खबरे समाचार पत्रों से - जयपुर बैठक की

१९ -मार्च २०१ ३ 

१८  मार्च २०१ 3 
  साभार: दैनिक नवज्योति,जयपुर
साभार: नई दुनिया
 

 
साभार: डेली न्यूज़, जयपुर 

राजस्थान पत्रिका

संघ और भाजपा

                                                                 एक अनाम रिश्ते का सच
गोपाल शर्मा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के उद्देश्यों में कभी किसी राजनीतिक दल का पोषण या उस पर अंकुश लगाए रखना नहीं था। हालांकि संघ की स्थापना के समय स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था और इस रूप में राजनीतिक दल विद्यमान नहीं थेण्ण्लेकिन देश को आजादी मिलने के बाद भी किसी राजनीतिक दल की जरूरत तब तक नहीं समझी गई जब तक महात्मा गांधी की हत्या का मनगढ़ंत आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध नहीं लगा दिया गया और सरसंघचालक माधवराव गोलवलकर सहित हजारों स्वयंसेवकों को गिरफ्तार नहीं कर लिया गया। महत्वपूर्ण यह कि उन हालात में भी संघ के शीर्ष नेतृत्व ने भारतीय जनसंघ के रूप में किसी राजनीतिक दल की आवश्यकता महसूस नहीं की बल्कि केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले श्यामाप्रसाद मुखर्जी सहित संघ के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों ने राजनीतिक दल की उपयोगिता को सामने रखा। तत्कालीन सरसंघचालक इस विचार से सहमत नहीं थे लेकिन उस माहौल में जिस तरह संघ को कुचलने की कोशिशें हुईं उससे राजनीतिक दल बनाने का विचार बलवती होता गया और उसका परिणाम भारतीय जनसंघ के रूप में सामने आया। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी का गठन भी स्वाभाविक प्रक्रिया का अंग नहीं था। जनता पार्टी के दौरान जनसंघ से जुड़े कार्यकर्ताओं पर दोहरी सदस्यता का आरोप लगा। संघ को मुद्दा बनाकर राजनीतिक षडयंत्र रचा जाने लगा तब जाकर जनसंघ से जुड़े नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। दोनों ही अवसरों पर संघ की पाश्र्व भूमिका रही और संघ ने नहीं माना कि उसे कोई राजनीतिक दल चलाना है और उसे प्रखर करने के लिए अन्य सभी राजनीतिक दलों से लोहा लेना है।
चूंकि भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे नेताओं.कार्यकर्ताओं में बड़ी सख्या संघ समर्थकों और कार्यकर्ताओं की रही है इसलिए संघ भी गाहे.बगाहे इन दलों का समर्थन करता रहा। लेकिन कभी संघ ने पूरे पांच साल तक जनसंघ.भाजपा का ख्याल रखने और उसे सहयोग देते रहने की भूमिका नहीं निभाईय यानी स्थितियां ये भी बनीं कि संघ ने लगातार कहा कि उसे राजनीति और राजनीतिक दल से कोई मतलब नहीं है लेकिन चुनाव के समय राजनीति में विविध सहयोगी कार्यकर्ताओं को सहयोग भी दिया जाता रहा इसलिए संघ का यह कहना सही है कि उसका राजनीति से कोई संबंध नहीं हैय साथ हीए उस पर आरोप लगता रहा कि वह भाजपा.जनसंघ के जरिए राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेता रहा है। बार.बार बोलने से यह झूठ कई बार सच लगने लगता है।
संघ और भाजपा में कोई रिश्ता नहीं है यह भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन इस रिश्ते का सच यही है कि दोनों विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर विचार.विमर्श करते हैं और अपना.अपना फैसला खुद करते हैं। संघ को अपने फैसले करने में भाजपा नेताओं की कत्तई जरूरत नहीं होती जबकि भाजपा के कुछेक बड़े फैसलों में संघ पदाधिकारियों की राय की अहम भूमिका होती है। लेकिन संघ सिर्फ सुझाव देता हैण्ण्उसे मानना.नहीं मानना भाजपा पर निर्भर है और भाजपा उसे कई बार नहीं भी मानती है। लेकिन चूंकि संघ अपना स्पष्टीकरण देने मीडिया के पास नहीं जाता इसलिए उसके बारे में कही जा रही हर बात को सही मान लिया जाता हैय हकीकत कुछ अलग ही है।
चूंकि भारतीय जनता पार्टी देश का प्रमुख विपक्षी दल है इसलिए सत्ता का प्रमुख दावेदार भी है इसलिए जब भी भाजपा के आगे बढऩे की बात आती है तो उसके संघ से रिश्ते को हवा देने की कोशिश होती है तथा उसे साम्प्रदायिक ठहराकर आरोपों के कटघरे में खड़ा कर देते हैं। ऐसे में मुख्य विषय यह है कि संघ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से पर्याप्त दूरी बना लेए राजनीतिक दल से सौहाद्र्र संबंध रखे ही नहीं या फिर भारतीय राजनीति को उचित दिशा देने का प्रयत्न जारी रखे। जरूरत पडऩे पर अंकुश भी लगाए। इसी लिहाज से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का भी ध्यान रखे और उसे मार्गदर्शन करते रहे। विषय यह भी है कि संघ अपनी सोच सिर्फ भारतीय जनता पार्टी तक सीमित रखे या फिर उसे व्याप देने की कोशिश भी करे। करीब 25 साल पहले संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने सुझाव दिया था कि राष्ट्रीय हित से जुड़े मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस मिलकर काम करें। उनका उस समय मत यह भी था कि क्षेत्रीय दल जिम्मेदार भूमिका नहीं निभा रहे हैंय उससे देश की एकता.अखंडता को खतरा हो सकता है। इसलिए दोनों दलों को राष्ट्रीय मुद्दों पर एकजुटता से सोचना चाहिए। यह विषय आगे नहीं बढ़ा। सरदार पटेल भी कुछ इसी तरह का भाव रखते थे। उन्होंने एक बार तो कंाग्रेस में यह प्रस्ताव पारित करवा दिया था कि संघ के स्वयंसेवक भी कांग्रेस की सदस्यता ले सकते हैंय बाद में जवाहरलाल नेहरू ने विदेश से लौटकर इस प्रस्ताव को निरस्त करवाया।
इस स्थिति में कितनी ही कोशिशें के बावजूद भाजपा को संघ से अलग करके देखा जाना संभव नहीं रह जाता। उस स्थिति में भाजपा में चलने वाली कलह.गुटबाजी और सत्ता संघर्ष न केवल भाजपा को कमजोर करती है बल्कि संघ भी उससे अलग नहीं रह पाता। लोग उम्मीद करते हैं कि विभिन्न मामलों में उसकी सुनी जाए। इसके साथ ही रिश्वत और दलाली की बीमारी भी वाया कांगे्रस होते हुए भाजपा तक जा पहुंची है और इने.गिने नेताओं के अलावा ज्यादातर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। कर्नाटक में हुए भ्रष्टाचार ने तो भाजपा को खोखला कर दिया है। जिस कर्नाटक के कारण भाजपा को राष्ट्रीय स्तर मिलने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है ण्ण्आज वहां भाजपा नेताओं के भ्रष्टाचार के किस्से गली.गलीए गांव.गांव गूंज रहे हैं। लोग मान बैठे हैं कि भाजपा वहां आखिरी सांसें ले रही हैं। भाजपा की अन्य सरकारें भी कटघरे में खड़ी है।
भाजपा में मदांधए लम्पटए स्वार्थी और अपराधियों का प्रवेश तेजी से हो रहा हैण्ण्त्यागी.तपस्वी कार्यकर्ता पाश्र्व में जा रहे हैं यह स्थिति पूरे देश में है। कांग्रेस इन्हीं सब अवगुणों के कारण धराशायी होती रही हैण्ण्भाजपा नेता भी उसी रास्ते पर हैं। कांगे्रस के नेतागण सामान्यतया विनम्र होते हैंण्ण्भाजपा नेताओं में उसका भी नितांत अभाव है। जनता को भाजपा में कहीं आशा की किरण नजर नहीं आती। व्यक्तिगत गुणों के कारण नरेन्द्र मोदीए वसुंधरा राजेए शिवराज सिंह चौहानए रमन सिंह जैसे नेता जरूर जनता की आशाओं के केंद्र बने हुए हैं। जनता में बड़ा वर्ग नरेन्द्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखकर आह्लादित होता रहता हैय संघ को एक फैसला उस विषय पर भी विशेष रूप से करना हैय जिनके लिए उलटी गिनती शुरू हो चुकी हैं।


साभार: राजस्थान पत्रिका,जयपुर 
साभार:  नवज्योति, जयपुर 
साभार: डेली न्यूज़, जयपुर 
साभार: दैनिक भास्कर, जयपुर 
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साभार: दैनिक भास्कर, जयपुर 
साभार: राजस्थान पत्रिका, जयपुर 



नाथ आश्रम पहुंचे भागवत


 जयपुर, 9 मार्च। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में भाग लेने के लिए जयपुर पहुंचे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने आज सुबह हरमाड़ा स्थित नाथ आश्रम में योगी रविनाथ से मुलाकात कर मंत्रणा की। सवेरे करीब 10 बजे नाथ आश्रम में पहुंचे भागवत यहां करीब एक घंटा रुके। भागवत ने आज का अपना अधिकांश समय वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और प्रबुद्धजनों से मुलाकात में ही व्यतीत किया। जयपुर में भागवत संघ कार्यालय भारती भवन की जगह स्थानीय कार्यकर्ता के आवास पर ही ठहरे हुए हैं। दोपहर तीन बजे वे सेवाभारती के सहकार मार्ग स्थित सेवा भवन का गणेश पूजन करेंगे। प्रतिनिधि सभा के लिए बैठकों का दौर कल से शुरू होगा। भागवत आज कार्यकर्ताओं से मंत्रणा के बाद शाम को ही सभा स्थल केशव विद्यापीठ पहुंच जाएंगे। (साभार: महानगर टाइम्स, जयपुर)

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