन्नति का आधार है। सारी दुनिया में कट्टरपन, संकुचित स्वार्थ व आत्यंतिक जड़वादिता के कारण मर्यादारहित उपभोग वृत्ति तथा संवेदनहीनता को समाप्त करने का एकमात्र उपाय हिन्दुत्व के शाश्वत मूल्यबोध का स्वीकार यही है। हिन्दू संगठन का कार्य इसीलिए विश्वहितैषी, भारतकल्याणकारी एवं लोकमंगल का कार्य है।
आप सबको आवाहन है कि संघ के स्वयंसेवकों के साथ इस पवित्र ईश्वरीय कार्य में सहयोगी व सहभागी बनते हुए हम सब मिलकर भारतमाता को विश्वगुरु पद पर स्थापन करने के लिए भारत के भाग्यरथ को अग्रसर करें।
नहीं है अब समय कोई, गहन निद्रा में सोने का,
समय है एक होने का, न मतभेदों में खोने का।
बढ़े बल राष्ट्र का जिससे, वो करना मेल है अपना,
स्वयं अब जागकर हमको, जगाना देश है अपना।।
।। भारत माता की जय।।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, नागपुर महानगर, श्री विजयादशमी उत्सव, युगाब्द ५१२०

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

संघ के अखिल भारतीय बीस दिवसीय घोष नैपुण्य वर्ग का समापन ।


हम किसी कला के लिए नहीं , हिन्दू समाज के संगठन के लिए समर्पित हैं - डॉ. भागवत

संघ के अखिल भारतीय बीस दिवसीय घोष नैपुण्य वर्ग का समापन ।
55 मिनिट अनवरत घोष वादन ने सबका मन मोहा ।

भोपाल (विसंके). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठन करना है । शाखा के कार्यक्रम उसका माध्यम है । संघ का स्वयंसेवक हर कार्य मे उत्कृष्टता प्राप्त करता है । हमने घोष वर्ग में कई वाद्यों पर अलग अलग राग रागिनी सीखी है पर हम किसी कला के लिए नहीं अपितु हिन्दू समाज के संगठन के लिए समर्पित है ।

उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी ने भारत भारती आवासीय विद्यालय में गत 25 सितम्बर से चल अखिल भारतीय घोष वर्ग के समापन अवसर पर स्वंयसेवकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किये । उन्होंने कहा कि संघ का कार्यकर्ता सामान्य जैसा ही रहता है, आलौकिक नहीं रहता पर उसे सदैव अपने ध्येय का स्मरण रहता है । अनासक्त होकर काम करता है । उत्कृष्टता की साधना करने वालों को अन्य लोगों के प्रति करुणा , प्रेम और सहानुभूति की दृष्टि होनी चाहिए । 

प्रसिद्ध संगीतकार पंडित भीमसेन जोशी का  उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पंडित जी ने योग्यता होते हुए भी संगीत सीखने के लिए कठिन परीक्षा दी । पर अपने शिष्यों की कठिन परीक्षा नहीं ली । उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें शिक्षा दी । उनके मन मे कभी अहंकार नही रहा । हमें भी यह शिक्षा अपने-अपने प्रान्तों में जाकर स्वयंसेवकों को सिखानी है ।

बिना उत्कृष्टता के आनंद नहीं मिलता । बिना उत्कृष्टता के तृप्ति नहीं मिलती । इसलिए सर्वोत्कृष्ट प्राप्त करना । 

विदित है कि बीस दिन से चल रहे घोष वर्ग में देश के प्रत्येक प्रांत से आये स्वयंसेवक  घोष वाद्यों में नैपुण्यता प्रप्त कर रहे थे । इस अवसर पर बीस दिन सीखे वादन का अनवरत 55 मिनिट भागवत जी और नगर के स्वयंसेवकों के समक्ष जब घोष वादकों ने वादन किया तो सबका मन मोह लिया । घोष वादकों ने नागांग, तूर्य, स्वरद, वंशी, आनक, शंख आदि वाद्यों की भारतीय राग पर आधारित 47 रचनाओं का वादन किया । जिनमे राग भूपाली, शिवरंजनी, बहार, कल्याण, पहाड़ी आदि राग सम्मिलित थे । शंख की एक नई धुन मार्तण्ड का भी वर्ग में निर्माण एवं वादन विशेष रूप से किया गया ।

वर्ग में सम्पूर्ण देश से एक सैंकड़ा प्रशिक्षार्थीयों ने भाग लिया । दो दिन तक संघ के सरसंघचालक का सानिध्य पाकर स्वयंसेवक गदगद हुए । भागवत जी ने भी संघस्थान पर स्वयंसेवकों को विभिन्न वाद्यों का प्रशिक्षण दिया ।

इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख श्री सुनील कुलकर्णी, सह शारीरिक प्रमुख श्री जगदीश कुमार, मध्यभारत प्रांत के संघचालक श्री सतीश पिम्पलीकर, प्रान्त प्रचारक श्री अशोक पोरवाल सहित अनेक क्षेत्रीय और प्रांतीय अधिकारी उपस्थित थे ।
समापन कार्यक्रम के पश्चात सरसंघचालक जी ने सायं 5 बजे नागपूर की ओर प्रस्थान किया ।

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित